Tuesday, September 30, 2008

देवता का विमान अभी भी ब्लोगाश्रम पर मंडरा रहा है

स्टाइल साभार - पुस्तक मरीचिका (लेखक - ज्ञान चतुर्वेदी)
कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)


थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..


पूर्व में हमने देखा ब्लॉग जगत के देवता, उसके विमान, सोंटाधारी का सोंटा और ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..



गुरुजी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसाए बैठे है.. देवता का विमान हवा में हिचकोले खा रहा है.. सोंटाधारी का सोंटा उसके बलिष्ठ कंधो पर ससम्मान विराजित है.. भगवान भुवन भास्कर भी धरा पर पहुँच चुके है.. उनकी किरणे भी डरी सहमी दबे कदमो से ब्लॉग जगत में प्रवेश कर रही है.. कुछ पुरानी किरणे उबासी लेते हुए उतर रही है..लगता है रात्रि मदिरालय में ही शय्यासीन थी.. कुछ नयी किरणे सहम सहम के ब्लॉगजगत को प्रकाशित कर रही है.. चहू और आनद ही आनद व्याप्त है..



सोंटाधारी के पावन करो से सोंटे खाने को आतुर ब्लॉगर गण अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे है.. कदाचित अगला सोंटा उनके ही कपाल पर सुशोभित न हो जाए..

गुरुजी गौर से किसी का ब्लॉग पत्र देख रहे है.. लगता है अब किसी भी बारी आ सकती है..

"कौन है ये गर्धभपुत्र? गुरुजी आक्रोशित हो उठे.. "

सोंटाधारी ने अपना सोंटा वायु में घुमाया.. आस पास दो चार मक्खिया भिनभिना रही थी जो घबरा उठी.. और सोंटाधारी को गालिया देती हुई उड़ गयी..

"कौन है ये अबूझनदास? "

जिस कुटिया में एकलदास जी को कुछ देर पूर्व ले जया गया था उसी दिशा में द्रष्टि धरे अबूझनदास खड़ा हुआ..

"हमसे क्या भूल हुई.. गुरुजी?"

"भूल? क्या ये भूल है? ऐसी भूल के लिए तो तुम्हे उस स्थान पर शूल चुभाने चाहिए जो तुम वैध जी को भी नही दिखा सको.."

"ऐसा क्या अनर्थ हुआ प्रभो?"

"तुमने अबोधराम के ब्लॉग पत्र पर क्या टिप्पणी की?"

"प्रभु उसने एक अन्य ब्लॉगर के लेख पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी जो की ठीक नही थी.. उसने उस ब्लॉग पर लिखी गयी पोस्ट के बारे में ग़लत लिखा और इतना ही नही ब्लॉगर का नाम और पोस्ट का लिंक तक लगा दिया.. "

"अबे! तो इसमे तेरे पुजनीय पिताश्री का क्या गया? एक बात बता तूने भी तो एक महिला के लेख का लिंक अपने ब्लॉग पत्र पर लगाया था और उसके नाम के साथ प्रकाशित किया था की बहुत सुंदर लिखा है.. स्मरण है की बुलाऊ सोंटाधारी को?"

सोंटाधारी के मुख मंडल पर मुस्कान बिखर आई..

अबूझनदास सहमे हुए बोला "परंतु गुरुजी मैने तो उसकी प्रशंसा की थी इसलिए लिंक लगाया.. अबोधराम ने तो आलोचना की.."

"तो मेरे प्यारे बंधु! क्या यहा पर प्रशंसाए लेने के लिए ही आते हो? यदि प्रशंसा बहुत प्रिय है तो आलोचनाए ग्रहण करना भी सीखो.. यदि प्रशंसा करने के लिए लिंक लगाया जा सकता है तो आलोचना करने के लिए भी लिंक लगाया जा सकता है.. अथवा कदाचित् प्रशंसा पाने के लिए ही आते हो यहा.." गुरुजी की वाणी में वेग अधिक था.

सोंटाधारी बूझ चुका था की इस अबूझनदास के साथ क्या करना है.. सोंटाधारी ने कुछ ही क्षणों में अबूझनदास के पृष्ठ भाग पर विभिन्न आयामो वाली ऐसी ऐसी कृतिया उकेरी की समस्त लोको के चित्रकार भी उनके आगे नतमस्तक हो जाए..

गुरुजी पुन अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुख घुसा के बैठ गये..

ये तो था ब्लॉगजगत की पावन धरा का दृश्य आइए देखे नभ में क्या चल रहा था..

देवता अभी अभी अपनी शय्या से गिरा.. विमान चालक ही ही ही करने लगा..

"क्षमा प्रभु एक अट्टालिका मध्य आ गयी थी.". विमान चालक मुस्कुराते हुए बोला

"कोई बात नही हो जाता है" उपरी स्तर पर यह कहते हुए देवता ने मन में विमान चालक को नाना प्रकार की गालियो से अलंकृत कर डाला..

" हो जाता है प्रभु हे हे हे! " विमान चालक ने अत्यंत ढीठता से कहा..

ब्लॉग जगत के उपर विमान चलाते रहने से ये गुण तो उसने सीख ही लिया था की कब बोलना है कब चुप रहना है और कब ढीठ बन जाना है.. और ढीठता भी ऐसी की जिसका किसी भी शास्त्र में कोई भी विवरण नही हो..

देवता को ज्ञात है की ये इस विमान चालक का प्रिय खेल है.. "छेड़ना"

विमान चालक अकारण ही देवता को छेड़ने के लिए विभिन्न प्रकार की हरकते करता रहता है.. जिससे की देवता खिन्न होकर उसे कुछ कहे और वो देवता को नरकलोक में गिरा सके..

परंतु हमारा देवता भी कम नही है... समस्त विमान चालक संगठन के एक एक कार्यकर्ता, देवता को नानाप्रकारो से विमान से गिराने का प्रत्यन कर चुके है परंतु देवता अपने पृष्ठ भाग को उचित रूप से चिपकाए हुए है विमान से..

आप भी तनिक अपना पृष्ठ भाग संभाल लीजिए कही कोई इस समय आपको गिराने के प्रयोजन में ना हो...

जारी

Thursday, September 25, 2008

ब्लोगाश्रम का सोंटाधारी...

स्टाइल साभार - पुस्तक मरीचिका (लेखक - ज्ञान चतुर्वेदी)
कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)


थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..


पूर्व में हमने देखा ब्लॉग जगत के देवता, उसके विमान और ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..



विमान ठीक ब्लोगाश्रम के ऊपर मंद गति से मंडरा रहा है.. कई दिवस हुए विमान के पुर्जो में तेल नही दे पाने से घर्र घर्र की मधुर ध्वनि वातावरण में सुशोभित हो रही है.. पक्षी विमान के पास आकर हेय दृष्टि से उसे देखकर जा रहे है.. एक नटखट पक्षी ने अभी अभी देवता के समीप अपनी दीर्घ शंका व्यक्त कर दी है..


देवता अपने पावन नेत्रो से उस पक्षी को खुन्नस अर्पित कर रहा है.. पक्षी देवता को अपने पृष्‍ठ भाग पे बची खुची शंका दिखाते हुए मुस्कुराता हुआ निकल चुका है..

देवता अपना चश्मा खोज रहा है.. आयु अधिक होने से दृष्टि कमजोर हो गयी है.. इतनी ऊंचाई से उचित दिखता नही है देवता को.. पुन: इस उँचाई से नीचे देवता विमान ले जा भी नही सकता..

क्या कहा आपने? क्यो नही ले जा सकता? अब मित्र बता तो रहे है किंचित संयम रखिये.. क्यो अकारण कथा के लंगोट में हाथ घुसा रहे है..

तो आपका प्रश्न था की देवता इस उँचाई से नीचे विमान क्यो नही ले जा सकता? इसका उत्तर ये है की कुछ दिवस पूर्व एक अन्य देवता इस उँचाई से विमान को तनिक नीचे ले गया था..उसी क्षण धरती से उर्ध्व दिशा में प्रकाश वेग से भी तीव्र गति से एक सोंटा आया और सीधा देवता के कपाल पर एक गुमडा सादर समर्पित कर गया..

बस तभी से देवता ने विमान को एक निश्चित उँचाई से नीचे नही ले जाने के लिए विमान चालक से विनती की है.. अब पुन ये प्रश्न मत कीजिएगा की विनती क्यो की.. यह हम आपको कथा के पूर्व में ही बता चुके है..

परंतु पाठक यदि प्रश्न भी ना पूछे तो वो पाठक ही क्या.. हमे विदित है की आपका अगला प्रश्न क्या है? आप यही पूछना चाह रहे है ना की वो सोंटा कहा से आया विमान में.. ?

तो चलिए हम श्रीमान सोंटेधारी से भी आपका परिचय करवा देते है..

कहा जाता है की इन्हे कभी बिना सोंटे के नही देखा गया.. पूरे ब्लॉग जगत में इन्हे लेकर भाँति भाँति की किवंदतिया फैली पड़ी है.. उनमे से ही एक हम उठाकर आपको बताते है की.. ये किसी से भी कभी भी भिड जाते है.. इनका मूल नाम तो किसी को नही ज्ञात परंतु ये ब्लॉगजगत में कही भी अनिष्ट देखते ही.. उस ब्लॉगर को एक सोंटे का प्रहार अर्पित कर आते है..

गुरुजी के आश्रम में इनका विशिष्ट स्थान है.. गुरुजी के आशीर्वाद से इन्होने अब तक नाना प्रकार की मुद्राओं में विविध स्थानो पर सोंटो का प्रहार किया है.. बस तभी से इनका नाम सोंटेधारी पड़ गया.. और इन्हे इनके वास्तविक नाम से कोई नही जानता.. कदाचित् इन्हे स्वयं भी अपना नाम स्मरण नही होगा..

अरे अरे मित्र.. इनके समीप जाने की चेष्ठा ना करे अन्यथा आपका पृष्‍ठ भाग इनके सोंटे की विजय गाथा में एक अध्याय और बढ़ा सकता है..

इन्हे इनके हाल पर छोड़कर हम आपको ले चलते है गुरूजी के समीप..

गुरुजी असुंदर जी को बिठाकर फिर से अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसा के बैठ गये..

"कौन है ये माँ का सपूत?" गुरुजी की वाणी में वेग अधिक था..

कुछ नये नये पास बनवाकर आए चेले काँप उठे.. वही कुछ पुराने अपने पास वालो से गुरुजी के विषय में कुछ यू कहने लगे..

"कुछ नही हुआ है. बुढऊ के रक्तचाप की गति उच्च निम्म होती रहती है.."

"हमने कहा कौन है ये माँ का सपूत?" ये मात्र उच्च रक्तचाप नही था..

"कौन है ये एकल दास?" गुरुजी ने क्रोध से पूछा..

एकलदास सोंटेधारी की दिशा में देखते हुए उठा और दोनो कर जोड़ते हुए बोला..

"हे समस्त गुरुओ में उत्तम! हमसे क्या भूल हुई?"

"उत्तम की सर्वोत्तम?" गुरुजी तनिक संतुलित होते हुए बोले..

"सर्वोत्तम प्रभो!"

"हम्म अब उचित है! परंतु ये कहा उचित है की तुम अन्य ब्लॉगरो पर आरोप प्रत्यारोप करते फ़िरो?" गुरुजी की वाणी में अभी तक क्रोध था.. सोंटा धारी दो कदम अग्र दिशा में आ चुका था और एकल दस दो कदम पीछे हो लिया..

"हे गुरुओ में सर्वोत्तम कुछ ब्लॉगर जो एक दूसरे के मित्र है वो मेरे ब्लॉगपत्र पर नही आकर एक दूसरे के ब्लॉगपत्र पर ही जाते थे.. मुझे ये उचित नही लगा, अत: मैं वहा टिप्पणी कर आया की एक ही दल में घूमते रहोगे या कदाचित् हमारे ब्लॉगपत्र पर भी दिव्य दृष्टि धरोगे.."

"गुरुजी बोले रे मूर्ख! कौन मित्र और कौन शत्रु? यहा सभी तुम्हारे मित्र ही तो है.. एक परिवार में भी तो पुत्र की माता से ज़्यादा बनती है पिता से कम.. क्या इसका ये अर्थ है की माता एवं पुत्र का पिता से कोई प्रथक दल है?"

"पुन: मित्र भी तो सब यहा आकर ही बने है.. एक दूसरे को पढ़कर ही बने है.. कोई पहले से मित्र थोड़े ही थे.."

"किंतु गुरुवर आप इन बिलावो से परिचित नही है.. ये तो आपके छींके से भी दही चुरा ले.. ऐसे जान पड़ते है.."

इतना सुनते ही गुरुजी के आदेश की प्रतीक्षा किए बिना ही सोंटाधारी आगे बढ़ा और श्रीयुत एकलदास को अपने एक हस्त से उठाकर पास की कुटिया में ले गया..

कुछ देर तक एकलदास की वाणी समीर की मंद बयारो के संग ताल से ताल मिलकर नाद करती रही.. उसके पश्चात् वो भी बंद हो गयी..

गुरुजी पुन: लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसा के बैठ गये.. सोंटाधारी पुन: बाहर आ गया.. अगली बारी की प्रतीक्षा में..

प्रार्थना कीजिए वो अगली बारी आपकी नही हो...

जारी

Tuesday, September 23, 2008

ब्लोगाश्रम के ऊपर मंडराता विमान

स्टाइल साभार - पुस्तक मरीचिका (लेखक - ज्ञान चतुर्वेदी)
कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)


थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..


पूर्व में हमने देखा ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..


गुरुजी अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसाए बैठे थे.. जो चेले टिप्पणी पाने के लिए कतार खंडित करके अग्रसर हो जाते थे.. वो भगवान से प्रार्थना कर रहे थे की उनकी बारी आज नही आए..



सुंदर लाल जी को स्वयं अपनी दृष्टि में धोबी पछाड़ लगाने के पश्चात् गुरुजी ने उच्च स्वर में कहा

"असुंदर लाल कहा है?"

"असुंदर भाई आश्रम की अघोषित परंपरा के अनुसार कर जोड़े हुए खड़े हुए"

"हे गुरुओ में श्रेष्ठ क्या भूल हुई हमसे?"

"श्रेष्ठ कि सर्वश्रेष्ठ ? गुरुजी ने आशंका व्यक्त की"

"गुरुओ में सर्वश्रेष्ठ स्वामी!"

"हुं अब उचित है.. परंतु ये अनुचित है की तुम्हारे ब्लॉग पत्र पर पोस्ट से ज़्यादा तो तुमने भिन्न भिन्न आयामो वाले अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगा रखी है .. पाठक तुम्हारी पोस्ट का स्वाद ले या फिर तुम्हारे चित्र का ?"

"अभयदान दे तो कुछ कहु स्वामी?"

"कह तो ऐसे रहे हो जैसे हम यहा प्रतिदिन दो चार को मृत्यु दंड देते है.... कहो क्या कहना है.."

"प्रभु हमे किसी ने कहा की ब्लॉगपत्र पर सुंदर चित्र लगाने से पाठक बहुत आते है.."

इतना सुनते ही पूरा आश्रम ठहाको से गूँजायमान हो उठा.. गर्दभ धरा पर लुट्ने लगे.. वृक्षों पर पक्षियो के पेट में बल पड़ गये.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समस्त धरा अपने मुँह पर हाथ रखकर हंस रही है..

गुरुजी भी हँसने लगे.. उनके हँसने से उनके उदर में कुछ हलचल सी हुई.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ब्लॉगी नदी के तट पर लहरे उत्पन्न हो रही हो..

पुन: ये तो रही ब्लॉग जगत की पावन धरा की बात यहाँ का तो आकाश भी इतना निराला है की एक पूरी ब्लॉग पुराण इसी पर लिखी जाए.. यूँ तो आकाश में पवन के वेग से भी तीव्र गति से उड़ने वाले यान गमन करते रहते है.. परन्तु इन सबके मध्य भी एक विशेष वातानाकूलित विमान है.. जो ब्लॉगरो के पुण्य कर्मो पर पुष्पवर्षा करता है.. जी हाँ देवताओ का विमान..

देवताओ के विमान की ये विशेषता है की इसमे एक विशाल उदर का स्वामी विराजता है.. जो ब्लॉगरो के सद्कार्यो अथवा उनकी सद् पोस्टो पर टिप्पणी वर्षा करते हुए अहो अहो का नाद करता है.. ब्लॉगजगत के श्रेष्टि वर्ग में यदा कदा इनकी टिप्पणिया मिल ही जाती है..

यधपि कुछ ब्लॉगरो पर इनकी टिप्पणी वर्षा नही हो पाती.. वो इस अपेक्षा से पोस्ट लिखते है की हमने सृष्टि की महानतम पोस्ट रच डाली है.. और अब तो स्वयं ब्रह्मा जी भी अपने विमान में बैठकर आएँगे और इन पर टिप्पणी वर्षा करेंगे..

परंतु इनके स्वपन भी तब खंडित हो जाते है.. जब तीनो लोको में एक भी कला प्रेमी व्यक्ति नही मिलता जो इनकी रचना का मर्म समझ सके.. सहश्त्रो बार अपने टिप्पणी वाले लिंक पर चटका लगाकर देख चुके है.. कदाचित् चमत्कार हो जाए..

अब तो कुछ एक नटखट ब्लॉगर भी इनसे परिहास करने लगे है.. इन्हे मार्ग मध्य में देखकर कहते है "वो देखो आकाश में उड़नतश्तरी.." ये देखते है तो इन्हे कुछ दृश्य नही होता.. फिर ये उन ब्लॉगरो को अनोनामस बंधु से भी सुंदर भाषा में गालिया देते हुए पाए जाते है..

परंतु सारे ही ब्लॉगर यहा पर ऐसे नही है.. कुछ एक तो ऐसे है जिन्हे टिप्पणी नही मिलती तो वे स्वयं ही अपने ब्लॉग पत्र पर अनोनामस बनकर टिप्पणी कर आते है इन शब्दो के साथ की..

" आहा! आपकी रचना में कैसी पीड़ा है.. हमारे हृदय को चीर कर चली गयी.. अभी हम नगर वैद्य के यहा उपचार कराने आए है.. "

परंतु ऐसे आत्मनिर्भर ब्लॉगर भी बहुत कम पाए जाते है ब्लॉग जगत की पावन भूमि पर..

विशाल उदर वाले स्वामी ने अभी अभी अपने विमान चालक से विनती की है..विमान को ब्लोगाश्रम की दिशा में ले जाने के लिए.. अब आपका प्रश्न होगा की इतने विशाल उदर के देवता ने अपने विमान चालक से विनती क्यो की आदेश क्यो नही दिया.. तो मित्र आपके इस प्रकार के प्रश्न के लिए तो खडाऊ लेकर आपकी ठुकाई करनी चाहिए.. पर क्या करे पाठक की ठुकाई करना शास्त्रों के विरुद्ध जो है..पुन: आपकी ठुकाई कर दी तो हमे पढ़ेगा कौन..

तो आपका प्रश्न था की देवता ने विनती क्यो की इसका उत्तर हम आपको बता देते है.. एक बार एक देवता ने अपने विमान चालक से अभद्र भाषा में बात की थी.. बस उसी क्षण उस चालक ने विमान उल्टा कर दिया.. और वो देवता मृत्युलोक की अतुलनीय धरा पर अपने पृष्‍ठ भाग के सहारे गिरा था.. बस तभी से एक दरार है.. अरे नही मित्र दरार वहा नही जहा आप सोच रहे है.. दरार तो चालक और देवता के मध्य है.. आप भी ना कहाँ से कहाँ चले जाते है... यदि उचित रस पान करना है तो हमारे साथ ही रहिए..

अजी साथ रहने का ये भी मतलब नही की आप हमे लघु शंका निवारण हेतु भी अकेला नही छोड़ेंगे.. अजी अभी जाइए जब आगे बढ़ेंगे हम स्वयं आपको बुला लेंगे.. अभी विश्राम कीजिए और किंचित सदभावो वाली पोस्ट लिख दीजिए.. किसे ज्ञात देवता प्रस्सन हो जाए और अपना विमान लेकर आपके ब्लॉग पत्र पर आकर टिप्पणी वर्षा कर दे..

जारी

Friday, September 19, 2008

ब्लॉग बापू अर्तार्थ ब्लोगाश्रम के गुरुजी..

स्टाइल साभार - पुस्तक मरीचिका (लेखक - ज्ञान चतुर्वेदी)
कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)


थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..




प्रात की मधुर बेला.. ब्लॉग जगत की पावन धरा के पास ब्लॉगी नदी शांत गति से चल रही है. समीप ही एक आश्रम नुमा स्थान है, जिसके बाहर ब्लोगाश्रम का चिन्ह भी लगा है.. सभी ब्लॉगर अपनी अपनी शंकाओ का निवारण कर के आश्रम में आ रहे है.. परम पूजनीय ब्लॉग बापू अर्तार्थ ब्लोगाश्रम के गुरुजी अपनी कुटिया में ध्यानमग्न है अथवा अपनी लॅपटॉप पटटिका पर अपने कोमल करो से टिप्पणिया लिख रहे है..

समस्त वातावरण ब्लॉग मय हुआ जा रहा है.. सभी ब्लॉगर आकर अपना अपना आसन ग्रहण कर रहे है.. कुछ एक ब्लॉगर अलग से जा बैठे है.. अपनी अपनी चर्चाओ में सभी मग्न है.. आइए सुनते है इन्ही ब्लॉगरो में से इन दो ब्लॉगरो का संवाद...

"क्यो मित्र आज कल तुम टीपिया नही रहे हो हमारी ब्लॉग पर? सब कुशल तो है.."

"क्या कहु बंधु, जबसे इस उदर रोग से पीड़ित हुआ हू.. अधिकांश समय तो नहर पे उकड़ू बैठते हुए ही व्यतीत हो रहा है.. हस्त प्रक्षलित करता हू की फिर से.."

"बस बस मित्र में समझ गया.."

आप इनके चक्करो में मत उलझिए.. ये इसी प्रकार के बहाने बनाने में कुशल है.. ब्लॉगर जो ठहरे. इन्ही की भाँति और भी ब्लॉगर है जो अपने गुरुजी की प्रतीक्षा में बैठे है.. गुरुजी इन्हे बहुत प्रिय है.. ये सभी गुरुजी की बाते बड़े ध्यान से सुनते है.. एवं उनका पालन करते है.. गुरुजी के लिए इनके मन में जो अपार श्रद्धा वो देखिए इन ब्लॉगरो के संवाद में..

"क्यू मित्र ये बुढऊ अभी तक आया क्यो नही? क्या कर रहा होगा अंदर.."

"पता नही मित्र कदाचित् रात्रि अधिक देर तक बैठकर लेख लिखा हो तो अभी तक शय्या पर ही आसीन हो.."

"इसका भी कुछ समझ नही आता मित्र"

"क्या कर सकते है?"

इनसे थोड़ी ही दूरी पर कुछ ब्लॉगरो का जमावड़ा था.. वे आपस में चर्चा कर रहे थे..

"क्या बात है मित्र आजकल तो तुम बहुत अच्छा लिख रहे हो.."

"बस दुआ है आपकी.. वैसे लेखन तो आपका भी कुछ कम नही. ऐसा लगता है माता सरस्वती का आशीर्वाद है आप पर.."
"अरे कहा मित्र.. हम तो बस यू ही.."

इतने में अचानक एक कीड़ा आकर इनकी पीठ पर सवार हो जाता है.. दूसरे ब्लॉगर ने कीड़ा भगाया..

"मित्र कीड़ा चलने से खुजली सी होती प्रतीत होती है.. तनिक अपने कोमल करो से खुजा दो तो मैं धन्य हो लू.."
"अरे कैसी बात करते हो मित्र.. हम नही खुज़ाएँगे तो कौन खुज़ाएगा.. उस दिन जब हमे खुजली मची थी.. तब आपने भी तो खुज़ाया था.."

और दोनो खिलखिलाकर हंस पड़े.. बाकी के ब्लॉगरो ने पीछे मुड़कर देखा.. और फिर अपनी अपनी चर्चा में लीन हो गये..

इतने में कोई ब्लॉगर चिल्लाया... गुरुजी आ गये गुरुजी आ गये..


गुरुजी अपनी कुटिया से निकले.. पीछे पीछे दो चेले उनकी लॅपटॉप पट्टीका उठाए.. आ रहे थे.. सभी ब्लॉगर अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गये.. और झुक कर गुरुजी को प्रणाम किया.. कुछ गुरुजी जी के प्रिय ब्लॉगर तो इतना झुके की नीचे ज़मीन पर बैठा एक कीड़ा उनकी नाक में घुस गया.. उनमे से एक आध ने तो ज़ोर से छींक कर उस कीड़े को वायु मंडल की नमी को सादर समर्पित किया..

गुरुजी ने सबको बैठने के लिए कहा.. और स्वयं अपनी लॅपटॉप पट्टीका खोलकर बैठ गये..

सभी ब्लॉगर सहमे हुए से बैठे थे.. की गुरुजी पता नही इनमे से किसकी ब्लॉग खोल कर शुरू हो जाए.. सबकी नज़रे गुरुजी के चेहरे पर टिकी थी..


...गुरुजी का चेहरा तेज युक्त मानो अपने सबसे घटिया लेख़ पर सौ टिप्पणिया लेके बैठे हो...

गुरुजी का चेहरा तेज युक्त मानो अपने सबसे घटिया लेख़ पर सौ टिप्पणिया लेके बैठे हो.. मंद मंद मुस्कुराते हुए.. आज किसी चेले की शामत आने वाली है.. गुरुजी जब भी किसी की ठुकाई का मानस बना लेते है.. तब उनके चेहरे पर ऐसी ही शीतल मुस्कान रहती है..



अचानक चेहरे के भाव बदले.. उन्होने पूछा अड़ंगा राम कहा है?

अड़ंगा राम जी अपने दोनो करो को जोड़े हुए खड़े हुए..

"क्या हुआ स्वामी?"

"अबे स्वामी के पूत! क्या टिप्पणी कर रहे हो तुम सुंदरलाल के ब्लॉग पत्र पर.."

"स्वामी वो सुंदर लाल बड़ी असुंदर पोस्ट लिख रहा था. इसीलिए मैने कहा की ऐसा मत लिखो वरना ठीक नही होगा.. अब गुरुजी कोई इस तरह की पोस्ट लिखे और हम कुछ ना बोले ये तो ग़लत है ना.."

"ग़लत और सही हमे मत सिख़ाओ.. अपने ब्लॉग पत्र पर लिखने के लिए सभी स्वतंत्र है.." गुरुजी आवेश में बोले..

"जब तुमने अपने ब्लॉग पत्र पर आलू बुखारे के विषय में चौबीस लेख़ लिखे थे.. तब दूसरे ब्लॉगरो का मन भी यही किया था की वो आलू बुखारा उठाके तुम्हारी ........... में घुसा दे... लेकिन उन्होने संयम रखा.. अब तुम भी संयम रखो.. वरना अगर मैने संयम खो दिया तो फिर.."

गुरुजी की बात को बीच में ही काटकर.. अन्यी ब्लॉगरो ने नाद किया.. धन्य हो.. धन्य हो..

अड़ंगा राम जी समझ गए की अभी मौन रहने में ही भलाई है..

गुरूजी फ़िर से पटटिका में मुंह घुसा के बैठ गए.. दुसरे ब्लोगरो की भी साँसे अटकी..

अजी आप क्यो अपनी साँसे अटका रहे है.. आपका नंबर अभी नही है.. लेकिन अगला नंबर किसका है ये देखेंगे हम अगली पोस्ट में.. तब तक गुरु जी को डिस्टर्ब न किया जाए..

जारी

Thursday, September 18, 2008

माई!

एक कहानी

आज पूरे तेरह दिन हो चुके है.. शहर फिर से उसी गति से चल रहा है.. जिस गति से वो मंगलवार की उस शाम से पहले तक चल रहा था. फिर दो दिन कुछ रुका फिर दो दिन बाद कुछ संभला.. अब फिर उसी गति से या शायद उस से भी तेज.. इन तेरह दिनो में मेरा दोबारा वहा जाना नही हुआ.. जब पहली बार इस शहर में आया तो पता चला की ये शहर का सबसे बड़ा हनुमान मंदिर है.. कितने ही लोग हर मंगलवार यहा पूजा पाठ करने आते है.. मेरे ऑफीस के रास्ते में होने की वजह से मैने भी वहा जाना शुरू कर दिया..

फिर तो हर मंगलवार को मेरा इस मंदिर पर आना शुरू हुआ.. एक बात जो मेरे वहा जाने के दूसरे या तीसरे मंगलवार से हमेशा होती रही.. मैं जब भी मंदिर के बाहर जाकर गाड़ी खड़ी करता एक अधेड़ सी महिला मेरे पास आती.. बजरंग बली तेरी रक्षा करेंगे.. खूब तरक्की हो.. अमूमन तो मैं किसी भिखारी को पैसा नही देता.. लेकिन उसकी आवाज़ में इतनी आत्मीयता होती की उसे मैं मना नही कर पाता. फिर उसकी ये भी आदत थी की पेट भर खाने के बाद वो किसी से कुछ नही मांगती.. ये मुझे वही बैठे माला बेचने वाले से पता चला..

उसकी आँखो में एक अजीब तृप्ति हमेशा रहती थी.. बजरंग बली तेरी रक्षा करेंगे.. ये बात वो इतनी विश्वसनीयता से कहती जैसे खुद बजरंग बली ने उसे आश्वासन दिया हो की तू बस मुझे बता दे कौन है फिर मैं देख लूँगा..

जब तक मैं मंदिर से दर्शन करके लौटकर आता.. वो मेरी गाड़ी के पास खड़ी शीशे में खुद को निहार रही होती.. ओर अपने गालो पर उंगलिया फिरा रही होती.. शायद उसे अभी भी लगता था की वो उतनी ही सुंदर है जितनी कभी रही होगी.. या फिर वो किसी छुहन को महसूस करती होगी..

शुरुआत में तो मैं भी वापस आकर उसे दूसरो की तरह ए! ये ले प्रसाद, कहता था.. पर फिर उसकी शांत झुकी नज़रे देखकर मुझे कुछ अच्छा नही लगता .. फिर मैने उसे माई कहना शुरू किया..

मुझे याद है जब पहली बार मैने उसे माई कहा उसने मुझे नज़र उठाकर देखा था.. उसके होंठ कुछ फड़फडाए शायद वो कुछ कहना चाहती थी.. पर सिर्फ़ इतना बोली की बजरंग बली तुम्हारी रक्षा करे..

"साहब बहुत भूख लगी है कुछ दो ना".. अचानक एक आवाज़ आई.. मैं स्मृति से लौटा एक औरत कुछ माँग रही थी मैने उसकी ओर ध्यान दिए बिना ही माई को ढूँढा वो कही नज़र नही आई.. मुझे लगा जैसे मेरा शक़ ठीक था.. तेरह दिन पहले हुए बम विस्फोट में वो भी मर गयी होगी.. इसी मंदिर पे तो हुआ था विस्फोट.. ओर यही बैठी रहती थी वो.. तब एक बार तो सोचा भी था की मंदिर जाकर देख आऊ.. मगर हिम्मत नही हुई.. शायद मर गयी होगी वो.. इसी उधेड़बुन में था की वो औरत फिर आई बोली साहब बहुत भूख लगी है कुछ दो ना..

इस बार फिर उसे अनसुना करते हुए मैं आगे बढ़ा.. मैने फूल वाले से पूछा वो माई कहा है? उसने पूछा कौन माई? मैने कहा वो बुढ़िया जो यहा भीख मांगती थी.. उसने कहा पता नही साहब क्या हुआ है उसको, लगता है पागल हो गयी है.. जब से विस्फोट हुआ है ना तो किसी से कुछ माँग रही है ना कुछ खा रही है.. मैने पूछा कहा है तो उसने सामने इशारा करते हुए बताया..

मैने देखा सामने पीपल के पेड़ से सटे हुए बैठी थी वो.. आँखे बंद किए हुए.. कुछ बच्चे उसके पास पड़े पैसे उठा रहे थे.. मैं उसके करीब गया. मैने जाकर पुकारा माई! उसने कोई जवाब नही दिया... मैं फिर बोला माई! वो चुप रही.. मैने उसके कंधे पर हाथ रख कर उठाने के कोशिश की.. मेरे छुते ही माई निढाल होकर गिर गयी.. मुझे कुछ समझ नही आया..

आस पास लोग इक्कठे हो गये थे.. कुछ लोगो ने उसको सुलाने की कोशिश की तो देखा उसके हाथ पर एक नाम गुदा था, फ़ातिमा.. फिर किसी ने पहचाना ये तो दरगाह वाली भिखारिन है.. एक एक करके लोग कम होते गये..किसी ने कहा दरगाह में खबर कर दो अपने आप ले जाएँगे..

उस दिन पता चला वो दरगाह के बाहर बैठने वाली भिखारिन थी.. जो हर मंगलवार को हनुमान मंदिर पे आ जाती थी... उसके शब्द मेरे कानो में गूंजने लगे.. बजरंग बली तेरी रक्षा करे.. उसका झोला उसके पास ही पड़ा था.. कुछ बाहर झलक रहा था.. एक तो हनुमान चालीसा थी.. मैं पहचान गया.. दूसरी हरे कपड़े में लिपटी शायद क़ुरान ए पाक रही होगी..

अपनी भूख मिटाने के लिए वो कभी मस्जिद के आगे भीख मांगती थी तो कभी मंदिर के आगे.. भूख से बड़ा भी क्या कोई मज़हब होता है? मैं वहा खड़ा खड़ा बस यही सोचता रहा...

Monday, September 15, 2008

मुसलमानों को बदनाम करने के लिए, हिंदू बम फोड़ रहे है

"इंडियन मुजाहिदीन एक हिंदू संगठन है जो मुसलमानों को बदनाम करने के लिए बम फोड़ रहा है"

जिन लोगो ने फ़िरदौस जी का ताज़ा लेख पढ़ा है उन्हे भी मेरी तरह उनपर दया ज़रूर आई होगी.. माफ़ कीजिएगा मैं इस तरह के लेख लिखता नही हू पर शायद ये हम लोगो की कमज़ोरी ही है की हम ये नही लिख पाते क्योंकि हम एक अच्छे समाज की कल्पना में जीते है और हर बार ये सोचकर की कही कोई ग़लत मतलब ना निकाल ले हम लिखते नही है..

मेरा भी यही विचार है मेरा किसी धर्म विशेष से कोई बैर नही है.. ना मैं हर मुसलमान को आतंकवादी कह रहा हू.. पर मैं उन मुसलमानो से मुखातिब हू जो हमे अपना भाई कहते हुए ऐसी पोस्ट लिखते है की मन खराब हो जाता है.. मैं एक हिन्दुस्तानी से ये अपेक्षा करता हू की वो अपने देश में होने वाले अत्याचारो पर दुखी हो और यदि ना भी हो तो कम से कम व्यर्थ बकवास ना करे.. और ये तो हरगिज़ नही चाहूँगा की वो देश की अस्मत लूटने वाले के पक्ष में ब्लॉग पर पोस्ट लिखे..

और ये तो हरगिज़ नही चाहूँगा की वो ये लिखे की "हिंदू, मुसलमानो के भेष में बम विस्फोट करते है, मुसलमानो को बदनाम करने के लिए.." इस पर गुस्सा तो नही लेकिन तरस ज़रूर आता है.. कुछ दिन पहले ये लिखा गया था की रक्षंदा महिला ना होकर पुरुष है.. तब भी बहुत दुख हुआ था की बिना तथ्यो के लोग ऐसी बाते कैसे करते है.. यहा भी वही बात..

दुख तो तब होता है जब पढ़े लिखे लोग इस तरह की बाते करते है.. फ़िरदौस जी का कहना है की "कानपुर में नकली दाढ़ी मूँछो के साथ पकड़े गये थे लोग.. महाराष्ट्र के एक नेता ने कहा की हिंदू आतंकवादी दस्ते बनाओ और उसके बाद अहमदाबाद में बम विस्फोट हुए.." गोया की उनका कहना है हिंदू संगठन ने इंडियन मुजाहिदीन के नींव रखी है.. और उसके उपरांत समस्त हिंदू मंदिरो के आगे बम रखे है.. और विस्फोट करके अपने ही देश को छलनी किया है.. इसका तो ये अर्थ होता है की जिनको पकड़ा है वो सब मुसलमान नही होकर हिंदू है..


पिछले शनिवार को मैं जोधपुर में था वहा चार मुसलमानो को पुलिस ने पकड़ा जिसका विरोध वहा पर मौजूद चार हज़ार मुसलमानो ने किया.. अगले दिन उन चार व्यक्तियो ने अपना गुनाह कबूल किया और आतंकवादियो को ठहराने की बात कबूल की.. वो चार हज़ार लोग दोबारा नज़र नही आ रहे है.. फिर्दोस जी के अनुसार वो चार लोग भी हिंदू ही होंगे. जो पिछले बीस वर्षो से मुसलमान बनकर मुस्लिम इलाक़े में रह रहे है.. और उनकी रक्षा में जो चार हज़ार लोग आए थे वो भी सब हिंदू ही रहे होंगे.. जो पिछले कई सालो से वहा रहते हुए मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हुए लोगो को मुस्लिम होने का धोखा दे रहे है..


फिरदौस जी ने पाक धर्म ग्रंथ क़ुरान के कुछ अंश भी प्रस्तुत किए है जिसमे लिखा है की अमन से जीना चाहिए.. इसलिए मुसलमान आतंकवादी हो ही नही सकते क्योंकि उन्होने यक़ीनन क़ुरान पढ़ी होगी.. तो फिर्दोस जी आप ही बताइए की कौन से धर्म ग्रंथ में लिखा है की बम फोड़ने चाहिए.. जब धर्म ग्रंथ लिखे जा रहे थे तब ना कोई बम थे ना बंदूक और ना ही आतंकवाद, ये सब उसके बाद की बाते है..

"आपने लिखा है की जयपुर बम विस्फोट के बाद मुसलमानों ने वहा जाकर पीडितो की मदद की" जिन जयपुर धमाको में आप मुसलमानो की सहायता की बात कर रही है.. तो वो करके मुसलमानो ने कौनसा तीर मार लिया और हिन्दुओ ने भी या फिर किसी भी धर्म के लोगो ने कौनसा तीर मार लिया क्या घायलो की सेवा करना इंसानियत नही है.. वो तो सबको ही करनी चाहिए उसका एहसान क्यो जता रही है आप? क्या किसी हिंदू या अन्य धर्म के व्यक्ति ने लिखा की हमने वहा पर जाकर पीड़ितो की सहयता की?

जिन जयपुर बम धमाको की आप बात कर रही है मैने उस मंज़र को देखा है.. हमारा अपना शहर छलनी हुआ था. और आपकी जानकारी में इज़ाफा करते हुए मैं ये भी बता दू की कोटा का एक मौलवी भी इनमे सम्मिलित था जो मदरसे में पढाता भी था और शायद पाँच वक़्त का नमाज़ी भी रहा हो..

या फिर आपकी सोच के अनुसार वो एक हिंदू भी हो सकता है जो मुस्लिम भेष में रह रहा हो कदाचित् नकली दाढ़ी मूँछे लगाकर.. क्योंकि आपके अनुसार इंडिया मुजाहिद्दीन का असली मास्टर माइंड तो हिंदू ही है..

जयपुर में जिस मुसाफिर खाने में आतंकवादी रुके थे वो मुसलमानो द्वारा चलाया जाता है.. उस मुसाफिर खाने में हिंदू आतंकवादी जो मुसलमान के भेष में रह रहे थे उनकी सुरक्षा मुसलमानो ने ही की थी और बम फट जाने के बाद भी नही बताया की ये लोग यहा छूपे हुए थे.. शायद उन्हे इस बात का अनुमान नही था की ये हिंदू बम फोड़कर मुसलमानो को बदनाम करने की नीयत से यहा आए है..

ताज्जुब तो तब होता है जब एक ओर, जहा विस्फोट में लोग मर रहे है वहा सब लोग उनके बारे में लिख रहे है..वही पर आप जैसे लोग ये कहते फिर रहे है की सिमी को क्यो बदनाम किया जा रहा है.. तो मत कीजिए ना बदनाम पर हमसे मत कहिये..क्योंकि हमसे नही होगा, हमने वो मंज़र देखा है जयपुर में.. जब विस्फोट हुआ था..

मुझे लग रहा है की या तो आप सिमी के बारे में कुछ जानती नही है और या फिर सब जानते हुए भी नाटक कर रही है.. क्योंकि सिमी द्वारा अलीगढ से प्रकाशित होने वाली पत्रिका कभी पढ़ लीजिएगा जिसमे हिंदू के खिलाफ क्या लिखा गया है.. और जिस पर अब प्रतिबंध भी लग चुका है. मैने भी वो पत्रिका पढ़ी है. और गुस्सा भी आया था लेकिन इसका मतलब ये नही की मैं सभी मुसलमानो को गलिया देने लग जाऊ..

और आपका तो ये भी कहना हो सकता है की वो पत्रिका हिंदू छपवाते है और खुद को गालिया लिखकर मुसलमानो में बँटवाते है और फिर कहते है की मुसलमान ऐसा करते है.., जाकर पहले आँकड़े सॉफ करिए की पूरी दुनिया में आतंकवाद कौन फैला रहा है और किसके नाम पर फैला रहा है... मगर मैं आपकी तरह बेवकूफ़ नही हू की सभी मुसलमानो के खिलाफ झंडा लेकर खड़ा हो जाऊ जिस प्रकार आप खड़ी है हिन्दुओ के खिलाफ.. ज़रा गौर करके अपनी पिछली पोस्टो पर नज़र डालिए.. आपकी सारी पोस्ट में बाकायदा हिन्दुओ को किसी ना किसी विषय पर नसीहत दी गयी है..

आप खुद ही अपने दिल पर हाथ रख कर बताईएगा की आप विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और आर एस एस के बारे में क्या सोचती है.. आप क्या, मुसलमान जनसंख्या का एक तबका ही उनके बारे में क्या सोचता है.. सब इस से भली भाँति परिचित है..

खामख्वाह माहोल खराब मत करिए.. और ईश्वर के लिए इस प्रकार की पोस्ट मत लिखिए जब हम एक सभ्य समाज की कल्पना कर रहे है.. आज का युवा हिंदू मुस्लिम भेद भाव से कोसो दूर है.. मेरे मुस्लिम मित्रो का मेरे घर उसी प्रकार आना जाना है जैसे बाकी लोग आते है.. हमारे बीच इन विषयो पर कभी बात नही होती या विवाद नही होते ..

ये आप जैसे कुसोच वाले लोग है जो इस प्रकार की बातो से इन सबको और बढ़ावा दे रहे हा.. आप लोग तो उस महॉल में जी लिए पर मेरी प्रार्थना है की कम से कम अपने बच्चो को कभी ये अंतर मत बताइए की हिंदू अलग है और मुसलमान अलग..

यही मेरी आपसे विनती है...

Saturday, September 13, 2008

ब्लॉग का नया रूप... साथ में कुछ क्षणिकाए..


पिछले कुछ दिनो से बस यूही मशरूफ था ज़िंदगी के साथ.. अब आया हू तो सोचा की नये रूप में मिला जाए.... बस इसी लिए ब्लॉग को एक नया रूप दिया है.. बताएगा कैसा लगा आपको... तक तक पढ़िए कुछ दिल से लिखी क्षणिकाए..





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दूर अंतरिक्ष से
गिरा एक उल्कापिंड
सीधा टकराया मेरी
कल्पनाओ से..

तुम्हारे टुकड़े टुकड़े
कैसे संभाल कर
जोड़े थे मैने...

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रात गिर गयी
तूफ़ान तेज़ आया था
या फिर दरारो से
महक तेरी गयी ,
कल रात मैने
चाँद को हिलते देखा था

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शाम से थोड़ा परेशान हू
तुम आयी नही ऑफीस से अब तक,
सोचता हू एक फोन कर लू तुम्हे
फिर याद करके कुछ..
आँखो मैं नमी आ जाती है
तुम अब ऑफीस से घर जो नही आती हो...

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याद है
तुम्हारी बनाई सब्ज़ी
में, कितने नुक्स
निकालता था..
करेला नही खाने के
कितने बहाने थे,
तुम अब मुझे खिलाती
नही हो, पर
अब मुझे करेला अच्छा
लगता है..

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आज क्या क्या हुआ,
हर बात ऑफीस की
घर आकर बताते थे हमे

इक रोज़ ना जाने कहा
बिन बताए चले गये..

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