Tuesday, March 16, 2010

मुझे सोल्यूशन चाहिए.. कॉमरेड

इन लौटती आवाजों को पीछे धकेल धकेल कर मेरे माथे पर पसीने का पहाड़ उग गया है.. पर ये फिसल फिसल के मेरे कानो में आकर बैठ जाती है.. मैंने अपने दोनों हाथ अपने कानो पर रख दिए है.... पर ये स्थायी समाधान नहीं है.. मुझे सोल्यूशन चाहिए.. कॉमरेड,

अपने दल वाले मुझे 'च' से शुरू होने वाले किसी शब्द से बुलाते है.. एक्जेक्टली वो वर्ड क्या है मैं नहीं जानता.. मैंने ठीक से सुना नहीं.. मेरे कानो पर मेरे हाथ है.. मैंने अपने हाथो को वेल्डिंग करके जोड़ लिया है कानो से.. मैं सुनना नहीं चाहता बम विस्फोटो में मरने वालो की चीखे.. मैं सुनना नहीं चाहता गर्भ से लौटती लडकियों का क्रंदन..मैं सुनना नहीं चाहता आरक्षण के लिए भीख मांगती आवाज़े.. मैं सुनना नहीं चाहता लुटती हुई अस्मतो की पुकारे.. कि मेरे कान सुन सुन कर सुन्न हो चुके है.. अब कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें कॉमरेड, ........... तुम चाहो तो तीन सौ बीस की स्पीड से आती ट्रेन को मेरे कानो में घुसा दो.. या फिर ठूंस दो सौ हाथियों की चिंघाड़ इनमे.. इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा.. मैंने अपने दोनों हाथो से ढंककर रखा हुआ है इन्हें..

क्या बताऊ तुम्हे कि मैं नोर्मल मोड़ में हैंग हो जाता था बार बार.. मेरी सारी फाइले डिलीट हो जाती थी... मेरा कंट्रोल बटन काम नहीं कर रहा था.. मैं चाहकर भी F5 नहीं दबा पा रहा था... और फिर पूरी तरह करप्ट हो जाने के बाद मैंने खुद को फोर्मेट कर दिया था.... अब मैं खुद को सेफ मोड़ में चला रहा हूँ.. मैं जानता हु तुम ये सब नहीं समझोगे.. तुम कम्पूटर के बारे में कुछ भी तो नहीं जानते.. अगर जानते होते तो समझ सकते थे मेरी बात.. जान जाते कि क्यों में हाय्बर्नेट हो गया था.. पर तुम तो अनपढ़ ठहरे.. तुम कैसे समझोगे.. ? तुम तो, जब ज्ञान बांटा जा रहा था.. तब छलनी लेकर खड़े थे कॉमरेड.. क्यों जब तुम्हे पढ़ लिख जाना चाहिए था.. तब तुम तपती दोपहरी में दो कौड़ी के कंचो के लिए दोस्तों से उलझते थे कॉमरेड..? अब देखो खुद को.. कंचो की तरह टकरा रहे हो दुसरे कंचो से..

खैर..! कंचे खरीदते भी तो कैसे ? तुम्हारे पास पैसे भी तो नहीं है.. वही एक सिक्का अंटी में दबाये घुमते रहते हो.. कि जिसे तुम्हारी माँ ने तुम्हे दिया था कंचे लाने के लिए.. और चप्पल टूटने की वजह से तुम घर लौट आये.. तभी तुम्हारी माँ पंखे से लटकी हुई मिली.. इस सिक्के में तुम क्या अपनी माँ को ढूंढते हो कॉमरेड.. ? क्या इतने पुराने सिक्के में तुम्हे कुछ मिलेगा भी.. क्यों नहीं तुम इस पर नाइट्रिक एसिड डाल देते हो.. ताकि तुम्हारा सिक्का फिर से चमक उठेगा.. ! पर तुम क्या नाइट्रिक एसिड लाओगे.. तुम्हे तो साईंस के माने भी नहीं पता.. तुम इतने बड़े झंडू क्यों हो कॉमरेड..?

वैसे झंडू तो मैं भी हूँ यार.. तुमसे सवाल पे सवाल पूछ रहा हूँ.. ये जानते हुए भी कि जवाब मैं सुन ही नहीं सकता.... पर तुम मेरी एक बात सुन लों.. किसी से भी हमारे मिशन के बारे में बात मत करना....  मैं जानता हूँ कि हम सब किसी भरोसे के लायक नहीं पर क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ कॉमरेड? या फिर तुम भी मिल जाओगे उन लोगो से और लील लोगे प्राण इस मिशन के.. ?

नहीं नहीं ऐसा मत करना कॉमरेड अब तो मिशन पूरा होने का वक़्त आ गया है... ये पेनअल्टीमेट समय है.. मैंने खुद को समेट लिया है अपने अन्दर..मैं टुकड़े कर रहा हूँ.. अहंकार के, मेरी कायरता के, मेरी चुप्पी के, मेरी नासमझी के, मेरी मक्कारी के, मेरे झूठ के, मेरे वजूद के... कि मैंने आखिरी बार आसमान में नज़र उठाली है.. मैं ईश्वर से नज़रे मिलाने की पोजीशन में हु..  मैं तुम्हारे सामने घुटनों के बल बैठता हूँ.. मेरे हाथ पैरो के नाख़ून नुकीले हो रहे है... मेरी दुम निकल रही है पीछे से.. मेरी जीभ लम्बी हो रही है... मैं अपना सर तुम्हारे पैरो में रखकर तुम्हारे तलवे चाट रहा हूँ... कि मैं अब कुत्ता बन गया हूँ.. अपने मिशन में कामयाब..

हमारे दल की जीत हुई है.. हमारी शपथ पूरी हुई है.. मेरे अन्दर एक जश्न की शुरुआत हो चुकी है.. मुझे नगाडो की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है... तालियों की गडगडाहट मेरे कानो में गूँज रही है.. आदिवासी कबीलों के स्वर सुन रहा हूँ मैं... कितने ही तरह की आवाज़े...लहरों के तट पर आने की आवाज़.. बादलो के गडगडाने  की आवाज़.. मंदिरों में बजती हुई घंटिया...वाह.!
इंसान से कुत्ता बनने की प्रक्रिया का अंत यहाँ जाकर होगा.. तुम्हारे चरणों में.. ये मैं नहीं जानता था कॉमरेड.. पर मैं इंसानियत को त्याग चुका हूँ.. और कुत्ता बन गया हूँ..

एक कुत्ते के सुनने की क्षमता 40 Hz से 60,000 Hz होती है.... और ये इंसान से लगभग दुगुनी है.... अब इतना तो तुम जानते ही हो कॉमरेड.. भौ भौ..!

39 comments:

  1. भौ भौ..! भौ भौ..!
    और फिर चारो और से कुत्तों के भौकने की आवाजें आने लग जाती हैं .
    कैसी लगी यह पटकथा सर ..अभी मध्यांतर तक ही है !

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  2. फिलहाल "लीलाधर मंडलोई" की एक कविता रखकर जा रहा हूँ.....दोबारा वापसी कमेन्ट करने आयूंगा





    सबसे बीच उपस्थित
    दृश्य से बाहर
    सबसे खतरनाक
    मुजरिम है वह
    इस सदी का

    समूचे देश को
    अपने आरामगाह मे तब्दील करता
    हमारे बुजुर्गवारों की
    शख्सियत से जोंक की तरह
    चिपका है वह

    पालतू चीते की भाँति अलसाता
    करता है रात गए
    अपने नाखूनों को
    मृत्यु की अन्तिम सीमा तक तेज

    रोज सुबह हमारे घर
    आतंक के बीच
    ढूँढते हैं दुश्मन के खिलाफ सबूत

    अखबार अपनी सुर्खियों में
    किसी आदमखोर का
    जिक्र करते
    हो जाते हैं खामोश

    पुलिस तैनात है जंगलों में
    और वह रोज रोज
    अपनी शक्ल बदलता
    निश्चित है अपने आक्रमण में

    बुजुर्गवार चुप हैं
    और मुर्दनी उनके चेहरो का
    अविभाज्य अंग
    बनती जा रही है लगातार

    सबके बीच उपस्थित
    दृश्य से बाहर
    सबसे खतरनाक
    मुजरिम है वह
    इस सदी का

    उस आदमी पर वार करो

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  3. कितनी भयावह स्थिति है ना ! सब तरफ यही शोर है....

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  4. अबकी लिखने में कोई जादू नहीं ... बातें ही इतनी गंभीर है की सब कुछ पर हावी हो गया...

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  5. कामरेड पर कोई जबाब हो तो हमे भी बताये

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  6. नाइट्रिक एसिड डियर.

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  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  8. ज़िन्दगी के सच की जुगाली करते हुए थके जबड़ों ने अजीब सी शक्ल ले ली है. आवाज़ें जो आश्वस्त किया करती थी उनका वेवलेंथ घातक हो गया है. पढ़ते हुए कामरेड शब्द इतनी बार पढ़ा कि लगा टूटन में लेखन भी समा गया है. बरात के इतर इस दिन में उपजी रात का राग भी आपकी कलम से बेहतर मुखर हुआ है.

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  9. kush ji sach kehoon to gulzaar ji ko kabhi nahi padha par unka likha jab bhi suna hai to bahut asar raha hai,vo kahin na kahin hai is kalam mein aur unhone jo likha hai uska 1% bhi agar mujhe mein hai to mujhe bahut khushi hai.

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  10. aur shukriya ki yadi aap mere blog par na aate to aapke blog se ru-b-ru hona na hota.. :)

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  11. बहुत अच्छी प्रस्तुति। Your articles also can be posted at www.fun25.com

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  12. पढ़कर अजीब सा महसूस कर रहा हूँ

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  13. अब क्या कहे, बहुत दुख होता है,

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  14. . मैंने अपने हाथो को वेल्डिंग करके जोड़ लिया है कानो से..

    तुम चाहो तो तीन सौ बीस की स्पीड से आती ट्रेन को मेरे कानो में घुसा दो.. या फिर ठूंस दो सौ हाथियों की चिंघाड़ इनमे

    आपकी .लेखनी हमेशा ही चमत्कृत करती रही है मुझे ..और ये लेख भी अपवाद नहीं है....बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है.

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  15. इंसान से कुत्ता तक... बहुत बढ़िया दोस्त. और ४० से ६०००० हर्ट्ज़... कितने नंबर दूं? १०० से ज्यादा संभव है?

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  16. च से शुरू होने वाला वह शब्द शायद चैम्पियन हो सुनकर तो देखा होता । सस्पेन्स रह गया ।

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  17. शायद ओशो ने ही कहीं कहा था कि इस दुनिया में इंसान ही सबसे 'सीरियस'है.गुमसुम सा चुप्पा. बाकी प्रकृति में तो खिलंदड़ापन बिखरा पड़ा है. अनडाईल्यूटेड.खैर बात पूरी आपके कहे से नहीं जुड़ती पर मैं कहना चाहता हूँ कि इंसानों में भी कुछ के लिए इंसान बनकर भी मुक्ति नहीं है.अतियथार्थवादी व्यंजना में आपने, मानवीयता के नायाब ट्रेटस किस तरह कईयों के लिए बोझ बन गए हैं कि सिर्फ इंसान बन कर गुज़ारा नहीं, इसे सशक्त रूप से व्यक्त किया है.

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  18. -रेफॉर्मेट होने के बाद सेफ मोड़ में रहने से अब कोई ख़तरा होना चाहीए.
    -इस फिल्म की पटकथा में सब कुछ है.
    बेक ग्राउंड भी खूब है..आदिवासियों के स्वर ,मंदिरों की घंटियाँ सब कुछ फिल्मी .
    --'इंसान अब कितना इंसान रह गया है कुश? '

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  19. बहुत ही सार्थक और मार्मिक पोस्‍ट। वास्‍तव में हम एक समय जाकर कुत्ते में परिणित हो जाते हैं। पता नहीं हम कौन सी दुनिया बसाना चाहते हैं?

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  20. सुन्दर लेखन. पढ़कर आनंद आया. आपको साधुवाद और बधाई.

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  21. सच में बहुत कुछ ऐसा ही चल रहा है।तारीफ़ तो करना चाह रहा हूं मगर शब्द ढूंढे नही मिल रहे हैं।विवेक से ही ले लेता हूं च से चैम्पियन्।

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  22. तुम्हारा ये आर्टीकल पढ के तुम्हारी लिखी एक कविता याद आइ...उस में भी यही सुर निकलता है...

    मैं दंगा हूं
    मैं दंगा हूं
    हा मैं दंगा हूं
    बीच सड़क,
    भरे बाज़ार,
    उतार दिए कपड़े मेरे
    कुछ हरे कुछ केसरिया थे
    कुछ गाँव के कुछ शहरिया थे

    मैं चुप देख रहा
    तमाशा भी हूं
    और तमाशबीन भी
    मैं बुरा हूं, एक गाली हूं
    हा मैं दंगा हूं

    मैं कहा से आया
    कौन मुझे लाया
    लावारिस हूं मैं
    हूं मैं किसका जाया
    सोच रहा हूं मैं,

    कुछ बुरे लोगो
    ने पैदा किया मुझे
    देखो एक बार ख़ुद को
    हूं मैं तुम्हारा साया

    हा मैं दंगा हूं
    शर्म आती है मुझे
    बीच सड़क, भरे बाज़ार
    मैं नंगा हूं
    हा मैं दंगा हूं

    हा मैं दंगा हूं...

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  23. कानों को कस कर बन्द कर लेना चाहता हूँ, फिर जोर से चिल्लाने को मन करता है.....

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  24. कानों को कस कर बन्द कर लेना चाहता हूँ, फिर जोर से चिल्लाने को मन करता है.....

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  25. कॉमरेड, ........... तुम चाहो तो तीन सौ बीस की स्पीड से आती ट्रेन को मेरे कानो में घुसा दो.. या फिर ठूंस दो सौ हाथियों की चिंघाड़ इनमे.. इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा.. मैंने अपने दोनों हाथो से ढंककर रखा हुआ है इन्हें......fir itni gambheer baat kin hathon ne likhi hai

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  26. बिलकुल जायज़ अभिव्यक्ति है ।
    एक निवेदन
    नवरात्र में विदेशी कवयित्रियों की कवितायें प्रतिदिन यहाँ पढ़े http://kavikokas.blogspot.com - शरद कोकास

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  27. वाह कुश भाई, आज के हालात पर क्या खूब लिखा है… वाकई कुत्तों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, और हम परेशान हो रहे हैं… :)

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  28. तुम अपनी उम्र के हिसाब से तीस साल आगे के स्तर की बातें लिख रहे हो...कमाल कर रहे हो...कमाल...ह्सब्द और भाव इस तरह गूंथे हैं इस रचना में की सिवा वाह के मुंह से और कुछ निकलता ही नहीं...लाजवाब ही नहीं उत्कृष्ट लेखन...बधाई...इस बार जयपुर आने पर काफी नहीं बल्कि मोका हाट चाकलेट के साथ...पक्का...
    नीरज

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  29. तकनीकी शब्दों को कहानी में जिस प्रकार आपने डाला है। सच काबिले तारीफ है। संदेश कानों तक साफ सुनाई देता है इतने भयावह शब्दों को पढने के बाद। गुड़।

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  30. क्या कहूँ कामरेड........

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  31. इर्द- गिर्द बरसते शोलों को शब्दों ने यथासंभव ज्वाला दी है ...हर तरफ धुंआ..धुंआ...

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  32. च से चमत्कारी कुश और कुछ भी नही, जितना आप को पढ़ा है हमेशा अच्छा और अलग...

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  33. सोल्यूशन ही तो कोई नही बताता कॉमरेड, सब तो सवालो का गट्ठर लेकर घूम रहे है... answers.com भी रिजल्ट नाट फ़ाउन्ड ही दिखाता है..

    बाकी जो डोज़ तुम देना चाहते थे, लग रहा है वो मिल गयी है... :)

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  34. कुछ कहते नहीं बन रहा... कामरेड!!

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  35. पढ़ चुका हूँ कई बार..और समझ नही आया कि क्या कहूँ इसे..एक अवसादपूर्ण कहानी, असफ़लता का आत्मवृत्त, या एकल अभिनय एकांकी, या किसी डिप्रेस्ड स्क्रिप्ट का ईमानदार मोनोलाग जिसके बाद एक लम्बा धूसर सा पाज्ड शॉट रह जाता हो पर्दे पर?..कम-स-कम दिमाग तरल हो कर किेसी द्रव सा बहने लगता है..इसे पढ़ने के बाद..और एक आवाज सुनाई देती है विजय के इस द्रश्य के बीच परदे के बैकग्राउंड मे..अपनी किसी सबसे प्यारी चीज के गिर कर टूटने की..दरकने की..एक सपने के!!..और इसे सुनने के लिये कुत्ते वाली फ़्रीक्वेंसी जरूरत नही है... ..कुछ अरमानों का हाइबरनेशन, अनबुझे सवाल, बचपन का डिसार्डर, पागल आवाजों के शोर के बीच ’यह जहाँ फ़ानी है, बुलबुला है पानी है’ की फ़्रीक्वेंसी पर ट्यून-अप
    और यह..
    इस सिक्के में तुम क्या अपनी माँ को ढूंढते हो कॉमरेड.. ?

    कुछ कह नही आऊँगा..मगर वापस फिर लौट कर आऊंगा..कामरेड!!

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  36. राम नवमी पर हम देश की खुशहाली के लिए दुआ करते हैं --
    अब सब सुधर जाए ऐसा भी लिखिएगा कुश भाई ...
    स्नेह,
    - लावण्या

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  37. ब्रह्मराक्षस यूँ ही बेचैन रहता है पीड़क समय में।
    इस एकालाप में आम आदमी का दर्द बयॉं है।

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  38. अपने-आप में एक अद्‍भुत कविता...एक कवि का अलाप ही तो है ये।

    यकीन करोगे, कुछ दिनों से एक किसी कामरेड को संबोधित करता कुछ मैं भी लिख रहा हूँ। टाइप करते हुये तुम्हारे मदद करने के बावजूद अभी भी "कामरेड" के "का" के ऊपर वो आधा चांद नहीं लगा पाता हूँ। जब वो पोस्ट लगानी होगी तो तुम्हारे इस पोस्ट से सही हिज्जे वाला कामरेड कापी कर लूंगा...

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..