छपाक !! टेबल पर पड़ी पानी की गिलास नीचे गिर पड़ी, एक तो इतना सारा सामान बिखरा है टेबल पर एक गिलास भी नही टिकती.. शाम हो चुकी है.. आज फिर लेट हो गया.. सोचा था जल्दी पहुँचा तो राजमा चावल बनाऊंगा.. पर फिर लेट हो गया रास्ते से मैगी ले लूँगा.. ..
मोहन बाबू, ज़रा देखिए तो खिड़की से बाहर बारिश तो नही है..
साहब बादल तो छाए हुए है. लगता है होने वाली है.. जल्दी से निकल लीजिए..
ओफ्फो एक तो ये बारिश का भी कुछ भरोसा नही..
हेलो! ए वन गैरेज, आप गाड़ी लेकर आए नही? अरे मगर आपने ही तो कहा था शाम तक हो जाएगी,
यार कमाल करते है आप, ठीक है लेकिन कल सुबह तक आप किसी भी हालत में गाड़ी घर पे छोड़ जाइएगा..
हद होती है, सुबह से शाम हो गयी गाड़ी ठीक नही होती इनसे..
मोहन बाबू मैं चलता हू..
क्या हुआ भाई लिफ्ट क्यो बंद है?
साहब काम चल रहा है एक घंटा लगेगा..
ओह नो! जब भी सुबह टोस्ट जलता है पूरा दिन खराब जाता है.. मम्मी को बोलू तो कहती है कब तक नाश्ते में टोस्ट जलाएगा.. शादी करके बहू ले आ.. एक तो मुझे आज तक समझ नही आया टोस्ट जलाने और शादी में क्या रिलेशन है? अब सीढ़ियो से उतरना पड़ेगा.. ये सारा काम रात को क्यो नही करते.. इतनी सीढिया पता नही पिछली बार कब चढी थी.. ऐ टी एम्? हमारी बिल्डिंग में ए टी एम भी है!.. कमाल है कभी सीढ़ियो से उतरा ही नही.. अपनी ही बिल्डिंग से अंजान हू.. चलो यार सीढ़िया तो ख़त्म हुई.. वैसे इतने टाइम बाद इतना पैदल चला हू.. डॉक्टर्स तो कहते भी है वॉक पर जाओ.. पर टाइम कहा है? सुबह आँख खुलते ही तो ऑफीस का टाइम हो जाता है..और रात को तो बस सोना दिखता है.. चलो आज वॉक कर ही ली जाए..
छपाक! ओये दिखता नही है क्या.. स्साले पता नही कैसे गाड़ी चलाते है.. ये भी नही सोचते की कोई पैदल चल रहा है..
उपर बादल तो है.. बारिश होने वाली है फटाफट पहुँच जाऊ घर तो अच्छा है..रात को सारी मेल्स का जवाब भी देना है.. रात को लेट सोया तो फिर सुबह लेट हो जाएगा.. पता नही हो क्या रहा है.. कर क्या रहा हू.. पूरे वीक में वीकेंड का इंतेज़ार करता हू.. छुट्टी मिली नही की बस सो गये.. फिर वीकेंड.. फिर काम..लोग कहते है यही तो लाइफ है.. अरे लाइफ तो कब की पीछे छूट गयी.. अब तो बस एक दिनचर्या है जिसे पूरा करना पड़ता है.. हम इतने मुश्किल क्यो होते जा रहे है..
छपाक! ओह नो, ये सड़क के गड़डे भी ना.. सड़क से ज़्यादा तो उसमे खड्डे हो गये है.. थोड़ी सी बारिश हुई नही की पानी भर जाता है.. लोगो से तो इतना टैक्स लेते है ये करते क्या है पैसो का.. पता नही देश कहा जा रहा है. और ये कहते है इंडिया शाइनिंग इंडिया शाइनिंग.. सारी की सारी पैंट खराब हो गयी. आज ही तो पहनी थी.. फिर कौन धोएगा.. यार ये बारिश होती ही क्यो है?
ओह नो बारिश शुरू हो गयी.. अब क्या करू.. दस पंद्रह मिनट का तो रास्ता बाकी होगा ही.. रुकना ही पड़ेगा.. बारिश में गीले हो गये तो फिर जुखाम वुखाम.. बारिश तेज़ हो गयी है.. मोबाइल गीला हो गया तो प्रॉब्लम हो जाएगी.. कही से पोलिथीन का केरी बैग मिल जाए तो उसमे डाल लू.. वो लड़की मूँगफली बेचने वाली लड़की उसके पास होगा..
बेटा तुम्हारे पास केरी बैग होगा जिसमे मैं ये मोबाइल डाल सकु?
केरी बैग केरी बैग.. ह्म्म्म प्लास्टिक की थैली
अरे ये कहा जा रही है..
ओये हेलो..
ये आँख बंद करके क्यो खड़ी हो गयी.. बाहें फैलाकर खड़ी है.. क्या हुआ इसे.. ओह शायद पानी की बूँदो से खेल रही है.. ये एक बूँद गिर रही है.. थोड़ा लेफ्ट थोड़ा लेफ्ट.. नही थोड़ा राईट हा हा ये गिरी..
छपाक!! ये तो अच्छा है, मैं भी करके देखता हू.. क्या हुआ कोई बूँद नही गिर रही है.. एक आँख खोल के देखता हू..
आँहा अंकल आँख बंद करो.. वो मेरे पास आकर कहती है..
मैं फिर से आँख बंद करता हू बाहे फैलाकर उपर देखता हू.. मुझे लग रहा है कोई बूँद आ रही है.. मेरी ओर.. बहुत करीब मेरे बिल्कुल करीब. बस गिरने ही वाली है मेरी आँखो पर.. ये गिरी ये गिरी.. और ये गिरी...
छपाक!!
आह! मज़ा आ गया.. मैं खिलखिलाके हंसता हू.. वो भी मुझे देखके हंस रही है..
आओ अंकल..
वो मेरा हाथ पकड़ के मुझे ले जा रही है.. मैं उसे रोक नही पाता हू.. उसके नन्हे हाथो में अपना हाथ सौंप के बस चल रहा हू.. वो सड़क पे जमा पानी के बीच जाकर ज़ोर से उछलती है
छपाक! और सारा पानी मुझपर.. और भी बच्चे आ गये है.. सब कूदते है पानी में..
छपाक.. छपाक.. बस यही आवाज़ आ रही है.. मैं खुद को रोक नही पता हू.. मेरी पैंट पूरी गंदी हो चुकी है.. मैं उनको रोकता हू.. वो सब मेरी और देखते हुए बोलते है ए ए ए ए ए.. और ये
छपाक! मैं भी कूदता हू.. सब मिलकर कूद रहे है पानी में..
और बस ये आवाज़ आ रही है..
छपाक! छपाक! सच कहु इतनी खुशी बड़े दिनो से नही हुई.. बारिश की बूंदे कम होती जा रही है.. धीरे धीरे सब बच्चे जाते है.. वो लड़की मुझे देखकर हंस रही है.. बहुत खुश लगती है.. वो अपनी सबसे छोटी अंगुली मुँह पे रखकर कानो के पास अंगूठा रखते हुए मुझे याद दिलाती है फोन.. और भागकर फूटपाथ पे जाती है.. मैं देखता हू.. उसकी मूँगफलिया भीग चुकी है.. उनके नीचे पड़ा मेरा मोबाइल ठीक है.. उतना नही भीगा.. मैं उसे पैसे देता हू.. वो मना कर देती है.. अपनी मूँगफलियो को पानी में बहाकर.. सड़क के उस पार चली जाती है.. मैं उसे देखता रहता हू.. वो उस पार जाकर हाथ हिलाती है.. मैं भी उसे देखकर मुस्कुराता हू.. खुशी से कदम बढाते हुए.. पानी में कूदते हुए घर जाता हू.. घर पे आकर राजमा चावल बनाए है.. बहुत अच्छे बने है.. माँ को फोन करता हू.. पूछती है नाश्ते में ब्रेड जली थी क्या?? मैं हाँ कहता हू.. वो कहती है.. कितनी बार कहा है.. यूही ब्रेड जलाता रहेगा या... बस माँ बस.. एक काम करो एक बहू ढूँढ लो..
सच?
हा माँ सच!..
हेलो हेलो .. माँ कहा हो? हेलो..
हमारे आँगन में अक्सर बारीशो में पानी जमा हो जाता है.. माँ भी शायद आँगन में चली गयी..
एक आवाज़ आती है फोन पर...
छपाक!