बात है स्कूल के दिनो की.. फिज़िक्स का प्रेक्टिकल था उस दिन.. आम तौर पर बायो वालो के लिए थोड़ा सा मुश्किल ही होता है फिज़िक्स समझना.. डा.साहब भी सहमत होंगे मुझसे..खैर सर ने पहले ही आकर बता दिया की स्पेक्टरॉमीटर सेट है जाकर के सिर्फ़ रीडिंग ले लेना उसे छेड़ना मत वरना रीडिंग्स चेंज हो जाएगी.. सारी इंस्ट्रकसंस समझा दी गयी.. फिर भी हम पर भोले बाबा का आशीर्वाद जो है.. तो हम भी भोले भले.. जाके छेड़ ही दिया.. बस फिर क्या रीडिंग हो गयी चेंज.. इतने में एक्सटर्नल महाशय आ गये.. मुझसे पूछने लगे ये कैसे सेट करोगे.. मैने जो पता था बता दिया.. वो पास में खड़े होकर बोले करो.. अब हमने आवाज़ लगाई हनुमान जी को (अरे जनाब मन में आवाज़ लगाई थी.. आप भी ना यार) खैर शायद हनुमान जी वही से कही गुज़र रहे होंगे तो उन्होने सुन ली.. सर गये.. इतने में मैने अपने एक दूसरे सर को बुलाया, नाम था अजय सिंह उनको मैने कहा की सर ये ठीक कर दो.. सर ने आकर के ठीक तो किया पर हुआ नही.. रीडिंग सही नही आ रही थी.. थोड़ी देर मशक्कत के बाद वो बोले की रतन सर को बुला लो.. अब रतन सर जो थे वो थे हमारे सीनियर सर उनसे हमे बड़ा डर लगता था.. उनको बुलाया.. आते ही गुस्से में बोले जब मना किया था तो छेड़ा क्यो.. मैने कहा सर मैने थोड़े ही छेड़ा ये तो वो अजय सर छेड़ के चले गये..
बस फिर क्या था.. रतन सर सबके सामने बोले अजय जी आप क्या करते हो यार क्यू छेड़ के गये इसका यू ही टाइम वेस्ट हो गया.. अजय सर की सिट्टी पिट्टी गुम.. वो बोले सर छेड़ा तो इसी ने था.. मैने तो ठीक कर के दिया था..
और सर हमारी तरफ पलटे.. मैने कहा सॉरी सर.. सर जी कहने लगे काफ़ी स्मार्ट हो..
आप भी मान ही गये होंगे की स्मार्ट तो हू...
आगे फिर क्या हुआ सुनिए तो सही.. वाईवा बाकी था.. एक्सटर्नल जनाब कुर्सी पर बैठे थे.. हमसे नाम पूछा उन्होने.. भगवान कसम उस समय माता सरस्वती स्वयं हमारी जीभ पर विराजमान थी हमने अपना पूरा नाम बताया.. वो कुर्सी पर मेंढक की तरह उछल पड़े और बोले वैष्णव हो.. हमें लगा जैसे वैष्णव होना इस धरती का सबसे बड़ा पाप है.. लेकिन खुद को संभाल कर मैने कहा .. यस् सर ..
बस फिर क्या था हमारा टेस्ट शुरू.. पापा क्या करते है.. घर मैं कौन कौन है.. नानाजी का नाम , दादा जी का नाम.. चलो बढ़िया पापाजी को मेरा नमस्ते कहना...
मैने कहा वाईवा ?? वो बोले हो गया, जाओ
हम बजरंग बली की जय बोल के बाहर भाग आए ..
तो ये था हमारा टेस्ट.. आप समझ ही गये होंगे.. की वो सर भी वैष्णव ही थे.. और धन्य हो भारत का जातिवाद, हमारे फिज़िक्स प्रॅक्टिकल मैं 50 मैं से 47 मार्क्स आए थे... लेकिन ये सब सिर्फ़ इसलिए नही हुआ.. की सर वैष्णव थे.. बल्कि इसलिए हुआ.. की हनुमान जी तब भी मेरे आस पास ही थे..
































