कौन कहता है इफ़लासी मिट गयी दुनिया से
जिस्म पर गहरी कोडो की मार अब भी है
कहता है कोई दोस्ती हो गयी दोनो मेंैं अब
मगर चोटी पर खड़ी इक दीवार अब भी है
कोई कहता है राम का नाम बेमानी है..........
पर होता यहा दीवाली का त्योहार अब भी है
ज़माने की रफ़्तार ने पकड़ी है और तेज़ी
बेटी, पिता के कांधो का भर अब भी है
मा को छोड़ कर चला जाता है बेटा
रुपयो से बड़े दिनार अब भी है....
चार लोग एक कमरे मेंैं पसर के सोते है
महफूज़ रखा हुआ चार मीनार अब भी है
बुरा होता है, दिखता है और करते भी है
गाँधी की फोटो पर लगा इक हार अब भी है...
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मुझे नहीं पता था कि तुम ग़ज़ल भी लिखते हो///
ReplyDeleteकुछ मिस्रे और विशेष कर ये वाला "चार लोग एक कमरे में पसर के सोते है/महफूज़ रखा हुआ चार मीनार अब भी है" तो बहुत ही बढ़िया बन पड़ा है...
वैसे उस्ताद लोग इसे ग़ज़ल मानने से इनकार करेंगे...बहरो-वजन के बिना, लेकिन बहुत अच्छा प्रयास है।