क्या लिखू तेरे लिए
हर शब्द तड़पता है
तेरी तारीफ़ में समानेे के लिए
तुझे ज़िंदगी कह दु तो चलेगा
या फिर दूसरा कोई नाम क हू..
सुबह की लालीमा कह दु या फिर
ख़ुशनुमा कोई शाम क हू..
तुझे दरिया का पानी कह दु..
दादी की कहानी कह दु...
कह दु तुझे खिलता फूल कोई
या फिर इश्क़ की निशानी कह दु,
एक कशमकश में फंस चुका हू..
तुझे पल भर का आराम क हू,
चाँद की चाँदनी कह के देख लेता हू..
या फिर छलकता जाम क हू..
निगाओ की महकशी कह देता हू तुझे..
या फिर मुहब्बत का पैगाम क हू..
तुझे कह दु मुस्कुराहट बचपन की..
या ..किसी नमाज़ी का ईमान क हू..
कह देता हू तुझे मंगला आरती
या फिर सुबह की अज़ान क हू
देखती है दो निगाए तुझे प्यार से..
उन निगाओ की तुझे जान क हू..
लब शर्म से रुक जाते है जब
सोचता हू तुझे एक नाम क हू
कुछ बातें दिल की दिल मैं ही रह जाती है ! कुछ दिल से बाहर निकलती है कविता बनकर..... ये शब्द जो गिरते है कलम से.. समा जाते है काग़ज़ की आत्मा में...... ....रहते है........... हमेशा वही बनकर के किसी की चाहत, और उन शब्दो के बीच मिलता है एक सूखा गुलाब....
Friday, June 22, 2007
Saturday, June 9, 2007
"झील के किनारे.."
झील के किनारे
तन्हा बैठे हुए
यादो में किसी की
खोया हुआ था..
की अचानक एक गुलाब
गिरा पानी पर
कुछ तरंगे बन गयी
हिलते हुए पानी में..
एक तस्वीर नज़र आई थी
सुर्ख़ गुलाबी तेरी ही थी..
अबकी बार कुर्ता गुलाबी था
बिल्कुल तेरे होटो की तरह..
जिन्हे छूने को
मेरे लब बेकरार रहते थे..
उंगलिया मचलने लगी
पानी में उतरने को..
सोचा एक बार तेरे
गालो को छ्हू लिया जाए..
लेकिन इतनी मासूम सी
तुम लगी थी पानी में...
की आँखो ने कसम देकर
रोक लिया मुझे..
धड़कनो ने दी आवाज़
वो मचलने लगी थी..
इतनी सुंदर कैसे हो तुम
तितलिया भी तुमसे जलने लगी थी
शाम हो चली थी
मगर दीवाना सूरज..
पहाड़ी के पीछे से
अब भी झाँक रहा था..
अंगूर की बेल,
किनारे पर थी.
कैसे लटक कर
पानी पर आ गयी थी..
तुम कितनी ख़ूबसूरत हो
मुझे ये एहसास हुआ था..
अचानक किसी के आने का
आभास हुआ था..
रात बेदर्दी जलने लगी
अंधेरे में तुम नज़र ना आई
जुगनुओ ने मगर
मेरा साथ निभाया था..
सुबह हो चुकी है
पंछी चहकने लगे...
डाली पर फिर एक
गुलाब खिल आया है
हवाओ का मन किया है
तुझे देखने को..
फिर से पानी में एक
गुलाब गिराया है
--------------------------
तन्हा बैठे हुए
यादो में किसी की
खोया हुआ था..
की अचानक एक गुलाब
गिरा पानी पर
कुछ तरंगे बन गयी
हिलते हुए पानी में..
एक तस्वीर नज़र आई थी
सुर्ख़ गुलाबी तेरी ही थी..
अबकी बार कुर्ता गुलाबी था
बिल्कुल तेरे होटो की तरह..
जिन्हे छूने को
मेरे लब बेकरार रहते थे..
उंगलिया मचलने लगी
पानी में उतरने को..
सोचा एक बार तेरे
गालो को छ्हू लिया जाए..
लेकिन इतनी मासूम सी
तुम लगी थी पानी में...
की आँखो ने कसम देकर
रोक लिया मुझे..
धड़कनो ने दी आवाज़
वो मचलने लगी थी..
इतनी सुंदर कैसे हो तुम
तितलिया भी तुमसे जलने लगी थी
शाम हो चली थी
मगर दीवाना सूरज..
पहाड़ी के पीछे से
अब भी झाँक रहा था..
अंगूर की बेल,
किनारे पर थी.
कैसे लटक कर
पानी पर आ गयी थी..
तुम कितनी ख़ूबसूरत हो
मुझे ये एहसास हुआ था..
अचानक किसी के आने का
आभास हुआ था..
रात बेदर्दी जलने लगी
अंधेरे में तुम नज़र ना आई
जुगनुओ ने मगर
मेरा साथ निभाया था..
सुबह हो चुकी है
पंछी चहकने लगे...
डाली पर फिर एक
गुलाब खिल आया है
हवाओ का मन किया है
तुझे देखने को..
फिर से पानी में एक
गुलाब गिराया है
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"उफ़!! ये पति देव मेरे.."
उफ़!! ये पति देव मेरे
सोते देर से है
और उठ ते भी देर से..
चिल्ला चिल्ला के थक जाए
चाहे क्ववा भी मुंडेर से...
bed टी चाहिए, साथ
में सुबह का अख़बार
थोड़ी सी भी ठंडी हो चाय
तो परा सातवे आसमा पार
सुबह सुबह होता है ये हाल...
उफ़!! ये पति देव मेरे
पानी गरम कर दिया क्या
नाश्ते में क्या बनाया है
मुझे लेट हो रहा है
मेरे shocks नही मिल रहे..
जाने कैसे कैसे पूछते है सवाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
घड़ी नही मिल रही
purse कहा रख दिया
सुनती हो जल्दी tiffin लाओ
आज फिर boss डाटे-गा
देखा कैसे मचाते है बवाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
एक जुराब सफ़ेद है
तो दूसरी काली पहनी
जल्दी बाज़ी में देखो
ब्नियान भी उलटी पहनी..
अब मारे शर्म के चेहरा है लाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
टाई बाँधनी आती है मगर
बंधवाएँगे मुझसे
अरे कहा हो जल्दी आओ ना
टाई कौन बांधेगा..
ना आओ तो आता है भूचाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
शाम को dinner का वादा
और लाल बनारसी साड़ी...
क़ब्से सुनती आ रही हू
कुछ भी नही मिलता है
दिल से अमीर पर जेब से कंगाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
भागते हुए जाते है office
पहुचते ही फ़ोन करते है
थोड़ी देर पहले तो गये थे
अब पूछते है कैसी हो....
रखते है कितना मेरा ख़्याल
उफ़!! ये पति देव मेरे
पाँच बजते ही ख़ुश हो जाती हू
उनके आने का time हो गया..
टाई की नोट खुली हुई
shirt आधी बाहर है
लगते है hritik चाहे हो फटे हाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
थके हुए से आते है
कितना काम करते होंगे...
फिर boss ने डाटा होगा
सब कुछ सह जाते है
अल्लाह की गाय है पहने शेर की खाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
चौपाटी पर ले जाते है
dinner तो नही पर चाट खि लाते है
जानते है मुझे फूल पसंद है
और वो भी ले आते है
कहते है तुमसे जीवन मेरा ख़ुशहाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
सपनो वाली बातें करते है
पूरा करके दिखाएँगे
इनकी बाहो मैं सोती हू
सारे दर्द भूल जाती हू...
पाकर के इनको हो गयी मैं निहाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
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सोते देर से है
और उठ ते भी देर से..
चिल्ला चिल्ला के थक जाए
चाहे क्ववा भी मुंडेर से...
bed टी चाहिए, साथ
में सुबह का अख़बार
थोड़ी सी भी ठंडी हो चाय
तो परा सातवे आसमा पार
सुबह सुबह होता है ये हाल...
उफ़!! ये पति देव मेरे
पानी गरम कर दिया क्या
नाश्ते में क्या बनाया है
मुझे लेट हो रहा है
मेरे shocks नही मिल रहे..
जाने कैसे कैसे पूछते है सवाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
घड़ी नही मिल रही
purse कहा रख दिया
सुनती हो जल्दी tiffin लाओ
आज फिर boss डाटे-गा
देखा कैसे मचाते है बवाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
एक जुराब सफ़ेद है
तो दूसरी काली पहनी
जल्दी बाज़ी में देखो
ब्नियान भी उलटी पहनी..
अब मारे शर्म के चेहरा है लाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
टाई बाँधनी आती है मगर
बंधवाएँगे मुझसे
अरे कहा हो जल्दी आओ ना
टाई कौन बांधेगा..
ना आओ तो आता है भूचाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
शाम को dinner का वादा
और लाल बनारसी साड़ी...
क़ब्से सुनती आ रही हू
कुछ भी नही मिलता है
दिल से अमीर पर जेब से कंगाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
भागते हुए जाते है office
पहुचते ही फ़ोन करते है
थोड़ी देर पहले तो गये थे
अब पूछते है कैसी हो....
रखते है कितना मेरा ख़्याल
उफ़!! ये पति देव मेरे
पाँच बजते ही ख़ुश हो जाती हू
उनके आने का time हो गया..
टाई की नोट खुली हुई
shirt आधी बाहर है
लगते है hritik चाहे हो फटे हाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
थके हुए से आते है
कितना काम करते होंगे...
फिर boss ने डाटा होगा
सब कुछ सह जाते है
अल्लाह की गाय है पहने शेर की खाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
चौपाटी पर ले जाते है
dinner तो नही पर चाट खि लाते है
जानते है मुझे फूल पसंद है
और वो भी ले आते है
कहते है तुमसे जीवन मेरा ख़ुशहाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
सपनो वाली बातें करते है
पूरा करके दिखाएँगे
इनकी बाहो मैं सोती हू
सारे दर्द भूल जाती हू...
पाकर के इनको हो गयी मैं निहाल
उफ़!! ये पति देव मेरे
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Thursday, June 7, 2007
"कोशिश........."
कोशिश करता हू
गिर जाता हू..
फिर करता हू
फिर गिरता हू..
रुकता नही हू
गिरता हू
संभलता हू
ग़ुस्से से थोड़ा
मचलता हू
फिर सोचता हू
कुछ पाना है मुझको
लंबी साँस भरता हू
फिर कोशिश करता हू
गिर जाता हू
फिर करता हू
फिर गिरता हू.....
गिर जाता हू..
फिर करता हू
फिर गिरता हू..
रुकता नही हू
गिरता हू
संभलता हू
ग़ुस्से से थोड़ा
मचलता हू
फिर सोचता हू
कुछ पाना है मुझको
लंबी साँस भरता हू
फिर कोशिश करता हू
गिर जाता हू
फिर करता हू
फिर गिरता हू.....
"सपने........."
नींद के गर्भ में
लात मारते कुछ सपने
इनका सीमंतन..
चल रहा है .....
ये संस्कार इन सपनो को
नयी दीशाए देंगे..
तब भी जब रूठ जाएगी आँखे
ख़ुशियो का संसार देंगे.
सपनो का गर्भ में प्लना
कितना ख़ूबसूरत होता है ..
मगर जब आती है बारी
इनकी गर्भ से निकलने की
तभी कुछ हो जाता है ....
फिर अब की बार केस
कॉम्प्लेक्स हो गया है
एक सपना जीना चाहता है
बाहर आना चाहता है
नींद की गर्भ से
पर एक दाव अभी लग गया है
क़िस्मत सपने की
लिखी गयी है कुछ इस तरह
की आज फिर से सपनो वाला
गर्भ ठहर गया है ....
लात मारते कुछ सपने
इनका सीमंतन..
चल रहा है .....
ये संस्कार इन सपनो को
नयी दीशाए देंगे..
तब भी जब रूठ जाएगी आँखे
ख़ुशियो का संसार देंगे.
सपनो का गर्भ में प्लना
कितना ख़ूबसूरत होता है ..
मगर जब आती है बारी
इनकी गर्भ से निकलने की
तभी कुछ हो जाता है ....
फिर अब की बार केस
कॉम्प्लेक्स हो गया है
एक सपना जीना चाहता है
बाहर आना चाहता है
नींद की गर्भ से
पर एक दाव अभी लग गया है
क़िस्मत सपने की
लिखी गयी है कुछ इस तरह
की आज फिर से सपनो वाला
गर्भ ठहर गया है ....
"राहें..."
तेरी ओर आने वाले रास्ते
जानता मैं नही..
फिर भी पाना है तुझको
जैसे बहता हुआ दरिया
मिल जाता है समंदर में
क्ंटको के रास्तो से..
फिर पा जाता है मंज़िल अपनी
शायद ये लहरे बहाओ से नही
हॉंसलो से बहती है ....
निरंतर.. अकारण उन्माद में...
इनके पास वजह लगती है
प्रफुललित होने की..
एक मैं हू जिसे रास्ते की तलाश है
भीड़ भरी दुनिया में
अकेला खड़ा हू...
वक़्त के साथ बाज़ी खेली है
जाने कौन सा लम्हा मात दे दे..
यही सोच कर क़दम बढ़ाए..
तुझको पाने को..
थोड़ी सी हिम्मत बस..
क्या पता शायद
राहें भी संग मेरे तुझसे
मिलने चली आए...
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जानता मैं नही..
फिर भी पाना है तुझको
जैसे बहता हुआ दरिया
मिल जाता है समंदर में
क्ंटको के रास्तो से..
फिर पा जाता है मंज़िल अपनी
शायद ये लहरे बहाओ से नही
हॉंसलो से बहती है ....
निरंतर.. अकारण उन्माद में...
इनके पास वजह लगती है
प्रफुललित होने की..
एक मैं हू जिसे रास्ते की तलाश है
भीड़ भरी दुनिया में
अकेला खड़ा हू...
वक़्त के साथ बाज़ी खेली है
जाने कौन सा लम्हा मात दे दे..
यही सोच कर क़दम बढ़ाए..
तुझको पाने को..
थोड़ी सी हिम्मत बस..
क्या पता शायद
राहें भी संग मेरे तुझसे
मिलने चली आए...
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