Saturday, December 1, 2007

तेरी हर नज़र शरार्त है.....

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ज़ुल्फ़ो में लगे गुलाब को
देख कर शरमाती..
तेरी हर नज़र शरार्त है....

माथे की बिंदिया चूम कर
निगाओ में छुप जाती...
तेरी हर नज़र शरार्त है.......

निगाओ से होते हुए..
लबो पर ज़रा ठहरती,..
तेरी हर नज़र शरार्त है......

लबो की सहराओ से निकल
गर्दन पर मचल जाती
तेरी हर नज़र शरार्त है....

गर्दन से उतरती होले
सीने में दफ़न हो जाती..
तेरी हर नज़र शरार्त है.....

सीने में सिर्हन जगाती
कमर पर आकर ठहरती..
तेरी हर नज़र शरार्त है....

कमर से उतरती नीचे
एक अगन जगा जाती..
तेरी हर नज़र शरार्त है...

पैरो की तलहटियो में
मगन सी होती जाती
तेरी हर नज़र शरार्त है...

क़दम प्यार से चूमती
जन्नत की सैर कराती...
तेरी हर नज़र शरार्त है

भरी महफ़िल में ना छ्ूकर भी
एक छुहन जगा जाती..
तेरी हर नज़र शरार्त है.....

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..