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कल शाम बर्फ़ गिरी थी
वादियो में कही..
और ठंड फैल गयी
उजाले की तरह..
मैने तुम्हारी
गोद को लिहाफ़ बनाया था..
फिर आँखें बंद हुई
मैं कही खो गया..
तू थपथपाती रही
कांधे को मेरे..
मुझे फिर से..
तेरा ख्वाब आया था..
खुली जो आँखें
थमी सांसो से, कुछ पूछा
तुम कुछ नही बोली
वैसे ही रही..
पर आँखो से
तुम्हारी, इक जवाब आया था...
बड़ी अजीब बात है
कैसे करू यक़ीन...
वो प्यार ही था
जिसने प्यास लगाई थी..
और वो भी प्यार था
जिसने उस प्यास को बुझाया था...
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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..