Tuesday, July 31, 2007

"कुछ दिल से लिखी क्षनिकाए.."

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पाँच साल
नही टी-क-ती सरकार
तुम कैसे टिक गये
ज़िंदगी में मेरी,
उसने कहा इस बार
फ़रवरी में दिन
28 थे....

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एक ग़ज़ल आकर
गिरती है आँगन पर,
कुछ शेर ज़मी
पर छोड़ जाती है
मैं अटका रहता हू
कुछ मिश्रो में
तेरे क़दमो के निशान
उसी ज़मी पर पाता हू..

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-कुश

2 comments:

  1. bahut khuub kush ...choti choti baate zindagi ki magar bahut zaroori..v nice dear

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  2. "फिर याद करके कुछ..
    आँखो मैं नमी आ जाती है
    तुम अब ऑफीस से घर जो नही आती हो..."

    जिंदगी कल एक गुजरा हुआ पल याद आ गया मुझे भी...सीधे सादे प्यारे से अल्फाज़ हैं
    बेहद खूबसूरत

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..