Tuesday, November 17, 2009

बा'रा'त निकली है... तो दूर तलक जायेगी...

जिसने लाईफ में बारात अटैंड नहीं की है उसने कही बैठकर झक ही मारा है.. बारातो में झूमकर ठुमके लगाने का अपना ही एक अलग मज़ा है.. यु तो हर बारात में ही कुछ ना कुछ नया मिल जाता है... पर जो हर बारात में मिलता है वो बड़ा कमाल मिलता है.. और आप को यकीन नहीं होगा उस पर एक पोस्ट भी लिखी जा सकती है..

दुल्हे के बिना बारात कैसी.. ? घोड़े पर बैठा दूल्हा बारात का हिस्सा कभी नहीं होता वो बात अलग है कि बारात उसी की होती है.. हिसाब से उसको सबसे आगे चलना चाहिए पर वो बेचारा सबसे पीछे घोड़ी पर अपने नाते रिश्तेदारों के बच्चो को अपने पीछे बैठाये चुपचाप बर्दाश्त करता रहता है.. और लोग बाग़ भी कम नहीं है.. घोड़ी के पीछे ऐसे ऐसे मुस्टंडे बच्चे बिठा देते है.. कि घोड़ी ही बैठ जाए.. पर हाँ दूल्हा इसी बात से खुश हो जाता है कि चलो जनरेटर वाला तो उसके पीछे है..

दुल्हे के पिताजी अपने चेहरे पर मिलेजुले भाव लिए सफारी सूट पहने हाथ में काला बैग लिए मिल जाते है.. दुल्हे की माताजी अपने खराब गले और ढेर सारी जेवेलरी के साथ भीड़ में ही कही मिल जाती है.. दुल्हे की बहन अपनी हम उम्र दो चार बहनों के साथ बार बार कुछ गानों की फरमाइश करती है.. पर दुल्हे का भाई अपने दोस्तों के साथ आठवी बार "देश है वीर जवानों का.." बजवा कर नाच रहा होता है.. और आस पास कुछ बाराती नाचने की मासूम अभिलाषा लिए इसलिए खड़े होते है कि उन्हें कोई जबरदस्ती लेकर जाए और वो भी दो चार ठुमके लगा ले..

थोडी ही देर में जीजाजी आकर बनारस वाले मामाजी को बीच में ले आते है.. मन होने के बावजूद मामाजी ना ना करते हुए आ ही जाते है.. फिर तो फूफाजी जी और चाचा जी भी जोश में.. हर बारात में एक व्यक्ति ऐसा होता है जो नागिन वाला डांस करता है.. और दूसरा रुमाल से बीन बनाकर बीन बजाता है.. इनमे से एक पतंग भी उड़ाता है.. और एक चाचा मामा या जीजाजी में से कोई ऐसे भी होते है जो महिलाओ वाला डांस भी करते है.. ऐसा करके महिलाओ में तो उनकी इज्जत बढ़ जाती है.. पर नहीं नाचने वाले दुसरे चाचा मामा या जीजाजी में से कोई उन्हें किसी और नाम से अलंकृत कर देते है..

सड़क पर सांडो की तरह खुले आम नाचते हुए लोगो के बीच में हाथ में बीस का नोट लिए एक शख्स एंट्री लेता है.. और अपने हाथ को अधिकतम ऊंचाई पर ले जाता है.. बैंड वालो में से एक जो काफी देर से बाजा बजा रहा है.. वो बाजे में फूंक मारते मारते ही नोट लेने के लिए हाथ उठाता है.. जो भाईसाहब नोट उठाये खड़े है वो अपना हाथ और ऊपर उठाते है.. ये जानते हुए भी कि इस फ़ालतू नाटक के बाद नोट बैंड वाले के पास चला जाएगा.. सब उत्सुकतावश देखते रहते है कि बैंड वाला नोट कैसे लेता है.. ?

इतने में दुल्हे का जवान भाई सड़क को अपने बाप का माल समझ कर बैंड वालो को अगले चौराहे पर रुकने का फरमान सुनाता है.. पिछली बारात में हुई ठुकाई को याद रखते हुए बैंड वाला चौराहे पर बैंड रोककर "जिमी जिमी आजा आजा.." बजाने लग जाता है.. और बाहर जाम में फंसे लोगो को भीड़ में से कुछ उठे हुए हाथो में हलचल दिखाई देती है.. हालाँकि बारातियों में से एक भाईसाहब ऐसे भी होते है जो बारातियों को साईड में धक्के दे देकर ट्रैफिक सँभालने में लग जाते है..

पर जो सँभालने से संभल जाए वो बारात ही क्या.. ?

आत्मनिर्भर बैंडवाले के एक एक कदम अपनी मर्ज़ी से आगे बढ़ जाने की वजह से बारात भी बढती जाती है.. कुछ लोग जिनका बारात में जाना मजबूरी है पर वापस लौटने के लिए अपनी गाडी होना भी जरुरी, वो लोग हर थोडी दूर आगे अपना स्कूटर खड़ा करके वापस आते है.. ऐसे लोगो को (जो जबरदस्ती बारात में है) आप जेब में हाथ डाले हुए देख सकते है.. अमूमन ये बारात में सबसे आगे या फिर सबसे साईड में होते है..

जब बारहवी बार छोटी बहन फरमाइश करती है और भाई की शर्ट पसीने में डूब जाती है तो बहने चार्ज संभाल लेती है.. इसी टाईम पे भाभी चाची और मामी भी अपना हुनर दिखाने आ जाती है.. सड़क के बीचो बीच लोगो को अपनी छुपी हुई प्रतिभा दिखाने का सुनहरा अवसर मिल जाता है.. और मामी जी के नाच शुरू करते ही कुछ एलिमेंट्स मामाजी को ढूँढने लग जाते है.. मामाजी को ये एलिमेंट्स तब खीच कर ले आते है जब वे मामीजी का डांस बड़े चाव से देखते हुए अपने जीजाजी पर नज़र रखे होते है..

मामाजी के आते ही मामीजी का एक्साईटमेन्ट डबल हो जाता है.. वो और तेज़ डांस करती है.. जीजाजी पर नज़र रखे हुए मामाजी, दोनों हाथ उठाकर नाचने लग जाते है.. पास खड़े नानाजी यानि उनके ससुर जी अपने खानदान के चश्मो चिराग और इकलौती बहु के नाच की मन ही मन तारीफ़ करके आगे कट लेते है..

इतने में पास से एक और बारात निकलती है.. अब देखिये साहब..! दोनों बारातो में ब्रूसली की आत्मा घुस जाती है.. जोर जोर से नाचने लग जाते है.. बैंड वालो को भी जोश आ जाता है.. बाजे वाला बाजा फूंक फूंक के अपनी जान देने पर ऐसे उतारू हो जाता है जैसे ऊपर समस्त देवता गण हाथो में फूल लिए उस पर बरसाने को तैयार खड़ेहो..

इसी बीच कई ऐसे लोग जो बाकियों पर रौब जमाना चाहते है.. बार बार आकर पैसे लुटाते रहते है.. पैसो के चक्कर में बैंड वाले लाईट वालो के तारो में उलझकर गिर पड़ते है.. दुल्हे को छोड़ घोड़ी वाला भी अपना हिस्सा लेने आ जाता है.. ढोल वाले और लाईट वाले तो खैर उलझते ही है..

ये जानते हुए भी कि अगर इन हरामखोरो को पता चल गया कि हम धीरे धीरे आगे बढ़ रहे है तो टाँगे टूट जायेगी, बैंड वाले जान जोखिम में डालके आगे बढ़ते रहते है.. क्योंकि इस बारात को ठिकाने लगाने के बाद उन्हें एक और को निपटाना होता है.. वैसे ये अकेले नहीं होते इनका साथ देने में ताऊजी फूफाजी टाइप लोग होते है जो बार बार थोडा आगे थोडा आगे कहकर बारात बढ़ाते रहते है..

बारात बढती रहती है.. नोट हवाओ में उठते रहते है. .ठुमके लगते रहते है.. फोटोस खींचती रहती है.. दूल्हा पकता रहता है.. और बारात आगे बढती रहती है..

: खैर ये तो हुआ हमारा देखना.. कुछ छूट गया हो तो आप भी बता दीजिये..

Friday, October 9, 2009

बेचारी महफ़िल.. कुछ ऐसी लुटी..

महफ़िल पूरे शबाब पर है.. गुमनाम से शायर अपनी ठोडी पर कलम टिकाये बैठे है.. उनका उल्टा पांव सीधे पांव पर पड़ा है.. और नज़र नामचीन लोगो पर..
नामचीन लोगो के शेरो पर गुस्ताख लोग तालिया पीट रहे है.. गुमनाम शायर ने पान की पीक थूकते हुए कहा है... नामुराद..!  सब के सब..

और फिर उल्टे पांव पर सीधा पांव रखकर दोबारा बैठ गया.. नामचीन ने अपने आगे पड़ी प्लेट से पान उठाकर मुंह में ठूंसा.. दोनों होंट भड़कते तंदूर से लाल हो चुके है.. पता नहीं अन्दर से जो निकलेगा वो पचाने लायक होगा या नहीं.. गुमनाम की बैचेनी बढ़ रही है.. उसने टाँगे बदल ली है.. गोया टाँगे नहीं किसी जाहिल का ईमान हो..   

हो गए उनके आगे बेनकाब.. जिनसे पर्दादारी थी..
पीट गए सब सरे राह.. जिनसे भी उधारी थी...

हिम्मत तो देखिये.. फिर से खड़े हो गए पैरो पर..
ऐसे मामलो की तो.. पहले से ही तैयारी थी...  

वाह! क्या शेर दहाडा है.. पास बैठे एक और नामचीन ने कहा.. बहुत ही कातिल शेर.. शुभानल्लाह!!

गुमनाम ने पांव की जगह फिर बदल ली.. और इस बार ना मुराद से पहले 'साले' भी लगा दिया... तो शब्द कुछ यु बना.. साले नामुराद!   

रात भर जब नामचीन लोग.. शेर दहाड़ दहाड़ के ढीले हो गए तो किसी ने गुमनाम को आवाज़ मार दी.. गुमनाम फुर्ती से चप्पल उतार कर स्टेज पर चढ़ गए.. नामचीन लोग उसी बेलन के आकार वाले तकिये का सहारा लेकर बैठ गए जिनसे घरो में रोटिया बनायीं जाती है..  गुमनाम ने प्लेट में देखा पान बचे नहीं थी.. मगर लाल लाल कत्था जरुर उन्हें घूर रहा था.. गुमनाम ने भी बदतमीजी करने में देर ना लगाते हुए एक शेर ठोंक डाला..

गुजारते है जो.. ज़िन्दगी अपनी उधारो में.. 
पिट जाते है युही.. सरे आम बाजारों में...

छोटे मोटे जख्मो से कोई फर्क नहीं पड़ता उनको
बदन पर ऐसे टुच्चे निशान तो होंगे हजारो में...

वाह वाह हुज़ूर ये होता है शेर.. क्या तो दहाडा है.. भई माशाल्लाह.. शुभानल्लाह!! ... गुस्ताख लोगो ने शेर की जम कर तारीफ़ कर दी..

नामचीन ने अपने पीछे से वही बेलन के आकार का तकिया हटाया और उल्टे हाथ की तरफ करवट लेकर बोले.. नामुराद!  सब के सब..
फिर तो बस दहाड़ पे दहाड़ और करवट पे करवट.. करवट पे करवट और दहाड़ पे दहाड़.... इधर दहाड़ उधर करवट.. उधर करवट इधर दहाड़..  

बस फिर क्या होना था..? बची रात में जब तक शमा में तेल डाल डालकर जलाना मुनासिब था.. जलाया गया.. गुमनाम को नाम मिल चुका था.. वो शेर पे शेर दहाड़ रहा था... नामचीन ने नामुराद के आगे ऐसे ऐसे शब्द जोड़े  कि.. साला तो फिर भी छोटा लग रहा था..

शेरो की कुछ इसी तरह की दहाडो से पहले नामचीनों ने और फिर गुमनामो ने सारी की सारी महफ़िल लूट ली..


Tuesday, August 25, 2009

हलकट दुनिया का सिपाही..

हलकट दुनिया के पिछवाडे पर लात देकर उसने गाडी स्टार्ट कर दी थी.. लोग बाग़ सड़क पर दौड़ रहे थे.. सारी गाड़िया फूटपाथ पर चल रही थी.. अचानक किसी ने बिलकुल पास आकर ब्रेक मारा.. @$%#$% कुछ निकला था उसके मुंह से.. शायद कोई गन्दी गाली रही होगी.. नहीं गन्दी नहीं, सिर्फ गाली होगी.. गालिया गन्दी या अच्छी नही होती.. सड़क पर गति सीमा चालीस देखकर उसने स्पीड बढा ली.. तेज़ ते़ज़ और तेज़ स्पीड से उसकी गाडी चल रही थी.. अचानक उसने देखा कार में बारिश होने लगी.. उसने जोर से ब्रेक लगाए पीछे से कोई उसे वही गाली वापस दे गया जो उसने कुछ देर पहले दी थी.. खिड़की से बाहर झाँका तो कडाके की धुप पड़ रही थी.. पर उसकी कार में जोरो की बारिश हो रही थी,, उसने अपनी जेब में हाथ डालकर देखा शायद छतरी मिल जाए.. पर नहीं अन्दर से एक अस्पताल का बिल.. थोडा सा काला धुआं और कुछ कांच के टुकड़े मिले.. ऊपर वाली जेब में एक वाशिंग मशीन मिली पर वो चलती नहीं थी.. उसने गुस्से में फिर एक गाली दी.. पता नहीं किसको ?

वो कार से बाहर निकल गया.. चारो तरफ भीड़ ही भीड़ थी.. उसने ऊपर देखा जगह जगह पर पोस्टर लगे थे.. बड़े बड़े होर्डिंग्स.. एक बड़ा सा एड लगा था "डार्क एंड लवली" सिर्फ हफ्तों में आपकी त्वचा को सांवला बनाये.. कितनी ही लड़कियों का ख्वाब होगा सांवला होना.. गोरे होने की वजह से उनकी शादिया नहीं हो रही थी.. वो पलटा, अगला विज्ञापन था बालो में डैंड्रफ उगाने का.. मोटा होने के इश्तेहार.. बाल सफेद करने का.. पर उसे इन सब की जरुरत नहीं थी.. वो इस जगह से भाग जाना चाहता था..उसने कार की खिड़की में देखा बारिश अभी तक जारी थी.. वो सामने जाकर मेट्रो पकड़ना चाहता था.. पर इस ट्रैफिक की वजह से सड़क पार नहीं कर पा रहा था..

उसे पास में ही अखबार का दफ्तर दिखा.. वो दौड़के अन्दर गया.. अन्दर सब लोग स्कूटर चला रहे थे.. उसने रोकने की कोशिश की पर कोई रुक नहीं रहा था.. सबको जल्दी थी.. सब तेज़ बनना चाहते थे सबसे तेज़.. उसने भी पास में पड़ा एक स्कूटर उठा लिया.. फटाफट उसने जाकर अखबार में खोया पाया कॉलम में विज्ञापन दिया.. "जेब्रा क्रोसिंग खो गयी" उसे लगा इसे पढ़कर शायद उसे सड़क पर जेब्रा क्रोसिंग मिल जाए और वो सड़क पार कर ले.. पर ऐसा हुआ नहीं.. सड़क के इस पार बैठे बैठे वो सामने आने जाने वाली मेट्रो देख रहा था.. उसे लगा अगर मेट्रो के ड्रायवर ने एक बार उसे देख लिया तो वो मेट्रो इधर ले आएगा.. मेट्रो का ड्रायवर उसे जानता था.. इतनी जान पहचान तो चलती ही है.. मेट्रो चुकी थी.. पर ड्रायवर देख नहीं रहा था..

वो घबराया.. उसने जमीन पर पड़ा पत्थर उठाया और सामने की तरफ उछाल दिया.. पत्थर मेट्रो की खिड़की को तोड़ता हुआ आसमान की तरफ चला गया.. पत्थर हवा में उड़ता ही जा रहा है.. वो देखता रहा.. पत्थर और ऊपर चला गया.. अचानक आसमान में से जोर की आवाज़ आई.. शायद उसने आसमान फाड़ दिया था.. आसमान से मोम जैसा कुछ पिघलकर नीचे गिर रहा था.. जैसे ही वो उसके ऊपर गिरता मेट्रो उसके करीब गयी.. वो फटाफट उसमे चढ़ गया.. पर अन्दर मेला लगा हुआ था.. बहुत भीड़ थी.. खेल तमाशे वाले.. चाट पकोड़ी वाले.. झूले वाले.. बहुत सारे लोग जमा थे.. मेले में हंस खेल रहे थे.. उसे ये सब अच्छा नहीं लग रहा था.. वो बाहर जाना चाहता था.. पर मेट्रो का दरवाजा खुलता नहीं था.. सिर्फ स्टेशन आने पर ही खुलता था ये.. वो मेट्रो में फंस चुका था..

उसने पीछे वाली जेब से पर्स निकाला.. अन्दर पैसे नहीं थे.. बस एक कंडोम का पैकेट था.. जो यूज नहीं किया गया था.. उसने देखा बाहर सबके हाथ में ऐसा ही एक पैकेट था.. किसी ने भी इस्तेमाल नहीं किया था.. बाहर भीड़ और बढ़ने लगी थी.. सब पैकेट लेकर घूम रहे थे.. उसने जेब में हाथ डालकर तलवार निकाल ली.. वो उन सब लोगो को काट डालना चाहता था.. जिसने पैकेट खोला भी नहीं था.. पर अगर वो ऐसा करता तो उसे खुद को भी मारना पड़ता.. यही सोच के उसने तलवार जमीन में घुसा दी.. और पास वाली गली में मुड गया..

पास वाली गली में बड़ा सा सिनेमा हॉल था.. वो अन्दर चला गया.. अन्दर फिल्म चल रही थी.. हिरोइन नाच रही थी.. लोग सीटिया बजा रहे थे.. चारो तरफ अँधेरा था.. उसे कुछ नज़र नहीं रहा था.. उसने किसी के पांव पर पांव रख दिया.. एक गाली सुनाई दी.. लोगो ने जोर से तालिया बजायी.. वो अपनी सीट पर जाकर बैठ गया.. उसी सीट पर तीन चार लोग और बैठे थे.. पांचो लोग उसी सीट पर बैठे थे.. पिक्चर ख़तम होने वाली थी.. हीरो ने डाकुओ से हिरोइन को छुडा लिया था.. अब वो डाकुओ को मार रहा था.. उसने सबको मार दिया और घोडे पर बिठाकर हिरोइन को ले गया.. पिक्चर ख़त्म हो चुकी थी.. सब लोग बाहर जा चुके थे वो अन्दर अकेला रह गया था.. चारो तरफ पोपकोर्न बिखरे हुए थे.. इतने में उसने देखा फिल्म वापस शुरू हो गयी.. हीरो परदे में से निकलकर बाहर गया.. और उसके पीछे भागा..

वो तेजी से बाहर निकला.. हीरो उसके पीछे पीछे भाग रहा था.. उसने ट्रैफिक सिग्नल उखाड़ कर पीछे फैंका.. पर हीरो को खरोंच तक नहीं आई.. वो तेजी से भाग रहा था.. उसने देखा कुछ लोग बन्दूक लेकर स्टेशन पर लोगो को मार रहे है.. उसने उनके हाथ से बन्दूक छीन कर हीरो पर अंधाधुंध गोलिया चलायी.. पर हीरो को कुछ नहीं हुआ.. वो बन्दूक वही फेंक कर भागा.. उसने जेब से मोबाइल निकाला पर जैसे ही उसने कॉल बटन दबाया.. मोबाइल से खून का फव्वारा छूट पड़ा.. उसने हाथ से झटका पर मोबाइल नहीं गिरा.. वो और तेज़ भाग रहा था.. मोबाइल से लगातार खून बहता जा रहा था.. हीरो अब भी उसके पीछे था.. उसे सामने डस्ट बिन दिखाई दिया.. वो उसमे छुप जाना चाहता था.. पर अफ़सोस डस्ट बिन खाली पड़ा था.. हीरो उसके और करीब चुका था..

वो आगे जाकर मेडिकल की दुकान पर रुका.. उसने वहा से साढे सताईस हज़ार की दवाईया खरीदी.. वो उन्हें लेना चाहता था.. पर उसे कही पानी नहीं मिल रहा था.. सब तरफ कोल्ड ड्रिंक मिल रही थी.. उसने कोल्ड ड्रिंक की बोतल खरीदी और सारी दवाईया ले ली.. फिर भी हीरो उसके पीछे ही लगा था.. हीरो ने सड़क पर पड़े कचरे में से पोलीथिन बैग्स उठा लिए.. हीरो बिलकुल उसके करीब चुका था..

उसने देखा आसमान में हवाई जहाज उड़ रहा था.. वो उचक कर हवाई जहाज को पकड़ कर भाग जाना चाहता था.. जैसे ही वो हवा में उछला.. हीरो ने पीछे से उसका कोलर पकड़ लिया.. वो पूरी तरह से हीरो की गिरफ्त में चुका था.. हीरो ने पोलीथिन से उसका मुंह बाँध दिया.. उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी.. वो सांस लेने की कोशिश कर रहा था पर हीरो ने पोलीथिन से उसका मुंह और जोर से दबा दिया था.. उसकी आँखों के आगे अँधेरा चुका था.. वो हवा में उड़ते हुए किसी पेड़ के पास जाकर ऑक्सीजन लेना चाहता था.. पर उसे कही पेड़ नज़र नहीं रहा था.. उसने जोर से मुंह से सांस खिंची पोलीथिन उसके नाक पर चिपकी और बस... ये उसकी आखिरी साँस थी .. हीरो ने उसको नीचे फेंक दिया.. ठीक जेब्रा क्रोसिंग के ऊपर.. पास में एक अखबार पड़ा था जिस पर खोया पाया का विज्ञापन था.. सड़क के दूसरी तरफ खडी कार में बारिश बंद हो चुकी थी.. कंडोम के कुछ खाली पैकेट्स सड़क पर पड़े थे.. लोग सड़क पार करके मेट्रो की तरफ जा रहे थे.. पर इन सबसे बेखबर... हलकट दुनिया में सड़क पर एक लाश पड़ी थी..

Thursday, August 6, 2009

लीम्बू सोडा..

आप हमेशा की तरह उन्हें मना रहे है.. उनको मानना ही है ये वो भी जानती है और आप भी.. फिर भी आप मना रहे है.. वो चाहती है बस थोडी देर और मनाया जाये.. आप कोशिश तो कर रहे है,, पर आपको प्रोमिस भी करना पड़ेगा.. कि आज के बाद आप उनके घरवालो के खिलाफ कुछ नहीं कहेंगे.. वो जानती है आप ये वादा निभाने नहीं वाले.. पर हर बार की तरह वो फिर इस बार भी आश्वस्त हो जाती है कि आप ऐसा नहीं करेंगे.. अब वो मुस्कुरा चुकी है.. आप फिर से उन्हें छेड़ देते है.. वो फिर से मुंह फेर लेती है.. बस इसी को तो कहते है.. लाईफ में लीम्बू सोडा..

लाईफ कभी भी लड्डू नहीं हो सकती.. ना ही हमेशा ये नीम सी होती है.. लाईफ तो होती खट्टी मीठी.. बिलकुल जैसे कच्चे लीम्बू की तरह.. वैसे तो इसे नींबू भी कहा जा सकता है.. पर जो मज़ा लीम्बू में है वो नींबू में कहा.. ?

घर में सब खाना खा रहे हो.. तो बस अपने 'उनकी' दाल की कटोरी में नमक ज्यादा डाल दीजिये.. फिर देखते रहिये उनके चेहरे की हालत.. और अगर आप 'उन' है तो खाने की प्लेट रखने जाते वक़्त मैडम को चिकोटी काट के निकल लीजिये.. वो आउच तो करेंगी.. पर कुछ बोलेगी नहीं.. आप के और उनके नैन ही बतिया लेंगे बस.. हाँ लेकिन धमकी जरुर मिलेगी कि आओ रात को कमरे में.. अब इसके लिए तो कोई उपाय नहीं "सिम्पली एंटर एट योर ओव्न रिस्क"

लाईफ खट्टी हो रही है क्योंकि फिर से लडाई हो रही है.. वो आप से आपका मोबाइल मांग रही है और आप है की दे नहीं रहे है.. आपको डर है कि वो कही इसमें नॉन वेज मेसेज्स नहीं पढ़ ले.. और वो सोच रही है कि आखिर इसमें ऐसा क्या है जो आप छुपा रहे है.. अब उनका जतन और बढ़ रहा है.. आप पैंतरा फेंकिये तुम अपना मोबाइल दिखाओ पहले.. अब बात इगो पे आ जायेगी..

मैं क्यों दिखाऊ जब तुम नहीं दिखा रहे हो तो..

दिखाना तो पड़ेगा..

अरे ऐसे कैसे दिखाना पड़ेगा.. तुम अपना मोबाइल नहीं दिखाते हो तो मैं क्यों दिखाऊ?

ठीक है मैं भी नहीं दिखाऊंगा..

हाँ तो मत दिखाओ.. वैसे भी मुझे कोई इंटेरेस्ट नहीं है तुम्हारा घटिया मोबाइल देखने में..

चलो बला टली.. (अरे अरे मन में.. ये जोर से नहीं बोलना है.. वरना इसका कोई इलाज नहीं.. )

आप मोबाइल को साइड में रख कर सेंसर करते है.. सारे लफडे वाले मेसेज्स डिलीट करते है .. फिर देते है.. अच्छा चलो देख लो मोबाइल..
नहीं अब मुझे नहीं देखना..

ओवियसली अगर साफ़ सुथरा मोबाइल सीधे सीधे देख लिया.. तो फिर लाईफ में लीम्बू सोडा कहाँ से आएगा.. ??

आप दोस्त से फोन पे बात कर रहे है.. वो आ गयी है.. कमरे में.. आपकी आवाज़ धीरे हो रही है.. आप हाँ हूँ में जवाब दे रहे है.. वो कुछ नहीं कहती है पर कुछ इस तरह से देखती है कि आप समझ जाते है.. और फोन रख देते है.. वैसे ये निगाहों की भाषा सिर्फ वो ही नहीं जानती है.. आप भी अच्छे से जानते है.. जब वो बुआ जी और बच्चो के बीच बैठी होती है.. तब आप आँखों से उन्हें देखकर बेडरूम में चले जाते है.. वो भी आपके पीछे आ जाती है लीम्बू अपना खट्टा मीठा स्वाद बरकरार रखता है..

कभी आप उनकी बिंदी आईने से हटा दो.. तो कभी वो सुबह सुबह अखबार छुपा देंगी. जब वो बर्तन धो रही हो तो पीछे से जाकर सर से पल्लू हटा दीजिये.. चिंता मत करिए वो भी चाय में नमक मिलाकर लाती ही होगी.. क्या कहा..? वो शर्माती नहीं..? आज उनसे कह दीजिये इतना काम करती हो तुम.. सोचता हु तुमको तो राष्ट्रपति से भारत रत्न दिलवा दू.. देखा शरमा गयी ना.. वैसे शर्म से लाल तो आप भी हो जायेंगे जब वो बोलेंगी कि आज तो आप बिलकुल वैसे लग रहे है जैसे शादी के दिन लगे थे.. बस फिर क्या आज आप कंघी करने में दो मिनट एक्स्ट्रा लगायेंगे..

कभी ऑफिस के टिफिन में एक नोट भी मिल जायेगा 'मिस यु' लिखा हुआ.. तो आईने पर लिपस्टिक से आई लव यु आप लिख देंगे.. अरे बाप रे आज तो ये आपकी छोटी बहन ने पढ़ लिया था.. अब क्या उसकी फरमाहिशो की फेहरिस्त संभालिये.. उन्होंने अपनी आँखों से तो पहले ही डांट पिला दी है आपको..

वैसे एक बात बता दू मैं आज तीसरा दिन है और आप आज फिर शैम्पू लाना भूल गए... अब क्या ये भी बताऊ मैं कि आप फिर से उन्हें मना रहे है.. वो फिर से मानने वाली है.. लेकिन चाहती है आप कल पक्का शैम्पू लाने का प्रोमिस करे.. ये जानते हुए कि..................

लाईफ युही चलती जा रही है ...... और लीम्बू का खट्टा मीठा स्वाद आता जा रहा है..

Thursday, July 30, 2009

सुगर क्यूब पिक्चर प्रजेंट्स "पापाजी"

सुगर क्यूब पिक्चर प्रजेंट्स "पापाजी"






रद्दी पेप्पर..
तपती दोपहरी में बाहर रद्दी वाले ने आवाज़ लगायी.. मैं उठ गया था.. मुझे लगा अखबार बहुत हो गए है इन्हें रद्दी में बेच दिया जाना चाहिए.. मैंने उस से पुछा अखबार का क्या भाव है.. वो बोला अंग्रेजी है या हिंदी?
मैंने कहा तुझे कौनसा पढना है? तू भाव बता..
अंग्रेजी का आठ, हिंदी का छ:
और मराठी का?
मराठी का तो.... मालूम नहीं साहब..
चल कोई बात नहीं छ दे देना..


मैं रद्दी निकालने लग गया.. पुराने अखबारों के बीच में एकदम से पापाजी की फोटो नज़र गयी.. और मैं फिर से उन गलियों में कही खो गया जब मैं बहुत छोटा था.. हमारे बड़े से घर में के बरामदे में बाहर बैठे पापाजी.. और उनके इर्द गिर्द जमा लोग.. पापाजी से मिलने दिन भर कई लोग आते थे.. मैं देखता था, पापाजी सबकी बाते बड़े ध्यान से सुनते थे... दादाजी का बनाया बहुत बड़ा घर था हमारे पास.. लेकिन पहले इसे दादाजी ने जमींदार के यहाँ गिरवी रखा था.. बहुत साल तक वो घर जमींदार के पास गिरवी ही रहा.. दादाजी के स्वर्गवास के बाद पिताजी शहर चुके थे.. उसी जमींदार के भाई के यहाँ पिताजी नौकरी करते थे.. एक दिन जमींदार के भाई ने पिताजी के साथ बदतमीजी कर ली थी.. बस तभी पिताजी उसकी नौकरी को लात मारकर वापस यहाँ गए थे..

गाँव आकर पिताजी ने देखा कि जमींदार ने घर पर कब्जा कर रखा है.. तीन कमरों को छोड़कर बाकी को जमींदार ने अपना गोदाम बना दिया था.. दो कमरों में दोनों चाचा जी रहते थे.. तीसरे में हम जाकर रहने लग गए थे.. चाचा जी हमेशा पिताजी को कहते थे कि जमींदार से घर छुड़वाना है तो जबरदस्ती करनी पड़ेगी.. पर पापाजी उनकी बात नहीं मानते थे.. पापाजी शांत स्वभाव के थे.. वो मना करते थे.. पापाजी जमींदार से बात भी कर आये थे.. उसने कहा था वो जमीन दे देगा.. पर वो कभी देता नहीं था..

एक रात बहुत हंगामा हुआ था घर में.. जब बड़े चाचा जी ने जमींदार के गोदाम में आग लगा दी थी.. पिताजी ने उस रात खूब फटकार लगायी थी उनको.. पिताजी नहीं चाहते थे कि हम चाचा से कोई बात भी करे इसीलिए उन्होंने अम्मा को बोलकर हमको आगाह कर दिया था.. पर मैं चाचा जी से अक्सर मिल लेता था.. मेरे दोनों बड़े भाई हमेशा पिताजी के साथ ही रहते.. पर मैं नहीं रहता था.. मुझे चाचा जी का साथ अच्छा लगता था.. उनकी बातो में एक अजीब सा जोश होता था.. मैंने जमींदार के प्रति उनकी आँखों में एक जूनून देखा था.. वो कहते थे.. "ये घर मेरी जमीन है.. मेरी माँ.. और मैं अगर अपनी माँ की लाज ना रख पाया तो ऐसा बेटा किस काम का ?"

फिर एक दिन घर में बहुत चुप्पी थी.. पता चला चाचा जी को पुलिस पकड़ कर ले गयी थी.. मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया.. पर बाद में पता चला.. जमींदार के बेटे ने चाचा जी के दोस्तों को गोलियों से मार दिया था.. और चाचा जी ने जमींदार के घर में घुस कर उसके बेटे को गोली मार दी.. पता नहीं ये सच था नहीं.. पर उस रात पुलिस आई थी.. पापाजी बहुत गुस्से में थे.. उन्होंने पुलिस वालो को बोला इसे ले जाकर जो सजा देनी हो दे दो.. हमारे पापाजी उसूलो के पक्के थे..सही न्याय के पक्षधर थे वो.. उस दिन के बाद से मैंने कभी चाचा जी को नहीं देखा.. पता नहीं कहाँ चले गए थे.. लोग कहते थे वो मर गए.. पर मैंने आज तक नहीं माना.. मुझे लगता है कही ना कही वो जिन्दा होंगे आज भी..

लेकिन एक बात बहुत अच्छी हुई थी इन सब में.. जमींदार के मन में डर बैठ गया था.. उसने हमारी जमीन हमको वापस दे दी.. उस दिन घर में दिवाली का माहौल था.. पापाजी मिठाई लेकर आये थे... घर अब हमारा हो चुका था था.. जमींदार गाँव छोड़कर अपने भाई के पास शहर चला गया .. मुझे लगा था अब सब ठीक हो जायेगा.. मगर ऐसा हुआ नहीं.. पापाजी जी की उम्र हो चुकी थी तो उन्होंने मेरे बड़े भाईसाहब को बुलाया और कहा कि मैं घर तुम्हारे नाम कर देता हूँ.. अब तुम ही संभालो.. पर हमारे मंझले भईया घर संभालना चाहते थे.. और पापाजी को मंझले भईया से अधिक लगाव था.. पर बड़े भाईसाहब नहीं माने.. पिताजी एक बार फिर दुविधा में थे..

मैं खामोश खडा देख रहा था.. बड़े भाईसाहब के बच्चे मंझले भईया के बच्चो से लड़ते रहते थे.. फिर एक रात पापाजी ने चौकाने वाला निर्णय लिया.. उन्होंने घर का बंटवारा कर दिया.. एक हिस्सा मंझले भईया को दे दिया.. और दूसरा हिस्सा बड़े भईया को.. मैं छोटा था तो मैं बड़े भईया वाली तरफ ही रहता था.. एक दिन जब मैं दोपहर में अकेला बैठा था तो देखा.. बड़े भईया के बच्चो को मंझले भईया के बच्चो ने मार के भगा दिया.. बदले में बड़े भईया के बच्चे भी मारने लगे.. दोनों में हाथापाई हो गयी.. देखते ही देखते हँसता खिलखिलाता आँगन लहुलुहान हो गया..

मैंने पापाजी की तरफ देखा.. वे बड़े भईया के बच्चो को समझा रहे थे.. लड़ाई मत करो.. मैं उस वक्त घर से बाहर निकल गया.. ये वक़्त बहुत बुरा गुजरा था.. फिर एक दिन मंझले भईया ने कहा कि उन्हें बड़े भईया से दस हज़ार रूपये मिलने चाहिए अपने घर को चलाने के लिए.. बड़े भईया ने साफ़ मना कर दिया.. पर पापाजी को मंझले भईया से ज्यादा लगाव था.. उन्होंने खाना पीना बंद कर दिया.. पापाजी ने धमकी दी थी.. जब तक मंझले भईया को पैसे नहीं मिलेंगे वे खाना नहीं खायेंगे.. हम लोगो की एक भी नहीं चली.. अम्मा ने जाकर बड़े भईया को समझाया.. तब बड़े भईया ने रूपये दिए.. लेकिन उनके बच्चे रोज़ रोज़ लड़ते रहते थे.. जाने अनजाने ही मुझे इन सबके पीछे पापाजी कसूरवार लगते..

आखिर हमने जमींदार से घर छुड़वाया ही क्यों था? इस से अच्छा तो घर जमींदार के पास ही रहता.. कम से कम हम सुखी तो थे.. आपस में लड़ते तो नहीं थे.. मैंने सोचा कभी पापाजी से जाकर पुछु कि कल को अगर मैं भी अपना हिस्सा मांग लु तो? लेकिन मैं जानता था.. पापाजी पर इन बातो का कोई असर नहीं होगा.. वो अपने बनाये नियमो पर पक्के थे.. फिर एक रात मैं बड़े भईया से मिलने पहुंचा.. देखा उनका बड़ा बेटा मर चुका था.. मैंने पुछा ये सब कैसे हुआ? वे बोले हमने पिताजी की बात मान कर हथियार नहीं रखे अपने पास.. पर मेरे बच्चे को मंझले के बच्चो ने इतना पीटा की उसका दम निकल गया.. मेरा खून खौल उठा था.. मैं ये जान चुका था.. कि पापाजी अगर इसी तरह मंझले भईया को नज़रंदाज़ करते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब इस घर का कोई नामोनिशान नहीं रहेगा.. और ना ही बड़े भईया का परिवार कभी सुख से रह पायेगा..

पता नहीं कहा से मुझमे एक ताकत गयी थी.. मुझे चाचा जी के शब्द याद रहे थे... "ये घर मेरी जमीन है.. मेरी माँ.. और मैं अगर अपनी माँ की लाज ना रख पाया तो ऐसा बेटा किस काम का ?" मैंने दीवार पर लगी पापाजी की तस्वीर को प्रणाम किया और घर में पड़ी रिवाल्वर जेब में रखकर सीधा पापाजी के कमरे में घुस गया.. पापाजी उस वक़्त सो रहे थे.. उनको सोता देख मैं वापस लौट आया.. मैं जानता था.. पापाजी शाम को प्रार्थना के लिए जरुर बाहर बरामदे में आयेंगे.. मैंने देखा पापाजी सामने खड़े थे.. उनके आस पास हमेशा की तरह लोग जमा थे.. मैं उनके करीब गया.. और करीब.. वो ठीक मुझसे दो कदम की दूरी पर थे.. और मैंने रिवाल्वर निकाल कर गोली उनके सीने में चला दी... पापाजी वही निढाल होंकर गिर पड़े.. मैंने हाथ उठा लिए थे.. कोई मुझे आकर गिरफ्तार कर ले..

मुझपर मुकदमा चला.. मेरी उम्र कम थी इसलिए मुझे फांसी ना देकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी.. पर किस बात की सजा? सजा तो अपराधी को दी जाती है.. मैं कोई अपराधी नहीं था.. मैं अपराधी तब होता.. जब मैंने कोई अपराध किया होता.. मुझे कभी इस बात का दुःख नहीं हुआ कि मैंने पापाजी पर गोली चलायी.. उस वक़्त मुझे अपने घर को बचाना था.. पापाजी घर से बड़े नहीं थे.. अफ़सोस उन्होंने खुद को घर से बड़ा मान लिया था.. पर मैंने पापाजी को मुक्ति ही दी थी.. वरना आपस में लड़ते हुए अपने बच्चो को देखकर ना जाने उन्हें कैसा लगता..

पापाजी की मैं हमेशा से इज्जत करता था.. आज भी करता हूँ पर मैं पापाजी को कभी माफ़ नहीं कर सकता.. उनके एक फैसले की वजह से.. उनके अपने ही बेटो ने एक दुसरे के खून से हाथ रंग दिए थे.. ये सिलसिला तो आज भी जारी है.. दोनों भाइयो के बच्चे आज भी उसी तरह से लड़ते है.. मंझले भईया के बच्चे चोरी छुपे आकर.. बड़े भईया के बच्चो को मार के चले जाते है..

बाबु जी ऐसा क्या है तस्वीर में.. क्या देख रहे हो..
मैं अतीत से वापस लौटा.. रद्दी वाला मेरे नीचे पड़े अखबारों को उठा रहा था.. मैंने पुछा अंग्रेजी जानते हो?
वो बोला थोडी थोडी..
मैंने कहा अखबार में से कुछ पढ़ कर हिंदी बताओ उसकी..
उसने अखबार के ढेर में से एक उठाया.. और बोला देश के पापाजी..
मैंने पुछा क्या ? तो उसने अखबार मेरी तरफ बढा दिया..
तीस जनवरी का अखबार था..

Monday, July 13, 2009

उछालता कोई मुझे तो..



उछालता कोई मुझे तो
खिलखिला देती...
मुस्कुराता कोई तो
पलकें हिला देती..

पूछता कोई जो कुछ
जवाब आँखें हिला कर देती..
गोद मैं उठाता कोई तो
उसे गीला कर देती..


डाँटता कोई मुझे तो
झटमूट् रोती..
आती जब नींद तो
माँ की गोद में सोती..

मम्मी की पहन साड़ी
श्रृंगार मैं करती..
आ जाए ना कोई कमरे में
इस बात से डरती...

दादा को पकड़ कर
घोड़ा मैं बनाती..
ज़्यादा तो नही पर
खाना, थोड़ा मैं बनाती..

होती जब बरसात
ख़ूब मैं नहाती..
काग़ज़ की कश्तिया
पानी में बहाती..

फिर बड़ी हो जाती और
झूलती झूलो पे..
बन जाती तितली कोई और
घूमती फूलो पे...

सोमवार की पूजा के
फूल मैं चुनती..
आएगा कोई जो
उसके ख्वाब मैं बुनती..

ले जाता मुझे कोई
डोली में बिठाकर..
पलकों की छाओ में
आँखो में लिटाकार...

अपना फिर छोटा सा
परिवार मैं बनाती..
खशियो से सज़ा सा
संसार बसाती..

बाँट प्यार सभी को
सबके दर्द मैं लेती..
गर माँ तेरी कोख से
जन्म मैं लेती....

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Thursday, July 9, 2009

हर बारिश की अपनी एक अलग कहानी है..

अभी बाहर बारिश हो रही है.. हाथ की बोर्ड पर टक टक कर रहे है.. नज़रे खिड़की पर जमा है.. और मन है कि सोच रहा है एक फर्लांग भर कर सीधा सड़क पर पहुँच जाए और बारिश में दो चार ठुमके लगा ले.. ये बारिशे भी कितनी जालिम होती है.. हमेशा तब आती है जब आप बहुत बिजी होते है.. पर सब काम छोड़कर भीगे ही नहीं तो फिर बारिश कैसी ? बारिश का अपना रुल है.. या तो भीग जाओ या भाग जाओ..

वैसे हर बारिश की अपनी एक अलग कहानी है.. बचपन में स्कूल से लौटते वक़्त बारिश आ जाये तो किसी पेड़ के नीचे गीले होकर दांत बजाते हुए सहमे खड़े रहते थे.. पास में ही पड़ी गीली मिट्टी की महक मौसम को और लजीज बना देती..


घर में जहाँ तहा कमरे में कटोरे रखे मिलते.. बारिश में हर हिन्दुस्तानी की तरह अपनी भी छत टपकती थी.. फिर वो घर ही क्या जहा कभी छत से पानी न टपका हो..


हम तो खिसक लेते पुरानी निकर और बनियान पहनकर.. कागज़ की किश्तियों में कौन मेहनत करे इसलिए चप्पल ही पानी में बहा देते.. एक दो बार तो चप्पल की किस्मत भी टाइटैनिक सी निकली.. घर जाके अपने एक चौथाई दांत दिखा के बच गए थे.. वरना हाल तो अपना भी टाइटैनिक सा होना था..

बारिश में बिजली का जाना तो राजमे और चावल के साथ जैसा है.. जैसे ही बिजली जाती.. मोहल्ले के हर घर से चिल्लाने की आवाज़ आती.. बिना ब्लूटूथ के सब एक दुसरे से कनेक्टेड से लगते..

इतने सालो से कितनी ही बारिशे आई और गयी पर पकोडियो का दौर रुका नहीं.. जोधपुर के गरमा गरम मिर्ची बडो के लिए तो कत्ले आम हो जाता है.. चाय पे चाय चलती है.. खिड़की के नीचे हार्न बजता है और आवाज़ आती है "अबे बारिश हो रही है और तू घर में बैठा है.." छतो पर चढ़कर सब तेरी वाली मेरी वाली करते है.. बस शेल्टर के नीचे खड़े लोग खुद को खुशनसीब समझते है.. रिक्शे वाले अपनी बीडी सुलगा कर रिक्शे में बैठ जाते है.. कोलेज की लड़किया सड़क पर जमा पानी से छलांगे मार मार कर आगे बढती है.. कार के वाइपर्स की कामचोरी करने से लोग हाथ बाहर निकालकर रुमाल से कांच साफ़ करते है.. बिना हेलमेट लोग धड़ल्ले से गाडी चला रहे है.. पुलिस वाले भी केबिन में है.. आज तो बारिश हो रही है ना.. सबको छूट है..


चलते चलते
रिक्शा
बाहर उल्टा पड़ा है.. घर में तवे का भी यही हाल है... किसनू सोच रहा है बारिश रुक जाये तो चूल्हा चालु हो... बंटी बालकनी में आ चुका है.. खुश हो रहा है.. ट्यूशन से छुट्टी..! हे भगवान ये बारिश ऐसे ही होती रहे..

कहा ना मैंने.. हर बारिश की अपनी अलग कहानी है..



Tuesday, June 16, 2009

आँठवा अखबार

देर रात मालिनी आईने के सामने बैठी रही.. आने वाले मेहमान को निहार रही है.. बगल वाले कमरे के दरवाजे के खटखटाने की आवाज़ से बेखबर.. जानती है कि थोडी देर बाद ये आवाज़ बंद हो जायेगी.. रात और लम्बी होती जा रही है.. मालिनी सोने की कोशिश कर रही है.. वो जानती है कि उसे सुबह जल्दी उठना है.. सोचते सोचते उसकी आँख लग गयी है..

सुबह दस्तक दे चुकी है.. मस्जिद की तरफ से अजान सुनाई दे रही है.. अँधेरा अभी है थोडा सा.. गाडी फूटपाथ पर पहुची और अखबारों का बण्डल फेंका.. अखबार वाले ने अख़बार उठाया.. आँखे मली और साइकिल उठाली..

इधर मालिनी की भी आँख खुल गयी.. आज थोडी थकान लग रही है.. आखिर सातवा महिना चल रहा है.. वो जानती है उसे क्या करना है.. तैयारी कर रही है.. बस उसे देर नहीं हो जाये..

साइकिल पर तेजी से पैडल मारता हुआ अखबार वाला गली में घुस रहा है.. मालिनी इस बात से बेखबर है की बगल वाले कमरे से बालकनी का दरवाजा खुल चुका है.. अखबार वाले ने पहला अखबार फेंक दिया है.. आँठवा अखबार इसी घर में गिरेगा.. मालिनी जल्दी से जल्दी नहाकर बाहर आना चाहती है.. चौथा अखबार भी फेंक दिया अखबार वाले ने..

मालिनी जल्दी से बाहर आने की कोशिश कर रही है॥ ये सातवा अखबार भी फेंक दिया उसने... बालकनी के नीचे चुका है अखबार वाला॥... ऊपर बालकनी में देखता है और सहम जाता है.. घोष बाबु खड़े है अखबार मांग रहे है.. अखबार वाला सोच रहा है क्या करे। घोष बाबु चिल्लाये... अबे देता क्यों नहीं है अखबार..

मालिनी ने सुन लिया वो भागी उसे रोकना होगा.. अखबार वाला सोच रहा है क्या करे ? घोष बाबु की बैचैन आँखे उसे मजबूर कर रही है.. वो अखबार फेंकने के लिए हाथ उठाता है.. मालिनी तेजी से भागती है.. अखबार हवा में उछला जा चुका है.. मालिनी जैसे ही पहुचती है.. घोष बाबु जोर से चिल्लाते हुए अन्दर की तरफ़ भाग जाते है.. घोष बाबु जोरो से रो रहे है. मालिनी को जिस बात का डर था वही हुआ... घोष बाबु कमरे के अन्दर चले गए और जोर जोर से दीवार पर सर मर रहे है... मालिनी की आँखों में आंसू है... पर वो जानती है ये उसे अकेले करना है वो इंजेक्शन में दवाई भर रही है... घोष बाबु ने हाथ उछाल दिया॥ मालिनी फ़िर से उनकी तरफ़ लपकी... इस बार उसने हाथ पकड़ कर इंजेक्शन लगा ही दिया॥ घोष बाबु की आँखे बंद हो रही है वो नीचे गिर चुके है... मालिनी ने उनके सर के नीचे तकिया रख दिया है... आँखों से गिरते आंसू लिए उसने अखबार उठाया है... उसे तो कोई इंजेक्शन लागने वाला भी नही है... आख़िर उसे ही अपने आने वाले बच्चे और अपने ससुर को संभालना है... उसने अखबार को खींच कर दीवार पे मारा है...

और रोते हुए देख रही है दीवार पर लगी अपने पति की तस्वीर को और पूछ रही है क्यो नही ले गए हमें भी साथ... वैसे भी कौनसा जी रहे है हम... रोज़ सुबह बाबूजी की ये हालत देखी नही जाती... हर रोज़ इस उम्मीद पर की आज उस आतंकवादी को सजा मिलेगी जिसने उनके इकलौते बेटे को लील लिया... मेरे सुहाग को मुझसे छीन लिया और एक अजन्मे बच्चे के बाप को... जिसकी तो कोई गलती भी नही थी... डाक्टर कहते है बाबूजी की दिमागी हालत ठीक नही ... मैं अकेली कैसे करू ये सब... अब और नही देख सकती मैं ऐसे...

आज रात मालिनी ने एक फ़ैसला कर लिया है...

अगले दिन अखबार वाला फ़िर से आया है आज कोई बालकनी में उसे दिख नही रहा है... उसने अखबार फेंक दिया है मगर कोई आया नही... बाबूजी चैन से सो रहे है मालिनी भी नही उठ रही... पता नही कल रात को लिया गया मालिनी का फ़ैसला सही था या ग़लत...

पर अखबार में आज की ताज़ा ख़बर है वो आतंकवादी नाबालिग है...

Wednesday, June 3, 2009

जैसी बची है वैसी की वैसी बचा लो रे दुनिया..

मुसीबतों में भी लोगो को आशा की किरण नज़र जाती है.. देखिये ना हमारे घर के सामने करीब सौ सालो से जिन्दा एक महिला की मृत्यु हो गयी.. पता चला बीमार थी लेकिन मौत नहीं रही थी तो घर वालो ने उसे मुक्ति देने के लिए ४६ डिग्री टेम्प्रेचर में बिना पंखे वाले एक कमरे में सुला दिया.. बुढ़िया को रातो रात मुक्ति मिल गयी.. कल शाम को उस कमरे की खिड़की पर कूलर लग गया.. अब उसमे छोटा पढाई करेगा.. मेरे मोबाइल पर गाना बज रहा है.. "ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.." नहीं प्यासा का नहीं, गुलाल का है.. पुरानो की अब वेल्यु नहीं रही.. मैं पूरी रात इस घटना पर करवटे बदलता रहा..

दिसम्बर का महिना मैं अपने दोस्त के पिताजी की डेथ के बाद उस से मिलने गया.. डेथ के सात दिन बाद पहुंचा घर पर कुछ काम चल रहा था.. दीवार बनायीं जा रही थी... दुबई से छोटेवाले चाचा जी आये है अगले सप्ताह उनकी फ्लाईट है.. इसीलिए.. काम जल्दी हो रहा है... स्टार वन पर एक प्रोग्राम रहा है.. "दिल मिल गए.. "

एक महिना पहले मैं अपने जूते पोलिश करवा रहा था एक पंद्रह सोलह साल का लड़का था.. इतने में एक आदमी आया पोलिश वाले ने उसको कुछ रूपये दिए मैंने पुछा क्या है तो बोला ब्याज पे पैसे लिए है.. थोडी देर बाद वो बोला अब ऐसे हालात नहीं रहेंगे.. बस पंद्रह दिन की बात है फिर हमारे पास भी गाडी होगी.. बहुत जल्द मैं करोड़पति बनने वाला हूँ.. मैंने पुछा कैसे? तो बोला अहमदाबाद में किसी में माता आई है.. वहा पर कुछ भी ले जाओ वो सोना बन जाता है ... तीन दिन पहले देखा वो अभी भी वही जूते पोलिश कर रहा था.. मेरी हिम्मत नहीं हुई उसके पास जाने की.. सड़क के उस पार मंदिर के जीर्णोद्वार के लिए चंदा इकठ्ठा किया जा रहा है..

किसी ऑफिस के बाहर बैठा गार्ड अपनी लाचारी को तौलिया सर पे रखे ढो रहा है.. सूरज उसको दादागिरी दिखा रहा है.. मैं ऊपर देखता हूँ.. और पूछता हूँ हिम्मत है तो सी वालो को दिखाओ ये गर्मी.. वो मेरी बात का जवाब नहीं देता पर शाम को थोडी बारिश होती है.. शुक्र है थोडी तो गैरत है सूरज में.. अगले दिन सुबह ऑफिस आता हूँ मेरा सी खराब है.. खिड़की से बाहर देखता हूँ सूरज मुस्कुरा रहा है.. कितना इगो होता है ना लोगो में.. ?

रात के बारह बजे मैं फोन पर किसी से लड़ रहा हूँ.. उस गार्ड की खातिर जो सर पे तौलिया रखे बैठा है.. कूलर क्यों नहीं दे देते उसको..? मुझे जवाब मिला है.. गार्ड का काम ही वही है.. उसको कूलर कैसे दे सकते है.. बी प्रेक्टिकल..! रात बीत चुकी है सुबह सुबह मेरा होंकर पूरी दुनिया को बण्डल में बाँध के फेंकता है.. मैं चाय बनाने के लिए दूध गर्म करता हूँ.. अखबार में खबर है.. डेढ़ साल की बच्ची का बलात्कार.. मैंने दूध पूरा वाश बेसिन में डाल दिया है...


आज रात को फोन पर फिर से वही जवाब मिला है... बी प्रेक्टिकल.... गुलाल का गाना अभी भी बज रहा है..
जैसी बची है वैसी की वैसी बचा लो रे दुनिया...

Wednesday, May 27, 2009

फ़िर भी दिल है हिन्दुस्तानी..

जितनी शिद्दत से मैं मंदिर के सामने से गुज़रते वक़्त सजदा करता हूँ उसी भावना से किसी मस्जिद पर भी सर झुकाता हूँ.. गुरूद्वारे और चर्चो पर भी इसी तरह की एक प्रक्रिया स्वत: ही हो जाती है.. और यकीन मानिए इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है.. ये बिलकुल सहज है..

दरअसल हम भारतीय बहुत ही भावुक होते है.. अपनी रूट से जुड़े हुए.. हमने पश्चिम को भी अपनाया और अपनी संस्कृति भी नहीं छोडी.. लेकिन सिक्के का एक पहलु देखकर ही कुछ भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता...

मैं मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर जाता हूँ और कभी कभी शनिवार या रविवार को किसी पब टाइप जगह पर चला जाता हूँ.. रोज़ सुबह मेरा हनुमान चालीसा का पाठ क्या इतना कमज़ोर है कि मेरे कभी कभी पब जाने से टूट जायेगा.. क्या मैं भारतीय नहीं रहूँगा?

शादी की पार्टी में सब लड़के लड़किया इंग्लिश में बाते कर रहे थे इतने में उनके मामाजी गए.. सब बच्चे उनके पैर छु रहे है.. एक मिनट पहले इंग्लिश में बोलने वाले ये बच्चे अब पाँव छु रहे है ये बच्चे भारतीय है या विदेशी?

मैं एक विदेशी कंपनी का लैपटॉप लेकर आता हूँ और उस पर मेरी बहन कुमकुम से टीका करती है.. नयी गाडी खरीदी गयी है तो सबसे पहले वो गणेश जी के मंदिर जायेगी.. अगर गणेश जी के मंदिर के बाहर खड़ी गाडी विदेशी कंपनी की है तो क्या हम विदेशी है ?


अगर विदेशो में महात्मा गांधी को गान्धू कहा जाए या फिर पंडित राम कृष्ण परमहंस को परमू कहा जाए या फिर विवेकानंद को नंदू कहा जाए तो कैसा लगेगा? हम लोग उन्हें गरियाएंगे या फिर दंगे फसाद करेंगे.. लेकिन दुसरे देश के किसी संत का नाम बिगाड़ने से परहेज नहीं करेंगे.. संत वेलेंटाईन को बाल्टियान या कुछ और कहना उचित लगता है? किसी संत का नाम बिगाड़ना क्या भारतीयता है ?


मुझे होलीवूड की फिल्मे पसंद है मैं देखने जाता हूँ साथ ही मैं हिंदी फिल्मे भी देखता हूँ.. मुझे ब्रायन एडम्स अच्छा लगता है तो मुझे कैलाश खैर का सूफियाना अंदाज़ भी पसंद है.. जितना मुझे डेल कार्नेगी या स्टीफन कोवे पसंद है उतना ही मुझे रघुरमन या श्री धरन पसंद है..

पिज्जा हट या बरिस्ता में बैठकर कॉफी पीने में जो मजा आता है वो ही अन्ना की थडी पर बैठकर कटिंग पीने में या फिर अपने दिलबहार की पपडी चाट खाने में आता है..

हम भारतीय लोग हर नयी चीज़ का स्वागत करते है.. पर अपनों को भूलते नहीं है.. अंकल आंटी के साथ जी लगाना इसी भारतीयता का परिचायक है.. हम तो एक्सक्यूज मी के साथ भी भाईसाहब लगा देते है..

ये हम लोगो की ताकत ही है की हमने मेक्डोनाल्ड को मजबूर किया आलू टिक्की बर्गर बनाने के लिए.. पिज्जा हट में पंजाबी पिज्जा भी मेनू में गया है.. स्टार चैनल को यहाँ पर अपने हिंदी चैनल शुरू करने पड़े.. यहाँ तक की माइक्रोसॉफ्ट और गूगल भी हिंदी पर उतर आये.. यही है अपना इंडिया..

तो फंडा ये है कि हमारे द्वारा पहने गए कपडे या बोली हमें परिभाषित नहीं करती.. ज़रूरी है मन का भारतीय होना.. अगर कोई आकर के हमसे पता पूछ ले तो आज भी हम लोग बड़ी आत्मीयता से पता बताते है.. पानी पिलाते वक़्त हथेली पर गिलास रखते है.. खाना बनाते वक़्त गाय की रोटी अलग निकाली जाती है.. मंगलवार के व्रत अभी भी ख़त्म नहीं हुए.. एक्जाम्स टाईम्स पर अब भी भगवान् का कंप्यूटर हैंग हो जाता है.. काजल का टीका तो अब भी बच्चो के गालो पर लगा होता है.. खाने के बाद पान आज भी हमारी फर्स्ट चोइस होती है.. हाथो पर बंधी रोलिया अब भी दुआओ से सरोबार होती है.. शुभ काम पर आज भी सबसे पहले श्री गणेश लिखा जाता है.. अब भी क्रिकेट की आखिरी बाल तक एक टांग पे टांग रख के बैठे रहते है.. भले ही हम कितना भी मॉडर्न हो जाये पर दिल तो आख़िर हिन्दुस्तानी ही रहेगा..