Thursday, July 31, 2008

महँगाई की मार और चार ब्लॉगर (डा. अनुराग,रक्षंदा,अजीत जी और शिव कुमार मिश्रा)


नमस्कार दोस्तो महँगाई के इस जमाने में जहाँ आजकल एक दो ब्लॉगर ही लिख रहे है वहा पर एक ऐसी पोस्ट जहाँ आपको एक साथ कई सारे ब्लॉगर मिल जाए तो क्या बात है.. अजी आपकी इस डिमांड को ध्यान में रखते हुए हम लाए है एक ही पोस्ट में चार ब्लॉगर का मज़ा.. दरअसल महँगाई जो है वो मुझे बड़ा परेशान कर रही है.. तो मैने सोचा की अगर मुझे परेशान कर रही है तो औरो को भी कर रही होगी.. और औरो को वो किस प्रकार परेशान करेंगी ये सोचते हुए मैने आज की ये पोस्ट ठेल दी..


तो आइए देखिए की यदि महँगाई पर ये ब्लॉगर लिखते तो किस प्रकार लिखते.. सबसे पहले देखिए हमारे दिल की बात वाले अनुराग जी अगर महँगाई पर लिखते तो कुछ इस तरह से होती उनकी पोस्ट



सुबह सुबह जाट का एस एम एस मिला यार आज आ रहा हू दो घंटे का काम है फिर दिल्ली के लिए मेरी ट्रेन है तुझे थोड़ी देर के लिए टाइम हो तो मिलने आ जाना...." जाट के साथ मेरा रिश्ता कुछ ऐसा था की मैं उसे मना नही कर पाता था.. दोपहर को जाट का फोन आया मैं तेरी क्लिनिक के पास से ही बोल रहा हू तू आजा फिर साथ साथ स्टेशन चल लेंगे इसी बीच कुछ बात भी हो जाएगी.. मैने उससे कहा आता हू.. और बाहर आकर मैने टॅक्सी बुलाई.. टॅक्सी वाला आया लेकिन फिर जाने क्या सोच कर मैने ऑटो बुला ली.. रास्ते से जाट को लिया और स्टेशन की तरफ चल पड़े..जाट से बाते करते हुए मैं न जाने किन यादो में चला गया..

होस्टल की वो सर्दियो वाली रात थी.. सब कहने लगे की आज तो आर्या ही सबको चाय पिलाएगा..जाट भी उनमे शामिल हो गया.... बस फिर क्या जाट ने अपनी मोटर साइकल निकाली और हमने अपनी बिना स्टॅंड वाली हीरो पुक (तब तक पिताजी ने यामाहा नही दिलाई थी).. एक एक गाड़ी पर चार चार लोग सवार हो गए.. रात के दो बजे सब लोग पहुँचे रेलवे स्टेशन.. लारी के पास खड़े होकर ठंड से ठिठुरते हुए मैने कहा आठ चाय देना.. सब लोग ठंड में अपने हाथो को रगड़ कर गर्मी ला रहे थे.. इतने में पटेल बोला आर्या यार सिगरेट भी लेते हुए आना.. मैने चाय वाले से कहा एक गोल्ड फ्लेक का पेकेट देना चाय वाला पॅकेट थमाते हुए बोला.. सिविल हॉस्पिटल से आए हो क्या.. हम लोगो ने सिविल हॉस्पिटल को काफ़ी पोपुलर जो कर दिया था तब तक.. एक एक सिगरेट सबने हाथ में ले ली थी.. अब तक चाय भी आ चुकी थी.. दोस्तो की फरमाइश पे कुछ शेर भी सुना दिए.. जाट ने अपना पसंदीदा गाना सुनाया.. और स्टेशन पर ही खड़े खड़े कब सुबह हो गयी पता ही नही चला.. अचानक ऑटो का ब्रेक लगा.. मैने जाट को देखा उसने कहा यार आर्या बहुत दिनों से तूने चाय नही पिलाई.. मैने साइड से अपने पर्स को निकाल कर देखा और जाट से कहा "यार आज नही, आज क्लिनिक में पेशेंट ज़्यादा है.. इतना बोल के मैं ऑटो से उतर कर आ गया..

खींच के लाती है
चाय की खुशबु उन
पुरानी थडियो पर
जहाँ यार दोस्तो के साथ
फेफड़ो को जलाते हुए
दो सुट्टे मार लिया करते थे
मगर अब जाने कितनी शब
गुज़र चुकी है
कोई सुट्टा नही लगा.. चाय
भी नही पिलाता कोई
एक कटिंग पाँच रुपये की
जो हो गयी है..
मैं कितना भी बाँधने
की कोशिश कर लू इसे
मगर फिर भी
उचक कर फलक के
माथे को चूम लेती है
ये महँगाई..




आइए अब चलते है दूसरे ब्लॉगर की जानिब (तरफ).. अरे क्या कह रहे है आप समझ गये? हा समझेंगे ही फोटो जो लगा रखी है हमने.. अगर महँगाई की मार के बारे में हमारी रख़्शंदा जी को कुछ लिखना होता तो वो किस तरह लिखती..



महँगाई को लेकर सियासी घमासान अपने शबाब पर है,इसी बहाने अपनी अपनी सियासी रोटियां फिर से ताज़ा करने का मौका सब को मिल गया है. विदेशी ब्रांड हमारे वतन के नौजवानो के ताजस्सुस(रोमांच) का बाएस(कारण)बन रहे है.. मगर इन ब्रांडेड कपड़े पहनने वालो से कोई पूछे की रोज़ मर्रा(दैनिक)की ज़रूरतो को ये कैसे मुक्कमल(पूर्ण)कर पाएँगे.. जब की महँगाई अपने पूरे शबाब(चरम) पर है..

शायद ये नौजवान इस बढ़ती महँगाई से बेनियाज़ (बेपरवाह) है अभी.. या फिर ये किसी माव्राई (आसमानी) दुनिया से ताल्लुक (सम्बन्ध) रखते है जिन्हे लगता है की महँगी सिर्फ़ मुफ़लिसी(ग़रीबी) में जी रहे लोगो के लिए ही है.. और इनके लिए नही..

मैं हमारी क़ौम के भाइयो से भी यही इल्तेजा(विनती)करूँगी की इन कीमती(महँगी)और गैर वतनी(विदेशी) चीज़ो का इस्तेमाल (उपयोग) बंद करके हमारे वतन की चीज़े इस्तेमाल करे ताकि हमारा पैसा हमारे वतन में ही रहे और हमारी आवाम(जनता) की खुशहाली और तरक्की (उन्नति)में काम आए..

हालाँकि मैं भी कोई आसमानी मखलूक (जीव) या पैगम्बर (अवतार) नही हू मैं भी कोशिश कर रही हू हमारे वतन को महँगाई से आज़ाद (मुक्त)कराने के लिए.. और मैं ये करके ही रहूंगी..


शायर ने ऐसे ही लोगों के लिए ही तो कहा है….वो जिन के होते हैं, खुर्शीद(सूरज) आस्तीनों में,
उन्हें कहीं से बुलाओ,, बिज़ली महँगी हो गयी है….





शब्द कहा से आते है कहा जाते है.. कौन लाता है कौन छोड़ के आता है.. इन सब बातो से हमारा परिचय करवाने वाले.. और बकलम खुद के लिए प्रसिद्ध ब्लॉगर, और ब्लॉग शब्दो का सफ़र के लेखक अजीत जी अगर अपने शब्दो के सफ़र में महँगाई शब्द लाते तो किस प्रकार बनती उनकी पोस्ट आइए हम जायजा लेते है..



हँगाई, देश में बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर कोई इस से परिचित है.. कहने को तो ये शब्द हमारे देश में ही अधिक प्रचलित है किंतु इस शब्द की मूल उत्पति चीन में हुई थी.. चीनी भाषा के शब्द 'महन+गाई' से मिलकर बना है ये शब्द.. चीनी भाषा में महन गाई का अर्थ होता है जीवन भर साथ रहना.. लुगाई में भी जो गाई शब्द है वो इसी का परिचायक है.. लुगाई भी जीवन भर साथ में ही रहती है और महँगाई भी..
फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है की लुगाई सबकी अलग होती है मगर महँगाई एक ही होती है.. गायब का 'गाय' भी महन गाई के गाई का छोटा भाई है.. क्योंकि महँगाई आने के बाद जेब से पैसा गायब हो जाता है.. गाय का दूध भी महँगा हो जाता है..
यू रूसी भाषा में महँगाई के लिए 'शिकाकाई' शब्द अधिक प्रचलित है इसके अंत में भी 'ई' स्वर उत्पन्न होता है जो महँगाई के अंत में भी है.. और इसके बढ़ने पर लोगो के मुख से भी यही स्वर निकलता है..

ह शब्द मनोज कुमार की फ़िल्मो में भी लोकप्रिय है.. जैसे की आपने वो गीत सुना हो.. "बाकी जो बचा था तो महँगाई मार गयी"


आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली कड़ी 'रुसवाई' को सभी साथियों ने पसंद किया और उत्साहवर्धन किया इनमें सर्वश्री उड़न तश्तरी ,दिनेशराय द्विवेदी, कुश एक खूबसूरत ख्याल, अभिषेक ओझा,शिव कुमार मिश्रा, मीनाक्षी, बाल किशन, राज भाटिय़ा हैं। निश्चित ही आपक सबकी प्रतिक्रियाओं से मुझे अपने काम के लिए और ऊर्जा और बल मिला है। आप सबका आभार।




अब बारी है नीरज जी के शब्दो में "राम और श्याम" की जोड़ी वाले श्याम की जो डॉक्टरो के लिखे प्रेम पत्रो का अनुवाद करवाते रहते है.. हा जी ठीक समझे आप ब्लॉग जगत के जोड़ी ब्लॉग पर लिखने वाले शिव कुमार मिश्रा जी..
तो आइए देखते है महँगाई की मार पर कैसी होती शिव कुमार मिश्रा जी की पोस्ट..



- क्या बात कर रहे है आप? महँगाई फिर बढ़ गयी?
- और नही तो क्या? ये तो लगता है हनुमान जी की पूँछ हो गई है
- अजी पूंछ भी होती तो रुक जाती.. मगर ये तो रुक ही नही रही
- तो फिर क्या किया जाए
- क्या कर सकते है?
- अरे आप तो बहुत कुछ कर सकते है..
- जैसे
- और कुछ नही तो एक चिरकूट चिंतन कर डाले
- अरे नही मन नही है
- तो फिर ये काम दुसरे से करवा लीजिए
- दूसरा? मुरली वाला या हरभजन वाला?
- अजी आपका दूसरा साथी जो है
- कौन सा साथी? अच्छा ज्ञान भैया की बात कर रहे हो.. नही यार वो तो खुद इस महँगाई से परेशान है सारे टॉपिक महँगे हो गये उन्हे मिल नही रहे है
- अरे आप भी न.. दूसरा से मेरा मतलब बाल किशन जी से है.. वो तो आते रहते है आपके ऑफीस
- हा मगर आजकल नही आते
- क्यो
- बस का किराया जो बढ़ गया है..
- ओह तो ये बात है मेल पर मंगवा लीजिए
- लेकिन वो भी परेशान है मेल नही करेंगे
- क्यो
- अरे उनके छोटे बेटे ने उनकी बनियान पहनने से मना कर दिया है.. कहता है नयी दिलाओ ये नही पहनूंगा,
- काफ़ी पुरानी होगी
- अरे नही बच्चो का नाटक है अपने बाल किशन जी ने वो ही बनियान 3 साल तक पहनी थी अब उनके बेटे को 2 साल में ही पुरानी लगने लगी..
- ओह ये तो परेशानी वाली बात है.. इसीलिए आजकल वो नज़र नही आते
- अरे महँगाई की मार ने अच्छे अच्छो को गायब कर दिया है ये बाल किशन क्या चीज़ है...


तो दोस्तो देखा आपने किस तरह एक ही पोस्ट में चार चार ब्लॉगरो को समेट लिया है हमने.. आगे भी यूही आते रहेंगे.. महँगाई का ज़माना है अलग अलग ब्लॉग में खर्चा ज़्यादा होता है न.. अभी चलता हू.. इजाज़त दीजिए..

Tuesday, July 29, 2008

कॉफी विद कुश.. (आठवाँ एपिसोड) एक नये रूप में..

नमस्कार दोस्तों,
अगर आपने नही देखा है अब तक 'काफ़ी विद कुश' का आठवाँ एपिसोड तो फ़िर बिना देर किए जल्दी से यहाँ क्लिक कीजिये और देखिये
काफ़ी विद कुश का अगला एपिसोड

Thursday, July 24, 2008

ब्लॉग कॉफी विद कुश एक नये रूप में

नमस्कार दोस्तो
सबसे पहले तो आप सबने 'कॉफी विद कुश' को जो आपार स्नेह दिया है उसके लए हार्दिक आभार.. आप सभी के आशीर्वाद से इस सोमवार से कॉफी विद कुश आपको एक नये रूप में दिखेगा.. तो इंतेज़ार करिएगा इस सोमवार का..

पिछले एपिसोड में हमने आपको मिलवाया था लावन्या जी से.. और इस बार फिर हम लेकर आ रहे है एक और जाने माने ब्लॉगर को आपसे मिलवाने जी हा दोस्तो मैं बात कर रहा हू 'नीरज गोस्वामी जी' की.. जो अपनी ग़ज़लो से ब्लॉग जगत में रूमानियत भरते आए है..

आपके सवाल : तो देर किस बात की जल्दी से लिख भेजिए आपके सवाल जो आप पूछना चाहते है नीरज जी से..

असुविधा के लिए खेद है : दो दिन तक आप ब्लॉग कॉफी विद कुश नही देख पाएँगे, आंतरिक साज़ सज्जा हेतु दो दिनों के लिए इस ब्लॉग को निजी रखा गया है.. सोमवार सुबह से आप इसे एक नये रूप में दोबारा देख पाएँगे..

Wednesday, July 23, 2008

एक रात में 'पहली रात' की बात

पिछली गर्मियो की बात है.. देर रात अचानक लाइट चली गयी थी.. काफ़ी देर गर्मी से जद्दोजहद करने के बाद मैं छत पर चला गया.. बहुत दिनो बाद उपर देखा था.. सब कुछ इतना रोमांटिक लग रहा था की सोचा कुछ लिखा जाए,और शादी के बाद की पहली रात से ज़्यादा भला और क्या रोमांटिक होगा.. तो जो लिखा वो अब आप सबके सामने है..



गीली गीली ले जा कर
टांग दी थी उजाले पर
पहली थी ना...
इसलिए शायद...

इतना संभाला था..
वरना...

रोशनी सी तुम आई थी कमरे में
झीने घूँघट में सुहानी लगी थी
आज जो देखा तुमको..
पहली बार तस्वीर से तुम बाहर थी

बड़े पलंग की आधी जगह
में दोनो समा गये थे..

बंद आँखें किए, तुम्हारी
बातें सुनता रहा..
एक एक बात दिल तक उतरती
जा रही थी..

इतने में जुल्फे तुम्हारी
गिर पड़ी मेरी आँखो पर
और रेशमी हाथो से तुमने
उनको संभाला फिर से...

गोद में तुम्हारी सर रख कर
दुनिया से बेख़बर हो गया
कहाँ से तिनका लायी थी तुम
मेरे कानो में डालकर सताने लगी

अच्छा अच्छा..
तुम्हारी हर बात पर
मेरा सिर्फ़ यही, कहना होता था

कैसे सहलाया था तुमने
उंगलियो के पोरो से मेरे गालो को
लगा जैसे समंदर किनारे
रेत पर टहल लिए हो पल दो पल...

बिंदिया चूड़ी कंगन..
सब उतार दिए मैने
अब तुम ख़ूबसूरत थी...
पहले से ज़्यादा

जाने कहा से चादर के बीच
पड़ा इक गुलाब आ गया हाथो में
बेचारा! तुम्हारी महक के आगे
शर्मशार हो गया...

रात भर अलाव की गर्मी
बिस्तर पर बिखरती रही...
होंटों ने आज आराम किया था
बहुत...

आँखें ही आँखो से
बतियाती रही...
नींद भी परेशान थी करवट ले लेकर
अपने मंसूबो में कामयाब नही हुई...

घड़ी की सुइयो के साथ
तुम्हारी उंगलिया भी मेरी
ज़ुल्फ़ो में फिरती रही...
और

गीली गीली ले जा कर
टांग दी थी जो उजाले पर
उस रात की बूँदे
ज़मी पर गिरती रही....

Tuesday, July 22, 2008

काफ़ी विद कुश का अगला एपिसोड

नमस्कार दोस्तों,
अगर आपने नही देखा है अब तक 'काफ़ी विद कुश' का सांतवा एपिसोड तो फ़िर बिना देर किए जल्दी से यहाँ क्लिक कीजिये और देखिये

Friday, July 18, 2008

कहानी एक पतंग की..

आज सुबह समीर जी की पतंग वाली पोस्ट पढ़ी... तो अपनी लिखी एक रचना याद आ गयी.. तो सोचा क्यो ना आपको पढ़वा दी जाए.. ये कहानी भी एक पतंग की ही है



रोज़ गगन में हज़ारो पतंग
के साथ वो भी उड़ती थी..
लहराती मचलती.. आसमानो से
बातें करती हुई...

इक डोर थी जो उसको थामे रखती थी
डोर से बंधी वो पतंग..
ऊँचाइयो में गोते लगा कर
लौट आती थी...

इक शाम एक एक कर सारी
पतंगे उतर गयी थी...
इक्का दुक्का पतंगे थी
और वो भी बहुत दूर..

अचानक कही से एक पतंग आई
काले माँझे वाली...
उसके इरादे कुछ नेक नही लगे
वो गोते खाने लगी..

पतंग उलझ पड़ी काले
माँझे से.. पूरा दम लगाया
डोर ने भी हिम्मत ना हरी
काले माँझे से पतंग को छुड़ाया

काल माँझा भी कहा हारता
फिर से लौटा... और ऊपर गिरा पतंग के
.. बेचारी पतंग दर्द से
छ्ट-पटा उठी..

रोई, गिडगिड़ाई, मगर काले माँझे
का दिल नही पिघला..
लहुलुहान सी पतंग हो गयी बेचारी
और अपनी हिम्मत हारी..

थकि प्यासी.. निढाल सी
हो चली थी.. वो पतंग
शाम की सर्द हवाओ में
कोयले सी जली थी..वो पतंग

जिसके भरोसे ऊँची उड़ान भरी थी
वो डोर तो कब की टूट चुकी थी..
काले मॅन के मांझो की दुनिया में
एक और पतंग लुट चुकी थी...

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Thursday, July 17, 2008

कॉफी विद कुश के अगले एपिसोड में मिलिए...

नमस्कार दोस्तो

'कॉफी विद कुश' के पिछले एपिसोड में आपकी मुलाकात हुई थी अरुण पंगेबाज जी से.. इस बार हम आपको मिलवाने जा रहे है हमारे ही बीच की एक महिला ब्लॉगर से.. इनके पुराने क़िस्सो की बात होती है तो लोग बड़े चाव से पढ़ते है.. खुद मुझे इनकी ब्लॉग पर नयी पोस्ट का इंतेज़ार रहता है.. जयपुर की महारानी की बात हो.., अमिताभ बच्चन या लता दीदी की बात इनके पास हर एक की डायरी है.. ब्लॉग जगत में इन्हे 'लावण्या दी' के नाम से जाना जाता है.. जी हा दोस्तो में बात कर रहा हू ब्लॉग 'लावन्यम अंतर्मन' की लेखिका 'लावण्या जी' की.. तो देखना मत भूलिएगा..

'कॉफी विद कुश' का अगला एपिसोड दिनांक 21 जुलाई सोमवार को..

और हा लिख भेजिए आपके सवाल जो आप 'लावण्या जी' से पूछना चाहते है

एक नए ब्लॉग "५० प्रतिशत " हेतु मेरा लेख

५० % हिन्दी ब्लॉग जगत में एक नयी शुरुआत॥ आम तौर पर देखा गया है की नारी मुद्दो पर जब बात की जाती है तो वो अपना मूल विचार त्याग कर एक बहस का रूप ले लेती है॥ कही पर पुरुष तत्व हावी हो जाता है तो कही पर स्त्री॥ दोनो ही अपना पक्ष सही ठहराते है॥ और ये ठीक भी है क्योंकि दोनो का ही अपना अलग नज़रिया होता है॥ जिस तरह से किसी भी स्थिति को एक स्त्री देखती है पुरुष वैसे नही देख पाता॥ इसमे ग़लती किसी एक की नही है॥ जन्म के वक़्त किसी में इतनी समझ नही होती की वो लड़का है या लड़की.. ये सब धीरे धीरे उसे पता चलता है.. और बचपन से जवानी तक पहुँचते पहुँचते एक अदृश्य दीवार लड़के और लड़की के बीच खड़ी हो जाती है.. जिसके एक पार पुरुष होता है और दूसरी तरफ़ नारी..
इन बढ़ती बहस को तो हम सभी लोग देखते भी है.. कुछ लोग इनमे हिस्सा लेते है अपनी बात कहते है.. कुछ लोग सिर्फ़ पढ़ते है और निकल जाते है.. नारी या चोखेर बाली ब्लॉग पर यदि हम देखे तो इन पर जो कॉमेंट आते है वो बहस को कही और ले जाते है.. कुछ लेख में इस तरह की बात होती है की पुरुष वर्ग नाराज़ हो जाता है,और किसी टिप्पणी में ऐसी की स्त्री वर्ग नाराज़ हो जाता है.. सब एक दूसरे को जवाब देने की होड़ में लग जाते है.. परंतु इसके मूल तत्व में जाने का प्रयास कोई नही करता..
मैं सिर्फ़ अपनी सोच की बात करूँगा जो मेरा सोचना है मैं बस वही लिख रहा हू.. दरअसल सारे फ़साद की जड़ हमारे ही द्वारा बनाया हुआ समाज है.. जिसके अपने कुछ उसूल है, अपने नियम है.. आशिक्षा सबसे बड़ी रुकावट है इसमे.. जन्म से ही लड़की को सिखा दिया जाता है की फला काम तुम्हारा नही.. ये काम लड़को का है.. ठीक इसी तरह लड़को को भी पता होता है कौनसा काम उनका है और कौनसा लड़कियो का.. और बस इसी को नियम बनाकर सब चलते रहते है..
समाज का कहना है की ये सब नियम हमारे बुज़ुर्गो ने बनाए है तो कुछ सोच समझ कर ही बनाए होंगे.. हो सकता है, सोच समझ के बनाए गये हो पर वो तब की बात थी आज वक़्त अलग है.. हालाँकि आज पुरुष स्त्री मतभेद अनुपात कम हुआ है.. लेकिन फिर भी इसे एक अच्छी स्थिति नही कहा जा सकता..
कुछ लोगो का कहना है की स्त्रियो को भी पुरुषो के बराबर का अधिकार मिले.. पर मेरी सोच अलग है मेरा मानना है की दोनो को समान अधिकार मिले ना पुरुष को नारी के बराबर और ना ही नारी को पुरुष के बराबर. बस दोनो को बराबर मिले.. और किसी से भी अपने अधिकार ना तो माँगे जाते है और ना ही छीने जाते है.. अधिकार अभी भी हमारे पास है बस देर है तो जागरूक होने की.. बस आवश्यकता है तो एक सार्थक सोच की.. जो की शिक्षा के माध्यम से मिल सकती है..
यदि एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे तो इससे कुछ हासिल होने के बजाय स्त्री और पुरुष एक दूसरे से और दूर होते जाएँगे.. जो की प्रकृति के ही विरुद्ध है.. 'एकता में शक्ति है' हम सभी जानते है.. अलग अलग मंच बनाने से अच्छा है एक ऐसा मंच हो जहा स्त्री पुरुष दोनो आपस में बात करे और किसी भी समस्या का निदान करे.. मैं जानता हू की ब्लॉग जगत में पुरुष नारी दोनो बराबर है.. तो कोई ये भी सोच सकता है की फिर इस तरह की सोच की आवश्यकता क्यो? परंतु साथ मिलकर चिंतन तो अवश्य किया जा सकता है.. यदि सभी साथ मिलकर चर्चा करे तो किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है.. फिर सदियो से हम यही सुनते आए है की स्त्री - पुरुष एक दूसरे के पूरक है.. तो दोनो साथ मिलकर रचना जी के शब्दो में 'एक सार्थक समाज और सार्थक भारत का नव निर्माण करे ।'
आशा है इस प्रयास आप सभी का सकारत्मक सहयोग मिलेगा॥

ब्लॉग देखने के लिए यहा क्लिक करे " 50 प्रतिशत "

Friday, July 4, 2008

कॉफी विद कुश के अगले मेहमान से पूछिए आपके सवाल

नमस्कार दोस्तो
'कॉफी विद कुश' के पिछले एपिसोड में आपकी मुलाकात हुई थी ऊडनतश्तरी ब्लॉग के लेखक समीर जी से.. इस बार हम आपको मिलवाने जा रहे है हमारे ही बीच की एक महिला ब्लॉगर से.. जो लगभग कई सारी कम्यूनिटी ब्लॉग्स से जुड़ी हुई है.. और हर ब्लॉग पर सक्रिय रूप से अपना योगदान दे रही है.. जी हा दोस्तो मैं बात कर रहा हू ब्लॉग 'कुछ मेरी कलम से' की लेखिका रंजना जी (रंजू) से.. तो देखना मत भूलिएगा..

'कॉफी विद कुश' का अगला एपिसोड दिनांक 07 जुलाई सोमवार को..

और हा लिख भेजिए आपके सवाल जो आप रंजना जी (रंजू) से पूछना चाहते है

तब तक के लिए स्वागत कीजिए एक और नये ब्लॉग का "अपनी खबर"

गंदे लोगो से छुडवाओ... पापा मुझको तुम ले जाओ

पापा आओ ना
अपनी प्यारी गुड़िया को
यहा से ले जाओ ना

नही रहना अब मुझे यहाँ
कैसे आप को करू बयाँ

रोती हू,बिलखती हू
ज़िंदगी से डरती हू
एक दिन मरते है सब
रोज़ रोज़ मैं मरती हू

कल रात गरम पानी
गिर गया मुझ पर,
ऐसा मेरी सास पड़ोसन
को कहती है,

कैसे जानोगे पापा
क्या क्या आपकी बेटी
सहती है,

नोंचते है गिद्ध दिन भर
रात को आता है दरिन्दा
सोचो पापा कैसे आपकी
गुड़िया अब रहेगी ज़िंदा,

पापा अब ना देर लगाओ
जल्दी से तुम आ जाओ
वरना कल ये खबर मिलेगी
एक रसोई फिर से जलेगी

कल फिर गैस का फटना होगा
मेरी गर्दन का कटना होगा
लोभी ये खूनी दरिंदे
लोग सभी है ये गंदे

गंदे लोगो से छुडवाओ
पापा मुझको तुम ले जाओ

Thursday, July 3, 2008

ज़िंदगी के तीन पहलु - कुश

कहते है ऊँचाइयो को
छूना है, तो नज़र आसमान
में होनी चाहिए..
इतनी देर से बीच सड़क
पे पड़ा हू.. लगता है
सबको यहाँ ऊँचाइयो को
छूना है॥

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आज सुबह वृद्धाश्रम
के बाहर एक लाश मिली है..
सुना है कल कोई छोड़ गया था..
रात भर ठंड से सिकुड के
मर गया..
पुलिस ने शिनाख्त की है
कोई लिहाफो का व्यापारी था..

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दाल में नमक नही होता
तो प्लेट फेंक देते थे..
आज बिना नमक की दाल
चुपचाप खा गये..
लगता है घोष बाबू अब
रिटायर हो गये है..

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Tuesday, July 1, 2008

टिप टिप टिप्पा के टिप्पणी चलाए.. .

कल शाम को घर जल्दी चले आए.. सोफे पे खुद को अड्जस्ट करके बैठे ही थे की घंटी बज गयी.. अब आप तो जानते ही है घंटी किसकी बजी थी.. हमने फोन उठाया, सामने से किसी के गाने की आवाज़ आई.. "टिप टिप टिप्पा के टिप्पणी चलाए.. सोच सोच लेखक भी खोपड़ी खुज़ाए.. अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह.. " हमे लगा कोई नेपाली रिंगटोन का ऑफर होगा हम काटने ही वाले थे की गाना ख़त्म हुआ.. हमने कहा कौन वो बोले हम है टिप्पणी दाता.. टिप्पणी दाता? हमने कहा कौनसी टिप्पणी और कैसी टिप्पणी.. उसने कहा जी मैने तो आपको टिप्पणी देने के लिए फोन लगाया था.. हमने कहा भैय्या लेकिन किस बात की टिप्पणी दे रहे हो.. वो बोला जी आपने अपनी ब्लॉग पे कुछ लिखा होगा उसी की.. हम बोले भैया ये ब्लॉग क्या होता है.. अब की बार उसकी आवाज़ में गुस्सा था.. वो बोला क्या तुम ब्लॉग के बारे में नही जानते.. हमने कहा ना तो हम जानते है ना ही जानने में हमारी कोई रूचि है.. उसने पलट के पूछा क्या आप कोई साहित्यकार हो? हम बोले भैया ये क्यो पूछा.. वो बोला नही बस यूही कन्फर्म कर रहा था..

हमने कहा लेकिन आप ऐसे कैसे बिना किसी को जाने पहचाने टिप्पणी दे रहे हो.. वो हंसा और बोला यही तो अपना काम है प्यारे, हमको कोई फ़र्क़ नही पड़ता सामने कौन है हम तो बस टीपिया देते है बिना देखे पढ़े.. ये सुनकर हमे आश्चर्य हुआ.. क्या बात कर रहे है आप? इस तरह से तो गड़बड़ हो जाती होगी.. उसने कहा काहें की गड़बड़.. बस ख्याल रखो की लिख क्या रहे हो.. हमने कहा आप क्या लिखते हो वो बोला एक रामबाण लाइन है कही भी सूट हो जाती है.. हमने कहा जैसे? वो बोले.. "बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.. बधाई" कहो कैसी रही उसने पुछा.. हमने कहा बात तो ठीक है श्रीमान जी. लेकिन अगर वो अभिव्यक्ति सुंदर ना हो तो? उसने कहा ना हो तो मेरी बला से, सान्नु की फर्क पैंदा है ? ..." बस टिप टिप टिप्पा के टिप्पणी चलाए.. सोच सोच लेखक भी खोपड़ी खुज़ाए.. अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह.."

हमने कहा भैया ये नेपाली गाना तो बढ़िया गाते हो आप.. धत ससुर का नाती ये नेपाली गाना नही ये तो टिप्पनीदाताओ का राष्ट्रगान है.. सारे टिप्पणी दाता यही गीत गाते है.. और बस टिप्पणी बजाते जाते है.. अच्छा तो इसका मतलब सारे लोग ऐसे ही टिप्पणी देते है.. अरे नही प्यारे हमारी कम्यूनिटी बहुत छोटी सी है.. हम कुछ एक लोग ही ऐसा काम करते है. हम बाकी के लोगो की तरह बेवकूफ़ नही है की पहले तो सबकी सारी पोस्ट पढ़ते फिरे.. फिर एक एक को अच्छे से टिप्पणी दे, अमाँ यार हम ये फ़िज़ूल काम करने के लिए थोड़े ही बैठे है.. हम तो बस पतली गली से एक आध टिप्पणी सरका के निकल लेते है..

हमे इस टिप्पणी दाता की बात कुछ ठीक नही लगी.. हमने उस से कहा भाई लेकिन एक बात सोचो कभी किसी ने कोई दुख भरी बात लिखी है और तुम उसपे सुंदर अभिव्यक्ति लिख दो तो उसको तो ठेस पहुँचेगी ही दोबारा क्या वो तुम्हे सम्मान की दृष्टि से देख पाएगा, वो बोला क्या मतलब? हमने कहा भाई जैसे को तैसा वाली बात तो तुमने सुनी ही है.. कोई तुम्हारी ब्लॉग पे भी तो आता होगा अगर तुम वहा अपने दादाजी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजली दो उन्हे और कोई वहा आकर टिप्पणी दे जाए की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बधाई.. तो कैसा लगेगा तुम्हे? वो चुप हो गया.. हमने कहा क्या सोच रहे हो प्यारे इतना अगर टिप्पणी देने में सोचो तो बढ़िया रहेगा.. जानता हू की ये थोड़ा मुश्किल होता है.. लेकिन एक बार टिप्पणी देने से पहले एक सरसरी निगाह ज़रूर डाल लेनी चाहिए.. कम से कम किसी और के दिल को ठेस तो ना पहुँचे..

वो बोला माफ़ करना भाईसाहब मैं लिंक बिल्डिंग और पेजरैंक की दौड़ में अँधा हो गया था.. मुझे बस यही लगता था की मेरी ब्लॉग पे भी लोग आए मुझे भी जाने मेरी ब्लॉग पे भी कमेंट हो.. मेरी भी पेज की रैंक सबसे ज़्यादा हो.. बस इसी चक्कर में टिपियाता गया बिना सोचे समझे.. आइन्दा में इस बात का ख़याल रखूँगा.. आपने मेरी आँखें खोल दी बहुत बहुत धन्यवाद आपका.. आगे से कम से कम एक निगाह तो देख ही लूँगा की पोस्ट किस सन्दर्भ में लिखी गयी है.. फिर टिप्पणी दूँगा दिल से..

हम मुस्कुराए वाह भाई अब बने ना तुम असली टिप्पनीदाता.. और अब वो गाना गाओ जो मैं तुम्हे बताता हू.. टिप टिप टिप्पा के टिप्पणी चलाए.. पढ़ पढ़ के लेखक भी मुस्कुराए.. अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह..

'कॉफी विद कुश में ऊडन तश्तरी '

दोस्तो स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' के चौथे एपिसोड में...
आज के जो हमारे मेहमान है वो ब्लॉग जगत की एक बहुत ही जानी मानी सख्शियत है.. जिनकी ब्लॉग पे हमेशा नयी पोस्ट का इन्तेज़ार लगा रहता है.. ब्लॉग जगत का जाना माना नाम.. जी हा दोस्तो मैं बात कर रहा हू ब्लॉग ऊडन तश्तरी के लेखक समीर जी की .. तो फिर देर किस बात की..
जल्दी से क्लिक कीजिए नीचे दिए गये लिंक पर.. देखने के लिए

कॉफी विद कुश का चौथा एपिसोड