Wednesday, October 1, 2008

नुक्कड़ पे उस्ताद, जमूरा, बिल्ली और चूहा..

ज़मूरे!





उस्ताद!

चूहे बिल्ली का खेल दिखाएगा?

दिखाएगा

सीधी सच्ची बात बताएगा

बताएगा!

एक तरफ होकर बोला तो ?

उस्ताद कान के नीचे लगाएगा!

शाबाश जमूरे. तो फिर शुरू हो जा.. पब्लिक आ गयी है.. अंकल, आंटी, बेबी, बाबा, हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको दुआ सलाम कर..

हिंदू को नमस्ते.. मुसलमान को सलाम.. ईसाई को वेलकम.. और सिख को सत श्री अकाल...

तो ज़मूरे

उस्ताद!

एक थी बिल्ली

बिल्ली!

वो रोज़ घर में आती

आती!

दूध मलाई खाती

खाती!

पर बोलती पेट नही भरा

नही भरा!

बहुत दुखी होती.

होती रे!

बोलती की रोटी पतली है

पतली!

रोटी मोटी कर दी तो बोला गरम नही है..

गरम!

गरम की तो बोली घी नही

घी नही!

घी लगाया तो बोली देशी घी नही..

देशी घी नही!

देशी घी लगाया तो बोली कच्ची है..

उस्ताद एक बात पूछु?

पूछ ज़मूरे..

इसकी प्रॉब्लम क्या थी उस्ताद?

क्या बताऊ ज़मूरे? ये तो वोही जाने अब आगे सुन..

उस्ताद!

बिल्ली ने एक दिन घर में देखा..

देखा!

सब शांति से बैठे..

बैठे

आई एक काली बिल्ली..

बिल्ली!

चूहे को पकड़ा

पकड़ा!

और भाग गयी..

ईईईईईईईईईईई फिर क्या हुआ उस्ताद?

सबने बोला की बिल्ली चूहा खा गयी..

ज़मूरे!

उस्ताद!

सबने झूठ बोला क्या?

नही उस्ताद, सच बोला

पब्लिक से पूछो झूठ बोला क्या?

नही.... (पब्लिक)

ज़मूरे!

उस्ताद!

दूसरे दिन एक सफेद बिल्ली आई

आई!

बोली चूहा मैने नही खाया.. चूहा मैने नही खाया... घर घर में जाकर बोली चूहा मैने नही खाया..

ज़मूरे

उस्ताद!

क्या बिल्ली ने झूठ बोला..

नही उस्ताद चूहा तो काली बिल्ली ने खाया सफेद ने नही.. बिल्ली सच बोली..

पब्लिक से पूछो

नही बोला...(पब्लिक)

सफेद बिल्ली परेशान हो गयी..

क्यो उस्ताद?

वो कहती की बिल्लियो को बदनाम किया जा रहा है.. ये सब दुश्मन की चाल है.. चूहा उठाए कोई और बदनाम कोई और हो..

क्या ये बिल्ली ग़लत थी ज़मूरे?

नही उस्ताद इसका कहना ठीक था.. उसने थोड़ी चूहा खाया.. चूहा तो काली बिल्ली ने खाया था

ठीक कहा ज़मूरे.. पर किसी ने कहा की सफेद बिल्ली ने चूहा खाया?

नही उस्ताद उनको थोड़े ही पता था की बिल्ली सफेद थी या काली.. बिल्ली तो छुप छुप के आती थी..

तो फिर जब चूहा नही मिला तो सबने क्या कहा ज़मूरे

उस्ताद यही कहा की बिल्ली ने चूहा खाया..

तो क्या ग़लत कहा?

नही उस्ताद.. चूहा तो बिल्ली ने ही खाया था..

पब्लिक से पूछो

नही कहा ग़लत..(पब्लिक)

फिर जब चूहो के दल को बिल्ली को ढूँढना होगा तो क्या चूहो के मोहल्ले में ढूंढ़ेंगे?

नही उस्ताद.. ढूंढ़ेंगे तो बिल्ली के मोहल्ले में ही..

तो फिर सफेद बिल्ली बोली की यहा क्यो ढूंड रहे हो? हमने थोड़े ही मारा चूहे को.. क्या उसने ग़लत कहा?

नही उस्ताद! उसने तो ठीक कहा

तो फिर क्या करे वापस लौट जाए?

पर उस्ताद फिर काली बिल्ली को कहा ढूंढ़ेंगे?

तो क्या करे ढूंडे उसको?

ढूंदना ही पड़ेगा उस्ताद

ढूँढा तो फिर सारी बिल्लिया आ गयी बोली तुमने हम बिल्लियो को क्या समझ रखा है हमे क्या पड़ी है चूहो को खाने की हम तो दूध मलाई खाती है.. मक्खन खाती है.. हम चूहे नही खाती. हमे बदनाम कर रहे हो तुम?

बोल ज़मूरे क्या उन बिल्लियो ने सही कहा?

हा उस्ताद सही ही कहा होगा.. वो नही खाती होगी चूहे.

पर कोई बिल्ली तो खाती है ना ज़मूरे?

हा उस्ताद ये तो ठीक है!.. कोई तो खाती है..

तो फिर वो कैसे मिलेगी ज़मूरे?

उस्ताद वैसे तो मैं छोटा सा आदमी हू.. ज़्यादा समझता नही हू.. पर अगर सारी बिल्लिया जो चूहे नही खाती वो मदद करे काली बिल्लियो को ढूँदने दे.. तो काम हो सकता है..

ज़मूरे है तो तू छोटा सा पर बातें बड़ी करता है..

लेकिन अगर इन सबके बीच कोई निर्दोष बिल्ली फँस गयी तो ?

तो फिर ग़लती किसकी? उस्ताद

ग़लती किसी की नही ज़मूरे! ग़लती बोले तो परिस्थिति की.. काली बिल्ली ग़लत थी उसने पूरी बिल्लियो की जाति को बदनाम किया.. पर सफेद बिल्ली को समझना चाहिए था की एक बूढ़ी चुहिया का सगा बेटा मरा है.. चूहे की पिता जी की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी..

ऐसे कितने ही मासूम चूहो को काली बिल्ली ने खाया है.. अगर सफेद बिल्ली निर्दोष है उसको सज़ा नही मिलनी चाहिए तो उन चूहो का क्या जिनको काली बिल्ली ने खाया..

हा उस्ताद बात तो ठीक है..

चूहे के बच्चे शाम को इंतेज़ार में थे पापा ने शाम को सबको घुमाने का प्रोग्राम बनाया था.. इस दीवाली पे चूहे की पत्नी को नयी साड़ी दिलाने का वादा किया था.. क्या उसकी पत्नी कभी वो साड़ी पहन पाएगी..

क्या कहु उस्ताद?

कुछ चूहे स्कूल से लौट रहे थे..तीन दिन की छुट्टिया मिली थी स्कूल से खुशी खुशी घर जा रहे थे.. नही पहुँचे.. क्या उनका कोई गुनाह था जमूरे?

क्या कहु उस्ताद?

चूहो की ज़िंदगी तो चूहो से भी बदतर हो गयी है.. कोई जब डरपोक होता है तो उसे कहते है चूहे जैसा है..

चूहे डरपोक होते है?

होते नही है जमूरे बन जाते है.. काली बिल्ली के उठाकर ले जाने से डरपोक हो गये है

क्या कहु उस्ताद?

क्या बिल्ली का फ़र्ज़ नही बनता की जब उसे पता चले की बिल्ली ने चूहा उठाया है तो सारी बिलियो को बुलाए पता लगाए आख़िर कौन है गद्दार बिल्ली जिसकी वजह से सारी बिल्ली जाति बदनाम हो रही है.. एक बिल्ली जिसे बच्चे प्यार से मौसी मौसी कहते है.. जो कही भी किसी भी घर में बेखौफ़ घूम सकती है.. सब बच्चे जिस से इतना प्यार करते है..

हो सकता है कुछ कुत्ते, बिल्ली को खाने की फिराक में भी रहते हो.. पर इस से ये तो नही साबित हो जाता की बिल्ली असुरक्षित है.. प्यार तो उस से भी लोग करते ही है.. इतनी प्यारी बिली प्रजाति पर यदि कोई आँच आए तो उनका फ़र्ज़ नही बनता की गद्दार बिल्ली को पकड़ कर सज़ा दे..

बनता है उस्ताद! अगर बिल्ली ऐसा करेगी तो चूहे भी खुश होंगे..

पर ये बात बिल्ली को समझाएगा कौन? तुम समझाओगे क्या जमूरे?

नही उस्ताद! मैं कौन होता हू किसी को समझाने वाला.. कोई किसी को समझाने वाला नही होता.. सबको अपने विवेक से सोचना पड़ता है.. क्या करना है और क्या नही.. चूहे अगर हमेशा चूहे ही बने रहे तो एक दिन धरती पर नज़र भी नही आएँगे..

बिल्लिया अपनी प्रतिष्ठा को लेकर बैठी रहेगी तो उनके बीच में कितनी ही काली बिल्लिया पनपती रहेगी और चूहो को मारती रहेगी.. जिस से सफेद बिल्लियो की जाति भी बदनाम होगी और वो फिर इल्ज़ाम लगाएगी की काली बिल्ली को नही पकड़ सकते तो सफेद बिल्लियो को क्यो पकड़ते हो..


तो क्या उस्ताद काली को पकड़ने भी नही देगी और सफेद को पकड़ने के खिलाफ भी बोलेगी? इसका मतलब कभी काली बिल्ली नही पकड़ी जाएगी? चूहे ऐसे ही चूहो की मौत मरते रहेंगे? हर काम पुलिस या प्रशासन पे छोड़ देंगे? क्या हमारा कोई फ़र्ज़ नही बनता?


पता नही जमूरे.. ये सब तुम पब्लिक से पूछो... पब्लिक को सब पता है पर चुप चाप बैठी रहती है..


.....................


उस्ताद!

क्या हुआ ज़मूरे?

पब्लिक चुप है उस्ताद.. कुछ नही बोलती..

तो चल फिर ज़मूरे.. समेट अपना ताम झाम.. जब तक पब्लिक ही कुछ नही बोलेगी तो मैं और तू गला फाड़ कर क्या कर लेंगे..

लेकिन उस्ताद?

लेकिन वेकीन छोड़ और कही और चल.. शायद वहा की पब्लिक थोड़ी समझदार हो..

28 comments:

  1. तो चल फिर ज़मूरे.. समेट अपना ताम झाम.. जब तक पब्लिक ही कुछ नही बोलेगी तो मैं और तू गला फाड़ कर क्या कर लेंगे..

    सही बात कही मदारी ने ....जमूरा बेचारा खामखा परेशां हो रहा है...

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर कुश जी .
    बधाई .

    ReplyDelete
  3. तमाशा खत्म पैसा हजम ...खेल बढ़िया था अब क्या कहे आपके इस नए अंदाज को हम ..:)

    ReplyDelete
  4. वाह जी कुश साहब मजा आ गया लगा कि मंदारी खेल दिखा रहा है और हम देख रहे हैं बहुत ही सुंदर वृतांत पेश किया है आपने बहुत बहुत धन्‍यवाद

    ReplyDelete
  5. पब्लिक की यही तो त्रासदी है कि वह सब कुछ जानते हुए भी चुप रहने को अभिशप्त है।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर. बात कहने का तरीका पसन्द आया.

    मगर कुछ चुहे हैं जो काली बिल्लीयों की तरफ से सफेद वाली को आड़ बना मोर्चा सम्भाले हुए है, उनका क्या?

    ReplyDelete
  7. hmmm....sahi hai...aisa laga jaise koi samne hi hai...strongly symbolic bhi laga...pata nahi sahi laga ya nahi ... ye tum jaano.... :)

    ReplyDelete
  8. ye hui na kuchh KUSHBHAI wali baat...fir se full form mein laut aaye...badhiya hain....

    aur aap ka teer sahi nishane pe laga hain...kahin chubha bhi hain...baaki to humare vichar bahot alag nahin hai is vishay par...

    ReplyDelete
  9. bahut hi sundar tareeka..apni baat pesh karne ka...

    likhte rahe

    ReplyDelete
  10. बिल्ली मौसी, ये आदत छोड़ो. हमें खाने की तुम्हारी आदत ऐसी ही रही तो कहीं तुम किसी दिन चूहा समझकर अपने ही बच्चे खा जाओगी. और उस दिन तुम्हें बहुत पछतावा होगा.

    ReplyDelete
  11. गजब लिखा है हम चुहो के बारे में

    ReplyDelete
  12. आपने इस कथा के माध्यम से सवाल रखे हैं वो बेहद प्रासंगिक हैं और मुझे लगता है कि देश की आम जनता भी ऍसा ही महसूस करती है। पर जहाँ संदेह का वातावरण पहले से व्याप्त हो वहाँ कुछ जिम्मेवारी प्रशासन की भी बनती है कि वो अपने कार्य में पारदर्शिता बनाए रखें।

    साथ ही देश के दुश्मनों ,जो भय आतंक या धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दे रहे हों और चाहे वो किसी भी मज़हब के हों, से देश के कानून के मुताबिक पूरी सख्ती से निबटें।

    ReplyDelete
  13. बहुत गजब का तमाशा है ! कसम से मजा आ गया यहाँ तो !

    ReplyDelete
  14. हमे क्या पड़ी है चूहो को खाने की हम तो दूध मलाई खाती है.. मक्खन खाती है.. हम चूहे नही खाती. हमे बदनाम कर रहे हो तुम?
    बहुत शानदार मजमा जमा है ! बहुत धन्यवाद उस्ताद ! :)

    ReplyDelete
  15. इतनी बड़ी समझाईश इतने सरल शब्दों में-वाह!! सत्य है, जब पब्लिक ही चुप रहना सीख गई है तो कोई भी क्या कर सकता है और यह चूहे बिल्ली का खेल चलता रहेगा..अफसोस!!

    ReplyDelete
  16. कुश भाई ..
    ये पब्लिक है सब जानती है
    फिर भी चुप क्यूँ है ?
    आपका अँदाज़े बयाँ
    हमेशा बढिया रहता है जी :)

    ReplyDelete
  17. क्या कहे भाई चुप्पी सबसे बड़ी समझदारी है !देखा नही सब बुद्दिजीवी चुप है !

    ReplyDelete
  18. बोल जमूरे
    हां उस्ताद!
    चूहा कलर-ब्लाइण्ड होता है?
    पता नहीं उस्ताद!
    और बिल्ली?
    उसके तो कलर पे डिपेण्ड करता होगा उस्ताद!

    ReplyDelete
  19. tamasha bhi shuru ho gaya
    madari to bhaut achhe bane
    public magar hansti hi hai baat ka bhaav samjh paayegi?

    ReplyDelete
  20. बेहद सटीक तरीके से सच्चाई ब्यान कर गयी यह पोस्ट। बधाई और धन्यवाद।

    ReplyDelete
  21. मस्‍त होकर लि‍खा है कुश जी, मजा आ गया। संदेश भी बढ़ि‍या था।

    ReplyDelete
  22. बहुत ही सुंदर कुश जी .
    बधाई

    ReplyDelete
  23. कुश भाई काली बिल्ली मस्त हे, अब क्या करे? वह तो अब भी सारे चुहो की दुशमन हे....
    उस का बस चले तो सारे चुहो को मार दे..
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  24. .

    This drama is going on..
    on 'Special Monkey's' demand,
    for the sake of social justice.

    Public Kaun ? Chooha aur Billi..
    yeh bechare Badniyat Bandar ke sach ki sachchai ka kuchh nahin jaante !

    ReplyDelete
  25. मजमें में सच्ची बात कहने का शुक्रिया...वरना आज कल बिल्लियाँ चूहे खा कर कहाँ कहती हैं की हमने खाया है...???
    नीरज

    ReplyDelete
  26. ek baar fir aapki kalam ke murid huye..

    baharhaal apne sandesh me likhe shbd wapas leti hun..

    ReplyDelete
  27. कुश भाई !
    गज़ब का मदारी हो यार ! अगर वाकई में कभी मूड में आगये तो एरिया के मदारी भाग जायेंगे कि अब हमारा तमाशा कौन देखेगा !
    लास्ट तक एक एक लाइन पढ़े बिना छोड़ नही पाया ! मगर कुश भइया यह बिल्ली और चूहे समझ नही आए....
    आपकी सारी पोस्ट पढ़नी पड़ेंगी :-)
    बहुत अच्छा लिखते हैं आप !

    ReplyDelete

वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..