शहर की सबसे बड़ी कोठी.. बाहर लंबा सा बगीचा.. बगीचे में फव्वारा अपनी चरम पर.. अंदर घुसते ही महलनुमा हॉल.. ड्रॉयिंग रूम में एक एक चीज़ करीने से रखी हुई.. संग मरमर का फर्श.. जिसमे आप अपनी शक्ल देख सकते है.. महकती हुई मोमबत्तिया.. फूलो से भरे वास..
कुल मिलाकर वो सारी चीज़े जो किसी भी मकान को आलीशान का नाम देती है.. उस घर में एक टाय्लेट भी है.. जिसके कमोड को पिछले सात महीनो से धोया नही गया है.. आप वहा जाते है तो आपका हाथ अपने आप आपके मुँह पर चला जाता है.. आप साँस रोक लेते है.. और कोशिश करते है की जितना जल्दी हो आप वहा से बाहर निकले...
आप बाहर जाकर किसी से कहते है.. उनके घर का टाय्लेट बहुत ही गंदा है.. आप बिल्कुल सच कहते है... पर वो बुरा मान जाते है.. कहते है आपने हमारे मकान के बगीचो को नही देखा.. इतने मंहगे फर्नीचर को नही देखा.. आपको हमारे टाय्लेट की गंदगी नज़र आई बस..
कट इट.. एक्सीलेंट शॉट.. स्पॉट कहा है? मेकअप दादा को बोलो मैडम का मेकअप ठीक करे.. और मुझे अख़बार लाकर दो..अख़बार में लिखा है.. बिग बी ने कहा स्लमड़ोग मिलेनियर में भारत की गंदगी दिखाई है जो की ग़लत है..
चलो दूसरे सीन की तैयारी करो.. बारात का सीन है.. बैंड वाले कहा है... अरे कौनसा बैंड है? वो कहा है हरीश बैंड ?सर वो तो अनुराग की फिल्म के प्रीमियर शो में गये है ..
वहा क्या कर रहा है वो.......?एक.. दो.. तीन.. चार.. छे.........
ये दिल पिघला के साज़ बना दू.. धड़कन को आवाज़ बना दू..
स्मोकिंग स्मोकिंग निकले रे धुँआ...
सीने में जलती... है अरमानो की अर्थी.. वॉट टू टेल यू डार्लिंग क्या हुआ..
अरे तौबा तेरा जलवा.. तौबा तेरा प्यार... तेरा इमोशनल अत्याचार........अनुराग कश्यप की फिल्म देव डी का ये एक गाना ज़ुबान पर गुड की डली सा चढ़ता है.. फिल्म में देवदास उपन्यास से किरदारो के नाम उठाए गये है बस.. बहुत से लोग नाकाम होते है और ज़िंदगी बर्बाद करते है.. फ़िर क्या है जो अनुराग की देव डी में हट के है... वो ये कि इस फिल्म की पारो शादी के बाद देव दास को भूलकर अपने पति की पहली पत्नी के बच्चो को अपना बच्चा मान लेती है..उसका पति भी उसे खुश रखता है..पारो एक खुशहाल ज़िंदगी जीती है..
चंदा उर्फ चंद्रमुखी और देव डी अपनी ज़िंदगी में की गयी ग़लतियो से उबरकर फिर से ज़िंदगी शुरू करते है... जबकि शरत बाबू की देवदास में देवदास प्यार में अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर देता है..
फिल्म बताती है की ग़लत राहो पर जाकर भी इंसान सुधार सकता है.. अगर उसे सुधरने का मौका दिया जाए...
फिल्म में चंदा देव डी से कहती है..
"मेरा एम एम एस बना था.. वो किसी टी वी में तो आया नही.. फिर लोगो को कैसे पता चला की इसमे मैं हू.. इसका मतलब सबने डाउनलोड करके देखा.. मज़े सबने लिए देखकर और बाद में मुझे स्लॅट बोला.. " इस संवाद ने एक स्वस्थ समाज के चेहरे से सारे नकाब उखाड़ फेंके.. और आधी दुनिया को नंगा कर दिया...
लीना के पिता उसकी माँ से कहते है की इसने सब अपनी मर्ज़ी से किया मैने खुद वो वीडियो देखा था.. तब लीना अपनी पिता से पूछती है की आपने अपनी बेटी को इस तरह से कैसे देख लिया..वो कोई जवाब नही दे पाते इस बात का और लीना के साथ जो हुआ उसके लिए उसके कायर पिता आत्म हत्या कर लेते है..
लीना अपनी गलती मान लेती है.. पर उसी के घर वाले उसका साथ नही देते.. उसके दोस्त उसे छोड़ देते है.. तब लीना चंदा बनती है और अपनी ज़िंदगी जीती है.. अपनी पढ़ाई पूरी करती है.. और संस्कृति और आदर्शो के इस देश में लोगो की हवस मिटाने का काम करती है..
फिल्म का अंत इतना जबरदस्त है.. की खड़े होकर ताली बजाने का मन करता है..अंत में चंदा प्रेम के लिए सब कुछ छोड़कर फिर से देव डी के साथ एक अच्छी ज़िंदगी शुरू करती है... वही देव डी भी चंदा के साथ अपनी ज़िंदगी को नये सिरे से शुरू करता है..
यही वो वजह है जहा शरत चंद्र के देवदास और अनुराग के देव डी में घोर अंतर नज़र आता है.. जहा देवदास पारो के प्यार में नाकाम होकर ज़पनी ज़िंदगी खराब कर लेता है.. वही देव डी चंदा से प्यार करके अपनी ज़िंदगी शुरू कर लेता है..
अरे क्या हो रहा है.. दूसरा सीन शुरू करो भाई.. ओके.. रॉलिंग केमेरा.. एक्शन..मुझे नही पता.. कुछ भी करो.. मैं इस टॉयलेट को टॉलरेट नही कर सकती... ऐसे कैसे कोई हमारे घर के टॉयलेट के बारे में किसी को बता सकता है..
लेकिन माया तुम खुद सोचो.. टॉयलेट गंदा तो है ही.. हम इससे इनकार नही कर सकते..
हमारा टॉयलेट गंदा है.. तो क्या हुआ है.. इसे सबके सामने जाकर चिल्लाते हुए ये कहना की हमारा टॉयलेट गंदा है.. ये भी तो ठीक नही..
कट इट... बहुत अच्छे मैडम.. बहुत बढ़िया शॉट दिया.. चाय लाओ यार कोई.. अखबार कहा रख दिया.. उस देव डी का रिव्यू तो देखू..देव डी एक बोल्ड फिल्म है.. आप इसे परिवार के साथ नही देख सकते.. ऐसी फ़िल्मे हमारी संस्कृति के खिलाफ है.. इससे हमारे बच्चो पर बुरा असर पड़ेगा..