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तू नाहक ही परेशान
थी चाँद के
गिरने से.. खुद को
बेवजह कसूरवार
ठहरा डाला..
वो ख़ता तेरी नही थी
जब गुरूर टूट ता है तो
अच्छे अच्छे गिर
जाते है..
............................
इक रोज़ बारिश के
मौसम में तुम..
जा खड़ी हुई थी
इक पेड़ के नीचे...
बड़ी देर तलक एक डाल
झुकी रही थी
तुम पर..
कभी फिर जाओ वही
तो देखना..
उस डाल पर बूंदे
अब भी जमी हुई है...
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तू नाहक ही परेशान
थी चाँद के
गिरने से.. खुद को
बेवजह कसूरवार
ठहरा डाला..
वो ख़ता तेरी नही थी
जब गुरूर टूट ता है तो
अच्छे अच्छे गिर
जाते है..
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इक रोज़ बारिश के
मौसम में तुम..
जा खड़ी हुई थी
इक पेड़ के नीचे...
बड़ी देर तलक एक डाल
झुकी रही थी
तुम पर..
कभी फिर जाओ वही
तो देखना..
उस डाल पर बूंदे
अब भी जमी हुई है...
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जब गुरूर टूट ता है तो
ReplyDeleteअच्छे अच्छे गिर
जाते है..
:
kya baat kah di....ek choti si kshanika mein ....
bahut bahut hi khubsurat likha hai,bahut badhai.
ReplyDeleteकभी फिर जाओ वही
ReplyDeleteतो देखना..
उस डाल पर बूंदे
अब भी जमी हुई है...
bahut sundar...
kayee baar waqt sach mein thahraa rahta hai...
bhai vah khas taur se ....
ReplyDeleteus daal pe boonde abhi bhi
jami hui hai.....
yar ye word verification ka masla hata do....
आप सभी की प्रतिक्रियाओ का धन्यवाद..
ReplyDeleteकमाल कमाल. बहुत बढ़िया है भाई.
ReplyDeleteवो ख़ता तेरी नही थी
ReplyDeleteजब गुरूर टूट ता है तो
अच्छे अच्छे गिर
जाते है
बहुत खुब ,अच्छे भाव हे धन्यवाद