लिखी थी कुछ बातें
रात को तुमने और मैने ....
उजाले ने खोल दी मुट्ठी
और रात उड़ गयी ..
रोशनी चुपके से
कमरे में उतर आई...
उनंदी निगाओ से
तुमको देखा, आज पहली सुबह है
अपने सीने से तुम्हारा
हाथ हटाया, कितनी मासूम सी सोई थी..
माथे पर तुम्हारे
फैला हुआ सिंदूर
किसी साँझ की
लाली का एहसास कराता है..
खिड़की से देखती बेल
ने शायद तुमको छुआ होगा
कितनी सुंदर तुम्हारी
पहली अंगड़ाई है ...
धीरे धीरे
खुलती तुम्हारी आँखें..
कुछ ख्वाब अभी तक
है बाक़ी..
खोल कर आँखें
तुम होले से मुस्काई..
और फैला दी बाहें
तुम्हारा दिल भी ना, भरा नही..
रुके क़दमो से..
जा पहुँचा...
तुम्हारी गोद में
सर अपना छुपाया था..
चददर की सलवटे
रात की कहानी सुना रही है
हया से चेहरा हमारा
लाल होने लगा है ...
खुले बालो मैं तुम्हारे
ऐसे खो गया हू
जैसे बच्चा कोई भ्रे बाज़ार में
खो गया है
तुम्हारी मुस्कुराहट
गुलाब की पंखुड़ी...
महकती है और
महकाती भी..
आज जो ये sparsh
है तुम्हारा...
पहली बार मा की गोद
में इसे पाया था...
ऐसा ही प्यार मेरी
ज़िंदगी मैं भरना
तुम्हारी रात वाली बात
मुझे हमेशा याद रहेगी..
दिल तो किया था
थोड़ी और बढ़ा लेते
पर बुलबुले सी रात
ख़त्म हो चुकी थी..
कुछ बूँदे फिर भी
जो गिरी थी कल रात
अपने गीले निशान
कमरे में छोड़ गयी थी...
लेकर इक दूजे का हाथ
अपने हाथो में..
एक कसम दोनो की ज़ुबान
पर थी..
लिखी थी जो बातें
रात को तुमने और मैने
वो बातें अब भी
आसमान पर थी....
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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..