Thursday, June 7, 2007

"राहें..."

तेरी ओर आने वाले रास्ते
जानता मैं नही..
फिर भी पाना है तुझको
जैसे बहता हुआ दरिया
मिल जाता है समंदर में
क्ंटको के रास्तो से..
फिर पा जाता है मंज़िल अपनी
शायद ये लहरे बहाओ से नही
हॉंसलो से बहती है ....
निरंतर.. अकारण उन्माद में...
इनके पास वजह लगती है
प्रफुललित होने की..
एक मैं हू जिसे रास्ते की तलाश है
भीड़ भरी दुनिया में
अकेला खड़ा हू...
वक़्त के साथ बाज़ी खेली है
जाने कौन सा लम्हा मात दे दे..
यही सोच कर क़दम बढ़ाए..
तुझको पाने को..
थोड़ी सी हिम्मत बस..
क्या पता शायद
राहें भी संग मेरे तुझसे
मिलने चली आए...

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1 comment:

वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..