मैंने पापा के कमरे में जाकर कहा जयपुर जा रहा हूँ.. अब वही जॉब करूँगा..
पापा ने पुछा कब ?
मैंने कहा अभी ७.३० बजे की ट्रेन है..
मेरे दोस्त मुझे छोड़ने आये थे ट्रेन चल चुकी थी मैं अपने दोस्तों के साथ भाग रहा था प्लेटफोर्म पर.. वो ट्रेन एक स्टेबिलिटी थी.. आखिर पकड़ में आ ही गयी.. शहर बदला.. लोग बदले.. माहौल बदला.. मुझे लगा अब कुछ बदलेगा.. और बदला भी..
अब देर रात जब घर आता हूँ तो जूते पहने हुए ही आता हूँ.. पहले तो गेट के बाहर जूते उतार कर धीरे धीरे दरवाजा खोलकर अन्दर आता था जैसे ही अन्दर घुसता.. मम्मी की आवाज़ आती.. आ गया तू .. इतनी देर कहाँ लगायी? अब तक का रिकोर्ड है मम्मी का, कभी ऐसा नहीं हुआ कि मेरे आने से पहले मम्मी सोयी हो.. इतने कम डेसिबल की आवाज़ सुनने की खूबी प्रक्रति ने सिर्फ मांओं को ही दी है..
मेरी आदत थी रात को गाने सुनते हुए सोता था.. मैं गाने चलाकर छोड़ देता था सुबह मुझे म्यूजिक सिस्टम ऑफ़ मिलता.. आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि सुबह उठने के बाद मुझे म्यूजिक सिस्टम बंद करना पड़े.. अब रात को टी वी चलाते ही सबसे पहले उसमे टाइमर लगाता हूँ.. कहते है न बच्चे घर को रौशन रखते है क्योंकि वो घर की बत्तिया बुझाना भूल जाते है..
ये सब्जी मुझे अच्छी नहीं लगती मैं नहीं खाऊँगा.. और मम्मी दूसरी सब्जी बना देती थी.. और अब अगर चावल कच्चे भी हो तो मैं खा लेता हूँ सोचता हु इतनी गर्मी में दोबोरा कौन एक सी टी और लगायेगा.. झंकार बीट्स फ़िल्म का एक डायलोग है... ' दुनिया गोल है और हर पाप का एक डबल रोल है '
मम्मी के खाना बनाते वक़्त मैंने कभी मम्मी के सर पर जमी पसीने की बूंदों पर गौर नहीं किया.. सोचता हूँ कितनी बार मैंने कहा होगा खाना अच्छा नहीं बना.. कितनी बार मैंने थाली में खाना छोडा होगा.. अब मम्मी तो खाना बनाती नहीं है पर जब भी घर जाता हूँ भाभी के बनाये खाने की जम कर तारीफ़ करता हूँ.. मैं उनके लिए इतना तो कर ही सकता हूँ..
बहुत कुछ बदल गया है आस पास की जिन लड़कियों के साथ बचपन में खेलते थे अब उनसे बात करना तो दूर सामने देख पाना भी नहीं होता.. सो कोल्ड सोशल वेल्यु की गर्माहट दोस्ती को पिघला देती है..
और भी तो बहुत कुछ बदला है.. अब बरसातो में बाईक उठाकर झरनों पर नहीं जाते... अब रात को प्लान बनाकर सुबह शहर से बाहर घूमने नहीं जाते.. अब सब पैसे इकट्ठे करके क्रिकेट की बोंल नहीं लेकर आते.. अब दोस्तों से गानों की केसेट्स और कोमिक्स एक्सचेंज नहीं की जाती.. अब चाय की थडी पर दो की तीन नही होती...
अब सचिन के सिक्सर पर दोस्त लोग एक साथ उछलते नहीं है.. अब होसटलर्स दोस्तों के कमरों में गर्ल फ्रेंड्स के दिए गिफ्ट नहीं रखे जाते.. अब दोस्तों के लिए होकीया नहीं निकाली जाती.. अब गली की सबसे खडूस आंटी से बोंल के लिए झगडा नहीं होता है.. अब एक ही दोस्त का साल में तीन बार बर्थडे नहीं होता.. अब कोई ' तेरी भाभी है ' नहीं बोलता.. अब तीन बार फोन की घंटी बजना कोडवर्ड नहीं होता.. अब केल्शियम का एटोमिक नंबर याद करने में रात नहीं गुजारनी पड़ती है..
बहुत कुछ तो है जो अब नही होता..
पापा ने पुछा कब ?
मैंने कहा अभी ७.३० बजे की ट्रेन है..
मेरे दोस्त मुझे छोड़ने आये थे ट्रेन चल चुकी थी मैं अपने दोस्तों के साथ भाग रहा था प्लेटफोर्म पर.. वो ट्रेन एक स्टेबिलिटी थी.. आखिर पकड़ में आ ही गयी.. शहर बदला.. लोग बदले.. माहौल बदला.. मुझे लगा अब कुछ बदलेगा.. और बदला भी..
अब देर रात जब घर आता हूँ तो जूते पहने हुए ही आता हूँ.. पहले तो गेट के बाहर जूते उतार कर धीरे धीरे दरवाजा खोलकर अन्दर आता था जैसे ही अन्दर घुसता.. मम्मी की आवाज़ आती.. आ गया तू .. इतनी देर कहाँ लगायी? अब तक का रिकोर्ड है मम्मी का, कभी ऐसा नहीं हुआ कि मेरे आने से पहले मम्मी सोयी हो.. इतने कम डेसिबल की आवाज़ सुनने की खूबी प्रक्रति ने सिर्फ मांओं को ही दी है..
मेरी आदत थी रात को गाने सुनते हुए सोता था.. मैं गाने चलाकर छोड़ देता था सुबह मुझे म्यूजिक सिस्टम ऑफ़ मिलता.. आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि सुबह उठने के बाद मुझे म्यूजिक सिस्टम बंद करना पड़े.. अब रात को टी वी चलाते ही सबसे पहले उसमे टाइमर लगाता हूँ.. कहते है न बच्चे घर को रौशन रखते है क्योंकि वो घर की बत्तिया बुझाना भूल जाते है..
ये सब्जी मुझे अच्छी नहीं लगती मैं नहीं खाऊँगा.. और मम्मी दूसरी सब्जी बना देती थी.. और अब अगर चावल कच्चे भी हो तो मैं खा लेता हूँ सोचता हु इतनी गर्मी में दोबोरा कौन एक सी टी और लगायेगा.. झंकार बीट्स फ़िल्म का एक डायलोग है... ' दुनिया गोल है और हर पाप का एक डबल रोल है '
मम्मी के खाना बनाते वक़्त मैंने कभी मम्मी के सर पर जमी पसीने की बूंदों पर गौर नहीं किया.. सोचता हूँ कितनी बार मैंने कहा होगा खाना अच्छा नहीं बना.. कितनी बार मैंने थाली में खाना छोडा होगा.. अब मम्मी तो खाना बनाती नहीं है पर जब भी घर जाता हूँ भाभी के बनाये खाने की जम कर तारीफ़ करता हूँ.. मैं उनके लिए इतना तो कर ही सकता हूँ..
बहुत कुछ बदल गया है आस पास की जिन लड़कियों के साथ बचपन में खेलते थे अब उनसे बात करना तो दूर सामने देख पाना भी नहीं होता.. सो कोल्ड सोशल वेल्यु की गर्माहट दोस्ती को पिघला देती है..
और भी तो बहुत कुछ बदला है.. अब बरसातो में बाईक उठाकर झरनों पर नहीं जाते... अब रात को प्लान बनाकर सुबह शहर से बाहर घूमने नहीं जाते.. अब सब पैसे इकट्ठे करके क्रिकेट की बोंल नहीं लेकर आते.. अब दोस्तों से गानों की केसेट्स और कोमिक्स एक्सचेंज नहीं की जाती.. अब चाय की थडी पर दो की तीन नही होती...
अब सचिन के सिक्सर पर दोस्त लोग एक साथ उछलते नहीं है.. अब होसटलर्स दोस्तों के कमरों में गर्ल फ्रेंड्स के दिए गिफ्ट नहीं रखे जाते.. अब दोस्तों के लिए होकीया नहीं निकाली जाती.. अब गली की सबसे खडूस आंटी से बोंल के लिए झगडा नहीं होता है.. अब एक ही दोस्त का साल में तीन बार बर्थडे नहीं होता.. अब कोई ' तेरी भाभी है ' नहीं बोलता.. अब तीन बार फोन की घंटी बजना कोडवर्ड नहीं होता.. अब केल्शियम का एटोमिक नंबर याद करने में रात नहीं गुजारनी पड़ती है..
बहुत कुछ तो है जो अब नही होता..
अनुराग जी से स्टाइल उधार लेते हुए एक त्रिवेणी..
"ख़ुशी का, खुमार का, थोड़े से प्यार का
एक एक कर सारे रंग छूट गये..
ज़िंदगी अब पुरानी जीन्स लगती है.."