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पाँच साल
नही टी-क-ती सरकार
तुम कैसे टिक गये
ज़िंदगी में मेरी,
उसने कहा इस बार
फ़रवरी में दिन
28 थे....
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एक ग़ज़ल आकर
गिरती है आँगन पर,
कुछ शेर ज़मी
पर छोड़ जाती है
मैं अटका रहता हू
कुछ मिश्रो में
तेरे क़दमो के निशान
उसी ज़मी पर पाता हू..
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-कुश
कुछ बातें दिल की दिल मैं ही रह जाती है ! कुछ दिल से बाहर निकलती है कविता बनकर..... ये शब्द जो गिरते है कलम से.. समा जाते है काग़ज़ की आत्मा में...... ....रहते है........... हमेशा वही बनकर के किसी की चाहत, और उन शब्दो के बीच मिलता है एक सूखा गुलाब....
Tuesday, July 31, 2007
Wednesday, July 18, 2007
तुम्हारी हो जाना चाहती हू....
तेरे होंठो की महक लेकर
हवा का इक झोंका मेरी और आया
छु गया मेरी आँखो को और
कुछ हसीं ख्वाब गिर गये
मैने बाँधकर ख्वाबो को
रख दिए सिरहाने...
अब बस तुम्हे सौप कर इन्हे
चैन से सो जाना चाहती हू
तुम एक बार जो हा केह्दो
मैं ज़िंदगी भर के लिए..
तुम्हारी हो जाना चाहती हू
मोहब्बत का इक बिस्तर हो
जिसपे चाँद का तकिया हो लगा
रात की गुज़ारिश, ना सोने के
बहाने, बिन बादल की बारिश
ज़िद भी हमारी सोकर रहेंगे
इक दूजे की पनाहो में खोकर रहेंगे
अब की बार तेरी ज़ुल्फ़ो की राहो में
इक अजनबी सी खो जाना चाहती हू
हा बस इक बार तुम्हारी
हो जाना चाहती हू
कब से पलकों के दोनो सिरो को
बाँधकर रखा है.. शर्म के धागो से
अब जो आए हो तुम, कंधे पे रख
के सर रो जाना चाहती हू..
हा बस एक बार मैं तुम्हारी
हो जाना चाहती हू....
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हवा का इक झोंका मेरी और आया
छु गया मेरी आँखो को और
कुछ हसीं ख्वाब गिर गये
मैने बाँधकर ख्वाबो को
रख दिए सिरहाने...
अब बस तुम्हे सौप कर इन्हे
चैन से सो जाना चाहती हू
तुम एक बार जो हा केह्दो
मैं ज़िंदगी भर के लिए..
तुम्हारी हो जाना चाहती हू
मोहब्बत का इक बिस्तर हो
जिसपे चाँद का तकिया हो लगा
रात की गुज़ारिश, ना सोने के
बहाने, बिन बादल की बारिश
ज़िद भी हमारी सोकर रहेंगे
इक दूजे की पनाहो में खोकर रहेंगे
अब की बार तेरी ज़ुल्फ़ो की राहो में
इक अजनबी सी खो जाना चाहती हू
हा बस इक बार तुम्हारी
हो जाना चाहती हू
कब से पलकों के दोनो सिरो को
बाँधकर रखा है.. शर्म के धागो से
अब जो आए हो तुम, कंधे पे रख
के सर रो जाना चाहती हू..
हा बस एक बार मैं तुम्हारी
हो जाना चाहती हू....
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Friday, July 13, 2007
"मा की लोरी..."
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आसमा की चादर पे मुन्ना राजा लेटेगा
रात भर chakri में चंदा मामा बैठेगा
तारो ने भी कैसी टोली है जमाई रे
मुन्ने राजा को लेने डोली भिज़वाई रे..
आई रे..
नीनू आई रे...
परियो वाले देश में
राजा वाले भेष में
मुन्ने को मिलेगी परी
फूल डाले केश में
मुन्ने को देख कर
परी भी शरमाई रे...
आई रे..
नीनू आई रे...
ऊँचे ऊँचे महल होंगे
खीर पुड़ी बर्फ़ी
मुन्ना राजा बटोर लेगा
सोने की अशर्फ़ी
देखो देखो एक दो
मुट्ठी से गिराई रे
आई रे..
नीनू आई रे...
बड़े बड़े जामुन
और गोल गोल जलेबिया
मुन्ने की हो जाएँगी
सभी फिर सहेलिया
मुन्ने को जलेबी देख
भूख लग आई रे..
आई रे..
नीनू आई रे...
रात भर डोलेगा
सुबह आँख खोलेगा
मुन्ना राजा जेब को
दो दो बार टटोलेगा
नया दिन उगा है
रात पीछे छूट आई रे..
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आसमा की चादर पे मुन्ना राजा लेटेगा
रात भर chakri में चंदा मामा बैठेगा
तारो ने भी कैसी टोली है जमाई रे
मुन्ने राजा को लेने डोली भिज़वाई रे..
आई रे..
नीनू आई रे...
परियो वाले देश में
राजा वाले भेष में
मुन्ने को मिलेगी परी
फूल डाले केश में
मुन्ने को देख कर
परी भी शरमाई रे...
आई रे..
नीनू आई रे...
ऊँचे ऊँचे महल होंगे
खीर पुड़ी बर्फ़ी
मुन्ना राजा बटोर लेगा
सोने की अशर्फ़ी
देखो देखो एक दो
मुट्ठी से गिराई रे
आई रे..
नीनू आई रे...
बड़े बड़े जामुन
और गोल गोल जलेबिया
मुन्ने की हो जाएँगी
सभी फिर सहेलिया
मुन्ने को जलेबी देख
भूख लग आई रे..
आई रे..
नीनू आई रे...
रात भर डोलेगा
सुबह आँख खोलेगा
मुन्ना राजा जेब को
दो दो बार टटोलेगा
नया दिन उगा है
रात पीछे छूट आई रे..
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ek situation vishesh pe likhi gayi poem
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अरे भई सोहन!!
हा कुछ हिया ई पुकारत है
हमार भाई साब !!
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
सीढ़ी उतरते उतरते बोले
ये अपना मुकुंद कुमार कहा है
हमार खोपड़ी चकराई
ई ससुरा मुकुंद कुमार कौन?
तो हम बोले की बावले
मुकुंद कुमार अपना डिराइवर
हम मुस्कुराई के अपना सर
खुजाते रह गये ...
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
इसपेसल थाली मंगाकर
बट्टर नान निकाल दी
चपति खाने लगे..
मेनू में पढ़ा था
स्वीट भी साथ है
जो वेटर ने आकर
थाली उठाने की कोसिस की
तो मिठाई के बारे मैं पूछे
बड़ा लंबा सा खींच कर बोले 'इसमे...'
हँसी के मारे ऊके
पेट में दर्द का उफान हुई गवा
वेटर मारे डर के जो अ-इसन भागा
की लौट के ही ना आया..
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
दुइ मिनट सुस्वाने गये
लौट आए तो मैडम कोई
उनकी सीट पर बैठ गयी
हमने तानिक कहा भैया से
की भैया आपकी सीट पे कोई और है
बड़ी ईनिस्टाईल से कहते है
अब लड़ीज़ बैठ गयी है
तो बैठे रहने दो..
काहे डीस्टरब़ करते हो..
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
रात रेडिओ में फ़ोन मिलाई के
नाम बताए अपना
केवट राम बिस्कर्मा.. गाव जोनपुर
ज़िला पटना.. ऊकी पत्नी का नाम
गीता बाई और टोपी गोपी और चुननु
की फ़ार्माइस वाला सॉन्ग सुनने को बोले
s d भैया का गाना और बोले
रफ़ी साह्ब ने गाया है ....
रेडिओ के ज़ाकी का भी बुरा
हाल किए दिए
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
आप कही देख ले उनको
तो बच के रहिएगा हा..
बताई देते है
का पता ऊ निसांची का
अगला निसाना आप ही बने
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
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अरे भई सोहन!!
हा कुछ हिया ई पुकारत है
हमार भाई साब !!
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
सीढ़ी उतरते उतरते बोले
ये अपना मुकुंद कुमार कहा है
हमार खोपड़ी चकराई
ई ससुरा मुकुंद कुमार कौन?
तो हम बोले की बावले
मुकुंद कुमार अपना डिराइवर
हम मुस्कुराई के अपना सर
खुजाते रह गये ...
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
इसपेसल थाली मंगाकर
बट्टर नान निकाल दी
चपति खाने लगे..
मेनू में पढ़ा था
स्वीट भी साथ है
जो वेटर ने आकर
थाली उठाने की कोसिस की
तो मिठाई के बारे मैं पूछे
बड़ा लंबा सा खींच कर बोले 'इसमे...'
हँसी के मारे ऊके
पेट में दर्द का उफान हुई गवा
वेटर मारे डर के जो अ-इसन भागा
की लौट के ही ना आया..
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
दुइ मिनट सुस्वाने गये
लौट आए तो मैडम कोई
उनकी सीट पर बैठ गयी
हमने तानिक कहा भैया से
की भैया आपकी सीट पे कोई और है
बड़ी ईनिस्टाईल से कहते है
अब लड़ीज़ बैठ गयी है
तो बैठे रहने दो..
काहे डीस्टरब़ करते हो..
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
रात रेडिओ में फ़ोन मिलाई के
नाम बताए अपना
केवट राम बिस्कर्मा.. गाव जोनपुर
ज़िला पटना.. ऊकी पत्नी का नाम
गीता बाई और टोपी गोपी और चुननु
की फ़ार्माइस वाला सॉन्ग सुनने को बोले
s d भैया का गाना और बोले
रफ़ी साह्ब ने गाया है ....
रेडिओ के ज़ाकी का भी बुरा
हाल किए दिए
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
आप कही देख ले उनको
तो बच के रहिएगा हा..
बताई देते है
का पता ऊ निसांची का
अगला निसाना आप ही बने
अब का करे हम ऊका
ऊ है ही बड़े मज़ाकी
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