May 24 ------------------------------------- मैने लिख दिया था नाम तेरा और मेरा... मगर किसी को ये नागवार गुज़रा उसने मिटाई हस्ती दरखतो से कुछ इस तरह... की रेत से भ्री मुट्ठी ख़ाली हो चुकी थी तू रख लेती मुझे, पायल बनाकर तो तेरे क़दमो में रह लेता किसी तरह मगर तूने बनाकर आँसू मुझे.. अपनी निगाओ से गिरा दिया,, मैने लिख दिया था नाम तेरा और मेरा रेत पर समंदर का सहारा लेकर तूने उसपे पानी फिरा दिया... ------------------------------------- |
कुछ बातें दिल की दिल मैं ही रह जाती है ! कुछ दिल से बाहर निकलती है कविता बनकर..... ये शब्द जो गिरते है कलम से.. समा जाते है काग़ज़ की आत्मा में...... ....रहते है........... हमेशा वही बनकर के किसी की चाहत, और उन शब्दो के बीच मिलता है एक सूखा गुलाब....
Friday, May 25, 2007
"सिर्फ़ एक ख़्याल......."
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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..