Friday, November 28, 2008

जवाब... जो मिलते नही

ट्रिंग ट्रिंग

हैलो

सी एम साहब से बात करनी है..?

हाँ सी एम बोल रहा हू

नमस्कार सी एम साहब.. आपके राज्य में रहने वाली एक लड़की बोल रही हू..

हाँ बोलो क्या काम है?

एक बात पुछनी थी..

हाँ पूछो

अगर कोई आपके घर में ज़बरदस्ती घुस जाए.. ओर आपकी माँ को नंगा कर दे तो?

ये क्या बकवास कर रही हो? कौन हो तुम?

मेरी बात को जवाब दीजिए ना.... अगर वो आपकी माँ का बलात्कार कर दे तो..

तेरी इतनी हिम्मत लोंड़िया.. जानती नही तू किससे बात कर रही है.. खाल खिंचवा दूँगा तेरी..

तो फिर उनकी खाल क्यो नही खिंचवाते.. ???

..

जवाब दीजिये ना..


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टू हेल विद द सिस्टम..

साला कोई भी हरामजादा.. हमारे घर में घुसता है ओर हमे मार के चला जाता है.. क्या हम कुछ नही करेंगे... ?

तुम बेवजह सेंटी हो रही हो रिया.. ऐसा कुछ नही है..

ऐसा ही है वॉट दे थिंक अबाउट देमसेल्फ़.. वो कुछ भी कर सकते है.. क्या ये देश उनके बाप का है?.

प्लीज़ ट्राय एन अंडरस्टॅंड

नो आई कांट .. आई कांट अंडरस्टॅंड.. ऐसे कैसे कोई आ कर किसी को भी मार सकता है.. ब्लडी मदरफकर!

बस रिया.. नाउ स्टॉप.. ये क्या अनप शनाप बोल रही हो..

तो ओर क्या करू.. क्या कुछ नही कर सकते हम?

हम युही मरते रहेंगे क्या राहुल ??

बताओ ना राहुल जवाब दो ना.. तुम तो हर बात जानते हो...

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अरे बेटा! कहाँ जा रहे हो ?

मम्मा मैंने होम वर्क कर लिया, अब बाहर जाके बॉम्ब ब्लास्ट बॉम्ब ब्लास्ट खेल लू ?

बोलो ना मम्मा ...?

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जल्दी से फोन लगा पापा के मोबाइल पर..?

क्या हुआ कुछ बोलता क्यो नही?? बोल ना बेटा.. बोल ना..

जवाब तो दे..


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क्यो मारा तूने बंटी को?

माँ वो कह रहा था.. तेरे पापा शहीद नही है...

..

माँ मैं भी पापा की तरह शहीद बनूंगा..

क्या हुआ माँ.. तुम रो क्यो रही हो.. ? बोलो ना माँ..


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शहीदो की मज़ारो पे लगेंगे हर बरस मेले..
वतन पर मिटने वालो का यही बाकी निशा होगा


.

Tuesday, November 25, 2008

ब्लोगीवुड की पहली फ़िल्म " शोले "

पहाड़ियो के बीच बसी हुई एक छोटी सी जगह है ब्लॉगगढ़.. अभी ब्लॉ्गगढ़ की ओर आने वाली पगडंडियों पर दो व्यक्ति घोड़े पे बैठकर आ रहे है...

जी हा ठीक समझे आप ये ठाकुर बलदेव पांडे के यहा जा रहे है...

नमस्कार ठाकुर साहब..

नमस्कार .. यहा तक आने में कोई तकलीफ़ तो नही हुई?

नही नही ठाकुर साहब... ब्लॉगगढ़ में आकर तो बहुत खुशी हुई है.. पर आपने बताया नही आपने मुझे कैसे याद किया?

मुझे दो आदमियो की तलाश है..

जय और वीरू..

जय और वीरू? ये कौन है.. ?


ये दोनो ब्लॉग जगत के छंटे हुए ब्लॉगर है.. मुझे आज भी याद है वो दिन... जब मैं पहली बार उड़नतश्तरी के ब्लॉग पे कमेंट करके अपनी माल गाड़ी से आ रहा था.. जय और वीरू वहा बैठे टिप्पणियों के बारे में सोच रहे थे...
की ताऊ नाम के एक डकैत ने मेरी रेल पर हमला कर दिया.. चारो तरफ से उसके आदमियो ने हमे घेर लिया.. तब जय और वीरू ने अपनी जान पर खेल कर मेरी मदद की..

मैं बेहोश हो चुका था.. ताऊ ने पटरी पर अपनी भैंस को खड़ा कर दिया.. जय और वीरू चाहते तो वहा से भाग सकते थे.. पर उन्होने मेरी माल गाड़ी को बचाना ज़्यादा ज़रूरी समझा..

क्या बोलता है जय? चले यहा से

इसे इस हालत में छोड़कर ?

इस हालत में छोड़ा तो ये ब्लॉग्गिंग नही कर पाएगा..

तो फिर क्या करे.. भैंस को उड़ा दे?

निकाल वही...

हेड आया तो भाग चलते है.. टेल आया तो भैंस को उड़ा देते है..

टेल !!

तू यही रुक जय.. मैं इस भैंस का काम तमाम करता हू..


वीरू ने कोयले डालने शुरू किए.. मगर भैंस बड़ी होशियार थी.. भाग कर खेतो में घुस गयी.. अपने जय और वीरू ने भी हार नही मानी.. ट्रेन को लेकर खेतो में घुस गये.. सत्रह दिन तक खेतो में ट्रेन चलाने के बाद भी जब भैंस नही मिली.. तो वो मुझे स्टेशन पर छोड़कर चले गये...

वो बेवकूफ़ है.. मगर ईमानदार है..

ब्लोगर है ... मगर समझदार है

सोच सकते है.. मगर सोचते नही..

मुझे ऐसे ही आदमी चाहिए.. क्या आप मुझे लाकर दे सकते है..

ठाकुर साहब मैं पूरी कोशिश करूँगा उन्हे ढूँढने की.. मगर ऐसे लोगो का कोई ठिकाना तो होता नही.. आज यहा तो कल वहा.. पता नही अभी वो कहा होंगे...


हेहे

ये ब्लोगरी........

हम नही छोड़ेंगे..

तोड़ेंगे... दम मगर..

इसका साथ ना छोड़ेंगे...


अरे मेरा ब्लॉग तेरा कमेन्ट
तेरा कमेन्ट मेरा ब्लॉग .. सुन ए मेरे यार..

जान पे भी खेलेंगे...

तेरे लिए ले लेंगे..

सबसे टिप्पणी...........

ये ब्लोगरी ..

हम नही छोड़ेंगे...


बाकी है अभी... डाकुओ का टिप्पणिया लूटने आना... टंकी पे चढ़ना.. बसंती का तांगा.. होली का गीत.. और भी बहुत कुछ.. बस देखते रहिए.. ब्लॉगीवूड़ की शोले

Saturday, November 22, 2008

ब्लोगीवुड की पहली फ़िल्म शोले रिलीज होने जा रही है

दोस्तों इंतज़ार हुआ ख़त्म
ब्लोगीवुड की पहली फ़िल्म शोले रिलीज होने जा रही
है





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आज ही अपनी टिकट बुक करवाइए

Monday, November 17, 2008

नेकी कर और ढोल बजा ..

अनुराग बाबू का ब्लॉग चूसा इतना रस निकला की कल मधुमेह का चेक अप कराके आया हू.. पूरे पंद्रह सौ रुपये लगे.. मेरे पास कैश थे नही तो सोचा टी एम से निकाल लू.. लेकिन कौनसे वाले टी एम से निकालु? छ्: बॅंक में अकाउंट है.. एच डी एफ सी वाले से निकाल लेता हू घर के पास ही है तो अपनी बाईक पे चला जाऊँगा.. अब इतनी सी दूरी के लिए कौन कार निकालेगा... बस यही सोच के अपना एप्पल का लॅपटॉप बंद किया.. जी हा तीन दिन पहले ही मैने एप्पल का लॅप टॉप लिया है.. पुराना वाला मैने अपने ड्राइवर के बेटे को दे दिया.. बड़ा होशियार बच्चा है.. ड्राइवर के पास इतने पैसे नही की उसको पढ़ा सके.. इसलिए मैने उसका एडमिशन शहर के एक अच्छे स्कूल में करवा दिया.. जिसकी फीस दस हज़ार रूपये महिना है, और अपना लॅप टॉप भी उसको दे दिया..

खैर मैने सी ऑफ किया और उठा सीधे दो ब्रेड में टमाटर को दबा के अपने माइक्रोवेव में ग्रिल कर डाला.. हालाँकि मेरे कूक भी अच्छा खाना बनाते है.. पर मुझे अपने हाथ से बनाया सेंडविच अच्छा लगता है..

खैर टी एम से दस हज़ार रुपये निकाल कर.. सीधे हॉस्पिटल पहुँचा.. मुझे लंबा इंतेज़ार नही करना पड़ा.. क्योंकि इस हॉस्पिटल में ही मैं तीन बार अपना ब्लड डोनेट कर चुका हू.. और यहा पर मैने डोनेशन देकर एमर्जेन्सी वॉर्ड का रिनोवेशन कराया था.. डॉक्टर मुझे देखते ही अपनी सीट से खड़ा हो गया.. मैने बताया की कैसे अनुराग जी के ब्लॉग की मिठास से मुझे मधुमेह की शंका हुई.. आप चेक अप करिए.. डॉक्टर ने तुरंत नर्स को बुलाया..

नर्स जब चेक अप कर रही थी तो मैने देखा उसकी आँखो में कुछ नमी सी थी.. मैने उस से कारण पूछा तो उसने बताया नही.. मैने जब बहुत ज़िद की तो वो बोली की उसकी शादी नही हो पा रही है.. दहेज की वजह से.. पूरे घरवाले परेशान है उसके पिताजी की तबीयत ठीक नही.. मुझसे उसका दुख देखा नही गया.. मैने फ़ौरन जेब से साढ़े आठ हज़ार रूपये निकाले (पंद्रह सौ चेक अप के काट लिए थे पहले ही).. हालाँकि डॉक्टर ने मना किया था..आपसे पैसे नही लूँगा.. पर मुझे ये बिल्कुल पसंद नही.. सबको अपनी मेहनत के पैसे मिलने ही चाहिए

क्लिनिक से लौटते हुए रास्ते में हनुमान मंदिर पे रुका.. जाते ही पंडित जी को बोला आज मंदिर में सौ किलो का चुरमा चढ़ाया जाए.. शाम को सभी में वो चुरमा वितरित करवाया.. और उनसे वादा किया की जिस तरह पिछली अमावस्या पर सबको कपड़े दान किए थे.. वैसे ही इस बार सबको कंबल दान करूँगा...

सभी मुझे दुआए दे रहे थे.. पर मुझे उन दुआओ के मिलने से ज़्यादा खुशी अपने मन को शांति मिलने से हुई..

नही नही आप ग़लत समझ रहे है.. ये सब करके मन को शान्ति नही मिली.. अब आपसे क्या छुपाना आज ये सब लिखकर मन को इतनी शांति मिली है.. की क्या बताऊ..

आपके मन में जो विचार रहे है.. वो बिल्कुल सही है... इसे आप ढिंढोरा पीटना ही कहेंगे...

यदि कोई दावा करना चाहे की उपरोक्त विवरण काल्पनिक है.. तो उसके दावे की सत्यता मैं अभी ही स्वीकार करता हू.. अच्छा कार्य करके मन को शांति मिलनी चाहिए.. ना की अच्छे कार्य के बारे में बताकर.. अपने कर्तव्य का पालन करना ही सद्कर्म है.. मैने पोस्ट लिखकर अपने कर्तव्य का पालन किया है.. अब आप टिप्पणी करके अपने कर्तव्य का पालन कीजिए.. यही सद्कर्म है...

Saturday, November 15, 2008

एक सिगरेट और जल गई..

घड़ी की टिक टिक की आवाज़ के अलावा और कोई शोर नही था कमरे में.. पर्दे का कोना बहुत मैला हो गया था शायद बार बार हाथ पोंछे जाने से.. पलंग पर शरलोक होम्स की कुछ किताबे बिखरी हुई पढ़ी थी.. उसी पलंग पर वो उल्टा लेटा हुआ था.. एक अंगड़ाई लेता हुआ वो उठा.. आँखें अभी तक बंद थी.. बंद आँखे किए हुए भी उसका हाथ ठीक टेबल पर पड़ी सिगरेट पर पड़ा.. आख़िरी सिगरेट थी.. वो उठा और खिड़की से परदा हटाकर देखा शाम हो चली थी.. हल्के हल्के बादल थे..

उसने रेडियो के पास पड़ी माचिस उठाई.. सिगरेट जलाने के लिए तीली जलाई..

एक रोशनी सी हुई उसकी आँखो में.. इस से पहले इस से खूबसूरत लड़की उसने नही देखी थी... लंबे बाल जो बार बार उड़ते हुए उसकी आँखो के आगे आ रहे थे.. सफेद रंग का चूड़ीदार और गुलाबी रंग का कुर्ता.. कंधे पर बेग लटकाए हुए.. कितनी सुंदर लग रही थी उसे.. वो जैसे ही उसके पास गया.. बस आ गयी थी.. वो बस में चढ़ गयी..

तीली बुझ गयी.. सिगरेट जली नही..

उसने फिर से तीली जलाई..

अगले दिन फिर वो बस स्टॉप पर पहुँचा.. और उस लड़की के पास खड़ा हो गया..

इस बार सिगरेट जल गयी थी..

अब तो ये रोज़ का सिलसिला बन गया.. लड़की भी जानती थी.. की वो यहा क्यो आता है.. धीरे धीरे सब कुछ ऐसे हुआ की लड़की को वो लड़का पसंद आने लगा.. लड़का अपनी बाइक लेकर बस स्टॉप पर आया.. और लड़की की तरफ देखा.. लड़की उसकी बाइक पर बैठ गयी.. फिर तो रोज़ उनका मिलना होता था..लड़की और लड़के में प्यार हो गया था..

उसने सिगरेट से एक लंबा कश लिया.. और खिड़की से झाँका.. बाहर बहुत शोर था..

कभी किसी गार्डन में.. कभी किसी कॉफी शॉप में.. दोनो मिलने लगे.. लड़की को लड़के का साथ सुकून देता था.. दोनो ने साथ जीने मरने की कसमे खाई थी..

उसने एक और कश खींचा.. और चुटकी बजाते हुए सिगरेट की एश ज़मीन पर गिरा दी..

उस दिन लड़का कार लेकर आया.. और लड़की ने घर पे कहा था की आज देर से घर पहुँचुँगी.. दोनो ने साथ साथ डिनर लिया.. फिर लड़का उसे लेकर समंदर किनारे गया.. दोनो हाथो में हाथ लेकर चलते रहे.. कुछ देर बाद दोनो लड़के के दोस्त के बीच हाउस में थे..

जलती हुई सिगरेट से एक चिंगारी गिरी जमीन पर..

हल्की हल्की रोशनी पूरे कमरे में फैली थी.. एक महक चारो तरफ फैली हुई.. जैसे बहुत दिनो से इंतेज़ार करती हुई.. दोनो एक दूसरे के बेहद करीब आ चुके थे.. लड़के ने उसे अपनी बाहो में भर लिया..

इस बार उसने बड़ी ज़ोर से कश खींचा... और खिड़की पर परदा लगा दिया..

सिगरेट अपने आख़िरी पड़ाव पर थी.. शायद एक या दो कश और ले सकता था वो..

बहुत दिन हो चुके थे.. इस बार भी बात नही हुई.. लड़की ने आज फिर से फ़ोन किया .. उसकी ऊंगलिया काँप रही थी.. नंबर मिलाने के लिए.. शायद वो जानती थी अब क्या होने वाला है.. उसने नंबर मिलाया.. सामने से फ़ोन काट दिया..

उसने सिगरेट का आख़िरी कश लिया.. और बची हुई सिगरेट को ज़मीन पर फेंका.. हल्का सा धुँआ अभी भी सिगरेट में बाकी था.. की तभी उसने अपनी जूते के नीचे दबा कर सिगरेट को मसल डाला..

एक हाथ गिरा बिस्तर पर.. जिसकी कलाई से लगातार खून बह रहा था..

Wednesday, November 12, 2008

ब्लॉगीवूड़ की पहली फिल्म... "शोले"

दोस्तो,
लंबे इंतेज़ार के बाद ब्लॉगीवूड़ की पहली फिल्म बनकर तैयार है.. और जल्द ही आपके सामने आने वाली है..फिल्म का पहला पोस्टर रिलीज़ किया जा चुका है.. फिल्म जल्द ही आपके सामने होगी... तब तक के लिए देखिए फिल्म का पोस्टर..

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ठाकुर - ज्ञानदत्त पाण्डेय
जय - अनुराग आर्य
वीरू - कुश

बसंती - पल्लवी त्रिवेदी
राधा - पूजा उपाध्याय

गब्बर - समीर लाल
सांभा - अनूप शुक्ल

मौसी - लावन्या शाह
इमाम साहब - डा. अमर कुमार

अंग्रेजो के जमाने के ब्लॉगर - शिव कुमार मिश्रा
जासूस हरीराम - बाल किशन
सूरमा खोपोली - नीरज गोस्वामी

और भी कई कलाकार सिर्फ़ ब्लॉग जगत से... तो दिल थाम के बैठिए दोस्तो.. जल्द ही आपके सामने होगी ब्लॉगीवूड़ की पहली फिल्म

"शोले"

विशेष सूचना - घबराइये मत ये रामगोपाल वर्मा की आग जितनी बुरी भी नही होगी..

नोट - एडवांस बुकिंग चालू है.

Saturday, November 8, 2008

ज़िन्दगी कभी यू भी मुड़ जाती है...

जन्मदिन पर कितने ही लोगो ने फ़ोन किया.. इतनी सारी दुआए मिली की संभालनी मुश्किल हो गयी.. काश! दुआओ का भी कोई फिक्स डिपोसिट होता की आज जमा करा लो और जब ज़रूरत हुई तब निकाल लो..

जन्मदिन के दूसरे दिन शाम को एक फ़ोन आया.. नंबर अंजान था.. उठाया तो सामने से आवाज़ आई

"भाईकुश? " पुराने दोस्त इसी नाम से पुकारते थे

मैने कहा " हाँ "

वो बोली "बिलेटेड हैप्पी बर्थडे"

मुझे समझ नही आया कौन है पर मैंने थॅंक्स कहा

उसने कहा... "पहचाना नही"

इस बार मैने पहचान लिया था.. ये विद्या थी..

ज़िंदगी के सबसे ख़र्चीले.. आवारा.. पर मस्ती भरे दिनों की एक साथी.. लड़को के साथ पंजे लडाना उसका शौक था.. मुझसे हर बार हारती थी.. पर कभी उसके चेहरे पर शिकन भी नही आती.. देखना एक दिन तुमको ज़रूर हराऊँगी..

पूल टेबल पर उसका जवाब नही होता था.. हम दोनो की जोड़ी ने पूल में बहुतो को हराया है.. टयुसंस बंक करना और पूल खेलना.. बस हर दो चार दिन में ये हो ही जाता था...

एक दिन वो कही से बीडी का बण्डल ले आई बोली यार आज बीड़ी पीकर देखते है.. कैसी होती है.. शाम तक हम लोगो का खाँसी के मारे बुरा हाल था..

न्यू ईयर वाली शाम हम मिले उसने कहा आज की रात बारह बजे मस्ती करते है.. हम चाहते तो घर पे बता के जा सकते थे.. पर उसने कहा खिड़की से कूदकर चलते है.. एडवेंचर के बिना लाइफ क्या.. उस रात पहली बार मैं घर से बिना बताए रात को निकला था.. पूरी रात शहर की गलियो में बाइक पर घूमे थे..

उसकी ज़िंदगी में एडवेंचर्स की एक खास जगह थी.. हर सिंपल से काम में रोमांच.. यही उसका फंडा था .. पूरे ग्रूप की जान..

कुछ दिनों बाद हमारे एक्साम से हम लोगो में दूरिया बढ़ गयी...बहुत दिनों से मिलना नही हुआ था..

एक शाम पूल क्लब में मैने विद्या को एक लड़के के साथ देखा.. दोनो एक दूसरे को किस कर रहे थे.... मुझे बहुत गुस्सा आया.. मैं तेज़ी से उनकी और गया.. मैने विद्या का हाथ खींच कर उसको उस लड़के से अलग किया.. और ज़ोर से विद्या के गाल पर एक थप्पड़ मारा.. वो लड़का मेरी तरफ आया.. मैने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया.. सब लोग अंदर आ गये... कोई भी कुछ समझ नही पाया.. मैं तेज़ स्पीड से नीचे उतर गया..

विद्या मेरे पीछे पीछे आई.. मगर मैने उस से बात नही की.. मैं बहुत गुस्से में था.. उस रात मुझे नींद नही आई.. बार बार विद्या और उस लड़के का चेहरा मेरी आँखो के सामने आता रहा... मैं एक महीने के लिए अपनी मौसी के यहा चला गया..

थोड़े दिनों बाद पता चला.. विद्या गुवाहाटी चली गई है... मैंने उसे ढूँढने की भी कोशिश नही की.. वक़्त कैसे चला गया पता ही नही चला...

"क्यो अब तक नाराज़ हो?..." विद्या बोली..

मुझे याद आया मैं फोन पे हू...

"विद्या !..." मैने कहा

" क्या बात है पहचान लिया.."

" कैसी हो?"

" अच्छी हू! और तुम? "

" हाँ अच्छा हू.."

" सॉरी उस दिन मैने.."

उसने बात बीच में ही काट दी..

" बहुत मुश्किल से ढूढ़ा है तुम्हारा नंबर.. लेकिन एक दिन लेट हो गयी.."

" थॅंक्स!.." मेरी आवाज़ बहुत धीरे थी

" एक बात बतानी थी तुमको.."

" हाँ बोलो.." मैने कहा

"अच्छा हुआ उस दिन तुम आ गये.. वो लड़का मुझे ज़बरदस्ती किस कर रहा था.. मैने तुमसे बात करने की इतनी कोशिश की पर तुम मिले नही.. तुमको उस दिन से थॅंक्स बोलना चाहती थी.. तुमको मेल भी किया हॉट मेल वाले आई डी पर.. लेकिन तुम्हारा जवाब नही आया.. आज इतने सालो बाद तुम्हारा नंबर मिला है...तुम नही आते तो पता नही क्या हो जाता.."

" मतलब उस दिन वो..??.."

" हाँ वो मेरे साथ ज़बरदस्ती कर रहा था.."

" तो तुमने बताया क्यो नही मुझे.."

" तुमने मौका ही नही दिया.. या फिर शायद किस्मत ने.."

मैं बहुत देर तक चुप रहा.. पता नही हमारी बात कब ख़त्म हुई... मैं बस सोचता ही रहा..

मैने उसे एक मौका भी नही दिया.. उसने कितनी कोशिश की थी मुझसे बात करने की.. पर मैने नही की.. और करीब सात साल तक हम दोनो को एक दूसरे की खबर नही थी.. मैं तो उसे भूल भी चुका था.. पर आज उसके फोन कॉल ने मन में अजीब सी हलचल मचा दी..

विद्या ठीक कहती थी.. एक ना एक दिन तुमको ज़रूर हराऊँगी..

Wednesday, November 5, 2008

21 22 23 और ये 24... पूरी 24



21 22 23 और ये 24... पूरी 24

पूरी दस

उहु! दस नही 24

24 नही दस..

क्या दस?

तुम्हारी ऊंगलिया..

नही 24 मोमबत्तिया.. जो मेरी ऊंगलियो में है..

मैने तो ऊंगलिया गिनी है पूरी दस है..

सिर्फ़ ऊंगलिया मत गिनो.. शादी के दिन भी गिनो..

उफ़! ग़लती करदी गिनके

क्या शादी के दिन?

नही ऊंगलिया..

ग़लती तो मैने की जो कब से मोमबत्तिया लगा रही हू तुम्हारे केक पर..

इन से रोशनी नही होगी..

तो फिर?

तुमसे होगी!

मतलब?

मतलब ये की पच्चीसवी मोमबत्ती तुम मेरे घर पर जलाना..

अरे वाह! क्या रोशनी हुई है.. सारी मोमबत्तिया जल गयी...