Friday, October 9, 2009

बेचारी महफ़िल.. कुछ ऐसी लुटी..

महफ़िल पूरे शबाब पर है.. गुमनाम से शायर अपनी ठोडी पर कलम टिकाये बैठे है.. उनका उल्टा पांव सीधे पांव पर पड़ा है.. और नज़र नामचीन लोगो पर..
नामचीन लोगो के शेरो पर गुस्ताख लोग तालिया पीट रहे है.. गुमनाम शायर ने पान की पीक थूकते हुए कहा है... नामुराद..!  सब के सब..

और फिर उल्टे पांव पर सीधा पांव रखकर दोबारा बैठ गया.. नामचीन ने अपने आगे पड़ी प्लेट से पान उठाकर मुंह में ठूंसा.. दोनों होंट भड़कते तंदूर से लाल हो चुके है.. पता नहीं अन्दर से जो निकलेगा वो पचाने लायक होगा या नहीं.. गुमनाम की बैचेनी बढ़ रही है.. उसने टाँगे बदल ली है.. गोया टाँगे नहीं किसी जाहिल का ईमान हो..   

हो गए उनके आगे बेनकाब.. जिनसे पर्दादारी थी..
पीट गए सब सरे राह.. जिनसे भी उधारी थी...

हिम्मत तो देखिये.. फिर से खड़े हो गए पैरो पर..
ऐसे मामलो की तो.. पहले से ही तैयारी थी...  

वाह! क्या शेर दहाडा है.. पास बैठे एक और नामचीन ने कहा.. बहुत ही कातिल शेर.. शुभानल्लाह!!

गुमनाम ने पांव की जगह फिर बदल ली.. और इस बार ना मुराद से पहले 'साले' भी लगा दिया... तो शब्द कुछ यु बना.. साले नामुराद!   

रात भर जब नामचीन लोग.. शेर दहाड़ दहाड़ के ढीले हो गए तो किसी ने गुमनाम को आवाज़ मार दी.. गुमनाम फुर्ती से चप्पल उतार कर स्टेज पर चढ़ गए.. नामचीन लोग उसी बेलन के आकार वाले तकिये का सहारा लेकर बैठ गए जिनसे घरो में रोटिया बनायीं जाती है..  गुमनाम ने प्लेट में देखा पान बचे नहीं थी.. मगर लाल लाल कत्था जरुर उन्हें घूर रहा था.. गुमनाम ने भी बदतमीजी करने में देर ना लगाते हुए एक शेर ठोंक डाला..

गुजारते है जो.. ज़िन्दगी अपनी उधारो में.. 
पिट जाते है युही.. सरे आम बाजारों में...

छोटे मोटे जख्मो से कोई फर्क नहीं पड़ता उनको
बदन पर ऐसे टुच्चे निशान तो होंगे हजारो में...

वाह वाह हुज़ूर ये होता है शेर.. क्या तो दहाडा है.. भई माशाल्लाह.. शुभानल्लाह!! ... गुस्ताख लोगो ने शेर की जम कर तारीफ़ कर दी..

नामचीन ने अपने पीछे से वही बेलन के आकार का तकिया हटाया और उल्टे हाथ की तरफ करवट लेकर बोले.. नामुराद!  सब के सब..
फिर तो बस दहाड़ पे दहाड़ और करवट पे करवट.. करवट पे करवट और दहाड़ पे दहाड़.... इधर दहाड़ उधर करवट.. उधर करवट इधर दहाड़..  

बस फिर क्या होना था..? बची रात में जब तक शमा में तेल डाल डालकर जलाना मुनासिब था.. जलाया गया.. गुमनाम को नाम मिल चुका था.. वो शेर पे शेर दहाड़ रहा था... नामचीन ने नामुराद के आगे ऐसे ऐसे शब्द जोड़े  कि.. साला तो फिर भी छोटा लग रहा था..

शेरो की कुछ इसी तरह की दहाडो से पहले नामचीनों ने और फिर गुमनामो ने सारी की सारी महफ़िल लूट ली..


47 comments:

  1. मजेदार !
    इस मंच पर भी पर भे ऐसा ही होता है !
    नामचीन और गुमनाम बारी-बारी से दहाडते और करवट बदलते हैं

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  2. कुश प्यारे...तेरा जवाब नहीं...कोई तुझसा नहीं हजारों में...(धुन: हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं...) क्या लिखा है..वाह...
    वैसे किस मुशायरे की चर्चा आपने की है यहाँ...:))
    नीरज

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  3. गुजारते है जो.. ज़िन्दगी अपनी उधारो में..
    पिट जाते है युही.. सरे आम बाजारों में...
    बहुत खुब कुश भाई, मान गये आप को ओर आप के शॆरो को, आज कल ब्लांग जगत मै भी कुछ ऎसा ही चल रहा है...
    धन्यवाद

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  4. बहुत खूब....बहुत ही रोचक प्रस्तुति है...

    "छोटे मोटे जख्मो से कोई फर्क नहीं पड़ता उनको
    बदन पर ऐसे टुच्चे निशान तो होंगे हजारो में..."

    गुमनाम से नामचीन की दूरी तय करते करते हजारों ज़ख्म से
    दो चार तो होना ही पड़ता है

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  5. mujhe bhi aisa hi kuch yaad aa raha hai...tumne kahi uski hi to baat nahi ki thi na... :P

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  6. "दोनों होंट भड़कते तंदूर से लाल हो चुके"

    सटीक प्रतीक चुना आपने। बड़ा करवटिया लेख:) बधाई॥

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  7. बेचारी महफ़िल। किस दिन की बात है? जब अभी पार्टी शार्टी हुई थी?

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  8. ये छाया वादी बड़ी बड़ी बातें जरा ऊपर से गुजर गयीं....नामदार और गुमनाम ?????? मामला क्या है ???? निगाहें कहाँ और निशाना कहाँ है?????

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  9. wo kaha hai na...maal-e-muft, dil-e-beraham. loote jaao :D

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  10. किबला ...फिराक साहब याद आ गए .ऐसे मौको पे उनके बारे में कई किस्से है ...पर यहाँ लिखे तो मामला कुछ "सनसनी " सा हो जाएगा ...(वही स्टार न्यूज़ पे एक दाढ़ी वाली साहब आ कर कहते है .सनसनी )...
    जैसे हमारे नॉन शायर दोस्त ने किसी का एक शेर कहा था ....गर बड़े लोग शेर माने ....

    "कोई सौ बार तेरी गली से गुजरा हूँ
    कोई सौ बार तू अपनी छत पे नहीं आयी "


    ओर एक थे दुष्यंत कुमार ....उन्होंने कभी फरमाया था .
    "हम लोग उंचे पोल के नीचे खड़े रहे
    उल्टा था बल्ब मगर रौशनी ऊपर चली गयी"

    बाकी .....बाद में

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  11. पहले वाह वाह तो कह लूँ।
    सच आपकी लेखनी का स्टाईल ही अलग है।

    छोटे मोटे जख्मो से कोई फर्क नहीं पड़ता उनको
    बदन पर ऐसे टुच्चे निशान तो होंगे हजारो में...

    वाह क्या बात है।

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  12. सबको बहुत कुछ याद आया हमें तो पटना का कवि सम्मलेन याद आया...

    पटना दूरदर्शन के पास खुले आसमान में कई कवि विराजे थे... प्रदीप चौबे, गोपाल दास नीरज, अशोक चक्रधर (चीफ) , २-३ कवि राजस्थान के भी रखे हुए थे... वीर रस के कवि थे.. एक लोकल कवि था वो दैनिक जागरण का पत्रकार भी थे... उनकी इतनी हूटिंग हुई की आधा-अधुरा छोड़ कर आना पड़ा... मंच अना देहलवी ने संभाला... फिर अशोक चक्रखर ने लाइन मार दी... अना ने कहा- मुझे अशोक जी से ऐसी उम्मीद नहीं थी... मिटटी पलीद होते देख अशोक ने 'अना बहिन' बोल दिया... वोह रात आज भी जिंदा है... हमलोग २-३ बजे सुबह तक हँसते रहे थे... मुआ बारिश ना आया होता तो सुबह तक कवि सम्मलेन चलता रहता...

    एक बात और हुई थी...

    राजस्थान के कवि ने राजद (राष्टीय जनता दल के एक बड़े नेता के सामने) एक धारदार कविता परोस दी अखिलेश यादव (नेता) को गुस्सा आ गया... बड़ी मान-मनौव्वल के बाद मुआमला शांत होया था जी...

    पर अलगे दिन दैनिक जागरण का समाचार और भी जुदा था...

    जागरण के पत्रकार ने श्रोताओं का मन मोहा... खूब बजी तालियाँ...

    बहरहाल, आपका यह पोस्ट तो मुझे व्यंग सा लगा को अपने में कई हालत और घटनाक्रम समेटे है...

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  13. ज़ालिम वह ग़ुमनाम मैं न था, वरना मुलाहिज़ा अर्ज़ करने से पहले ही किसी नामचीन का शाग़िर्द होना कुबूल कर लेता ।
    नामचीन इन्कार तो करते ना, और किबला नामुराद अपने हवन्नक तुकबँदियों पर मिली वाहवाही सँभाल न पाते ।
    ग़र एक अदद ख़ुदाबाप ( गॉडफादर ) तैनात कर लिया जाय, फिर तो हवन्नक में भी दिखता रौनक ही रौनक !
    एक बानगी ठेलता हूँ :

    बहार लूट लें, फूलों का कत्ल-ए-आम करें
    वो जैसे चाहें इक ग़ुलिस्ताँ इन्तज़ाम करें

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  14. क्या बात है कुश साहब ? महफ़िल रूमानी हुई जाती है आपकी ! आपके ज़मानों में कोई बड़ी तब्दीली हुई मालूम पड़ती है। हा हा। बहुत ख़ूब पोस्ट।

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  15. bahut badhiya ..aapne to bilkul manch wali prstuti ki jhalak dikha di....achcha laga..dhanywaad ji

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  16. नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा...
    मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे...

    जय हिंद...

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  17. लो मुझे एक एसएम (ओंकारा स्टाइल)आ गया:

    महफ़िल सजी थी जाम का था दौर
    जाम में क्या था ये किसने किया गौर ?
    जाम में लहू था मेरे अरमानों का
    और सब कह रहे थे...
    एक और, एक और !

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  18. बहुत गहरी पोस्ट है जो मुझ जैसे कमअक्ल के सर के ऊपर से गुजर गयी :(

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  19. "छोटे मोटे जख्मो से कोई फर्क नहीं पड़ता उनको
    बदन पर ऐसे टुच्चे निशान तो होंगे हजारो में..."

    बड़ी मोटी चमड़ी है भाई! :)

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  20. बहुत खूब,
    इशारो ही इशारों मे दिल लेने वाले ,
    बता ये हुनर तुने सीखा कंहा से।

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  21. अरे ये महफ़िल तो जानी-पहचानी सी लगी है...

    मुझे जो पता होता कि मेरे दर्ख्वाश्त पे इतनी जल्दी पोस्ट लगा दोगे, तनिक पहले कर देता ये दरख्वाश्त...

    चलते-चलते, डाक्टर साब(निठ्ठले वाले नहीं) ने जिस शेर को दुष्यंत का बता कर चल दिये हैं, वो बशीर बद्र साब का है। अब ऐसी मुशायरों की रपट लगाओगे कुश तो यही गड़बड़झाला होगा

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  22. गुमनाम को सलाम बजरिये इस पोस्ट लेखक !

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  23. "शेरो की कुछ इसी तरह की दहाडो से पहले नामचीनों ने और फिर गुमनामो ने सारी की सारी महफ़िल लूट ली"

    मुझे इस पंक्ति में किसी पर व्यंग्य दिख रहा है, क्या मैं सही समझ पाया हूं??
    प्रणाम

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  24. " गोया टाँगे नहीं किसी जाहिल का ईमान हो..."
    इस जुमले पर दाद देने वापस चला आया...

    और जयपुर जल्द ही आना होगा, ट्रीट तुम्हारी तो वाकई उधार है।

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  25. बहुत खूब,





    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभू यह तेरापन्थ

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  26. कुश जा बैठा पेड़ पै, पोस्ट दई लटकाय।
    जाकी जैसी भावना, वैसा अर्थ लगाय ॥

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  27. वाह क्या महफिल जमाई है! आनंद आया! :)

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  28. लो जी मेजर साहब कान पकड़ माफ़ी ........शुक्र है पहले वाले को हमने बशीर बद्र का नहीं बतलाया .....

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  29. तो यूँ मिला गुमनाम को नाम[aur mahfil bhi! बढ़िया!

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  30. बहुत दिन के बाद आये, गज़ब आये...

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  31. :-)
    सभी की भेजी हुई कवितायें
    उम्दा लगी
    अता - पता भी बता देते
    ये मुशायरा हुआ कहाँ , कुश भाई :)

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  32. बहुत सुंदर


    सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
    जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

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    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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  33. एक बार फिर व्यंग्य में कूद पड़े कुश भाई , जो भी लिखते हो अच्छा लिखते हो

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  34. कमाल कर दिया। शेयर-ओ-शायरी भी गजब की थी।

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  35. छोटे मोटे जख्मो से कोई फर्क नहीं पड़ता उनको
    बदन पर ऐसे टुच्चे निशान तो होंगे हजारो में...

    मजा आ गया आपकी महफिल मैं ..

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  36. इस मजेदार महफ़िल ने दांतों को खूब हवा लगाई ...

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  37. hahaha sher dahada

    kya baat hai


    नामचीनों ने और फिर गुमनामो ने सारी की सारी महफ़िल लूट ली..


    mushayara ki aisi jhalak kabhi nahi padhi
    bahut achcha

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  38. लूटने वाले को कौन रोक पाया है। बस एक उपाय यही है कि इससे पहले कोई और लूटे, आप इस मौके को भुना डालें।
    ------------------
    और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
    एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।

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  39. महफ़िल तो मस्त सजायी तुमने...मगर एक निवेदन है आगे से जब भी कोई शेर दहाड़े तो हमें भी कृपया सुनने के लिए निमंत्रित किया जाए!

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..