कुछ बातें दिल की दिल मैं ही रह जाती है ! कुछ दिल से बाहर निकलती है कविता बनकर..... ये शब्द जो गिरते है कलम से.. समा जाते है काग़ज़ की आत्मा में...... ....रहते है........... हमेशा वही बनकर के किसी की चाहत, और उन शब्दो के बीच मिलता है एक सूखा गुलाब....
Thursday, March 13, 2008
दृष्टि
दृष्टि (Drishti)
दृष्टि उसकी है
जो सड़क पर
बैठे बचपन के आगे
एक सिक्का फेक
जाता है..
दृष्टि
दृष्टि उसकी भी है
जो देखता है मंडप
से लौटी बारातो को
और सिसकती
आँखो को भीगा
पाता है..
दृष्टि
दृष्टि उसकी भी है
जो पल्लवित होने
से पहले ही
पुष्प को
खींच कर
जड़ से अलग
कर देता है..
दृष्टि
दृष्टि उसकी भी है
जो किसी
अंधेरी गली
में जूझती
अस्मत को देखता है
और लौट जाता है
दृष्टि
दृष्टि उसकी भी है
जो योवन की
पहली सीढ़ी पर
सफेद साड़ी
में लिपटी
एक कोने में
जीवन बिताती औरत
को देखता है
दृष्टि
दृष्टि
उसकी भी है
जो देखता है
बिंब अपना दर्पण में
और पाता है चेहरा
और कोई.... और
पहचान नही पता है
स्वयं को..
भूलता जाता है...
दृष्टि
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bahut khoob ,aapki drishti vakaikabile tareef hai.
ReplyDeleteबहुत सटीक अंदाज़ में सामाजिक विसंगति को उभारा है ...
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