Wednesday, October 10, 2007

"बादल मानते नही बरस जाते है चुपके स"

बादल मानते नही
बरस जाते है चुपके से
इन्हे तेरी यादो में
रोना अच्छा लगता है

पेडो की डालिया झूम जाती है
अक्सर हवाओ में
इन्हे तेरे ख़्यालो में
ख़ुश होना अच्छा लगता है

समंदर हो जाता है चुप
शाम के कद्म रखते ही
इसे तेरे ख्वाब देखते हुए
सोना अच्छा लगता है

सूरज बैठ जाता है चुपचाप आकर
सुबह सुहानी पहाड़ी के पीछे
इसे तेरे आने की ताकीद में
बाट जोना अच्छा लगता है

हवाए मंद मंद उड़ते हुए
अक्सर ठिठक कर रुक जाती है
इन्हे तेरे ख़्यालो की राहो में
खोना अच्छा लगता है

तू आकर सिमट जाए मेरी बाजुओ में
और मैं गुज़ार लू पूरी ज़िंदगी अपनी
इसी हसीन पल की आस का बीज
बोना अच्छा लगता है

-----------------

No comments:

Post a Comment

वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..