Saturday, January 5, 2008

साला !! सिर्फ़ दूध लेते वक़्त ..

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यक़ीन नही आता
कोई दूध लेते वक़्त
इतना ख़ूबसूरत कैसे
लग सकता है...
साला !! सिर्फ़ दूध लेते वक़्त...

तुमने कहा तो रुको
दूध लेना है..
और मेरी बाइक से उतरी
ठीक उस मध्यम गति से
जैसे साँझ ढले.. सूरज
उतरता है पहाड़ी के पीछे

उंगली और अंगूठे में
दो पाँच पाँच के सिक्के दबाए
तुम काउंटर पर जा खड़ी हुई
पता नही दुकान वाले ने कैसे
ख़ुद को संभाला होगा..

तुम्हारे होंठ हिले थे..
भैया अमुल का दूध देना
हाय ....... क्या गुज़री होगी उस पर
जब तुमने उसे भैया कहा..

दूध ..... जब तुमने बोला था..
मैं तुम्हारे होंठो को
देख रहा था.. एक दूसरे से
तोड़ा सा दूर जाकर फिर
मिले थे तुम्हारे होंठ
और संवाद निकला था..
दू ....... ध ........ हॉले से!!

तुमने जब रखे थे दोनो सिक्के
काउंटर पर.. शायद ध्यान नही दिया
पर मैने उन सिक्को को गौर से देखा था
बड़ी मुस्किल से जुदा हुए थे
तुम्हारे हाथो से.. बेचारे..

और दुकान वाले ने दूध बढ़ाया
दूध का ठंडा पॅकेट
तुमने अपने हाथो में लिया
और मैने गुद गुदी अपने
गालो पर महसूस की..

तुम लौट आई और बैठ
गयी मेरी बाइक पर फिर से
मैं अपनी किस्मत पे ख़ुश हो गया
और मन ही मन सोचता रहा

की कोई दूध लेते वक़्त
इतना ख़ूबसूरत कैसे
लग सकता है...
साला !! सिर्फ़ दूध लेते वक़्त ..


.........

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..