Saturday, April 12, 2008

ज़िंदगी के दो पहलु...

(1)

एक
डर रोज़
उसको सताता है
जब वो बढ़ता है
घर की ओर
जब तक बच्चे सो
ना जाए वो घर
में नही घुसता...

आज सबके सोने के बाद
घर गया लेकिन
छुटकी उठ गयी थी
और पुछ बैठी
बापू खाना लाए ???






(2)
बेफिक्री का लिहाफ़
ओढकर
सो रहा है सड़क
पर एक बचपन
गालो को खुजा
रहा है अपने मैल भरे
नाखुनो से..
मक्खिया भीनभीना
रही है उसके
उपर.. दो दिन
से नहाया नही है..
नहाता भी है
तो पेट पर पानी
नही लगाता.. वहा
हाथ रखते ही इसे
भूख याद जाती
जिसे भूलकर कल
रात सोया था ये
बिफिक्री
का लिहाफ़ ओढकर

.....----....

21 comments:

  1. zindagi ke do pehlu kahe ya ek aisi sachhai jo dekhkar bhi andekhi ho jaati hai..bahut hi sundar tareeqe se pesh ki gayi sachhai ko hamara salaamm

    likhte rahe...

    ReplyDelete
  2. aapne us bachche ko to befikri ka lihaaf odhaakar sula diya...par ye padhkar ham vyavastha , samaj aur apni befikri ka lihaaf utaar paayenge..yahi aasha hai.

    ReplyDelete
  3. man mein ek tis,ek khalbal chod gayi aapki dono bhi rachanaye,bahut marmiktase bhukh ka viyog bataya hai,bahut badhai.jab sirf padhkar hame bura lagata hai,un bachhon ka kya hota hoga jo sach mein is daur se gujarte hai.

    ReplyDelete
  4. Hello kush
    Its really really touchy!!

    bus meri to yahi khwaish ki
    ye sab publish hoo

    ReplyDelete
  5. बहुत सच्ची तस्वीर है.कविता भी उतनी ही सच्ची.

    ReplyDelete
  6. कुश पहली बार आपको पढ़ रहे है। आश्चर्य है की हमने पहले कभी आपकी पोस्ट कैसे नही देखी।

    बहुत ही दिल को छूती और आँखें खोलने वाली रचनाएं है।

    ReplyDelete
  7. blog kholtey hee lagaa kitna khubsurat blog haen
    kyaa artist bhi haen
    ek pencil sketch hamaer blog kae leeyae bhi banna dae agar smabhav ho to

    ReplyDelete
  8. पहली बार ही पढ़ा। सचमुच कमाल की दृष्टि और शानदार अभिव्यक्ति पायी है। मेरा बस चलता तो ब्लॉग का नाम बदल कर 'खुश-कलम' रख देता।
    बहुत कविताएं पढ़ी हैं ब्लॉग्स पर, पहली बार मौलिकता लिए सहज अभिव्यक्ति देखी। खूब तरक्की करो।

    ReplyDelete
  9. jitni khoobsurat painting hai utni hi doosri kavita....

    ReplyDelete
  10. कुश काश आप की यह कविता हमारे ईमान दार प्रधान मत्री, ओर हमारे राष्ट्र्पति पढ पाते, एक सच्ची तस्वीर खीची हे इस तरक्की करते भारत की, बहुत बहुत धन्यबाद

    ReplyDelete
  11. जीवन की सच्चाईयों को प्रतिविम्बित करती हुई आपकी रचना मेरे मन की गहराईयों में उतर गयी , बधाईयाँ!

    ReplyDelete
  12. आप सभी की प्रतिक्रियाओ के लिए हार्दिक धन्यवाद.. पहली बार पढ़ रहे सभी आगंतुको का स्वागत.. उमीद है भविष्य में भी आपका साथ मिलता रहेगा..
    @नारी
    आपके ब्लॉग के लिए यथा संभव सहायता करूँगा ओर मुझे खुशी भी होगी ऐसा करने में..
    @द्विवेदी जी
    आप की प्रतिक्रिया मिली तो मन वैसे ही खुश हो गया अब तो ये कलम भी खुश होकर ही लिखेगी..
    @भाटिया साहब,अनुराग जी,सई,अभिजीत जी,अमिताभ,अतुल जी,ममता जी,प्रभात जी,महक जी,पारूल जी,अल्पना जी,
    आप सभी की प्रतिक्रिया सर आँखो पर.. आपकी प्रतिक्रियो से ही प्रेरणा लेकर मैं अपनी कलम चलाने का साहस करता हू.. कृपया यूही अपना स्नेह बरसते रहे..

    आभार
    कुश

    ReplyDelete
  13. बहुत अच्छा हुआ जो मैं किसी अन्य के लेख पर आपकी टिप्पणी पढ़ आपके ब्लॉग तक चली आई । आपकी कविताएँ सुन्दर व हृदय को छूकर झकझोरने वाली हैं। लिखती तो मैं भी हूँ परन्तु आप सा नहीं। यूँ ही लिखते रहिये ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  14. बहुत पैनी कलम है. धार बनाये रखें. बिल्कुल यथार्थ बयानी..!!

    ReplyDelete
  15. बहुत तेज़ - साफ देखती हुई - बहुत धारदार - मनीष

    ReplyDelete
  16. पहली बार आपको पढा....लाजवाब दोनों कविता!आपकी कलम की जितनी तारीफ की जाए कम है!दूसरी कविता तो बस... कमाल ही है!

    ReplyDelete
  17. kya boloon,
    bahut dard ko bayan karti hui panktiyan hian ye .....

    ReplyDelete
  18. सच्चाई बयान करती है आपकी कविता , अपनी लेखनी की धार बनाए रखें।

    ReplyDelete
  19. बहुत बड़ा और कड़वा सच कहती आपकी दोनों कवितायें। ये नहीं कहूँगा कि अच्छी लगी। अलबत्ता , मन को कचोट जरूर गई।

    ReplyDelete

वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..