Monday, March 29, 2010

खट्टी मिश्री जैसी लाईफ...


हवा और तेज़ हो रही है.. पन्ने उड़ाने की चाल है.. मैंने पेपरवेट रख दिया है..
तुम्हारे ख्याल कीमती है मेरे लिए.. मैं इन्हें वेस्ट नहीं जाने दूंगा..
बड़ी मुश्किल से मिलती है हंसी तुम्हारी.. इस बार आँखे खुली रखूँगा...
मैंने अपने मोबाइल से कैच कर लिया है.. अब तुम्हे कही जाने नहीं दूंगा..
तुम्हे नाराज़ करना नहीं चाहता.. पर तुम नाराज़ हो जाती हो..
तुमसे बेइंतेहा मोहब्बत करता हूँ मैं.. बस टैटू नहीं गुदवा सकता..
अब इसे कभी खोने नहीं दूंगा.. बड़ी शिद्दत से मिला है यकीन तुम्हारा..
वो पल संभाला हुआ है अब भी.. जब तुमने'ह' पे 'आ' की मात्रा लगायी थी..
चलो मान लिया मैं आँखे बंद कर लेता हु...... जब तुम गर्दन पर किस करती हो..
लों बताओ.. जब हम लड़ेंगे ही नहीं तो फिर शादी क्यों की..?
शादी का मतलब सिर्फ सेक्स होता है...? नहीं ये सवाल नहीं है..
कहो तो तुम्हे उठा कर ले चलु... आयोडेक्स तो है ना घर पे..
तुम मजाक भी नहीं समझती.. इनडायरेक्टली बेवकूफ थोड़े ही कहा मैंने..
मैं कोने में बैठा हुआ हूँ..... मेरी जान! तुम शोपिंग जो कर रही हो..
लों अब तो बर्तन भी धो दिए मैंने.. अब तो देखने दो क्रिकेट मैच..
मैं सिर्फ सुनता रहता हूँ..... फॉर अ चेंज आज सिर्फ तुम बोलो.. 
जानता हूँ टॉवेल तुम्हारा है.. अब ऐसे क्या देख रही हो..
तुम्हारी फीलिंग्स, फीलिंग्स और मेरी फीलिंग्स कुछ भी नहीं... समझ गया, मेरी फीलिंग्स कुछ भी नहीं..
तुम हमेशा वो लाल वाली साड़ी ही पहना करो डार्लिंग... इस बार खर्चा कुछ ज्यादा हो गया है
क्या करती हो यार तुम.... अरे मैंने तो कहा था "वाह! क्या करती हो यार तुम.."
चाँद की साइज़ का रैपर नहीं मिला था वरना ले आता.... जन्मदिन मुबारक जानेमन
वो आवाज़ अभी भी कानो में रहती है.. करीब आकर आई लव यु कहा था ना तुमने..
अरे भीग गया तो क्या हुआ.... तुम्हे पकौड़े खाने थे ना..
मुझे इमरान हाश्मी पसंद नहीं है... चलो आज जन्नत देखने चले..
फिर से आँख में आंसु... तुम्हे गले ही तो लगाया है..

और लास्ट में...


  • आईन्दा मुझसे बात मत करना.......... अब चुप क्यों हो?



और जिसके बिना ये पोस्ट अधूरी है... फेसबुक पर हमारे मित्र पंकज बेंगाणी की एक वॉल पोस्ट ..
"Had a good healthy fight with wife last night.We are almost certain about divorce. Alas! we are a normal couple. :)  "

और हाँ!! आपके पास भी हो कोई ऐसी लाईन हो तो शेयर कर सकते है... सकते है.. हमने रोका थोड़े ही है... :)

Tuesday, March 16, 2010

मुझे सोल्यूशन चाहिए.. कॉमरेड

इन लौटती आवाजों को पीछे धकेल धकेल कर मेरे माथे पर पसीने का पहाड़ उग गया है.. पर ये फिसल फिसल के मेरे कानो में आकर बैठ जाती है.. मैंने अपने दोनों हाथ अपने कानो पर रख दिए है.... पर ये स्थायी समाधान नहीं है.. मुझे सोल्यूशन चाहिए.. कॉमरेड,

अपने दल वाले मुझे 'च' से शुरू होने वाले किसी शब्द से बुलाते है.. एक्जेक्टली वो वर्ड क्या है मैं नहीं जानता.. मैंने ठीक से सुना नहीं.. मेरे कानो पर मेरे हाथ है.. मैंने अपने हाथो को वेल्डिंग करके जोड़ लिया है कानो से.. मैं सुनना नहीं चाहता बम विस्फोटो में मरने वालो की चीखे.. मैं सुनना नहीं चाहता गर्भ से लौटती लडकियों का क्रंदन..मैं सुनना नहीं चाहता आरक्षण के लिए भीख मांगती आवाज़े.. मैं सुनना नहीं चाहता लुटती हुई अस्मतो की पुकारे.. कि मेरे कान सुन सुन कर सुन्न हो चुके है.. अब कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें कॉमरेड, ........... तुम चाहो तो तीन सौ बीस की स्पीड से आती ट्रेन को मेरे कानो में घुसा दो.. या फिर ठूंस दो सौ हाथियों की चिंघाड़ इनमे.. इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा.. मैंने अपने दोनों हाथो से ढंककर रखा हुआ है इन्हें..

क्या बताऊ तुम्हे कि मैं नोर्मल मोड़ में हैंग हो जाता था बार बार.. मेरी सारी फाइले डिलीट हो जाती थी... मेरा कंट्रोल बटन काम नहीं कर रहा था.. मैं चाहकर भी F5 नहीं दबा पा रहा था... और फिर पूरी तरह करप्ट हो जाने के बाद मैंने खुद को फोर्मेट कर दिया था.... अब मैं खुद को सेफ मोड़ में चला रहा हूँ.. मैं जानता हु तुम ये सब नहीं समझोगे.. तुम कम्पूटर के बारे में कुछ भी तो नहीं जानते.. अगर जानते होते तो समझ सकते थे मेरी बात.. जान जाते कि क्यों में हाय्बर्नेट हो गया था.. पर तुम तो अनपढ़ ठहरे.. तुम कैसे समझोगे.. ? तुम तो, जब ज्ञान बांटा जा रहा था.. तब छलनी लेकर खड़े थे कॉमरेड.. क्यों जब तुम्हे पढ़ लिख जाना चाहिए था.. तब तुम तपती दोपहरी में दो कौड़ी के कंचो के लिए दोस्तों से उलझते थे कॉमरेड..? अब देखो खुद को.. कंचो की तरह टकरा रहे हो दुसरे कंचो से..

खैर..! कंचे खरीदते भी तो कैसे ? तुम्हारे पास पैसे भी तो नहीं है.. वही एक सिक्का अंटी में दबाये घुमते रहते हो.. कि जिसे तुम्हारी माँ ने तुम्हे दिया था कंचे लाने के लिए.. और चप्पल टूटने की वजह से तुम घर लौट आये.. तभी तुम्हारी माँ पंखे से लटकी हुई मिली.. इस सिक्के में तुम क्या अपनी माँ को ढूंढते हो कॉमरेड.. ? क्या इतने पुराने सिक्के में तुम्हे कुछ मिलेगा भी.. क्यों नहीं तुम इस पर नाइट्रिक एसिड डाल देते हो.. ताकि तुम्हारा सिक्का फिर से चमक उठेगा.. ! पर तुम क्या नाइट्रिक एसिड लाओगे.. तुम्हे तो साईंस के माने भी नहीं पता.. तुम इतने बड़े झंडू क्यों हो कॉमरेड..?

वैसे झंडू तो मैं भी हूँ यार.. तुमसे सवाल पे सवाल पूछ रहा हूँ.. ये जानते हुए भी कि जवाब मैं सुन ही नहीं सकता.... पर तुम मेरी एक बात सुन लों.. किसी से भी हमारे मिशन के बारे में बात मत करना....  मैं जानता हूँ कि हम सब किसी भरोसे के लायक नहीं पर क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ कॉमरेड? या फिर तुम भी मिल जाओगे उन लोगो से और लील लोगे प्राण इस मिशन के.. ?

नहीं नहीं ऐसा मत करना कॉमरेड अब तो मिशन पूरा होने का वक़्त आ गया है... ये पेनअल्टीमेट समय है.. मैंने खुद को समेट लिया है अपने अन्दर..मैं टुकड़े कर रहा हूँ.. अहंकार के, मेरी कायरता के, मेरी चुप्पी के, मेरी नासमझी के, मेरी मक्कारी के, मेरे झूठ के, मेरे वजूद के... कि मैंने आखिरी बार आसमान में नज़र उठाली है.. मैं ईश्वर से नज़रे मिलाने की पोजीशन में हु..  मैं तुम्हारे सामने घुटनों के बल बैठता हूँ.. मेरे हाथ पैरो के नाख़ून नुकीले हो रहे है... मेरी दुम निकल रही है पीछे से.. मेरी जीभ लम्बी हो रही है... मैं अपना सर तुम्हारे पैरो में रखकर तुम्हारे तलवे चाट रहा हूँ... कि मैं अब कुत्ता बन गया हूँ.. अपने मिशन में कामयाब..

हमारे दल की जीत हुई है.. हमारी शपथ पूरी हुई है.. मेरे अन्दर एक जश्न की शुरुआत हो चुकी है.. मुझे नगाडो की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है... तालियों की गडगडाहट मेरे कानो में गूँज रही है.. आदिवासी कबीलों के स्वर सुन रहा हूँ मैं... कितने ही तरह की आवाज़े...लहरों के तट पर आने की आवाज़.. बादलो के गडगडाने  की आवाज़.. मंदिरों में बजती हुई घंटिया...वाह.!
इंसान से कुत्ता बनने की प्रक्रिया का अंत यहाँ जाकर होगा.. तुम्हारे चरणों में.. ये मैं नहीं जानता था कॉमरेड.. पर मैं इंसानियत को त्याग चुका हूँ.. और कुत्ता बन गया हूँ..

एक कुत्ते के सुनने की क्षमता 40 Hz से 60,000 Hz होती है.... और ये इंसान से लगभग दुगुनी है.... अब इतना तो तुम जानते ही हो कॉमरेड.. भौ भौ..!