
उछालता कोई मुझे तो
खिलखिला देती...
मुस्कुराता कोई तो
पलकें हिला देती..
पूछता कोई जो कुछ
जवाब आँखें हिला कर देती..
गोद मैं उठाता कोई तो
उसे गीला कर देती..
डाँटता कोई मुझे तो
झटमूट् रोती..
आती जब नींद तो
माँ की गोद में सोती..
मम्मी की पहन साड़ी
श्रींगार मैं करती..
आ जाए ना कोई कमरे में
इस बात से डरती...
दादा को पकड़ कर
घोड़ा मैं बनाती..
ज़्यादा तो नही पर
खाना, थोड़ा मैं बनाती..
होती जब बरसात
ख़ूब मैं नहाती..
काग़ज़ की कश्तिया
पानी में बहाती..
फिर बड़ी हो जाती और
झूलती झूलो पे..
बन जाती तितली कोई और
घूमती फूलो पे...
सोमवार की पूजा के
फूल मैं चुनती..
आएगा कोई जो
उसके ख्वाब मैं बुनती..
ले जाता मुझे कोई
डोली में बिठाकर..
पल्को की छाओ में
आँखो में लिटाकार...
अपना फिर छोटा सा
परिवार मैं बनाती..
खशियो से सज़ा सा
संसार बसाती..
बाँट प्यार सभी को
सबके दर्द मैं लेती..
गर माँ तेरी कोख से
जन्म मैं लेती....
-------------------