Tuesday, September 30, 2008

देवता का विमान अभी भी ब्लोगाश्रम पर मंडरा रहा है

स्टाइल साभार - पुस्तक मरीचिका (लेखक - ज्ञान चतुर्वेदी)
कोटिश आभार - नीरज गोस्वामी जी (पुस्तक उपहार देने के लिए)


थोड़ी सी मौज लेते हुए लिख रहा हू.. मौज लेते हुए ही पढ़ा जाए.. यदि कोई मित्र पढ़कर आहत हो तो अग्रिम क्षमा..


पूर्व में हमने देखा ब्लॉग जगत के देवता, उसके विमान, सोंटाधारी का सोंटा और ब्लोगाश्रम में होने वाली बहुआयामी गतिविधियो को... आइए आगे देखे क्या हुआ..



गुरुजी लॅपटॉप पटटिका में मुँह घुसाए बैठे है.. देवता का विमान हवा में हिचकोले खा रहा है.. सोंटाधारी का सोंटा उसके बलिष्ठ कंधो पर ससम्मान विराजित है.. भगवान भुवन भास्कर भी धरा पर पहुँच चुके है.. उनकी किरणे भी डरी सहमी दबे कदमो से ब्लॉग जगत में प्रवेश कर रही है.. कुछ पुरानी किरणे उबासी लेते हुए उतर रही है..लगता है रात्रि मदिरालय में ही शय्यासीन थी.. कुछ नयी किरणे सहम सहम के ब्लॉगजगत को प्रकाशित कर रही है.. चहू और आनद ही आनद व्याप्त है..



सोंटाधारी के पावन करो से सोंटे खाने को आतुर ब्लॉगर गण अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे है.. कदाचित अगला सोंटा उनके ही कपाल पर सुशोभित न हो जाए..

गुरुजी गौर से किसी का ब्लॉग पत्र देख रहे है.. लगता है अब किसी भी बारी आ सकती है..

"कौन है ये गर्धभपुत्र? गुरुजी आक्रोशित हो उठे.. "

सोंटाधारी ने अपना सोंटा वायु में घुमाया.. आस पास दो चार मक्खिया भिनभिना रही थी जो घबरा उठी.. और सोंटाधारी को गालिया देती हुई उड़ गयी..

"कौन है ये अबूझनदास? "

जिस कुटिया में एकलदास जी को कुछ देर पूर्व ले जया गया था उसी दिशा में द्रष्टि धरे अबूझनदास खड़ा हुआ..

"हमसे क्या भूल हुई.. गुरुजी?"

"भूल? क्या ये भूल है? ऐसी भूल के लिए तो तुम्हे उस स्थान पर शूल चुभाने चाहिए जो तुम वैध जी को भी नही दिखा सको.."

"ऐसा क्या अनर्थ हुआ प्रभो?"

"तुमने अबोधराम के ब्लॉग पत्र पर क्या टिप्पणी की?"

"प्रभु उसने एक अन्य ब्लॉगर के लेख पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी जो की ठीक नही थी.. उसने उस ब्लॉग पर लिखी गयी पोस्ट के बारे में ग़लत लिखा और इतना ही नही ब्लॉगर का नाम और पोस्ट का लिंक तक लगा दिया.. "

"अबे! तो इसमे तेरे पुजनीय पिताश्री का क्या गया? एक बात बता तूने भी तो एक महिला के लेख का लिंक अपने ब्लॉग पत्र पर लगाया था और उसके नाम के साथ प्रकाशित किया था की बहुत सुंदर लिखा है.. स्मरण है की बुलाऊ सोंटाधारी को?"

सोंटाधारी के मुख मंडल पर मुस्कान बिखर आई..

अबूझनदास सहमे हुए बोला "परंतु गुरुजी मैने तो उसकी प्रशंसा की थी इसलिए लिंक लगाया.. अबोधराम ने तो आलोचना की.."

"तो मेरे प्यारे बंधु! क्या यहा पर प्रशंसाए लेने के लिए ही आते हो? यदि प्रशंसा बहुत प्रिय है तो आलोचनाए ग्रहण करना भी सीखो.. यदि प्रशंसा करने के लिए लिंक लगाया जा सकता है तो आलोचना करने के लिए भी लिंक लगाया जा सकता है.. अथवा कदाचित् प्रशंसा पाने के लिए ही आते हो यहा.." गुरुजी की वाणी में वेग अधिक था.

सोंटाधारी बूझ चुका था की इस अबूझनदास के साथ क्या करना है.. सोंटाधारी ने कुछ ही क्षणों में अबूझनदास के पृष्ठ भाग पर विभिन्न आयामो वाली ऐसी ऐसी कृतिया उकेरी की समस्त लोको के चित्रकार भी उनके आगे नतमस्तक हो जाए..

गुरुजी पुन अपनी लॅपटॉप पटटिका में मुख घुसा के बैठ गये..

ये तो था ब्लॉगजगत की पावन धरा का दृश्य आइए देखे नभ में क्या चल रहा था..

देवता अभी अभी अपनी शय्या से गिरा.. विमान चालक ही ही ही करने लगा..

"क्षमा प्रभु एक अट्टालिका मध्य आ गयी थी.". विमान चालक मुस्कुराते हुए बोला

"कोई बात नही हो जाता है" उपरी स्तर पर यह कहते हुए देवता ने मन में विमान चालक को नाना प्रकार की गालियो से अलंकृत कर डाला..

" हो जाता है प्रभु हे हे हे! " विमान चालक ने अत्यंत ढीठता से कहा..

ब्लॉग जगत के उपर विमान चलाते रहने से ये गुण तो उसने सीख ही लिया था की कब बोलना है कब चुप रहना है और कब ढीठ बन जाना है.. और ढीठता भी ऐसी की जिसका किसी भी शास्त्र में कोई भी विवरण नही हो..

देवता को ज्ञात है की ये इस विमान चालक का प्रिय खेल है.. "छेड़ना"

विमान चालक अकारण ही देवता को छेड़ने के लिए विभिन्न प्रकार की हरकते करता रहता है.. जिससे की देवता खिन्न होकर उसे कुछ कहे और वो देवता को नरकलोक में गिरा सके..

परंतु हमारा देवता भी कम नही है... समस्त विमान चालक संगठन के एक एक कार्यकर्ता, देवता को नानाप्रकारो से विमान से गिराने का प्रत्यन कर चुके है परंतु देवता अपने पृष्ठ भाग को उचित रूप से चिपकाए हुए है विमान से..

आप भी तनिक अपना पृष्ठ भाग संभाल लीजिए कही कोई इस समय आपको गिराने के प्रयोजन में ना हो...

जारी

17 comments:

  1. सोंटाधारी ने कुछ ही क्षणों में अबूझनदास के पृष्ठ भाग पर विभिन्न आयामो वाली ऐसी ऐसी कृतिया उकेरी की समस्त लोको के चित्रकार भी उनके आगे नतमस्तक हो जाए..

    हे समस्त ब्लोगरों में उत्तम...आपके इस वाक्य से हमारे मुखमंडल पर कैसा हास्य बिखर आया है!आपके लेखनी से समस्त लोकों के लेखक चमत्कृत हैं!

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  2. हे ब्लॉगर शिरोमणी आपकी जय हो ! आप तो यहाँ ब्लागिंग में डाइरेक्ट पोस्ट ग्रेज्युएट
    ही करवा रहे हैं ! प्रभो ये आप बहुत सुंदर कर्म कर रहे हैं ! अब इस महंगाई के जमाने में
    काहे का स्कुल और काहे का डिग्री कालेज ? बस डाइरेक्ट पी.जी. ! :)
    आपका उपरोक्त सबक हमने कंठस्थ कर लिया है ! नमन प्रभो आपको !

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  3. "भूल? क्या ये भूल है? ऐसी भूल के लिए तो तुम्हे उस स्थान पर शूल चुभाने चाहिए जो तुम वैध जी को भी नही दिखा सको.."

    गुरुवर आपको प्रणाम ! ऎसी सुंदर पोस्ट आज इस पृथवी लोक के ब्लॉग जगत में पहली बार दिखी ! मजा आ गया !
    पर ज़रा हमको बख्शना गुरुजी ! हम इस धरा पर नए २ हैं !

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  4. अद्भुत लेखन है.
    ब्लागिंग को नए आयाम दे रहे हैं आप. बहुत सुंदर श्रृंखला शुरू किया है आपने. बधाई.

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  5. 'ha ha ha great accha hua aaj ke ye post pdh lee humne, blogjagat ka sara nzara veman se dhartee pr baithe baithe hee dekh liya, bda rochak hai...'

    regards

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  6. यूँ लगता है की हम कोई कथा बांच रहे हैं ..जय हो आपकी कलम की .

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  7. तो यह शोध प्रबंध -काव्य अभी चलेगा ....चलते रहिये कुश भाई !

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  8. जय हो गुरुवर !सही जा रहे हो ..........उम्मीद है आपके विमान में अब कोई मिसाइल नही छोडेगा

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  9. जय हो गुरु जी ।

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  10. कुश भाई
    अगर सीरीयसली कहूँ तो आपका लेखन पढते हँसी भी आयी और वाह वाह भी कहती गई :)
    - लावण्या

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  11. वाह, वाह!!!
    अत्योत्तम सटायर। ‌

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  12. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर...बहुत अच्छा लिखते हैं आप....

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  13. आपको ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत मुबारकबाद

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  14. जय हो ब्‍लॉगर कुलश्रेष्‍ठ जय हो..आपका ब्‍लॉगलेखन ऐसी छटा बिखेरे कि समस्त लोकों व भाषाओं के ब्‍लॉगर उसके आगे नतमस्तक हो जाएं.. :)

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  15. भूल? क्या ये भूल है? ऐसी भूल के लिए तो तुम्हे उस स्थान पर शूल चुभाने चाहिए जो तुम वैध जी को भी नही दिखा सको.."
    बहुत सही लिख रहे हो वत्स...एक तुम ही हो जिसने इस पुस्तक को आत्मसात किया है...धन्य हो धन्य..
    नीरज

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  16. कुश महाराज की जय...
    ये संपूर्ण श्रृंखला ब्लौगिंग के इतिहास में धरोहर के रूप में रखी जायेगी...

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वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..