Wednesday, October 10, 2007

"सलाम नाथुराम! सलाम नाथुराम"

सुबह सोकर उठा तो
हैरान रह गया..
जहा भी जाता हू लोग एक दूसरे
को कह रहे है..
सलाम नाथुराम! सलाम नाथुराम

मैं घर में घुस जाता हू
दरवाज़े खिड़किया सब
बंद कर लेता हू.. छुप जाता हू
बाथरूम मैं दरवाज़ा
बंद करके.. आईने में मुझे
फिर नज़र आता है नाथुराम..

घर की सारी दीवारो पर..
नाथुराम की तस्वीरे है.
टीवी में नाथुराम,, अख़बार में
नाथुराम.. मुझे पागल बना
दिया है इसने..

जहा भी नज़र दौड़ाता हू
मुझे सब नाथुराम क्यो लगते है..

मैं भागता हू एक व्यक्ति मिलता है
मुझे फूल देता है..
गले लगाता है... मैं सब भूल जाता हू
ख़ुश हो जाता हू... उसका नाम पूछता हू
वो मुन्ना बताता है..
मैं उसको शुक्रिया कहता हू..
एक फूल लेता हु..दुस्रे को देता हू
वो वही फूल किसी और को देता हू
मुझे गाँधी नज़र आता है.. नाथुराम
मेरी आँखो से दूर जाता है..
गाँधी ही गाँधी हर ओर नज़र आता है
वाह मुन्ना ...कमाल कर दिया तुमने

गाँधिगिरी चलाने की तुमको है बधाई
हम है तुम्हारे साथ लगे रहो मुन्नाभाई..

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..