छोटा था तब सब छुपम छुपाई खेलते थे.. जब भी मेरी डेन होती मेरा बड़ा भाई कहता इसकी जगह मैं जाऊंगा.. और मैं बच जाता.. स्कूल से लौटते वक़्त भी अपना बस्ता उसी के कंधे पर होता था.. और कभी कभी तो मैं भी..
घर में छुपम छुपाई खेलते वक़्त उसे पता होता था कि मैं कहा छुपा हूँ.. पर फिर भी वो न ढूंढ पाने की ऐक्टिंग करता.. और तो और उसको मुझपे इतना भरोसा था वो अपनी गर्ल फ्रेंड से मिलने वाले गिफ्ट्स भी मुझसे छुपा कर मेरे स्कूल बैग में रखता.. उसे पता था मैं इसको कभी खोल कर नहीं देखूंगा..
वो छुपम छुपाई तो पीछे छूट गयी अब तो लाईफ खेलती है छुपम छुपाई.. इस खेल के अपने नियम है.. सबको अपनी डेन खुद लानी पड़ती है
छुपी तो खुशिया बिलकुल हमारे सामने ही होती है पर हमें नज़र नहीं आती बस फर्क यही है कि इस बार हम ऐक्टिंग नहीं कर रहे होते है..
ऊपर वाला हमें भी तो जानता है अच्छे से.. सारी खुशिया उसने छुपा रखी है हमारे ही मन में बस खुद का मन खोल कर हम देखते ही नहीं ठीक वैसे ही जैसे मैंने कभी अपना स्कूल बैग नहीं खोला..
मज़े की बात है लाईफ की छुपम छुपाई में छुपी हुई कोई ख़ुशी पीछे से आकर थप्पी नहीं देती.. बस ढूंढते रहो.. जब तक मिल नहीं जाती..
अनुराग जी से थोडी सी स्टाइल उधार लेते हुए बहुत पहले लिखी अपनी एक त्रिवेणी आपके साथ शेयर कर रहा हूँ..
"खोया खोया सा रहता हू आजकल..
जबसे तुझे देखा है किसी और के साथ..
ज़िंदगी तू इतनी बद्चलन क्यो है.."
sabse pahle .... ye to meri fav. triveni hai tumhari likhi hui.....aur us par ye likhawat jindgi ke naam.....mast hai ji....aur maza aaya aapne jo photo lagake rakhi hai ..... kuch bachche ...dare hue..sahme hue..ped ke piche jankte hue....mujhe laga ki main bhi unhime se ek hu kahi... :)
ReplyDeleteZindagi se life tak ki ye yatra aur usme aaye badlav bahut pasand aaye ....
ReplyDeleteवाह! वाह!
ReplyDeleteगजब लिख दिया भाई. ज़िन्दगी नहीं रही अब. सच है, अब लाइफ ही बची है. छुपम-छुपाई चल रही है. त्रिवेणी बहुत अच्छी लगी. ज़िन्दगी बद्चलन...वाह!
गज़ब का लेखन और खूबसूरत त्रिवेणी ...........
ReplyDeleteमज़े की बात है लाईफ की छुपम छुपाई में छुपी हुई कोई ख़ुशी पीछे से आकर थप्पी नहीं देती.. बस ढूंढते रहो.. जब तक मिल नहीं जाती..waah ye chupan chupai ka khel aur khushi dhundhane ki raah bahut raas aa gayi,sachkaha aapne khushi to mann mein chupi hoti hai,bas uska milna jaruri hai.
ReplyDeleteaur aaj ki triveni bahut khas,zindagi ki badchalani waah kya baat keh di.
कुश इस उम्र में इस तरह की दार्शनिकता पूर्ण पोस्ट मत लिखा करो भाई...डर लगता है...मजाक की बात छोडें तो लिखा बहुत खूब है...अगली बार जयपुर मिलने पर एक काफी इस पोस्ट के लिए अलग से पिलाऊंगा...
ReplyDeleteनीरज
इस लिए तो इसका नाम ज़िन्दगी है .कभी मनाती कभी रूठ जाती है ... उस छिपी ख़ुशी को तलाश तो हमने ही करना होता है ..पर हम ही मौका चूक जाते हैं ...त्रिवेणी बहुत जबरदस्त लगी .."ज़िंदगी तू इतनी बद्चलन क्यो है.." ..इसके बाद जैसे सब लफ्ज़ खामोश हो जाते हैं ..सहज के रख ली है यह मैंने अपनी डायरी के पन्नो में ..शुक्रिया
ReplyDeleteकुश भाई ये गजब का लिखने का स्टाईल हमें भी उधार दे दो कुछ दिनों के लिए।
ReplyDeleteछुपी तो खुशिया बिलकुल हमारे सामने ही होती है पर हमें नज़र नहीं आती बस फर्क यही है कि इस बार हम ऐक्टिंग नहीं कर रहे होते है..
सच में। और त्रिवेणी के तो क्या कहने, जी करता है कि .......
वैसे कुश भाई क्या बात है इधर छुपम छुपाई उधर अनुराग जी की आईस- पाईस।
"खोया खोया सा रहता हू आजकल..
ReplyDeleteजबसे तुझे देखा है किसी और के साथ..
ज़िंदगी तू इतनी बद्चलन क्यो है..
बहुत ही सार्थक और दार्शनिक पोस्ट है. इस उम्र मे दार्शनिकता अच्छी बात नही है [ अटल जी की स्टाईल में :)]
बहुत खूबसूरत लगी त्रिवेणी..जिंदगी के बदचलन होने के बावजूद.
रामराम.
आप के और अनुराग जी के लेख अक्सर एक समय आते हैं और इस बार भी ,पिछली पोस्ट..इमोशनल अत्याचार वाली]-की तरह शीर्षकों में काफी समानता है.क्या महज इत्तिफाक!
ReplyDeleteआप की त्रिवेणी भी खूब है.
आप ने लिखा-
'छुपी तो खुशिया बिलकुल हमारे सामने ही होती है पर हमें नज़र नहीं आती बस फर्क यही है कि इस बार हम ऐक्टिंग नहीं कर रहे होते है..''
जीवन दर्शन की झलक आ रही है आज के इस लेख में..
शायद समय का तकाज़ा ही है कि जिंदगी..'लाईफ ' बन रही है!
जिंदगी कब लाईफ बन गयी पता ही नहीं चला.....
ReplyDeleteअपनी भी लाइफ के साथ छुपम छुपाई चल रही है....
वाह कुश भाई मजा आ गया पढकर और
ReplyDeleteये त्रिवेणी तो
"खोया खोया सा रहता हू आजकल..
जबसे तुझे देखा है किसी और के साथ..
ज़िंदगी तू इतनी बद्चलन क्यो है.."
बेहतरीन मजेदार और क्या नाम दूं शब्द नहीं मिल रहे
कुश भाई, ज़मीं से उठाये कुछ शब्द हमें भी उधार दे दीजिये.... :)
ReplyDeleteकमाल की बात है .जिंदगी में इत्तेफाक दर इत्तेफाक ...संडे रात वापस आया ,कल फुर्सत नहीं मिली....अक्सर कोई पोस्ट करते वक़्त कुछ देखता नहीं हूँ.....आइस - पाइस वर्ड पहले पोस्ट के भीतर था ,ना जाने क्या हुआ की उसे शीर्षक में डाल दिया... शाम को देखा तो तुम्हारी पोस्ट भी.....कमाल है.अक्सर त्रिवेणी लिखता हूँ तो लोग पोस्ट के कंटेंट के मूड से चेंज हो जाते है .आज कुछ मूड दूसरा था.....
ReplyDeleteखैर इसका भी मजा है.....उम्मीद है रात को फोन करोगे.....
जिन्दगी कहाँ बदचलन हुयी भाई कुश -जो बदचलन है वही बदचलन है !
ReplyDeleteजिन्दगी तो कैलिडोस्कोप है। हर बार नया नजारा देती है।
ReplyDeleteसच कह रहे हैं जी, अब तो जवानी भी बुढ़ापे के दर पर दस्तक दे रही है, क्या करें लाइफ ही ऐसी हो गई है।
ReplyDeleteत्रिवेणी के लिए तो कहना ही क्या, बस अब तक कानों में उसके शब्द गूँज रहे हैं।
Kush,
ReplyDeleteAapkee "triveni" behad achhee lagee...iske aage aur kuchh nahee keh saktee...alfaaz nahee...
Aadar aur shubhkamnayon sahit
Shama
बहुत खूब ,ऐसे ही लिखते रहिये .
ReplyDeleteहमेँ आपकी त्रिवेणी और बचपन की मधुर यादोँ से सजी ये पोस्ट दोनोँ बहुत अच्छे लगे कुश भाई
ReplyDeleteलाईफ की छुपम छुपाई में छुपी हुई कोई ख़ुशी पीछे से आकर थप्पी नहीं देती.. बस ढूंढते रहो.. जब तक मिल नहीं जाती..
ReplyDeleteसही है ... और त्रिवेणी भी अच्छी लिख ली आपने ... बधाई।
aaj to tumhari aur anurag ki gazab telepathy hui hai..life ki ye chhupa chhupai jindgi bhar chalti rahti hai par mujhe lagta hai ki khushiyaan hamare saamne hi to hoti hain...bas pahchaanne bhar ki der hoti hai. triveni bhi shaandar hai.
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह गये कुश भाई। जिन्दगी अनेक बार करवट बदलती है। पल-पल छिन-छिन...।
ReplyDeleteवाह ! क्या लिखते हो भाई !
ReplyDeleteगज़ब का स्म्योग हुआ ये तो आज...आइस-पाइस से इस छुप्पम-छुपाई तक...
ReplyDelete"कोई ख़ुशी पीछे से आकर थप्पी नहीं देती..."
जो कहा सब सुन लिया....तुम्हारी लेखनी का कायल होता जाता मन
लगता है.. मेरी बातें दिल पे ले बैठा..
ReplyDeleteयूँ बुरा मत माना कर.. लेकिन यह क्या लिखा है, तैंने
" थोडी देर पहले ही तो बचपन मुझे जवानी के घर छोड़ने आया था "
तो... लड़का हुआ ज़वान नसीबन तेरे लिये..
बता.. तो किसी नसीबन को क्लू दे दूँ, वह तुझे ढूँढ़ लेगी.. छुपा छुपाई फ़िनिश्श !
और, वाइफ़ और लाइफ़ में क्या रिश्ता गठता है, अनूप जी से पूछ ले !
मुझे तो लगता है जो खुशी या दुख मिले अपने आप मुँह उठाए चले आए, बिना मेरी किसी सहायता के। बचपन के किस्से बहुत अच्छे लगे। ये सब बड़े भाई इतने अच्छे क्यों होते हैं?
ReplyDeleteघुघुती बासूती
त्रिवेणी ने तो कमाल कर दिया .
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़ कर वाकई बहुत अच्छा लगा, जिन्दगी के मायने बदल जाते हैं और हम उनके हल तलाशते रह जाते हैं | आपकी पोस्ट के लिए बधाई
ReplyDeleteमज़े की बात है लाईफ की छुपम छुपाई में छुपी हुई कोई ख़ुशी पीछे से आकर थप्पी नहीं देती.. बस ढूंढते रहो.. जब तक मिल नहीं जाती..
ReplyDeleteसत्य वचन... पता नहीं कितने वक्त से उसी थप्पी का इंतजार कर रहे हैं...
भावुक पोस्ट...! जिंदगी वाक़ई लुका छुपी ही तो खेलती है...! और त्रिवेणी भी बेहतरीन..!
ReplyDeleteकुश जी, आज क्या बात लिख मारी है!!! भई, ऐसी बातें मत लिखा करो. हम भावुक हो जाते हैं.
ReplyDeleteTreveni main to maza aa gaya.....
ReplyDeletewah !! wah !!! teesri line ne wakai naya arth gadha hai....
...badhai !!
बचपन याद दिला दिये भाई.. खासकरके भैया की..
ReplyDeleteयही जिन्दगी है। इसमें कभी पास कभी फेल। चलता रहता है यूं जीवन का खेल।
ReplyDelete----------
जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
अच्छी पोस्ट ,वाकई जिंदगी लाइफ हो गयी और लाइफ कहाँ से जिंदगी की तरह खुशनुमा हो पाती ,क्योकि लाइफ में इन्सान का मन कही खो गया ,जो जिन्दगी जीने वाले इंसानों के साथ हुआ करता था ,बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeleteछुपम छुपाई
ReplyDeleteमजा आ गया
गज़ब का लेखन और खूबसूरत त्रिवेणी ...........
ReplyDeleteबेटा कुश
ReplyDeleteकुछ ज्यादा ही कैमिकल लोचा हो रहा है।
हार्मोन का असर तो ठीक लेकिन ये शब्द कहां से आ रहे हैं।
हूं,
कुछ लोग जीनियस होते हैं। बाकी लोगों को यह बात समझ में नहीं आती।
कुश भाई,
ReplyDeleteआप की लेखनी वाकई अच्छे शब्द चुनती है और प्रवाह बना रहता है।जिन्दगी सच में अब हमारे ही साथ खेलती है।फ़िर भी मैं ये कहूँगा कि...
"जिंदगी भी अजब पहेली है।"शेष कभी मेरे ब्लाग पर....