यह एक फिल्म नहीं मगर इसमें कुछ पात्र तो है क्या करे अगर वो काल्पनिक नहीं है तो.. नाम न ले.. इशारों में समझा दे.. उस दौर में चले जाये जब लोगो के पास भाषा नहीं थी इशारों इशारों में बाते होती थी.. नहीं मैं किसी प्रेमी युगल के बारे में बात नहीं कर रहा उनसे मुझे पूरी सहानुभूति है मैंने खुद भी कई बार अपने सीधे हाथ की ऊँगली को उल्टे हाथ की कलाई पर लगाते हुए फिर सीधे हाथ की उंगलियों से पांच बजाते हुए इशारे किये है.. मगर ये वो इशारा नहीं है.. नहीं नहीं ये बी इशारा भी नहीं.. जिनकी फिल्म कभी आपने देखी हो.. ये तो इशारों इशारों में होने वाली बातो की बात है..
क्या कहा आपको नहीं पता? हे संकट मोचन काहे ब्लोगर बनाया इनको?? ब्लोगर होकर भी यदि इशारों को नहीं समझो तो नालत है आप पर.. यहाँ पर इशारों इशारों पर पोस्ट लिखी जाती है.. इशारों इशारों में नाम ले लिया जाता है.. जिसको इशारा किया है वो इशारा समझ कर अपने ब्लॉग पर इशारा करने वाले की तरफ इशारा करते हुए पोस्ट लिख देते है.. देखिये न कैसे इशारों इशारों में बात हो जाती है और हम बूझ ही नहीं पाते की लफडा क्या था..
हालाँकि बूझने के मामले में हमारा भी कोई जवाब नहीं.. जब भी हम जोधपुर में अपने भाई बंधुओ के साथ होते है तो हमारा प्रिय खेल डम्ब शराज खेलते है.. ये खेल तो हमारे डा. अनुराग का भी फेवरेट है उन्होंने तो अपने साहबजादे आर्यन (अगला आमिर खान वही है.. क्या पता आमिर से दुगुना हो.. वो क्या है कि आजकल दुगुने का ही ज़माना है ) के जन्मदिन की पार्टी में भी बच्चो को डम्ब शराज ही खिलाया था.. नहीं नहीं खाने में नहीं जी.. ये तो खेल खिलाने वाला खाना है.. बाकी खाना तो बच्चो ने शानदार खाया था.. पर उसके विषय में फिर कभी.. हम डम्ब शराज पर आते है.. दो टीम बनती है हर टीम के एक बन्दे को दूसरी टीम का बंदा एक फिल्म का नाम बताता है.. और जिसे नाम बताया गया है उसे फिल्म का नाम अपनी टीम को इशारों में समझाना होता है.. बस इशारों को समझने की पॉवर आपमें होनी चाहिए..
जब हम पिछले साल अपने ऑफिस की तरफ से एनुअल ट्रिप के लिए जबलपुर (जबलपुर के ब्लोगरो से तो आप परिचित है ही... देखिये तस्वीर में जबलपुर का प्रसिद्द धुँआधार जल प्रपात, तस्वीर रोप वे से ली गई है ) गए थे तो पुरे रास्ते ट्रेन में हमने यही खेल खेला था.. और जब सुबह उठे तो हमारे पास के एक सज्जन ने कहा भाईसाहब कल रात मैंने फिल्मो के जो नाम सुने वो अपनी ज़िन्दगी में भी कभी नहीं सुने.. ऐसे ही एक नाम मेरे कुलीग मनोज (जिनकी साईट का बैनर आप मेरे ब्लॉग पर साइडबार में देख सकते है) ने दिया था.. उस फिल्म का नाम था "हावडा ब्रिज पर लटकता खुनी खंज़र" अब आप भी बताइए क्या ऐसी कोई फिल्म है ? पर हमने फिर भी बूझ लिया हमारे साथी की हरकतों से..
तो ये होती है बूझने की कला.. खैर बूझने की कला तो ये है मगर बुझाने की कला क्या? नहीं नहीं इशारों से लगने वाली आग को बुझाने कि कला नहीं पहेलिया बूझने की कला.. अरे नहीं फिर भटक गए आप.. ये ताऊ की पहेली नहीं वो तो बूझना अपने बस की बात नहीं.. ये तो वो पहेली जो हम बूझाते है और लोग बूझते है.. कुछ लोगो को तो एक बार में ही सब समझ में आ जाता है पर कुछ लोगो को समय लगता है.. किन्तु ये भी तो सही है की समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता.. एक कप कॉफी पी भी नहीं..
बूझने की बात होती ही रहती है प्रत्यक्षा जी पोस्ट में पूछती है तैमूर तुम्हारा घोड़ा किधर है ? अंकित अपने दोस्त के घर पर देखता है प्रत्यक्षा जी को तो पूछता है तैमूर घोड़ा युस करता था? वो तो लंगडा था ना? प्रत्यक्षा जी कहती है.. जी अंकित तैमूर लंगड़ा ही था , तभी घोड़ा चाहिये था न.... ओह आई सी टाइप का तो कोई रिप्लाई आता नहीं है अंकित की तरफ से.. पर उसके दोस्त को कोई बूझ नहीं पाता.. खुद अंकित भी नहीं..
अब हमारे पास एक्स रे आईस तो है नहीं कि देख ले अन्दर झाँक कर क्या चल रहा है?
किलाईमेक्स का टाईम
अब किलाईमेक्स का टाईम आ गया है ठीक वैसे ही जैसे बर्खुर्दारो का किलाईमेक्स का टाईम आता है और वो पिक्चर ख़त्म कर देते है.. लेकिन शाहरुख़ खान के डायलोग 'पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त!' की तर्ज पर उनके सिक्वल भी जल्दी आ जाते है.. पर ये किलाईमेक्स वैसा नहीं है ये चिटठा चर्चा वाला किलाईमेक्स है.. जब अनूप जी लिखते है अंत में.. और अंतत सब मोहित हो जाते है..
अनूप जी को मोहित करने की कला आती है.. उनकी एक लाईना से सीख कर तो जेंटलमैनत्व को प्राप्त नौजवान, संस्कारी और उर्जावान (ऐसा हम नहीं कहते Source देखिये) शिव कुमार मिश्र ने बाकायदा अनूप जी के नाम के साथ एक लाईना लिख मारी थी.. हमने तो पहले ही कहा था कि अपनी इन एक लाईना का पेटेंट करवा लीजिये पर उन्होंने अपने विवेक से काम नहीं लिया.. और देखिये ना कितनी बड़ा नुकसान हुआ.. आज हर कोई उनके फोर्मेट को चुराकर एक लाईना लिख रहा है.. यकीन ना हो तो हमारे टिपण्णी बक्से की तरफ आँख उठाकर देखिये एक लाईनों से भरा पड़ा है..
क्या कहा आपको नहीं पता? हे संकट मोचन काहे ब्लोगर बनाया इनको?? ब्लोगर होकर भी यदि इशारों को नहीं समझो तो नालत है आप पर.. यहाँ पर इशारों इशारों पर पोस्ट लिखी जाती है.. इशारों इशारों में नाम ले लिया जाता है.. जिसको इशारा किया है वो इशारा समझ कर अपने ब्लॉग पर इशारा करने वाले की तरफ इशारा करते हुए पोस्ट लिख देते है.. देखिये न कैसे इशारों इशारों में बात हो जाती है और हम बूझ ही नहीं पाते की लफडा क्या था..
हालाँकि बूझने के मामले में हमारा भी कोई जवाब नहीं.. जब भी हम जोधपुर में अपने भाई बंधुओ के साथ होते है तो हमारा प्रिय खेल डम्ब शराज खेलते है.. ये खेल तो हमारे डा. अनुराग का भी फेवरेट है उन्होंने तो अपने साहबजादे आर्यन (अगला आमिर खान वही है.. क्या पता आमिर से दुगुना हो.. वो क्या है कि आजकल दुगुने का ही ज़माना है ) के जन्मदिन की पार्टी में भी बच्चो को डम्ब शराज ही खिलाया था.. नहीं नहीं खाने में नहीं जी.. ये तो खेल खिलाने वाला खाना है.. बाकी खाना तो बच्चो ने शानदार खाया था.. पर उसके विषय में फिर कभी.. हम डम्ब शराज पर आते है.. दो टीम बनती है हर टीम के एक बन्दे को दूसरी टीम का बंदा एक फिल्म का नाम बताता है.. और जिसे नाम बताया गया है उसे फिल्म का नाम अपनी टीम को इशारों में समझाना होता है.. बस इशारों को समझने की पॉवर आपमें होनी चाहिए..
जब हम पिछले साल अपने ऑफिस की तरफ से एनुअल ट्रिप के लिए जबलपुर (जबलपुर के ब्लोगरो से तो आप परिचित है ही... देखिये तस्वीर में जबलपुर का प्रसिद्द धुँआधार जल प्रपात, तस्वीर रोप वे से ली गई है ) गए थे तो पुरे रास्ते ट्रेन में हमने यही खेल खेला था.. और जब सुबह उठे तो हमारे पास के एक सज्जन ने कहा भाईसाहब कल रात मैंने फिल्मो के जो नाम सुने वो अपनी ज़िन्दगी में भी कभी नहीं सुने.. ऐसे ही एक नाम मेरे कुलीग मनोज (जिनकी साईट का बैनर आप मेरे ब्लॉग पर साइडबार में देख सकते है) ने दिया था.. उस फिल्म का नाम था "हावडा ब्रिज पर लटकता खुनी खंज़र" अब आप भी बताइए क्या ऐसी कोई फिल्म है ? पर हमने फिर भी बूझ लिया हमारे साथी की हरकतों से..
तो ये होती है बूझने की कला.. खैर बूझने की कला तो ये है मगर बुझाने की कला क्या? नहीं नहीं इशारों से लगने वाली आग को बुझाने कि कला नहीं पहेलिया बूझने की कला.. अरे नहीं फिर भटक गए आप.. ये ताऊ की पहेली नहीं वो तो बूझना अपने बस की बात नहीं.. ये तो वो पहेली जो हम बूझाते है और लोग बूझते है.. कुछ लोगो को तो एक बार में ही सब समझ में आ जाता है पर कुछ लोगो को समय लगता है.. किन्तु ये भी तो सही है की समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता.. एक कप कॉफी पी भी नहीं..
बूझने की बात होती ही रहती है प्रत्यक्षा जी पोस्ट में पूछती है तैमूर तुम्हारा घोड़ा किधर है ? अंकित अपने दोस्त के घर पर देखता है प्रत्यक्षा जी को तो पूछता है तैमूर घोड़ा युस करता था? वो तो लंगडा था ना? प्रत्यक्षा जी कहती है.. जी अंकित तैमूर लंगड़ा ही था , तभी घोड़ा चाहिये था न.... ओह आई सी टाइप का तो कोई रिप्लाई आता नहीं है अंकित की तरफ से.. पर उसके दोस्त को कोई बूझ नहीं पाता.. खुद अंकित भी नहीं..
पर इस दोस्त के घर पर और भी कई दोस्त मिलते है उनमे से कई तो ब्लोगर भी है.. उन ब्लोगर दोस्तों के भी और कई दोस्त होंगे बढती दोस्ती को देखते है तो कुछ धव्निया उत्पन्न होती सी प्रतीत होती है.. कुछ गुट गुट टाइप की आवाज़ आती है.. थोडी ही देर में घुट घुट में तब्दील हो जाती है.. और घुटने में दर्द होने लग जाता है कहते है जिसको भी दिल से तकलीफ होती है वो घुटने के दर्द से परेशान रहते है.. घुटने पर बाहर कोई जख्म लगा हो तो फिर भी मलहम लगा दे पर अन्दर से घुटने की तकलीफ का क्या किया जाए..
अब हमारे पास एक्स रे आईस तो है नहीं कि देख ले अन्दर झाँक कर क्या चल रहा है?
किलाईमेक्स का टाईम
अब किलाईमेक्स का टाईम आ गया है ठीक वैसे ही जैसे बर्खुर्दारो का किलाईमेक्स का टाईम आता है और वो पिक्चर ख़त्म कर देते है.. लेकिन शाहरुख़ खान के डायलोग 'पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त!' की तर्ज पर उनके सिक्वल भी जल्दी आ जाते है.. पर ये किलाईमेक्स वैसा नहीं है ये चिटठा चर्चा वाला किलाईमेक्स है.. जब अनूप जी लिखते है अंत में.. और अंतत सब मोहित हो जाते है..
अनूप जी को मोहित करने की कला आती है.. उनकी एक लाईना से सीख कर तो जेंटलमैनत्व को प्राप्त नौजवान, संस्कारी और उर्जावान (ऐसा हम नहीं कहते Source देखिये) शिव कुमार मिश्र ने बाकायदा अनूप जी के नाम के साथ एक लाईना लिख मारी थी.. हमने तो पहले ही कहा था कि अपनी इन एक लाईना का पेटेंट करवा लीजिये पर उन्होंने अपने विवेक से काम नहीं लिया.. और देखिये ना कितनी बड़ा नुकसान हुआ.. आज हर कोई उनके फोर्मेट को चुराकर एक लाईना लिख रहा है.. यकीन ना हो तो हमारे टिपण्णी बक्से की तरफ आँख उठाकर देखिये एक लाईनों से भरा पड़ा है..
oh, I see !!!!!!!!!!!
ReplyDeleteइस बार बोल देता हूँ......
ख़ुद ही उलझ गए ..
ReplyDeleteआई शक्कै !
ReplyDeleteहे संकट मोचन काहे ब्लोगर बनाया इनको?? ब्लोगर होकर भी यदि इशारों को नहीं समझो तो नालत है आप पर.. यहाँ पर इशारों इशारों पर पोस्ट लिखी जाती है.. इशारों इशारों में नाम ले लिया जाता है.. जिसको इशारा किया है वो इशारा समझ कर अपने ब्लॉग पर इशारा करने वाले की तरफ इशारा करते हुए पोस्ट लिख देते है.. देखिये न कैसे इशारों इशारों में बात हो जाती है और हम बूझ ही नहीं पाते की लफडा क्या था..
ReplyDeleteभाई कुश इतनी बारीकी से पोस्ट को छान डाला कि "नालत" शब्द गलत मिला है वो लानत होता है. कहीं यही जवाब तो नही है?:)
और अगर नही है तो कल की हमारी पहेली मे यही पोस्ट छाप कर और पूछ लेते हैं. शायद कोई जवाब मिल जाये.
रामराम.
अजब उलझन भरी पहेली पोस्ट है . समझ समझ के फेर में हम तो नासमझ ही रह गए ...कोई समझे तो मुझे भी समझा दे
ReplyDeleteशब्दों की जादूगरी मजेदार है कुश भाई:)
ReplyDeleteभाई, हम तो पोस्ट पढ़ते रहे और समझी और नासमझी के बीच झूलते रहे :)
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ReplyDeleteडा,झटका का हमदर्दी से लबरेज़ दिमागीन टानिक मँगवाया है,
मेरे नुक्तों का रास्ता रोके पड़े हैं, कमबख़्त ये अल्फ़ाज़ !
गु़ंज़ाइश निकलते ही लौट कर आता हूँ !
शुक्रिया ..
प्याज़ की परतों सा मानव मन...कैसे समझा जाए.. इस पर भी एक पोस्ट का इंतज़ार है... :)
ReplyDeleteहम जबलपुर में ही बैठे अपनी समझ पर माथा धुन रहे हैं..
ReplyDeleteनालत है !
ReplyDeleteसाला यहाँ भी 'डम्ब शेरेड" खेल रहे हो.......टाइम लिमिट ९० सेकेण्ड की थी....कल फिर आयेंगे देखने कौन मिस्त्री है ....
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ReplyDeleteवो क्या है कि कुश भाई साहब..भई दीमागीन तो फ़ेल हो गया दिक्खे है,
तब मैं क्लिनिक विच था, अब घर पर दो कप क़ाफ़ी के संग यह पोस्ट पी डाली !
पर टिप्पणी का विरेचन ( उल्टी-वमन जैसा ही कुछ ! ) होता दिख ना रैया !
इंतेज़ार कर... इशारा साफ़ है
मैं स्थिति पर अपनी नज़र स्थित किये हुये हूँ..
बस जरा और भी खुलासा हो जाये..
रुक अभी आता हूँ !
पढ़ा पढ़ा और पढ़ा.. कुछ समझ नहीं आया..
ReplyDeleteयार अब पर्दा हटाओ . रात के दस बज चुके हैं कोई क्ल्यु तो दो.:)
ReplyDeleteरामराम.
ham to na boojh paaye ji...ab black board lekar khud hi samjha do!jalebi jaisi gol gol post hai:)
ReplyDelete" ये क्या हुआ ? कैसे हुआ ? क्यूँ हुआ ? छोडो ...ये ना बुझो ..ओहोहो .."
ReplyDelete- लावण्या
लो भाई आप की पहेली का जबाब, ........ सही है ना? अरे यार इशारो को समझो ना, क्या नही समझे दोबारा........ ? अरे यार अभी भी नही समझे...तो यहां देखो... ब्लोगर होकर भी यदि इशारों को नहीं समझो तो नालत है आप पर.. यहाँ पर इशारों इशारों पर पोस्ट लिखी जाती है.. इशारों इशारों में नाम ले लिया जाता है.. जिसको इशारा किया है वो इशारा समझ कर अपने ब्लॉग पर इशारा करने वाले की तरफ इशारा करते हुए पोस्ट लिख देते है.. ओर भईया इशारो इशारो मए जबाब भी दिया जाता है, ओर ब्लोगर होकर भी यदि इशारों को नहीं समझो तो नालत है आप पर..
ReplyDeleteधन्यवाद
ham to bas issi mae khush haen ki is baar ham bachh gayae
ReplyDeleteआजकल नेट के समस्या के चलते कल रात तो पोस्ट पढ़ ली थी पर पोस्ट पढ़कर कमेन्ट करने मे ही उलझ गए थे । :)
ReplyDeleteमाने कमेन्ट publish ही नही हो रहा था ।
अरे पर अभी तक कुछ खुलासा नही हुआ है । :)
जाने भी दो यारों
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
किनती (कितनी) भीषण पहेली पूछ डाली कुश भैया, बाप रे!
ReplyDeletewah yaar ,1st baar apke blog main aaya wo bhi apka profile dekhne ke baad jismein kai chezin common hai (espacilly gulzaar).
ReplyDeletePaheli nahi bhooj paaya iska afsoos hai...
..isliye zayada ki main apne group main paheli crack karne main awwal raha hoon, haan agar ap koi hint dein to shayad m,ain auron se jeet jaoon,
par apki shabdo ki chitrakario acchi lagi...
aata rahoonga ab.
Dhanyavaad.
ज्यादा बुझाया नहीं पर लगता है कभी पिटोगे किसी के हाथ! इससे ज्यादा भविष्यवाणी के लिये तो मुझे गत्यात्मक ज्योतिष सीखना होगा। :-)
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ReplyDeleteउत्तर पुस्तिका कहाँ ज़मा करनी है,
शिवभाई के लगे पठाय दूँ ?
सुन्दर! हम बूझना शुरू कर दिये थे और सब बूझ भी लिये थे लेकिन यहां नामचीन बर्खुदारों की तरह आप अपनी दुकानै समेट दिये। कित्ती खराब बात है।
ReplyDeleteएक अलग तरह की पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा!
भई !! अपनी समझ के तो परे है.
ReplyDeleteभई !! अपनी समझ के तो परे है.
ReplyDeleteभाई अब अपनी समझ मे आगया सौ प्रतिशत. कहे तो जवाब दे दूं या जवाब देने का समय निकल गया?:)
ReplyDeleteरामराम.
मिस्ट्री तो सच में जटिल है ! हम तो थे ही नहीं इस बीच नहीं तो सोल्व कर देते :-)
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