Tuesday, August 25, 2009

हलकट दुनिया का सिपाही..

हलकट दुनिया के पिछवाडे पर लात देकर उसने गाडी स्टार्ट कर दी थी.. लोग बाग़ सड़क पर दौड़ रहे थे.. सारी गाड़िया फूटपाथ पर चल रही थी.. अचानक किसी ने बिलकुल पास आकर ब्रेक मारा.. @$%#$% कुछ निकला था उसके मुंह से.. शायद कोई गन्दी गाली रही होगी.. नहीं गन्दी नहीं, सिर्फ गाली होगी.. गालिया गन्दी या अच्छी नही होती.. सड़क पर गति सीमा चालीस देखकर उसने स्पीड बढा ली.. तेज़ ते़ज़ और तेज़ स्पीड से उसकी गाडी चल रही थी.. अचानक उसने देखा कार में बारिश होने लगी.. उसने जोर से ब्रेक लगाए पीछे से कोई उसे वही गाली वापस दे गया जो उसने कुछ देर पहले दी थी.. खिड़की से बाहर झाँका तो कडाके की धुप पड़ रही थी.. पर उसकी कार में जोरो की बारिश हो रही थी,, उसने अपनी जेब में हाथ डालकर देखा शायद छतरी मिल जाए.. पर नहीं अन्दर से एक अस्पताल का बिल.. थोडा सा काला धुआं और कुछ कांच के टुकड़े मिले.. ऊपर वाली जेब में एक वाशिंग मशीन मिली पर वो चलती नहीं थी.. उसने गुस्से में फिर एक गाली दी.. पता नहीं किसको ?

वो कार से बाहर निकल गया.. चारो तरफ भीड़ ही भीड़ थी.. उसने ऊपर देखा जगह जगह पर पोस्टर लगे थे.. बड़े बड़े होर्डिंग्स.. एक बड़ा सा एड लगा था "डार्क एंड लवली" सिर्फ हफ्तों में आपकी त्वचा को सांवला बनाये.. कितनी ही लड़कियों का ख्वाब होगा सांवला होना.. गोरे होने की वजह से उनकी शादिया नहीं हो रही थी.. वो पलटा, अगला विज्ञापन था बालो में डैंड्रफ उगाने का.. मोटा होने के इश्तेहार.. बाल सफेद करने का.. पर उसे इन सब की जरुरत नहीं थी.. वो इस जगह से भाग जाना चाहता था..उसने कार की खिड़की में देखा बारिश अभी तक जारी थी.. वो सामने जाकर मेट्रो पकड़ना चाहता था.. पर इस ट्रैफिक की वजह से सड़क पार नहीं कर पा रहा था..

उसे पास में ही अखबार का दफ्तर दिखा.. वो दौड़के अन्दर गया.. अन्दर सब लोग स्कूटर चला रहे थे.. उसने रोकने की कोशिश की पर कोई रुक नहीं रहा था.. सबको जल्दी थी.. सब तेज़ बनना चाहते थे सबसे तेज़.. उसने भी पास में पड़ा एक स्कूटर उठा लिया.. फटाफट उसने जाकर अखबार में खोया पाया कॉलम में विज्ञापन दिया.. "जेब्रा क्रोसिंग खो गयी" उसे लगा इसे पढ़कर शायद उसे सड़क पर जेब्रा क्रोसिंग मिल जाए और वो सड़क पार कर ले.. पर ऐसा हुआ नहीं.. सड़क के इस पार बैठे बैठे वो सामने आने जाने वाली मेट्रो देख रहा था.. उसे लगा अगर मेट्रो के ड्रायवर ने एक बार उसे देख लिया तो वो मेट्रो इधर ले आएगा.. मेट्रो का ड्रायवर उसे जानता था.. इतनी जान पहचान तो चलती ही है.. मेट्रो चुकी थी.. पर ड्रायवर देख नहीं रहा था..

वो घबराया.. उसने जमीन पर पड़ा पत्थर उठाया और सामने की तरफ उछाल दिया.. पत्थर मेट्रो की खिड़की को तोड़ता हुआ आसमान की तरफ चला गया.. पत्थर हवा में उड़ता ही जा रहा है.. वो देखता रहा.. पत्थर और ऊपर चला गया.. अचानक आसमान में से जोर की आवाज़ आई.. शायद उसने आसमान फाड़ दिया था.. आसमान से मोम जैसा कुछ पिघलकर नीचे गिर रहा था.. जैसे ही वो उसके ऊपर गिरता मेट्रो उसके करीब गयी.. वो फटाफट उसमे चढ़ गया.. पर अन्दर मेला लगा हुआ था.. बहुत भीड़ थी.. खेल तमाशे वाले.. चाट पकोड़ी वाले.. झूले वाले.. बहुत सारे लोग जमा थे.. मेले में हंस खेल रहे थे.. उसे ये सब अच्छा नहीं लग रहा था.. वो बाहर जाना चाहता था.. पर मेट्रो का दरवाजा खुलता नहीं था.. सिर्फ स्टेशन आने पर ही खुलता था ये.. वो मेट्रो में फंस चुका था..

उसने पीछे वाली जेब से पर्स निकाला.. अन्दर पैसे नहीं थे.. बस एक कंडोम का पैकेट था.. जो यूज नहीं किया गया था.. उसने देखा बाहर सबके हाथ में ऐसा ही एक पैकेट था.. किसी ने भी इस्तेमाल नहीं किया था.. बाहर भीड़ और बढ़ने लगी थी.. सब पैकेट लेकर घूम रहे थे.. उसने जेब में हाथ डालकर तलवार निकाल ली.. वो उन सब लोगो को काट डालना चाहता था.. जिसने पैकेट खोला भी नहीं था.. पर अगर वो ऐसा करता तो उसे खुद को भी मारना पड़ता.. यही सोच के उसने तलवार जमीन में घुसा दी.. और पास वाली गली में मुड गया..

पास वाली गली में बड़ा सा सिनेमा हॉल था.. वो अन्दर चला गया.. अन्दर फिल्म चल रही थी.. हिरोइन नाच रही थी.. लोग सीटिया बजा रहे थे.. चारो तरफ अँधेरा था.. उसे कुछ नज़र नहीं रहा था.. उसने किसी के पांव पर पांव रख दिया.. एक गाली सुनाई दी.. लोगो ने जोर से तालिया बजायी.. वो अपनी सीट पर जाकर बैठ गया.. उसी सीट पर तीन चार लोग और बैठे थे.. पांचो लोग उसी सीट पर बैठे थे.. पिक्चर ख़तम होने वाली थी.. हीरो ने डाकुओ से हिरोइन को छुडा लिया था.. अब वो डाकुओ को मार रहा था.. उसने सबको मार दिया और घोडे पर बिठाकर हिरोइन को ले गया.. पिक्चर ख़त्म हो चुकी थी.. सब लोग बाहर जा चुके थे वो अन्दर अकेला रह गया था.. चारो तरफ पोपकोर्न बिखरे हुए थे.. इतने में उसने देखा फिल्म वापस शुरू हो गयी.. हीरो परदे में से निकलकर बाहर गया.. और उसके पीछे भागा..

वो तेजी से बाहर निकला.. हीरो उसके पीछे पीछे भाग रहा था.. उसने ट्रैफिक सिग्नल उखाड़ कर पीछे फैंका.. पर हीरो को खरोंच तक नहीं आई.. वो तेजी से भाग रहा था.. उसने देखा कुछ लोग बन्दूक लेकर स्टेशन पर लोगो को मार रहे है.. उसने उनके हाथ से बन्दूक छीन कर हीरो पर अंधाधुंध गोलिया चलायी.. पर हीरो को कुछ नहीं हुआ.. वो बन्दूक वही फेंक कर भागा.. उसने जेब से मोबाइल निकाला पर जैसे ही उसने कॉल बटन दबाया.. मोबाइल से खून का फव्वारा छूट पड़ा.. उसने हाथ से झटका पर मोबाइल नहीं गिरा.. वो और तेज़ भाग रहा था.. मोबाइल से लगातार खून बहता जा रहा था.. हीरो अब भी उसके पीछे था.. उसे सामने डस्ट बिन दिखाई दिया.. वो उसमे छुप जाना चाहता था.. पर अफ़सोस डस्ट बिन खाली पड़ा था.. हीरो उसके और करीब चुका था..

वो आगे जाकर मेडिकल की दुकान पर रुका.. उसने वहा से साढे सताईस हज़ार की दवाईया खरीदी.. वो उन्हें लेना चाहता था.. पर उसे कही पानी नहीं मिल रहा था.. सब तरफ कोल्ड ड्रिंक मिल रही थी.. उसने कोल्ड ड्रिंक की बोतल खरीदी और सारी दवाईया ले ली.. फिर भी हीरो उसके पीछे ही लगा था.. हीरो ने सड़क पर पड़े कचरे में से पोलीथिन बैग्स उठा लिए.. हीरो बिलकुल उसके करीब चुका था..

उसने देखा आसमान में हवाई जहाज उड़ रहा था.. वो उचक कर हवाई जहाज को पकड़ कर भाग जाना चाहता था.. जैसे ही वो हवा में उछला.. हीरो ने पीछे से उसका कोलर पकड़ लिया.. वो पूरी तरह से हीरो की गिरफ्त में चुका था.. हीरो ने पोलीथिन से उसका मुंह बाँध दिया.. उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी.. वो सांस लेने की कोशिश कर रहा था पर हीरो ने पोलीथिन से उसका मुंह और जोर से दबा दिया था.. उसकी आँखों के आगे अँधेरा चुका था.. वो हवा में उड़ते हुए किसी पेड़ के पास जाकर ऑक्सीजन लेना चाहता था.. पर उसे कही पेड़ नज़र नहीं रहा था.. उसने जोर से मुंह से सांस खिंची पोलीथिन उसके नाक पर चिपकी और बस... ये उसकी आखिरी साँस थी .. हीरो ने उसको नीचे फेंक दिया.. ठीक जेब्रा क्रोसिंग के ऊपर.. पास में एक अखबार पड़ा था जिस पर खोया पाया का विज्ञापन था.. सड़क के दूसरी तरफ खडी कार में बारिश बंद हो चुकी थी.. कंडोम के कुछ खाली पैकेट्स सड़क पर पड़े थे.. लोग सड़क पार करके मेट्रो की तरफ जा रहे थे.. पर इन सबसे बेखबर... हलकट दुनिया में सड़क पर एक लाश पड़ी थी..

47 comments:

  1. हलकट दुनिया अच्छा शीर्षक है कहानी भी अच्छी है

    ReplyDelete
  2. अच्छा है...बढिया है...काफी कुछ कह दिया जो आप कहना चाहते थे

    ReplyDelete
  3. आपकी इस घुमावदार कहानी में हम तो घूम गए बंधू...दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया...क्या कमेन्ट करें?
    नीरज

    ReplyDelete
  4. इतनी जबरदस्त कहानी पर प्रतिक्रिया देना बहुत मुश्किल काम है
    लिखने की स्टाईल बहुत आकर्षक है
    आभार



    ********************************
    C.M. को प्रतीक्षा है - चैम्पियन की

    प्रत्येक बुधवार
    सुबह 9.00 बजे C.M. Quiz
    ********************************
    क्रियेटिव मंच

    ReplyDelete
  5. बहुत शानदार ताना बाना बुना है अबकि बार. बहुत गजब की कहानी बन पडी है.

    रामराम.

    ReplyDelete

  6. कसी हुई बुनावट, एक कोलाज़ का एहसास देती हुई,
    हलकट एलिमेन्ट की परवाह ही किसे है ।
    परफ़ेक्ट ब्लेन्ड !

    ReplyDelete
  7. नामवर सिंह को दिखाई क्या?

    ReplyDelete
  8. तीन बार पढ़ डाली भाई, हर शब्द के साथ दिमाग गोल गोल घूमती गयी...अंततः निष्कर्ष यही निकला कि -- पोलीथिन,भीड़,कोंडोम,सड़क पर लाश ....आज जिस दौर से हम गुजर रहे हैं,शायद उसी सन्दर्भ में भविष्य की भयावहता की तस्वीर खिंची है तुमने........

    क्या मैं सही हूँ,प्लीज बताना....

    ReplyDelete
  9. अरे वाह पूरा का पूरा कामेंन्ट्री एक सपने की मुझे भी सपने आते थे जैसे अब आप को आते हैं, मुझे क्या सबको आते होंगे पर आपने बहुत अच्छे शब्दों में उकेरा और वह सब अनायास ही सामने रख दिया। बधाई आपको शब्दों में बाँधने के लिये ...

    ReplyDelete
  10. कुशजी आपकी लेखनी पढकर तो माथा ही ठनक जाता है।

    सोच कहा से प्राप्त होती है? कहानी पढने की शुरुआत करने के बाद खत्म कब होती है यह पता ही नही चलता।आपकी कलमकारी कहानीकारी की दाद देनी पडेगी भाई!!!!

    वर्तमान सन्दर्भ को मध्यनजर रखकर बहुत शानदार बुना है कहानी का ताना बाना ।

    इन्तजार रहेगा आगे भी इस तरह की सन्देशवाहक कहानीयो का

    आभार

    हे! प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई-टाईगर
    द फोटू गैलेरी
    महाप्रेम
    माई ब्लोग

    ReplyDelete
  11. मन के आवेग को अपनी सोच ्के धागे मे पिरो कर शब्दो की अच्छी माला बनाई है....लगता है आज हम शीर्षासन करते हुए जी रहे हैं.....

    ReplyDelete
  12. हिन्दी ब्लागिंग में पिछवाडे से साईबर पंक घुसेड रहे हो गुरू -मगर जो पहले से ही सावली है वह काहे को भाव देगी !
    Cyberpunk-इस पर क्लिक कीजिए

    ReplyDelete
  13. पहली बार पढा इसे। सोच-सोच के सोचते जा रहे हैं कि क्या-क्या कलाकार छिपे हैं तुम्हारे अन्दर। छुट्टी-फ़ुट्टी मिले तो इसपर उपन्यास लिख सकते हो। सुन्दर झकास। अद्बुत। जय हो।

    ReplyDelete
  14. मुझे भी....ब्लोग जगत में आज उपन्यास पढने का मजा मिला..कुश भाई...शैली..और प्रवाह ..अद्भुत हैं...शुकल जी की सलाह पर गौर फ़रमाइयेगा..

    ReplyDelete
  15. सुन्दर बुनावट ..ये अरविन्द जी क्या कह रहे हैं :-)

    ReplyDelete
  16. डॉ अमर कुमार जी से इत्तेफाकी है मियां...इन दिनों ब्लेंड का ही मूड है ..पोस्ट कुछ अलग सा सकून देती है ..बोल्ड थीम है ...ऐसी थीमे हिंदी ब्लोगों में ढूंढ के पढ़नी पड़ती है ....

    ReplyDelete
  17. "गालिया गन्दी या अच्छी नही होती."

    होती हैं - तभी तो पार्लिमेंटरी और अनपार्लिमेंटरी गाली कहते है।
    कमीने, हरामज़ादे पार्लिमेंटरी है. ऽ%ऽ%॒ अन्पार्लिमेंटरी:)

    ReplyDelete
  18. कहां से ली है? हलकट इन वण्डरलैण्ड!
    आप लुइस केरोल से कमतर नहीं लिखते!

    ReplyDelete
  19. मुझे तो भई चक्कर आने लगा।
    जरूर आपने कोई बुरा सपना देखा होगा।

    ReplyDelete
  20. यार इसे समझना भी पड़ेगा क्या ....??? कुछ लोगो ने कहा कि बोल्ड है, कुछ ने कहा भविष्य है..! कुछ ने कहा अथाह सागर है...! हम टिप्पणियों में से कुछ निकालने की कोशीश में हलकान हैं...!!!! हम बहुत कन्फूज हूँ भाई....!!!!

    ReplyDelete
  21. क्या लिखते हो भाई...! गजब...।

    अब क्या कहूँ यार..., इससे ज्यादा लिखने के लिए तो समझना पड़ेगा और वो क्षमता मुझमें है ही नहीं।

    सच कह रहा हूँ। पूरा आजमा चुका हूँ।

    ReplyDelete
  22. बिलकुल नयी स्टाइल में मस्त लिखा है...तुम्हे पढ़के इस बार ऐसा लगा जैसे किसी मंझे हुए लेखक को पढ़ रही हूँ. आगे और भी लिखो ऐसा ही कुछ,

    ReplyDelete
  23. कितना कैसे कहाँ से सोच लेते हो भाई तुम ..बहुत ही घुमा देने वाली हैं यह पोस्ट ..बेहतरीन

    ReplyDelete
  24. और मुझे "बिजारो" की याद आयी।

    तुम समझ सकते हो कुश कि क्यो? ’सुपरमैन’ को पढ़ा ही होगा

    ReplyDelete
  25. भैया जी इस रॉ मटेरियल से बहुत अच्छा सामान बन सकता है,

    काश हमारे पास भी इतना अच्छा रॉ मटेरियल होता !

    किन्तु कुश तो केवल आप हो न !

    ReplyDelete
  26. अति बढ़िया.
    उत्तम भाषा और शैली.
    निरंतरता लगातार बनी रहती है.
    कुल मिला कर कहानी बहुत अच्छी बन पड़ी है, भाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त, जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    ReplyDelete
  27. भई अभी कहानी पूरी पढ़ नही पाया हूँ यहाँ पढ़ने मे यही दिक्कत है । लेकिन गद्य तो अच्छा है आपका । किसी कहानी पत्रिका यथा कथादेश वगैरह मे भी भेजते है क्या ?

    ReplyDelete
  28. एक सपना जो कभी हकीकत बन कर आँखों के आगे आया तो कभी लगा हकीकत है जिसमे हम खो रहे हैं ...पढने में अपने आप को ही भूल गयी थी ....ट्रेफिक की भीड़ में जेब्रा क्रोसिंग का खो जाना , कार में बारिश का होना शायद गालियों की थी ...आसमान से मोम जैसा कुछ गिरना , मेट्रो में भीड़ ...बहुत सी बातें ...तस्वीर बन कर चलती रही मेरे साथ साथ ....हलकट दुनिया ...

    ReplyDelete
  29. कुश भाई
    ....क्या इमेजीनेशन है आपकी ...
    बाबा रे...
    साइंस फिक्शन ..
    और फंतासी का अद्`भुत कोलाज
    उपन्यास भी बन सकता है ये तो

    - लावण्या

    ReplyDelete
  30. kush bhai...aap aasman ki aur ud gaye hain...meri pahonch se pare :(

    ReplyDelete
  31. C.M. is waiting for the - 'चैम्पियन'
    प्रत्येक बुधवार
    सुबह 9.00 बजे C.M. Quiz
    ********************************
    क्रियेटिव मंच
    *********************************

    ReplyDelete
  32. बहूत अच्छी रचना. कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारे.

    ReplyDelete
  33. बेतरतीब घटनाक्रम और करीने से सजाये गए इस कहानी पर कमेन्ट करने वाला मैं आपका हालिया अंतिम पाठक हूँ... (उम्मीद करता हूँ) सोच लिया था कुछ बार पढ़ कर सबसे अंतिम में कहूँगा... कितना कुछ है कहने को सिपाही शब्द हलकट दुनिया में... वाह! बेतहासा बेलौस और अप्रत्याशित... गुरुदत्त अभी जिंदा होते तो ऐसी फिल्मो पर सोचते ऐसा लगता है...

    ReplyDelete
  34. क्या गजब कल्पनाएं करते हों कुश, ऐसी कल्पनाएं बाप रे, दिमाग घूमने लगा, पर देखा जाए तो भविष्य का आईना ही तो दिखा रहे हो, पर ध्यान रखना हालीवुड के फ्यूचरिस्टिक साइंस फिक्शन लिखवाने वाले तुम्हें पकड़ कर अमेरिका न ले जाएं

    ReplyDelete
  35. इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

    ReplyDelete
  36. इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

    ReplyDelete
  37. एक महीने से पड़े हो हलकट दुनिया में! बहुत खराब बात!

    ReplyDelete
  38. are!!! kaha kho gaye ho....paise kamane ke chakkar mein mat pado...likho kuch..

    ReplyDelete
  39. kush ji

    namaskar

    deri se aane ke liye maafi chahta hoon

    puri kahani padhi ..itna kasa hua canvas bahut dino baad dekh raha hoon ki shabdo ke zariye hi aapne aisi tasweer bana li hai ...main to kya kahun .. kush ji , main ek request karna chahta tha .. aap kavita likhiye na .. aapki lekhni me likhi hui kavita nischint roop se bahut behtar hongi ..

    is post ke liye meri badhai sweekar kare..

    dhanywad

    vijay
    www.poemofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete
  40. इम्तहा हो गयी इंतजार की

    ...नयी पोस्ट लगाओ कुश, प्लीज!

    ReplyDelete
  41. कुश भाई आप ने देसी ठरा पी कर लिखी होगी यह कहानी, असल मे जब मेरे बच्चे छोटे थे, ओर रोज कहानियां सुनाने की जिद करते थे तो मे भी ऎसी ही कहानियां बीयर पी कर सुनाया करता था, लेकिन आप की कहानी वीयर से काफ़ी आगे है, लेकिन अग्रेजी शराब से कम जरुर ठरे का कमाल ही होगी.
    लेकिन मजे दार
    धन्यवद

    ReplyDelete

वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..