पिछले कुछ दिनो से बस यूही मशरूफ था ज़िंदगी के साथ.. अब आया हू तो सोचा की नये रूप में मिला जाए.... बस इसी लिए ब्लॉग को एक नया रूप दिया है.. बताएगा कैसा लगा आपको... तक तक पढ़िए कुछ दिल से लिखी क्षणिकाए..
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दूर अंतरिक्ष से
गिरा एक उल्कापिंड
सीधा टकराया मेरी
कल्पनाओ से..
तुम्हारे टुकड़े टुकड़े
कैसे संभाल कर
जोड़े थे मैने...
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रात गिर गयी
तूफ़ान तेज़ आया था
या फिर दरारो से
महक तेरी गयी ,
कल रात मैने
चाँद को हिलते देखा था
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शाम से थोड़ा परेशान हू
तुम आयी नही ऑफीस से अब तक,
सोचता हू एक फोन कर लू तुम्हे
फिर याद करके कुछ..
आँखो मैं नमी आ जाती है
तुम अब ऑफीस से घर जो नही आती हो...

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याद है
तुम्हारी बनाई सब्ज़ी
में, कितने नुक्स
निकालता था..
करेला नही खाने के
कितने बहाने थे,
तुम अब मुझे खिलाती
नही हो, पर
अब मुझे करेला अच्छा
लगता है..

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आज क्या क्या हुआ,
हर बात ऑफीस की
घर आकर बताते थे हमे
इक रोज़ ना जाने कहा
बिन बताए चले गये..
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