Wednesday, February 25, 2009

कॉफी विद कुश एक बार फिर से

cwk

दोस्तो.. फिर से हाज़िर है आपका अपना ब्लॉग कॉफी विद कुश सीजन टू में..

वो भी एक नयी थीम के साथ.. " टोस्ट विद टू होस्ट.." जी हाँ यही है.. कॉफी विद डबल तड़का... जिसमे मेरे साथ होस्ट करेंगे... नज्मो के जादूगर.. डा. अनुराग आर्य.. और पहले ही एपीसोड में हमारे मेहमान होंगे.. अपनी अदभुत लेखन शैली और उम्दा टिप्पणियो के लिए प्रसिद्ध डा. अमर कुमार...

मैं तो सोच सोच के परेशान हो रहा हूँ की दो होस्ट मिलकर मुझसे कैसे कैसे सवाल पूछेंगे.. एक होस्ट ने तो पहले ही कह दिया है.. उनकी कॉफी बड़ी स्ट्रॉंग है.. अब इस स्ट्रॉंग कोफ़ी से कैसे निपटा जाए आप ही कोई उपाय बता दो..

वैसे भूलिएगा मत देखना की दो होस्ट के बीच में फँस के कैसे हमारा टोस्ट बनता है..



होशियार हो जाइए.. हमारी कॉफी बड़ी स्ट्रॉंग है.. हम ऐसे ही नही छोड़ने वाले... कॉलेज के दिनो में हम भी ऐसा ही एक प्रोग्राम चलाते थे.. जिसका नाम था 'आइए कुछ देर रु ब रु बैठे' बस अब फिर से वो याद ताज़ा हो गयी..

देखते है कॉलेज वाला वो रोमांच फिर से जगा पाते है या नही.. आप भी देखिए..


पिछले साल जिन्होने कॉफी पी थी हमारे साथ वो बच गये.. क्योंकि इस बार तो मामला संगीन है.. दो दो होस्ट के बीच टोस्ट बनने की नौबत भी आ सकती है.. वैसे इस बार आपको ढेर सारा रोमांच मिलने वाला है.. इस बात की गारंटी है.. आख़िर हमने भी अच्छे अच्छे को कॉफी पिला दी है..

तो फिर क्या सोच रहे है.. हो जाइए तैयार.. सीजन टू के लिए..

बस हो जाइए तैयार... फिर से एक बार रहा है कॉफी विद कुश



यदि आप भी डा. अमर कुमार जी से पूछना चाहते है सवाल तो टिप्पणी में लिख भेजिए..

Tuesday, February 17, 2009

व्हीलचेयर वाली लड़की..

आसमान खाली खाली सा केनवास है.. जब हम मुस्कुराते है तो कितने रंग भर जाते है इसमे.. उन रंगो को अपनी हथेली में लेकर देखना कभी.. कितने ज़ज्बात मिलेंगे..

हर एक ज़ज्बात जैसे सीप का एक मोती.. मगर छुना मत उसे.. कहते है छुने से वो ओझल हो जाते है.. ये मोती उन चीज़ो में शुमार है जो सिर्फ़ शिद्दत से महसूस करने के लिए होती है........... तब जब आप किसी दोपहरी में लोन में बैठे कॉफी पी रहे हो... हाथ में आपके कोई किताब हो और वो पन्ना जिसको किनारे से आपने थाम रखा है.. अब पलटा कि तब पलटा..पन्ना पलटने के साथ ली गयी कॉफी के एक घूंट की गर्माहट जब सूरज कि किरणों से मिलकर तपिश पैदा करती है तब ये आग भी एक सुकून देती है..

ऐसा लगता है किताब में गहरे तक उतर गये है हम.. शायद ऐसे ही किसी एहसास को आत्माओ का मिलन कहते है.. वो आत्माए जो शरीर के ना रहते हुए भी रहती है कहीं.. यादो की तरह.. बस आती जाती रहती है.. दिल के रास्तो से.. जहाँ न सरहदे है न दिवार कोई.. बस चले आता है.. हर कोई ..बंदिशो के बिना.. प्यार और सिर्फ़ प्यार लेकर.. प्यार को यू ही तो नही पाक कहा जाता है..

प्यार तो बस पाक होता है ठीक उस ईश्वर कि तरह.. जो साथ नही रहकर भी साथ होने का एहसास करा जाता है.. तब भी जब हम किसी अकेली पहाड़ी पर ढलते हुए सूरज को देखते रहते है.. जब वो शाम के आँचल का एक छोर पकड़ कर सहमा सा उतर जाता है पहाड़ी के पीछे..

यही वो पल है जब दिल के किसी एक कोने में तितलिया उड़ती है.. फूल खिल जाते है.. बारिश कि बूंदे छप छप की आवाज़ करती है.. ऐसा लगता है.. दिल में उठने वाली हर आवाज़ को शब्द देकर बिखेर दू आसमान में और चुन लू एक कविता अपने लिए..

मगर सब कुछ हमेशा ऐसा ही नही रहता.. सूरज को थामने की कोशिश भी कर लो फिर भी डूब जाता है.. कविता क़िस्से कहानिया तब जीभ निकल कर चिढाती है.. जब एक आवाज़ कानो में आती है..

तुम कैसे ये कर पाओगी..?

एक ऐसा सवाल जो जिस्म पर चमड़ी के साथ चिपक गया है.. कितना भी रगड़ लु नही उतरता.. फलक का एक छोर ले जाकर दूसरे छोर से भी मिला दू.. तो भी अगली बार ये आवाज़ कही कानो में गूँज ही जाएगी.. ठीक उसी तरह से जैसे पहाड़ी दलानो से लौटकर आती है आवाज़..

प्रतिध्वनि.. कहते है शायद उसे..

फ़ोन बजता है.. मैं फ़ोन उठाती हु.. एक मेल भेजनी थी.. भूल गयी थी.. फ़ौरन कंप्यूटर पर जाकर.. मेल भेजती हु..याद आता है.. दूध फ़्रिज़ में रखना है..किचन कि तरफ चली जाती हू.. बाहर हल्की हल्की बारिश हो रही है.. खिड़की को बंद कर दू वरना फर्श गीला हो जाएगा.. घोष बाबू आते है.. मिठाई खिलाओ मैडम.. आपकी किताब बेस्ट सेलर चुनी गयी है..

ये तो मैं पहले से ही जानती थी घोष बाबु..

यकीन नही आता मैडम... इतना सब कुछ कैसे कर लिया आपने..

ज़िंदगी का पहिया है..घोष बाबू... और पहिया चलाने में तो महारत हासिल है मुझे..

ठीक ही कहा मैडम.. पर मुझे लगा था आप कभी कर नही पाएगी..

मेरे गालो पर एक नन्ही मुस्कुराहट ने जन्म लिया.. हौसले आकर के आँखो में उतर गये.. बारिश क़ी बूँदो क़ी ठंडक दिल में महसूस हो रही थी.. घोष बाबू कुछ बोले थे.. एक और बार वो सवाल गूंजा था मेरे कानो में.. पर अब मुझे फ़िक्र नही थी.. घोष बाबू के सवाल का जवाब मेरे हाथ में था... मेरी किताब.. प्रतिध्वनि..

Monday, February 9, 2009

हरीश बैंड प्रेज़ेंट्स... तेरा इमोशनल अत्याचार. ( U/A पोस्ट)

शहर की सबसे बड़ी कोठी.. बाहर लंबा सा बगीचा.. बगीचे में फव्वारा अपनी चरम पर.. अंदर घुसते ही महलनुमा हॉल.. ड्रॉयिंग रूम में एक एक चीज़ करीने से रखी हुई.. संग मरमर का फर्श.. जिसमे आप अपनी शक्ल देख सकते है.. महकती हुई मोमबत्तिया.. फूलो से भरे वास..

कुल मिलाकर वो सारी चीज़े जो किसी भी मकान को आलीशान का नाम देती है.. उस घर में एक टाय्लेट भी है.. जिसके कमोड को पिछले सात महीनो से धोया नही गया है.. आप वहा जाते है तो आपका हाथ अपने आप आपके मुँह पर चला जाता है.. आप साँस रोक लेते है.. और कोशिश करते है की जितना जल्दी हो आप वहा से बाहर निकले...

आप बाहर जाकर किसी से कहते है.. उनके घर का टाय्लेट बहुत ही गंदा है.. आप बिल्कुल सच कहते है... पर वो बुरा मान जाते है.. कहते है आपने हमारे मकान के बगीचो को नही देखा.. इतने मंहगे फर्नीचर को नही देखा.. आपको हमारे टाय्लेट की गंदगी नज़र आई बस..

कट इट.. एक्सीलेंट शॉट.. स्पॉट कहा है? मेकअप दादा को बोलो मैडम का मेकअप ठीक करे.. और मुझे अख़बार लाकर दो..

अख़बार में लिखा है.. बिग बी ने कहा स्लमड़ोग मिलेनियर में भारत की गंदगी दिखाई है जो की ग़लत है..

चलो दूसरे सीन की तैयारी करो.. बारात का सीन है.. बैंड वाले कहा है... अरे कौनसा बैंड है? वो कहा है हरीश बैंड ?


सर वो तो अनुराग की फिल्म के प्रीमियर शो में गये है ..

वहा क्या कर रहा है वो.......?

एक.. दो.. तीन.. चार.. छे.........

ये दिल पिघला के साज़ बना दू.. धड़कन को आवाज़ बना दू..
स्मोकिंग स्मोकिंग निकले रे धुँआ...

सीने में जलती... है अरमानो की अर्थी.. वॉट टू टेल यू डार्लिंग क्या हुआ..

अरे तौबा तेरा जलवा.. तौबा तेरा प्यार... तेरा इमोशनल अत्याचार........


अनुराग कश्यप की फिल्म देव डी का ये एक गाना ज़ुबान पर गुड की डली सा चढ़ता है.. फिल्म में देवदास उपन्यास से किरदारो के नाम उठाए गये है बस.. बहुत से लोग नाकाम होते है और ज़िंदगी बर्बाद करते है.. फ़िर क्या है जो अनुराग की देव डी में हट के है... वो ये कि इस फिल्म की पारो शादी के बाद देव दास को भूलकर अपने पति की पहली पत्नी के बच्चो को अपना बच्चा मान लेती है..उसका पति भी उसे खुश रखता है..पारो एक खुशहाल ज़िंदगी जीती है..

चंदा उर्फ चंद्रमुखी और देव डी अपनी ज़िंदगी में की गयी ग़लतियो से उबरकर फिर से ज़िंदगी शुरू करते है... जबकि शरत बाबू की देवदास में देवदास प्यार में अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर देता है..

फिल्म बताती है की ग़लत राहो पर जाकर भी इंसान सुधार सकता है.. अगर उसे सुधरने का मौका दिया जाए...

फिल्म में चंदा देव डी से कहती है.. "मेरा एम एम एस बना था.. वो किसी टी वी में तो आया नही.. फिर लोगो को कैसे पता चला की इसमे मैं हू.. इसका मतलब सबने डाउनलोड करके देखा.. मज़े सबने लिए देखकर और बाद में मुझे स्लॅट बोला.. " इस संवाद ने एक स्वस्थ समाज के चेहरे से सारे नकाब उखाड़ फेंके.. और आधी दुनिया को नंगा कर दिया...

लीना के पिता उसकी माँ से कहते है की इसने सब अपनी मर्ज़ी से किया मैने खुद वो वीडियो देखा था.. तब लीना अपनी पिता से पूछती है की आपने अपनी बेटी को इस तरह से कैसे देख लिया..वो कोई जवाब नही दे पाते इस बात का और लीना के साथ जो हुआ उसके लिए उसके कायर पिता आत्म हत्या कर लेते है..

लीना अपनी गलती मान लेती है.. पर उसी के घर वाले उसका साथ नही देते.. उसके दोस्त उसे छोड़ देते है.. तब लीना चंदा बनती है और अपनी ज़िंदगी जीती है.. अपनी पढ़ाई पूरी करती है.. और संस्कृति और आदर्शो के इस देश में लोगो की हवस मिटाने का काम करती है..

फिल्म का अंत इतना जबरदस्त है.. की खड़े होकर ताली बजाने का मन करता है..अंत में चंदा प्रेम के लिए सब कुछ छोड़कर फिर से देव डी के साथ एक अच्छी ज़िंदगी शुरू करती है... वही देव डी भी चंदा के साथ अपनी ज़िंदगी को नये सिरे से शुरू करता है.. यही वो वजह है जहा शरत चंद्र के देवदास और अनुराग के देव डी में घोर अंतर नज़र आता है.. जहा देवदास पारो के प्यार में नाकाम होकर ज़पनी ज़िंदगी खराब कर लेता है.. वही देव डी चंदा से प्यार करके अपनी ज़िंदगी शुरू कर लेता है..

अरे क्या हो रहा है.. दूसरा सीन शुरू करो भाई.. ओके.. रॉलिंग केमेरा.. एक्शन..

मुझे नही पता.. कुछ भी करो.. मैं इस टॉयलेट को टॉलरेट नही कर सकती... ऐसे कैसे कोई हमारे घर के टॉयलेट के बारे में किसी को बता सकता है..

लेकिन माया तुम खुद सोचो.. टॉयलेट गंदा तो है ही.. हम इससे इनकार नही कर सकते..

हमारा टॉयलेट गंदा है.. तो क्या हुआ है.. इसे सबके सामने जाकर चिल्लाते हुए ये कहना की हमारा टॉयलेट गंदा है.. ये भी तो ठीक नही..

कट इट... बहुत अच्छे मैडम.. बहुत बढ़िया शॉट दिया.. चाय लाओ यार कोई.. अखबार कहा रख दिया.. उस देव डी का रिव्यू तो देखू..

देव डी एक बोल्ड फिल्म है.. आप इसे परिवार के साथ नही देख सकते.. ऐसी फ़िल्मे हमारी संस्कृति के खिलाफ है.. इससे हमारे बच्चो पर बुरा असर पड़ेगा..

Wednesday, February 4, 2009

तुमको भी कैसे नींद आएगी ?

तुमको भी कैसे नींद आएगी ?

ये एक फिल्म के गीत के मुखड़े की दूसरी लाइन है.. पहली लाइन इन दिनो सभी न्यूज़ चैनल पर चल रही है.. 'खोया खोया चाँद'.. एक लड़की.. लड़की? औरत.. का चाँद कही खो गया है.. न्यूज़ चैनल वाले हलकान हुए जा रहे है. छाती पीट रहे है.. चाँद खो गया.. चाँद खो गया..

अमीना आलम का बेटा दंगो में कही गुम हो गया था.. कितने सालो से वो चक्कर लगा रही है दफ़्तरो के उसका बेटा पता नही कही खो गया है.. पागल है बुढ़िया.. सोचती है टी वी वाले उसके भी घर आएँगे.. उसके चाँद को ढूंड लाएँगे.. जानती नही.. उसके घर का रास्ता लंबा है.. टी वी वालो को तो शॉर्ट कट चाहिए...

एक साहब बरसो तक छोटे मोटे अभियान चलाकर अपनी टीम बनाते है.. उनका कोई भतीजा आकर निर्दोषो को मारता है.. रातो रात अख़बारो की सुर्ख़ियो पर राज करने लगता है.. सब उसके बारे में बात करने लग जाते है...

हमने कई बार देखा होगा.. बच्चा नीचे गिरता है तब नही रोता है.. जैसे ही उसे कोई अपना दिख जाए वो रोना शुरू कर देता है.. अगर उस पर ध्यान नही दिया जाए तो और ज़ोर से रोता है.. और अगर आप ध्यान दिए बिना निकल जाए वहा से...... तो बच्चा चुप हो जाता है.. बच्चा हमेशा रो तो नही सकता ना...

लेकिन हम ग़लती कहा करते है?? हम ध्यान दे देते है.. जैसे ही बच्चा रोता है.. हम पुचकारते है.. बेटा कहा लगी.. हमे बताओ.. और बच्चा रोता जाता है.. हम ध्यान देते जाते है...

ये ध्यान बटोरने वाली आदत खराब है.. बच्चा बड़ा होकर किसी पब या बार में घुस कर लोगो को मार पीट कर भी ध्यान बटोरने की कोशिश कर सकता है..

तभी तो मुझे वो गाना याद आता है....... तुमको भी कैसे नींद आएगी.....

बातो बातो में बताना भूल गया


कॉफी विद कुश का सीजन 2 आ रहा है.. और इस बार का पहला ही एपिसोड ब्लॉग जगत की एक धमाके दार सख्शियत के साथ होने वाला है वो भी एक नयी थीम के साथ जिसका नाम है 'टोस्ट विद टू होस्ट' यानी की दो मेजबान के साथ फँसने वाले है हमारे इस बार के मेहमान.. दूसरा मेजबान कौन है? इस के बारे में आप आइडिया लगाइए..

लेकिन मैं आपको बता दू की हमारे मेहमान भी कम नही है.. बस थोड़ा सा इंतेज़ार कीजिए... अभी हम चलते है... दसविदानिया....