Tuesday, February 15, 2011

प्यार को प्यार ही रहने दो.. कोई नाम ना दो...


उसका ये कहना कि गुलज़ार ने जो लिखा है उसके बाद प्यार का डेफिनेशन ही ख़त्म हो जाता है.. मुझे ठीक तभी याद आता है खामोशी का वो गीत..
हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू.. 

वो कहती है.. तुम खुद ही देखो ना.. क्या खूब कहा है.. सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो.. प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो.. सच है इस के बाद प्यार को कोई और क्या कहेगा.. इश्क में डूबा हुआ इंसान माशूक से ज्यादा गानों से प्यार करता है.. गोया संगीत के बिना मोहब्बत अधूरी है.. 

वो कहती है और नहीं तो क्या वैसे भी आधे शायर आशिक ही होते है.. 
और बाकी के? ये मैं पूछता हूँ.. 
माशूक...! ! 
 
वो हँसते हुए उठती है और अपनी लम्बी सी चोटी को इस काँधे से उठाकर उस काँधे पर रखती है. मेरी आँखे उसके बालो में बंधे गुलाबी रिबिन पर रुक जाती है.. ऐसे ही गुलाबी गाल हो जाते है उसके.. जब वो बहुत रोती है या फिर खिलखिलाके हँस देती है.. अब चलते हुए वो खिड़की के पास पहुँच जाती है.. और आसमान की तरफ देखती है.. मैं अपने चश्मे को टेबल पर रखके उसकी तरफ बढ़ता हूँ.... उसके चेहरे पर उगते चाँद और ढलते सूरज की रौशनी एक एबस्ट्रेक्ट सी पेंटिंग बनाती है.. मैं उसके करीब जाकर खड़ा हो जाता हूँ.. वो अभी भी चाँद को देख रही है.. मैं उसकी आँखे अपने हाथो से बंद करते हुए कहता हूँ.. तुम जो कह दो तो आज की रात चाँद डूबेगा नहीं.. 

रात को रोंक लो... वो बंद आँखे किये कहती है..
मैं हाथ उसकी आँखों से हटाकर उसे शहर की रौशनी दिखाता हूँ.. वो देख रही हो.. हरे गुम्बद वाली मस्जिद.. वहां से आती अजानो में मुझे तुम्हारी हंसी घुली हुई सी लगती है.. 
हटो.. बहुत बड़े फंडेबाज हो तुम... वो शर्माते हुए कहती है.. कोई भी मौका नहीं छोड़ते.. 
तुम्हे छोड दे जो उसे आगरे शिफ्ट करवा देना चाहिए.. 
आगरे का पागलखाना तो खुद रांची शिफ्ट हो गया है.. 
वही रखना था.. मैं उसकी तरफ देखकर कहता हूँ.. 
वो मेरी तरफ देखती है.. उसकी निगाहों में सवाल है.. 
अरे अपने महबूब की याद में आधे लोग ताज महल जाते है 
और बाकी के..? वो पूछती है.. 
पागलखाने... !! 
 
मैं बोलके फिर से कमरे की तरफ चलता हूँ.. वो मेरे पीछे पीछे आती है.. 
 
मैं ट्रांजिस्टर उठाकर ट्यून करता हूँ.. ये वही ट्रांजिस्टर है जिस पर पिताजी गाने सुनते थे.. प्यार हुआ.. इकरार हुआ है.. प्यार से फिर क्यू डरता है दिल.. और रसोई में अपने पल्लू को कमर में फंसाए मेरी माँ गाती कि डरता है दिल रस्ता मुश्किल मालूम नहीं है कहाँ मंजिल...

 
क्या सोचने लगे मिस्टर..? वो मुझे फिर से उसी कमरे में खींच लाती है.. 
रेडियो में गाना बजने लगा है.. जीने के लिए सोचा ही नहीं दर्द सँभालने होंगे.. मुस्कुराओ तो मुस्कुराने के क़र्ज़ उतारने होंगे.. मुस्कुराओ कभी तो लगता है.. जैसे होंठो पे क़र्ज़ रखा है.. 

वो भी रेडियो की आवाज़ के साथ गुनगुनाने लगती है.. तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी.. हैरान हूँ मैं.. मैं रेडियो बंद कर देता हूँ.. और उसकी आवाज़ में डूब जाता हूँ.. 
 
मुझे ऐसा लगता है जैसे कोई कैमरा हम दोनों के क्लोज अप शोट ले रहा है.. बहुत धीरे धीरे हमारी तरफ ज़ूम होता हुआ..वो अपने दुपट्टे के छोर को अपनी नर्म उंगलियों से पकड़ लेती है.. वो ऐसा क्यू करती है ये जाने बिना मैं उसकी इस अदा को पसंद करता हूँ.. 

वो मेरी तरफ देखती है.. उसकी आँखों में आसमान के सितारे उतर आये है.. मैं दिवार पर लगी उस तस्वीर को देखता हूँ.. जिसमे रेल के दरवाजे पर एक लड़की खडी है.. और लड़का हाथ में पीले फूल लिए प्लेटफोर्म पर उसकी तरफ भागता है.. इश्क आसानी से हासिल हो जाये तो इश्क नहीं रहता.. ये सिर्फ मेरे मन का ख्याल है.. 

वो मेरी नज़र पढ़ लेती है.. और तस्वीर की तरफ बढती है.. उसके पायल की आवाज़ फर्श पर बिखरती जा रही है.. मैं एक एक आवाज़ को उठाकर अपने कानो में पहन रहा हूँ.. वो मुड़कर मुझे देखती है..
क्या देख रहे हो.. ? 
देख नहीं रहा हूँ सुन रहा हूँ... 
क्या सुन रहे हो?
म्यूजिक... 
यहाँ कहाँ म्यूजिक है ?
ये जो खामोशी पसरी हुई है कमरे में.. 
ख़ामोशी संगीत है?
यस...! ये भी एक म्यूजिक है.. गौर से सुनो इसे.. 
वो मेरे करीब आकर मेरी कुर्सी के पास बैठ जाती है.. मेरे घुटनों पर अपना सर टिका कर मेरे साथ साथ खामोशी को सुनती है... मेरी उंगलिया खुद ब खुद उसके बालो में उलझ जाती है.. मैं उसके बाल सहला रहा हूँ.. वो मेरे दायें पैर के अंगूठे से खेल रही है...उसकी मासूमियत मैं अपने अंगूठे पर महसूस करता हूँ..

तुम बालो को खुला रखा करो.. खुले बालो में तुम अच्छी लगती हो.. मैं पता नहीं क्यों उसे ऐसा कहता हूँ..
पर तुम कंघी मत किया करो.. बिखरे हुए बाल तुम पर अच्छे लगते है.. मैं तुम्हे हमेशा ऐसे ही देखना चाहती हूँ.. वो मेरे बाल बिखेर देती है.. मेरी नज़र उसकी कान की बालियों पर है..
ये वही है ना जो मैंने तुम्हे तुम्हारे इक्किस्वे जन्मदिन पर दी थी.. मैं छूकर देखता हूँ..
आउच. .अरे धीरे.. उसके कानो में दर्द होता है..
क्या कर रहे हो? वो पूछती है..
इस शाम को कैद करने की कोशिश... मैं अलमारी से कैमरा निकालता हूँ और मैक्रो मोड़ में उसके कानो की बालियों की फोटो लेता हूँ.. उसकी गर्दन पर हल्के हल्के बालो के बीच झूलती बालिया.. मैं इनमे अक्स देखता हूँ.. अपनी ज़िन्दगी का.. इस छोटे से लैंस में मुकम्मल नज़र आती है मुझे..

वो करीब आकर कैमरे के लैंस पर हाथ रख देती है.. मैं उसके माथे पर चूमता हूँ.. वो खुद ही खुद में सिमट जाती है.. मैं एक खामोश अंगड़ाई लेते हुए उठकर कॉफ़ी का प्याला उठाता हूँ..  उसकी नज़रे मेरी तरफ है.. मैं मुमताज़ मिर्ज़ा की ग़ज़ल का शेर पढता हूँ..

वो एहतराम ए गम था कि लब तक ना हिल सके.. 
नज़रे उठी तो सर ए हद ए गुफ्तार तक गयी.. 

ठीक उसी वक़्त सड़क  पर लगे लैम्प पोस्ट की रौशनी खिड़की से अन्दर आती है..  और वो कहती है

तन्हाईयो ने फासले सारे मिटा दिए.. 
परछाईयां मेरी.. तेरी दिवार तक गयी.. 

मेरी नज़र खिड़की की रौशनी से फर्श पर बनी उसकी परछाई पर जाती है.. वो ठीक मुझ तक पहुंची है.. मैं एक बार फिर उस पर मर मिटा हूँ.. वो मुस्कुराये जा रही है.. मैं दौड़कर उसे गोद में उठा लेता हूँ.. और पूछता हूँ.. 
विल यू बी माय वेलेंटाईन ?? 
वो कहती है ये तो मैं पहले से ही हूँ.. कुछ और बोलो.. 

मैं उसे उठाकर फ्रिज पर बिठा देता हूँ..  
आलवेज बी माय वेलेंटाईन.. मैं उसके मुलायम हाथो को अपने हाथ में लेकर कहता हूँ.. 
 
अब उसकी आँख में आंसु आ गए है.. और गाल गुलाबी हो गए है.. उसके गालो का गुलाबी रंग पुरे कमरे में बिखर गया है.. खामोशी अभी भी ठहरी हुई है कमरे में.. एक संगीत की तरह हमारी आवाज़े मिल रही है फजाओ से.. हवा ने खिड़की पर पर्दा उड़ा दिया है.. मैं उस से कहता हूँ.. कभी गुलज़ार साहब मिले तो उनसे कहूँगा कि हमने भी देखी है उन आँखों की महकती खुशबू..

वो अपने ऊँगली मेरे होंठो पर रखती है.. और मेरे कान में हौले से आकर कहती है.. प्यार को प्यार ही रहने दो.. कोई नाम ना दो...

50 comments:

  1. कुश की कलम का जादू नये नये रंग फ़ैला रहा है . मै इसे पढा जा रहा हूं कोई नाम ना दे रहा हूं.

    ReplyDelete
  2. आज के दिन आपको मेरी प्यार भरी शुभकामनायें

    ReplyDelete
  3. आज की सुबह को रंगीन बना डाला तुमने कुश !
    एक तो दिल्ली का मौसम इतना रंगीन है ऊपर से तुम्हारी लेखनी ने बहारों में खुशबू भर दी है ! बारिश की छोटी बूंदे जैसे चेहरे पे गिरने के अहसास को खूबसूरत बना देती हैं वैसा ही अहसास है कुछ-२ :) !!

    ये तुम्हारी लेखनी की ही जीत है कि मैं कुछ इस भाव को अपने शब्दों में व्यक्त करने के लिए सोचने लगा हूँ ..
    हाँ शायद कभी "प्यार" की मशरूफियत से मौक़ा मिले तो जरूर लिखूंगा ;) :) !!

    ReplyDelete
  4. sahi effect hai sir ji ..man ki baat kah daali

    ReplyDelete
  5. दुनिया की सारी लडकिया खुले बालो में खूबसूरत लगती है .
    .बाहर बारिश है....कल रात से .....सूरज का वेलेंटाइन अभी जारी है
    कैमरों के साथ तकलीफ ये है के मुनासिब वक़्त पर नहीं मिलते........वर्ना कितने लम्हे फ्रीज हो जाते.......क्लिक !
    प्यार अजीब चीज़ है दस साल पहले भी दिल को ऐसे ही भरता था ...पंद्रह साल पहले भी ......
    गुलज़ार बूढ़े नहीं होते .....
    ओर प्यार कई जगह प्यार ही है अब भी.

    was missing this kush.....

    keep this form opener...

    love you

    ReplyDelete
  6. "मैं एक बार फिर 'आप पर' मर मिटा हूँ"

    मौसम मुताबिक बड़े सुन्दर काम को चुना है आपने... कुछ लोगों को हफ्ते में एक बार तो लिखना ही चाहिए... जाहिर है आप भी उनमें एक हो

    ReplyDelete
  7. अभी तक इसी ख्याल मे डूबी हूँ ………जब बाहर आऊँगी तो शायद ढंग से कमेंट कर पाऊँ।
    उनके ख्याल आये तो आते चले गये ……………।

    ReplyDelete
  8. "इश्क आसानी से हासिल हो जाये तो इश्क नहीं रहता...ये सिर्फ मेरे मन का ख्याल है..."

    ये आपके मन का ख्याल नहीं हकीकत है...तुम्हारी पोस्ट्स कमबख्त हाथ पकड़ के मुझे तीस पैंतीस साल पीछे ले जाती हैं...और वहाँ से वापस लौटना का दिल ही नहीं करता...क्या खूब लिखते हो भाई...वाह...

    नीरज

    ReplyDelete
  9. ये तो किसी रोमांटिक फिल्म की स्क्रिप्ट मालूम होती है..
    पर -
    लम्बी सी चोटी को इस काँधे से उठाकर उस काँधे पर रखती है. मेरी आँखे उसके बालो में बंधे गुलाबी रिबिन पर रुक जा"
    लंबी चोटी और गुलाबी रिबन ....आज के ज़माने में ??? :) :) . वैसे प्यार में सब जायज है.
    @मैं उसे उठाकर फ्रिज पर बिठा देता हूँ". फ्रिज किस साइज का था वो तो लिखना था न :) :).
    बरहाल खूबसूरत एहसासों की खूबसूरत बयानगी .
    Beautiful post ..liked it.

    ReplyDelete
  10. कलम का जादू, प्यार का जज्बा, गुलजार की शायरी।

    ReplyDelete
  11. अरे अपने महबूब की याद में आधे लोग ताज महल जाते है
    और बाकी के..? वो पूछती है..
    पागलखाने... !

    सही बात है....सभी पागल ही होते हैं इश्क करने वाले.

    ReplyDelete
  12. कुछ तो लिख मारते हो, जो कमाल होता है :)

    ReplyDelete

  13. वैलेन्टाइन पर एक अच्छी पोस्ट पढ़ने को मिली ।
    पढ़ कर मुझे पक्का भरोसा हो गया कि अभी तो मैं जवान हूँ...

    यह पढ़ कर कि "वो अपने ऊँगली मेरे होंठो पर रखती है.. और मेरे कान में हौले से आकर कहती है.. प्यार को प्यार ही रहने दो.. कोई नाम ना दो... "
    मुझे वर्षों पहले पढ़ा हुआ कुछ आधा अधूरा सा याद आ रहा है, प्यार को नाम देने की ज़द्दोजहद के बाद की लाइनें कुछ यूँ हो सकती थी...

    फिर तेज चलने लगी ग़ुरबत में हवा
    गर्द पड़ने लगी आईने पर
    जागते रहने का हासिल क्या है
    आओ, सो जाओ मेरे सीने पर
    ऎसे ख़्वाब वो दोस्त नहीं हैं
    कि जो बिछड़ेंगे तो याद आयेंगे
    फिर जागते रहने का हासिल क्या है
    अव्वले शब तुम्हें देखा था जहाँ
    चाँद ठहरा होगा उसी जीने पर
    आओ, सो जाओ मेरे सीने पर


    पर लगता है इसके आगे तुम खुद ही शर्मा गये, धुत्त !
    माफ़ करना शायद मेरे कीबोर्ड से यही लिखा जाना मुकरर्र रहा होगा !
    बेशक एक अच्छी पोस्ट !

    ReplyDelete
  14. `वैसे भी आधे शायर आशिक ही होते है.'
    सवाल यह उठता है कि पूरे शायर क्या होते हैं - पागल!!!

    कहते हैं इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते - वैलेन्टायन या नो वैलेन्टाईन :)

    ReplyDelete
  15. आपकी कलम के जादू से रू ब रू होना अच्छा रहा।

    ReplyDelete
  16. बहुत सुम्दर नाज़ुक सी कहानी. जैसे रेडियो पर गीतों भरी कहानी.... :)

    ReplyDelete
  17. sahi kaha hai...
    वो कहती है aur hum bhi yehi kahte hai ki वैसे भी आधे शायर आशिक ही होते है..
    और बाकी के?
    माशूक...! !

    ReplyDelete
  18. मैं उसे उठाकर फ्रिज पर बिठा देता हूँ.. how could u do this? lol
    khair...gano aur sheron ke saath ek alag mood ban gaya tha padhte padhte....mast post hai.

    ReplyDelete
  19. बहुत सुंदर रचना ..

    ReplyDelete
  20. तन्हाईयो ने फासले सारे मिटा दिए..
    परछाईयां मेरी.. तेरी दिवार तक गयी..

    यह शेर सहेज लिया अपने पास...

    जैसे तुमने लिख डाला है,कोई खसूट दिल वाला पढ़ ले तो वह भी रूमानी हो जाए...

    प्रेम को नाम देने की सचमुच कोई आवश्यकता नहीं...

    और हाँ, सही है..आसानी से मिल जाए तो प्रेम में वह लज्ज़त नहीं रहती..

    ReplyDelete
  21. बहुत खूबसूरत, एकदम प्रेम में डूबी हुई पोस्ट...आज बहुत दिन बाद उसी कुश को पढ़ा जिसे लंबे वक्त से मिस कर रहे थे

    ReplyDelete
  22. bahut khoob...
    gahraai tak utarati hai...

    ReplyDelete
  23. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  24. School Observation February 16, 2011 4:37 PM

    मुझे ऐसा लगता है जैसे कोई कैमरा हम दोनों के क्लोज अप शोट ले रहा है.. बहुत धीरे धीरे हमारी तरफ ज़ूम होता हुआ..वो अपने दुपट्टे के छोर को अपनी नर्म उंगलियों से पकड़ लेती है.. वो ऐसा क्यू करती है ये जाने बिना मैं उसकी इस अदा को पसंद करता हूँ..

    वो मेरी तरफ देखती है.. उसकी आँखों में आसमान के सितारे उतर आये है.. मैं दिवार पर लगी उस तस्वीर को देखता हूँ.. जिसमे रेल के दरवाजे पर एक लड़की खडी है.. और लड़का हाथ में पीले फूल लिए प्लेटफोर्म पर उसकी तरफ भागता है.. इश्क आसानी से हासिल हो जाये तो इश्क नहीं रहता.. ये सिर्फ मेरे मन का ख्याल है..

    वो मेरी नज़र पढ़ लेती है.. और तस्वीर की तरफ बढती है.. उसके पायल की आवाज़ फर्श पर बिखरती जा रही है.. मैं एक एक आवाज़ को उठाकर अपने कानो में पहन रहा हूँ.. वो मुड़कर मुझे देखती है..
    क्या देख रहे हो.. ?
    देख नहीं रहा हूँ सुन रहा हूँ...
    क्या सुन रहे हो?
    म्यूजिक...
    यहाँ कहाँ म्यूजिक है ?
    ये जो खामोशी पसरी हुई है कमरे में..
    ख़ामोशी संगीत है?
    यस...! ये भी एक म्यूजिक है.. गौर से सुनो इसे..
    वो मेरे करीब आकर मेरी कुर्सी के पास बैठ जाती है.. मेरे घुटनों पर अपना सर टिका कर मेरे साथ साथ खामोशी को सुनती है... मेरी उंगलिया खुद ब खुद उसके बालो में उलझ जाती है.. मैं उसके बाल सहला रहा हूँ.. वो मेरे दायें पैर के अंगूठे से खेल रही है...उसकी मासूमियत मैं अपने अंगूठे पर महसूस करता हूँ..


    kya likha hai aapne...padhkar mazaa aa gaya aaj bahut dinon baad hum bhi is blog ki mahphil me utar aaye hai...or jab jab padhne baithe to bas ruka na gayaa...lekh ki kahin lay tuti hi nahi ki khud ko rok sakte

    ReplyDelete
  25. अरे अपने महबूब की याद में आधे लोग ताज महल जाते है
    और बाकी के..? वो पूछती है..
    पागलखाने... !!

    sahi hai ;)


    मैं उस से कहता हूँ.. कभी गुलज़ार साहब मिले तो उनसे कहूँगा कि हमने भी देखी है उन आँखों की महकती खुशबू..





    ab kya kaha jaaye.....bas, kho gaye....swayed away.....

    ReplyDelete
  26. इसे क्या कहना चाहिये? कुश का इंतकाम या कुश की वापसी.. :-)

    कोई नाम नहीं दिया दोस्त! हद खूबसूरत लिखा है.. वैसा ही जैसा मुझे पसंद है.. :)

    ReplyDelete
  27. जरा माहौल बनालूं, फिर पढ़ूं एक बार फिर से!

    ReplyDelete
  28. .
    बेहूदे कमेन्ट मिटा देने चाहिये, मैं इसी नीति की वकालत करता हूँ ।
    यह बेपेंदी का लोटा राजन अय्यर कौन है, मैं बताऊँ जी !
    बता दूँगा... समझ लो कि बड़ी दूर बैठा है !

    ReplyDelete
  29. ज़ज्बात उमड़ उमड़ कर बाहर आ रहे हैं... चक्कर क्या है ? :)

    ReplyDelete
  30. कुश भाई आप ने बिलकुल सही कहा , प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो ...बहुत सुंदर प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  31. कब से टाले जा रहा था इस पोस्ट को पढ़ना। सोच रहा था जब खूब सारी टिप्पणियां आ जायेंगी तो पढ़ने आऊंगा...तुम्हारा ये अवतार भी भाया। और इस शेर पर "तन्हाईयो ने फासले सारे मिटा दिए/परछाईयां मेरी तेरी दिवार तक गयी" पे तो हाय रेssss वाली हालत हो गयी है।

    वैसे डा० अनुराग के इस बात से इत्तफाक नहीं रखता कि सब लड़कियां खुले बालों में अच्छी लगती है। न! नो वे!! कम-से-कम एक तो है जो....

    और हाँ, गुलज़ार की इन "महकती आँखों की खुश्बू" ने खूब उलझाया है।

    ReplyDelete
  32. "वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है.."

    why the moderation then....????

    ReplyDelete
  33. डा० अमर को खूब सारा थैंक्स इन पंक्तियों के लिये:-

    "अव्वले शब तुम्हें देखा था जहाँ
    चाँद ठहरा होगा उसी जीने पर
    आओ, सो जाओ मेरे सीने पर"

    ReplyDelete
  34. simple yet strikingly beautiful moments ...

    ReplyDelete
  35. आधे महीन से ज्यादा हुआ इसे पोस्ट हुये। आज सोचा पढ़ा ही जाये। पढ़ा ! बहुत अच्छा लगा। अद्भुत! बहुत सुन्दर!

    ReplyDelete
  36. "प्यार को प्यार ही रहने दो.. कोई नाम ना दो..."
    वाह! बहुत सुन्दर कहा है आपने. मेरी बधाई स्वीकारें. - अवनीश सिंह चौहान

    ReplyDelete
  37. .

    @ कोई नाम न दो ....

    प्यार प्यार है ...
    एक खूबसूरत एहसास है..
    प्रियतम की मधुर याद है ..
    मन कों गुदगुदाने वाला भाव है ..
    प्यार क्या नहीं है ...


    .

    ReplyDelete
  38. खूबसूरत एहसासों की खूबसूरत बयानगी| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  39. इसे पढ़कर...कुश की कलम से प्यार हो गया।

    ReplyDelete
  40. har kisi ke mann mein shayad kuchh aisa hi hota hai!!

    ReplyDelete

वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..