Wednesday, July 18, 2007

तुम्हारी हो जाना चाहती हू....

तेरे होंठो की महक लेकर
हवा का इक झोंका मेरी और आया
छु गया मेरी आँखो को और
कुछ हसीं ख्वाब गिर गये

मैने बाँधकर ख्वाबो को
रख दिए सिरहाने...
अब बस तुम्हे सौप कर इन्हे
चैन से सो जाना चाहती हू

तुम एक बार जो हा केह्दो
मैं ज़िंदगी भर के लिए..
तुम्हारी हो जाना चाहती हू

मोहब्बत का इक बिस्तर हो
जिसपे चाँद का तकिया हो लगा
रात की गुज़ारिश, ना सोने के
बहाने, बिन बादल की बारिश

ज़िद भी हमारी सोकर रहेंगे
इक दूजे की पनाहो में खोकर रहेंगे
अब की बार तेरी ज़ुल्फ़ो की राहो में
इक अजनबी सी खो जाना चाहती हू

हा बस इक बार तुम्हारी
हो जाना चाहती हू

कब से पलकों के दोनो सिरो को
बाँधकर रखा है.. शर्म के धागो से
अब जो आए हो तुम, कंधे पे रख
के सर रो जाना चाहती हू..

हा बस एक बार मैं तुम्हारी
हो जाना चाहती हू....

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..