नमस्कार दोस्तो महँगाई के इस जमाने में जहाँ आजकल एक दो ब्लॉगर ही लिख रहे है वहा पर एक ऐसी पोस्ट जहाँ आपको एक साथ कई सारे ब्लॉगर मिल जाए तो क्या बात है.. अजी आपकी इस डिमांड को ध्यान में रखते हुए हम लाए है एक ही पोस्ट में चार ब्लॉगर का मज़ा.. दरअसल महँगाई जो है वो मुझे बड़ा परेशान कर रही है.. तो मैने सोचा की अगर मुझे परेशान कर रही है तो औरो को भी कर रही होगी.. और औरो को वो किस प्रकार परेशान करेंगी ये सोचते हुए मैने आज की ये पोस्ट ठेल दी.. तो आइए देखिए की यदि महँगाई पर ये ब्लॉगर लिखते तो किस प्रकार लिखते.. सबसे पहले देखिए हमारे दिल की बात वाले अनुराग जी अगर महँगाई पर लिखते तो कुछ इस तरह से होती उनकी पोस्ट |
सुबह सुबह जाट का एस एम एस मिला यार आज आ रहा हू दो घंटे का काम है फिर दिल्ली के लिए मेरी ट्रेन है तुझे थोड़ी देर के लिए टाइम हो तो मिलने आ जाना...." जाट के साथ मेरा रिश्ता कुछ ऐसा था की मैं उसे मना नही कर पाता था.. दोपहर को जाट का फोन आया मैं तेरी क्लिनिक के पास से ही बोल रहा हू तू आजा फिर साथ साथ स्टेशन चल लेंगे इसी बीच कुछ बात भी हो जाएगी.. मैने उससे कहा आता हू.. और बाहर आकर मैने टॅक्सी बुलाई.. टॅक्सी वाला आया लेकिन फिर जाने क्या सोच कर मैने ऑटो बुला ली.. रास्ते से जाट को लिया और स्टेशन की तरफ चल पड़े..जाट से बाते करते हुए मैं न जाने किन यादो में चला गया..
होस्टल की वो सर्दियो वाली रात थी.. सब कहने लगे की आज तो आर्या ही सबको चाय पिलाएगा..जाट भी उनमे शामिल हो गया.... बस फिर क्या जाट ने अपनी मोटर साइकल निकाली और हमने अपनी बिना स्टॅंड वाली हीरो पुक (तब तक पिताजी ने यामाहा नही दिलाई थी).. एक एक गाड़ी पर चार चार लोग सवार हो गए.. रात के दो बजे सब लोग पहुँचे रेलवे स्टेशन.. लारी के पास खड़े होकर ठंड से ठिठुरते हुए मैने कहा आठ चाय देना.. सब लोग ठंड में अपने हाथो को रगड़ कर गर्मी ला रहे थे.. इतने में पटेल बोला आर्या यार सिगरेट भी लेते हुए आना.. मैने चाय वाले से कहा एक गोल्ड फ्लेक का पेकेट देना चाय वाला पॅकेट थमाते हुए बोला.. सिविल हॉस्पिटल से आए हो क्या.. हम लोगो ने सिविल हॉस्पिटल को काफ़ी पोपुलर जो कर दिया था तब तक.. एक एक सिगरेट सबने हाथ में ले ली थी.. अब तक चाय भी आ चुकी थी.. दोस्तो की फरमाइश पे कुछ शेर भी सुना दिए.. जाट ने अपना पसंदीदा गाना सुनाया.. और स्टेशन पर ही खड़े खड़े कब सुबह हो गयी पता ही नही चला.. अचानक ऑटो का ब्रेक लगा.. मैने जाट को देखा उसने कहा यार आर्या बहुत दिनों से तूने चाय नही पिलाई.. मैने साइड से अपने पर्स को निकाल कर देखा और जाट से कहा "यार आज नही, आज क्लिनिक में पेशेंट ज़्यादा है.. इतना बोल के मैं ऑटो से उतर कर आ गया..
खींच के लाती है
चाय की खुशबु उन
पुरानी थडियो पर
जहाँ यार दोस्तो के साथ
फेफड़ो को जलाते हुए
दो सुट्टे मार लिया करते थे
मगर अब जाने कितनी शब
गुज़र चुकी है
कोई सुट्टा नही लगा.. चाय
भी नही पिलाता कोई
एक कटिंग पाँच रुपये की
जो हो गयी है..
मैं कितना भी बाँधने
की कोशिश कर लू इसे
मगर फिर भी
उचक कर फलक के
माथे को चूम लेती है
ये महँगाई..
आइए अब चलते है दूसरे ब्लॉगर की जानिब (तरफ).. अरे क्या कह रहे है आप समझ गये? हा समझेंगे ही फोटो जो लगा रखी है हमने.. अगर महँगाई की मार के बारे में हमारी रख़्शंदा जी को कुछ लिखना होता तो वो किस तरह लिखती.. |
महँगाई को लेकर सियासी घमासान अपने शबाब पर है,इसी बहाने अपनी अपनी सियासी रोटियां फिर से ताज़ा करने का मौका सब को मिल गया है. विदेशी ब्रांड हमारे वतन के नौजवानो के ताजस्सुस(रोमांच) का बाएस(कारण)बन रहे है.. मगर इन ब्रांडेड कपड़े पहनने वालो से कोई पूछे की रोज़ मर्रा(दैनिक)की ज़रूरतो को ये कैसे मुक्कमल(पूर्ण)कर पाएँगे.. जब की महँगाई अपने पूरे शबाब(चरम) पर है..
शायद ये नौजवान इस बढ़ती महँगाई से बेनियाज़ (बेपरवाह) है अभी.. या फिर ये किसी माव्राई (आसमानी) दुनिया से ताल्लुक (सम्बन्ध) रखते है जिन्हे लगता है की महँगी सिर्फ़ मुफ़लिसी(ग़रीबी) में जी रहे लोगो के लिए ही है.. और इनके लिए नही..
मैं हमारी क़ौम के भाइयो से भी यही इल्तेजा(विनती)करूँगी की इन कीमती(महँगी)और गैर वतनी(विदेशी) चीज़ो का इस्तेमाल (उपयोग) बंद करके हमारे वतन की चीज़े इस्तेमाल करे ताकि हमारा पैसा हमारे वतन में ही रहे और हमारी आवाम(जनता) की खुशहाली और तरक्की (उन्नति)में काम आए..
हालाँकि मैं भी कोई आसमानी मखलूक (जीव) या पैगम्बर (अवतार) नही हू मैं भी कोशिश कर रही हू हमारे वतन को महँगाई से आज़ाद (मुक्त)कराने के लिए.. और मैं ये करके ही रहूंगी..
शायर ने ऐसे ही लोगों के लिए ही तो कहा है….वो जिन के होते हैं, खुर्शीद(सूरज) आस्तीनों में,
उन्हें कहीं से बुलाओ,, बिज़ली महँगी हो गयी है….
शब्द कहा से आते है कहा जाते है.. कौन लाता है कौन छोड़ के आता है.. इन सब बातो से हमारा परिचय करवाने वाले.. और बकलम खुद के लिए प्रसिद्ध ब्लॉगर, और ब्लॉग शब्दो का सफ़र के लेखक अजीत जी अगर अपने शब्दो के सफ़र में महँगाई शब्द लाते तो किस प्रकार बनती उनकी पोस्ट आइए हम जायजा लेते है.. |
महँगाई, देश में बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर कोई इस से परिचित है.. कहने को तो ये शब्द हमारे देश में ही अधिक प्रचलित है किंतु इस शब्द की मूल उत्पति चीन में हुई थी.. चीनी भाषा के शब्द 'महन+गाई' से मिलकर बना है ये शब्द.. चीनी भाषा में महन गाई का अर्थ होता है जीवन भर साथ रहना.. लुगाई में भी जो गाई शब्द है वो इसी का परिचायक है.. लुगाई भी जीवन भर साथ में ही रहती है और महँगाई भी..
फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है की लुगाई सबकी अलग होती है मगर महँगाई एक ही होती है.. गायब का 'गाय' भी महन गाई के गाई का छोटा भाई है.. क्योंकि महँगाई आने के बाद जेब से पैसा गायब हो जाता है.. गाय का दूध भी महँगा हो जाता है..
यू रूसी भाषा में महँगाई के लिए 'शिकाकाई' शब्द अधिक प्रचलित है इसके अंत में भी 'ई' स्वर उत्पन्न होता है जो महँगाई के अंत में भी है.. और इसके बढ़ने पर लोगो के मुख से भी यही स्वर निकलता है..
यह शब्द मनोज कुमार की फ़िल्मो में भी लोकप्रिय है.. जैसे की आपने वो गीत सुना हो.. "बाकी जो बचा था तो महँगाई मार गयी"
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली कड़ी 'रुसवाई' को सभी साथियों ने पसंद किया और उत्साहवर्धन किया इनमें सर्वश्री उड़न तश्तरी ,दिनेशराय द्विवेदी, कुश एक खूबसूरत ख्याल, अभिषेक ओझा,शिव कुमार मिश्रा, मीनाक्षी, बाल किशन, राज भाटिय़ा हैं। निश्चित ही आपक सबकी प्रतिक्रियाओं से मुझे अपने काम के लिए और ऊर्जा और बल मिला है। आप सबका आभार।
अब बारी है नीरज जी के शब्दो में "राम और श्याम" की जोड़ी वाले श्याम की जो डॉक्टरो के लिखे प्रेम पत्रो का अनुवाद करवाते रहते है.. हा जी ठीक समझे आप ब्लॉग जगत के जोड़ी ब्लॉग पर लिखने वाले शिव कुमार मिश्रा जी.. तो आइए देखते है महँगाई की मार पर कैसी होती शिव कुमार मिश्रा जी की पोस्ट.. |
- क्या बात कर रहे है आप? महँगाई फिर बढ़ गयी?
- और नही तो क्या? ये तो लगता है हनुमान जी की पूँछ हो गई है
- अजी पूंछ भी होती तो रुक जाती.. मगर ये तो रुक ही नही रही
- तो फिर क्या किया जाए
- क्या कर सकते है?
- अरे आप तो बहुत कुछ कर सकते है..
- जैसे
- और कुछ नही तो एक चिरकूट चिंतन कर डाले
- अरे नही मन नही है
- तो फिर ये काम दुसरे से करवा लीजिए
- दूसरा? मुरली वाला या हरभजन वाला?
- अजी आपका दूसरा साथी जो है
- कौन सा साथी? अच्छा ज्ञान भैया की बात कर रहे हो.. नही यार वो तो खुद इस महँगाई से परेशान है सारे टॉपिक महँगे हो गये उन्हे मिल नही रहे है
- अरे आप भी न.. दूसरा से मेरा मतलब बाल किशन जी से है.. वो तो आते रहते है आपके ऑफीस
- हा मगर आजकल नही आते
- क्यो
- बस का किराया जो बढ़ गया है..
- ओह तो ये बात है मेल पर मंगवा लीजिए
- लेकिन वो भी परेशान है मेल नही करेंगे
- क्यो
- अरे उनके छोटे बेटे ने उनकी बनियान पहनने से मना कर दिया है.. कहता है नयी दिलाओ ये नही पहनूंगा,
- काफ़ी पुरानी होगी
- अरे नही बच्चो का नाटक है अपने बाल किशन जी ने वो ही बनियान 3 साल तक पहनी थी अब उनके बेटे को 2 साल में ही पुरानी लगने लगी..
- ओह ये तो परेशानी वाली बात है.. इसीलिए आजकल वो नज़र नही आते
- अरे महँगाई की मार ने अच्छे अच्छो को गायब कर दिया है ये बाल किशन क्या चीज़ है...
तो दोस्तो देखा आपने किस तरह एक ही पोस्ट में चार चार ब्लॉगरो को समेट लिया है हमने.. आगे भी यूही आते रहेंगे.. महँगाई का ज़माना है अलग अलग ब्लॉग में खर्चा ज़्यादा होता है न.. अभी चलता हू.. इजाज़त दीजिए.. |