सुबह दस्तक दे चुकी है.. मस्जिद की तरफ से अजान सुनाई दे रही है.. अँधेरा अभी है थोडा सा.. गाडी फूटपाथ पर पहुची और अखबारों का बण्डल फेंका.. अखबार वाले ने अख़बार उठाया.. आँखे मली और साइकिल उठाली..
इधर मालिनी की भी आँख खुल गयी.. आज थोडी थकान लग रही है.. आखिर सातवा महिना चल रहा है.. वो जानती है उसे क्या करना है.. तैयारी कर रही है.. बस उसे देर नहीं हो जाये..
साइकिल पर तेजी से पैडल मारता हुआ अखबार वाला गली में घुस रहा है.. मालिनी इस बात से बेखबर है की बगल वाले कमरे से बालकनी का दरवाजा खुल चुका है.. अखबार वाले ने पहला अखबार फेंक दिया है.. आँठवा अखबार इसी घर में गिरेगा.. मालिनी जल्दी से जल्दी नहाकर बाहर आना चाहती है.. चौथा अखबार भी फेंक दिया अखबार वाले ने..
मालिनी जल्दी से बाहर आने की कोशिश कर रही है॥ ये सातवा अखबार भी फेंक दिया उसने... बालकनी के नीचे आ चुका है अखबार वाला॥... ऊपर बालकनी में देखता है और सहम जाता है.. घोष बाबु खड़े है अखबार मांग रहे है.. अखबार वाला सोच रहा है क्या करे। घोष बाबु चिल्लाये... अबे देता क्यों नहीं है अखबार..
मालिनी ने सुन लिया वो भागी उसे रोकना होगा.. अखबार वाला सोच रहा है क्या करे ? घोष बाबु की बैचैन आँखे उसे मजबूर कर रही है.. वो अखबार फेंकने के लिए हाथ उठाता है.. मालिनी तेजी से भागती है.. अखबार हवा में उछला जा चुका है.. मालिनी जैसे ही पहुचती है.. घोष बाबु जोर से चिल्लाते हुए अन्दर की तरफ़ भाग जाते है.. घोष बाबु जोरो से रो रहे है. मालिनी को जिस बात का डर था वही हुआ... घोष बाबु कमरे के अन्दर चले गए और जोर जोर से दीवार पर सर मर रहे है... मालिनी की आँखों में आंसू है... पर वो जानती है ये उसे अकेले करना है वो इंजेक्शन में दवाई भर रही है... घोष बाबु ने हाथ उछाल दिया॥ मालिनी फ़िर से उनकी तरफ़ लपकी... इस बार उसने हाथ पकड़ कर इंजेक्शन लगा ही दिया॥ घोष बाबु की आँखे बंद हो रही है वो नीचे गिर चुके है... मालिनी ने उनके सर के नीचे तकिया रख दिया है... आँखों से गिरते आंसू लिए उसने अखबार उठाया है... उसे तो कोई इंजेक्शन लागने वाला भी नही है... आख़िर उसे ही अपने आने वाले बच्चे और अपने ससुर को संभालना है... उसने अखबार को खींच कर दीवार पे मारा है...
और रोते हुए देख रही है दीवार पर लगी अपने पति की तस्वीर को और पूछ रही है क्यो नही ले गए हमें भी साथ... वैसे भी कौनसा जी रहे है हम... रोज़ सुबह बाबूजी की ये हालत देखी नही जाती... हर रोज़ इस उम्मीद पर की आज उस आतंकवादी को सजा मिलेगी जिसने उनके इकलौते बेटे को लील लिया... मेरे सुहाग को मुझसे छीन लिया और एक अजन्मे बच्चे के बाप को... जिसकी तो कोई गलती भी नही थी... डाक्टर कहते है बाबूजी की दिमागी हालत ठीक नही ... मैं अकेली कैसे करू ये सब... अब और नही देख सकती मैं ऐसे...
आज रात मालिनी ने एक फ़ैसला कर लिया है...
अगले दिन अखबार वाला फ़िर से आया है आज कोई बालकनी में उसे दिख नही रहा है... उसने अखबार फेंक दिया है मगर कोई आया नही... बाबूजी चैन से सो रहे है मालिनी भी नही उठ रही... पता नही कल रात को लिया गया मालिनी का फ़ैसला सही था या ग़लत...
पर अखबार में आज की ताज़ा ख़बर है वो आतंकवादी नाबालिग है...