जितनी शिद्दत से मैं मंदिर के सामने से गुज़रते वक़्त सजदा करता हूँ उसी भावना से किसी मस्जिद पर भी सर झुकाता हूँ.. गुरूद्वारे और चर्चो पर भी इसी तरह की एक प्रक्रिया स्वत: ही हो जाती है.. और यकीन मानिए इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है.. ये बिलकुल सहज है..
दरअसल हम भारतीय बहुत ही भावुक होते है.. अपनी रूट से जुड़े हुए.. हमने पश्चिम को भी अपनाया और अपनी संस्कृति भी नहीं छोडी.. लेकिन सिक्के का एक पहलु देखकर ही कुछ भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता...
मैं मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर जाता हूँ और कभी कभी शनिवार या रविवार को किसी पब टाइप जगह पर चला जाता हूँ.. रोज़ सुबह मेरा हनुमान चालीसा का पाठ क्या इतना कमज़ोर है कि मेरे कभी कभी पब जाने से टूट जायेगा.. क्या मैं भारतीय नहीं रहूँगा?
शादी की पार्टी में सब लड़के लड़किया इंग्लिश में बाते कर रहे थे इतने में उनके मामाजी आ गए.. सब बच्चे उनके पैर छु रहे है.. एक मिनट पहले इंग्लिश में बोलने वाले ये बच्चे अब पाँव छु रहे है ये बच्चे भारतीय है या विदेशी?
मैं एक विदेशी कंपनी का लैपटॉप लेकर आता हूँ और उस पर मेरी बहन कुमकुम से टीका करती है.. नयी गाडी खरीदी गयी है तो सबसे पहले वो गणेश जी के मंदिर जायेगी.. अगर गणेश जी के मंदिर के बाहर खड़ी गाडी विदेशी कंपनी की है तो क्या हम विदेशी है ?
मुझे होलीवूड की फिल्मे पसंद है मैं देखने जाता हूँ साथ ही मैं हिंदी फिल्मे भी देखता हूँ.. मुझे ब्रायन एडम्स अच्छा लगता है तो मुझे कैलाश खैर का सूफियाना अंदाज़ भी पसंद है.. जितना मुझे डेल कार्नेगी या स्टीफन कोवे पसंद है उतना ही मुझे रघुरमन या श्री धरन पसंद है..
पिज्जा हट या बरिस्ता में बैठकर कॉफी पीने में जो मजा आता है वो ही अन्ना की थडी पर बैठकर कटिंग पीने में या फिर अपने दिलबहार की पपडी चाट खाने में आता है..
हम भारतीय लोग हर नयी चीज़ का स्वागत करते है.. पर अपनों को भूलते नहीं है.. अंकल आंटी के साथ जी लगाना इसी भारतीयता का परिचायक है.. हम तो एक्सक्यूज मी के साथ भी भाईसाहब लगा देते है..
ये हम लोगो की ताकत ही है की हमने मेक्डोनाल्ड को मजबूर किया आलू टिक्की बर्गर बनाने के लिए.. पिज्जा हट में पंजाबी पिज्जा भी मेनू में आ गया है.. स्टार चैनल को यहाँ पर अपने हिंदी चैनल शुरू करने पड़े.. यहाँ तक की माइक्रोसॉफ्ट और गूगल भी हिंदी पर उतर आये.. यही है अपना इंडिया..
तो फंडा ये है कि हमारे द्वारा पहने गए कपडे या बोली हमें परिभाषित नहीं करती.. ज़रूरी है मन का भारतीय होना.. अगर कोई आकर के हमसे पता पूछ ले तो आज भी हम लोग बड़ी आत्मीयता से पता बताते है.. पानी पिलाते वक़्त हथेली पर गिलास रखते है.. खाना बनाते वक़्त गाय की रोटी अलग निकाली जाती है.. मंगलवार के व्रत अभी भी ख़त्म नहीं हुए.. एक्जाम्स टाईम्स पर अब भी भगवान् का कंप्यूटर हैंग हो जाता है.. काजल का टीका तो अब भी बच्चो के गालो पर लगा होता है.. खाने के बाद पान आज भी हमारी फर्स्ट चोइस होती है.. हाथो पर बंधी रोलिया अब भी दुआओ से सरोबार होती है.. शुभ काम पर आज भी सबसे पहले श्री गणेश लिखा जाता है.. अब भी क्रिकेट की आखिरी बाल तक एक टांग पे टांग रख के बैठे रहते है.. भले ही हम कितना भी मॉडर्न हो जाये पर दिल तो आख़िर हिन्दुस्तानी ही रहेगा..
दरअसल हम भारतीय बहुत ही भावुक होते है.. अपनी रूट से जुड़े हुए.. हमने पश्चिम को भी अपनाया और अपनी संस्कृति भी नहीं छोडी.. लेकिन सिक्के का एक पहलु देखकर ही कुछ भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता...
मैं मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर जाता हूँ और कभी कभी शनिवार या रविवार को किसी पब टाइप जगह पर चला जाता हूँ.. रोज़ सुबह मेरा हनुमान चालीसा का पाठ क्या इतना कमज़ोर है कि मेरे कभी कभी पब जाने से टूट जायेगा.. क्या मैं भारतीय नहीं रहूँगा?
शादी की पार्टी में सब लड़के लड़किया इंग्लिश में बाते कर रहे थे इतने में उनके मामाजी आ गए.. सब बच्चे उनके पैर छु रहे है.. एक मिनट पहले इंग्लिश में बोलने वाले ये बच्चे अब पाँव छु रहे है ये बच्चे भारतीय है या विदेशी?
मैं एक विदेशी कंपनी का लैपटॉप लेकर आता हूँ और उस पर मेरी बहन कुमकुम से टीका करती है.. नयी गाडी खरीदी गयी है तो सबसे पहले वो गणेश जी के मंदिर जायेगी.. अगर गणेश जी के मंदिर के बाहर खड़ी गाडी विदेशी कंपनी की है तो क्या हम विदेशी है ?
अगर विदेशो में महात्मा गांधी को गान्धू कहा जाए या फिर पंडित राम कृष्ण परमहंस को परमू कहा जाए या फिर विवेकानंद को नंदू कहा जाए तो कैसा लगेगा? हम लोग उन्हें गरियाएंगे या फिर दंगे फसाद करेंगे.. लेकिन दुसरे देश के किसी संत का नाम बिगाड़ने से परहेज नहीं करेंगे.. संत वेलेंटाईन को बाल्टियान या कुछ और कहना उचित लगता है? किसी संत का नाम बिगाड़ना क्या भारतीयता है ?
मुझे होलीवूड की फिल्मे पसंद है मैं देखने जाता हूँ साथ ही मैं हिंदी फिल्मे भी देखता हूँ.. मुझे ब्रायन एडम्स अच्छा लगता है तो मुझे कैलाश खैर का सूफियाना अंदाज़ भी पसंद है.. जितना मुझे डेल कार्नेगी या स्टीफन कोवे पसंद है उतना ही मुझे रघुरमन या श्री धरन पसंद है..
पिज्जा हट या बरिस्ता में बैठकर कॉफी पीने में जो मजा आता है वो ही अन्ना की थडी पर बैठकर कटिंग पीने में या फिर अपने दिलबहार की पपडी चाट खाने में आता है..
हम भारतीय लोग हर नयी चीज़ का स्वागत करते है.. पर अपनों को भूलते नहीं है.. अंकल आंटी के साथ जी लगाना इसी भारतीयता का परिचायक है.. हम तो एक्सक्यूज मी के साथ भी भाईसाहब लगा देते है..
ये हम लोगो की ताकत ही है की हमने मेक्डोनाल्ड को मजबूर किया आलू टिक्की बर्गर बनाने के लिए.. पिज्जा हट में पंजाबी पिज्जा भी मेनू में आ गया है.. स्टार चैनल को यहाँ पर अपने हिंदी चैनल शुरू करने पड़े.. यहाँ तक की माइक्रोसॉफ्ट और गूगल भी हिंदी पर उतर आये.. यही है अपना इंडिया..
तो फंडा ये है कि हमारे द्वारा पहने गए कपडे या बोली हमें परिभाषित नहीं करती.. ज़रूरी है मन का भारतीय होना.. अगर कोई आकर के हमसे पता पूछ ले तो आज भी हम लोग बड़ी आत्मीयता से पता बताते है.. पानी पिलाते वक़्त हथेली पर गिलास रखते है.. खाना बनाते वक़्त गाय की रोटी अलग निकाली जाती है.. मंगलवार के व्रत अभी भी ख़त्म नहीं हुए.. एक्जाम्स टाईम्स पर अब भी भगवान् का कंप्यूटर हैंग हो जाता है.. काजल का टीका तो अब भी बच्चो के गालो पर लगा होता है.. खाने के बाद पान आज भी हमारी फर्स्ट चोइस होती है.. हाथो पर बंधी रोलिया अब भी दुआओ से सरोबार होती है.. शुभ काम पर आज भी सबसे पहले श्री गणेश लिखा जाता है.. अब भी क्रिकेट की आखिरी बाल तक एक टांग पे टांग रख के बैठे रहते है.. भले ही हम कितना भी मॉडर्न हो जाये पर दिल तो आख़िर हिन्दुस्तानी ही रहेगा..