Saturday, January 5, 2008

कंपन्न....

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थोड़ी सी नमी
बारिश के बाद काँच
पर ठहरी बूंदो की
तरह मेरी पेशानी पर
ठहर गयी थी..
और साँसे उलझ पड़ी
सांसो से.. धो-कनी जैसा
दिल धड़का.. पलको के दुशाले
ओढ़ कर आँखे बंद
हो गयी .. ..
समंदर की लहरो की तेज़ आवाज़
एक साथ तीन तीन
हवाई जहाज़ जैसे गुज़रे हो
उपर से.. सीने की पटरी
पर दौड़ती तेज़ साँस..
नाभि से ठीक कील
बराबर फ़ासले पर..
ठंडी गुद गुदी.. हथेली
समेट कर ख़ुद को,
मुट्ठी मैं क़ैद हो गयी..
बिज़ली सी तेज़ी..
ठीक सर से लेकर पाँव
के अख़िरी अनघूटे तक
हुआ एक कंपन्न......

क्या कहु यार... कुछ ऐसा था
प्यार का पहला चुम्बन...

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1 comment:

  1. खूबसूरत ख़याल - खरगोशों की सरगोशी को सम्हाल कर रखें - साभार - मनीष

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..