बात ये है बॉस कि लेखक से किसी ने कहा कि आमिर खान इतने ईमानदार है कि अपनी फिल्म 'देहली बेली' को खुद ही 'ए' सर्टिफिकेट दिलवाने की सिफारिश किये रहे, लेकिन लेकिन लेकिन.. हम आपको ये भी बता दे कि लेखक ने भी अपनी इस पोस्ट को सेंसर बोर्ड के पास ए सर्टिफिकेट लेने के लिए भेजा था पर सेंसर वालो ने ये बोल के लेखक को भगा दिया कि हम तुम्हारी दो दो टके की ब्लॉग पोस्टो को सर्टिफिकेट देने के लिए नहीं बैठे है कोई फिल्म विल्म हो तो लाओ.. तो अब चूँकि ब्लोगिंग का कोई सेंसर बोर्ड तो है नहीं.. इसलिए इस पोस्ट को बच्चा पढ़े या बडा या फिर बूढा पढ़ ले.. उसकी जिम्मेदारी लेखक की नहीं..-------------------------------------------------------------------------
चेतावनी - " कृपया पढ़ते वक़्त अपनी किडनी फ्रीज़र में रखकर पढ़े अन्यथा उसके जाम हो जाने का खतरा है "
तो क्या शीला जवान होने वाली थी?
नहीं ऐसा कुछ था तो नहीं.. यूँ उम्र उसकी जवानी की दहलीज़ तक पहुची नहीं थी.. पर कुछ मोहल्ले वालो ने... कुछ कोंलेज के लडको ने..., अपनी अपनी नजरो से उसे जवानी की दहलीज़ तक पंहुचा ही दिया था.. शीला समझ चुकी थी कि उसकी जवानी आने में अब टेम नहीं है.. सो टेम खोटी नहीं करना चाहिए..
इधर रजिया
टेलर मास्टर की बेटी, बचपन से ही समझदार, चाय में कितनी शक्कर और कितनी पत्ती.. इसका बखूबी हिसाब रखने वाली.. खूबसूरत इतनी कि गाल छू लो तो लाल पड़ जाए.. अब्बू की दुकान पे सिलाई मशीन चलाती.. रजिया के साथ साथ उसके अब्बू भी जानते थे कि लड़के जींस को ऑल्टर कराने उनकी दुकान में क्यों आते थे?? पर आने वाले को कौन रोंक सका है भला? (नोट : ये भला 'भला बुरा' वाला भला नहीं है)
और उधर मुन्नी
मुन्नी आज़ाद खयालो वाली लड़की.. जिसे हर जंग में जीतना और हर दुश्मन को पीटना ही गवारा था.. ऐसा नहीं था कि उसके मन में प्रेम नहीं था.. पर बचपन से अब तक जो भी उसने देखा.. या यू कहे कि झेला उसके बाद उसने नफरत को गोद ले लिया..
इन सबके बीच शालू
शालू ज्यादा समझदार नहीं थी पर उसकी समझ में एक बात आ गयी थी कि दुनिया जाए तेल लेने.. !! शालू को दुनिया से कोई मतलब नहीं था.. यू मतलब उसको इस बात से भी नहीं था कि दुनिया तेल लेने भला जाएगी कहा? वैसे शालू का एक ही उसूल था कि जैसे जीना है वैसे जियो.. बस जी..!!!
तो शीला
शीला जब भी घर से बाहर निकलती कुछ आँखे उसका दामन थाम लेती.. उसको घर से निकालकर गली के लास्ट कोर्नर तक छोडके आती.. ( ऐसी आँखों का राम भला करे ) इधर शीला को मोहल्ले की आँखों ने छोड़ा और उधर बस स्टॉप पे खड़े लडको ने थामा.. साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज़ पे शीला के दामन को थामती आँखों की रिले रेस चलती रहती.. और जैसे ही शीला बस में चढ़ती कि वो टच स्क्रीन फोन बन जाती..सब पट्ठे उसके सारे फीचर्स चेक कर लेना चाहते थे.. वैसे भी मोबाईल वही लेना चाहिए जिसमे सारे फीचर्स मौजूद हो..
हाँ तो शीला
बस से उतरते ही शीला को कोंलेज के लड़के संभाल लेते.. उनका बस चलता तो वो शीला को लेने उसके घर तक चले जाते.. लेकिन वे लडकियों के आत्मनिर्भर होने वाली सोच के पक्षधर थे.. लडकियों और लडको को समान अधिकार मिलने चाहिए.. ऐसा उनका मानना था (और लेखक का भी यही मानना है) तो कोंलेज के गेट से वो हैंडल विद केयर टाईप से शीला को क्लासरूम में ले जाते.. यू ले जाना तो वो बैडरूम में चाहते थे पर इस दुष्ट समाज के ओछेपन जिसमे कि लडकियों को छेड़ना एक अपराध था, वो राम राज की उम्मीद करके बस क्लासरूम से ही काम चला लेते.. उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि कम से कम रूम शब्द तो आ ही रहा है..
रज़िया याद है ना..
अब्बू की टेलर की दुकान में बैठी सिलाई मशीन का पहिया घुमाती रहती... यू उसकी ज़िन्दगी की गाडी खुद बिना पहियों वाली थी.. उमर उसकी बढती जा रही थी और बढती उमर में होने वाले परिवर्तन भी हो रहे थे.. अम्मी तो उसको अब्बू के हवाले करके निकल ली दुनिया से.. और अब्बू बेचारे हर सलवार कमीज़ सिलवाने आने वाली महिलाओ में उसकी अम्मी ढूंढते रहते.. इसी के चलते उनके चश्मे का नंबर बढ़ गया और धंधा घट गया.. "अब मियां आजकल कौन सिलवाने बैठा है कपडे.." इन्ही जुमलो के साथ रज़िया के अब्बू रंगे हाथो पकडे जाते..
रज़िया याद है ना..
अब्बू की टेलर की दुकान में बैठी सिलाई मशीन का पहिया घुमाती रहती... यू उसकी ज़िन्दगी की गाडी खुद बिना पहियों वाली थी.. उमर उसकी बढती जा रही थी और बढती उमर में होने वाले परिवर्तन भी हो रहे थे.. अम्मी तो उसको अब्बू के हवाले करके निकल ली दुनिया से.. और अब्बू बेचारे हर सलवार कमीज़ सिलवाने आने वाली महिलाओ में उसकी अम्मी ढूंढते रहते.. इसी के चलते उनके चश्मे का नंबर बढ़ गया और धंधा घट गया.. "अब मियां आजकल कौन सिलवाने बैठा है कपडे.." इन्ही जुमलो के साथ रज़िया के अब्बू रंगे हाथो पकडे जाते..
रज़िया जो कि आपको याद है..
वो दिन भर लडको की जींसो को ऑल्टर करते करते ऐसी ऊब गयी थी कि उसकी शक्ल खुद टॉम अल्टर जैसी हो गयी.. पर उसकी शक्ल से ना किसी को कुछ देना था ना लेना था.. सो जींस ऑल्टर होने के लिए आये जा रही थी और उसके अब्बू को उसकी चिंता खाए जा रही थी... पर लड़की की शादी कराना कोई आस्तीन काटने जितना सरल काम तो था नहीं.. हाँ जेबे काटी जाती तो बात बन सकती थी.. पर ये काम भी उनके बस का नहीं था.. अब सलवार कमीज़ में जेबे जो नहीं होती..
वो दिन भर लडको की जींसो को ऑल्टर करते करते ऐसी ऊब गयी थी कि उसकी शक्ल खुद टॉम अल्टर जैसी हो गयी.. पर उसकी शक्ल से ना किसी को कुछ देना था ना लेना था.. सो जींस ऑल्टर होने के लिए आये जा रही थी और उसके अब्बू को उसकी चिंता खाए जा रही थी... पर लड़की की शादी कराना कोई आस्तीन काटने जितना सरल काम तो था नहीं.. हाँ जेबे काटी जाती तो बात बन सकती थी.. पर ये काम भी उनके बस का नहीं था.. अब सलवार कमीज़ में जेबे जो नहीं होती..
तो रज़िया जो कि आपको अभी तक याद है
दुसरो की जींस ऑल्टर करके छोटी करती रही पर अपनी बढती उम्र को छोटा करने का हुनर जानती नहीं थी.. सो जैसे जैसे उम्र बढ़ी वैसे वैसे जींस भी ऑल्टर के लिए कम आने लगी.. अब तो इक्का दुक्का जींस आती वो भी कोई तलाकशुदा लोगो की.. रज़िया चुपचाप ऑल्टर करती रहती.. जींस काटना तो उसके लिए आसान था पर दिन काटना उतना ही मुश्किल..
मुन्नी को भूल तो नहीं गए आप?
क्या कहा? उसे कैसे भूल सकते है भला... !! सो तो है. (लेखक आपके इस कथन से सहमत है कि मुन्नी को नहीं भूला जा सकता) तो जनाब मुन्नी जो है उसको जीतना और पीटना तो पसंद है ही.. बचपन में भी या तो वो किसी खेल को जीत लेती थी या हारने पर जीतने वाले को पीट देती थी.. लेन देन के मामले में बच्ची बचपन से ही बड़ी मुखर थी.. और वो लोग जो ये कहते फिरते है कि पूत के पांव पालने में ही नज़र आ जाते है.. उनको भी मुन्नी यदा कदा ढूंढती रहती.. कि यदि वो लोग मिल जाए तो उनके पालनो (आप समझ ही गए होंगे) पे दो लात जमा के बताये कि पूत ही नहीं पुत्रियों के पांव भी पालने में ही नज़र आते है..
मुन्नी जिसे कि आप भूल नहीं सकते
मुन्नी उस वक़्त से मुन्नी नहीं रही जब वो मुन्नी थी.. और उसकी इस समझ को डेवलप कराने में जिन लोगो ने उसकी सहायता कि उनमे थे उसके पिताजी के दोस्त, मकान मालिक का साला, गणित की ट्यूशन वाले मास्टरजी, पुरानी कंपनी के मैनेजर और ऐसे कई सारे भले लोग जिनका जन्म ही मानव कल्याण हेतु हुआ है.. वे यथा संभव मुन्नी का कल्याण करने के प्रयास में लगे रहते.. हालाँकि मुन्नी बड़ी निष्ठुर हृदयी थी वो नहीं चाहती थी कि उसका कल्याण हो.. किसी न किसी बहाने से वो उन कल्याण कार्यो पर पानी फेर ही देती थी..
मुन्नी जिसे कि भूला ही नहीं जा सकता
वो ऐसे ही कल्याणों के खिलाफ आवाज़ उठाने लगी.. कोई सेक्स्युअल हर्रेस्मेंट नाम की किसी चीज़ के विरोध में अभियान भी चलाया उसने.. बाद में सुनने में आया कि ये अभियान समाज के विरोध में था.. मुन्नी नहीं चाहती थी कि ऑफिस में फ्रेंडली एन्वायरमेंट रहे.. उसके ऐसा करने से लोग तनाव में रहने लगे.. सुबह होते ही परेशान हो जाते कि आज ऑफिस में करेंगे क्या? वही कुछ मूर्ख महिलाये ना जाने क्यों इस अभियान से खुश थी.. खैर उन्होंने मुन्नी को फेमस कर दिया.. बोले तो मुन्नी का बहुत नाम हो गया..
कि आयी अब शालू की बारी
शालू को मुन्नी शीला या रज़िया से कोई मतलब नहीं था.. (वैसे लेखक ने आपको पूर्व में ही बता दिया है कि शालू को दुनिया से कोई मतलब नहीं है और दुर्भाग्य से रज़िया, मुन्नी और शालू भी इसी दुनिया में है तो शालू को उनसे कोई मतलब नहीं था..) शालू बचपन से ही नृत्य कला में प्रवीण थी.. जब भी घर में मेहमान आते शालू की मम्मी उसे अपने नृत्य का नमूना दिखाने को कहती.. और शालू नमूनों की तरह नमूनों के सामने अपने नृत्य का नमूना पेश करती.. वे लोग नृत्य के अंत में यही कहते पाए जाते कि बहनजी आपकी लड़की तो बड़ी होशियार है.. पर इसी होशियारी के चलते शालू पढाई में होशियार नहीं हो पाई.. हालाँकि उसे अंग्रेजी बोलना अच्छा लगता.. अंग्रेजी में ग्रामर व्रामर जैसे दिखावो और आडम्बरो से वो कोसो दूर थी.. भाषा में ग्रामर के दखल के खिलाफ थी शालू..
शालू, जो भाषा में ग्रामर के दखल के खिलाफ थी..
वो उन लोगो के भी खिलाफ थी जिनका ये कहना था कि शालू का नृत्य और उसकी भंगिमाए स्वस्थ समाज के अनुकूल नहीं है.. शालू का ये मानना था कि ये लोग जो उसके खिलाफ है घर में सी डी पे उसका नृत्य देखते है.. शालू को कतई ये गवारा नहीं था कि उसकी सीडी घर पे देखने वाले बाहर आकर उसको सीढ़ी बनाकर अपना उल्लू सीधा करे.. इसीलिए वो हमेशा उल्टी बात करती थी..
शालू, जो हमेशा उल्टी बात करती थी..
उसको कई बार उल्टी करते देख मोहल्ले वाले उल्टी सीधी बाते करते.. कई लोगो का ये भी कहना था कि शालू को नृत्य प्रेम के अलावा प्रकृति से भी प्रेम है..क्योंकि वो पृकृति प्रदत कुछ ऐसी क्रियाये.. ऐसे लोगो के साथ करती थी जिन लोगो की प्रकृति ठीक नहीं थी.. साथ ही उन लोगो का ये भी मानना था कि वे प्रकृति प्रेमी शालू के ऐसे प्रकृति प्रेम को देखते हुए उसे कुछ आर्थिक सहायता भी कर देते थे.. और ये बाते वो इतनी विश्वसनीयता से कहते थे जैसे पुरे घटनाक्रम के वे चश्मदीद गवाह हो.. या फिर शालू उनके खालू के घर ही गयी हो.. पर शालू को इन बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता था... आपको याद होगा ही कि शालू का ये मानना था कि दुनिया जाए तेल लेने...
पोस्ट लम्बी हो रही है.. लगता है ऑल्टर करना पड़ेगा..
तो पोस्ट जो कि लम्बी हो रही है उसमे हमने तीन साल का लीप ले लिया है.. (तीन साल बाद)
तीन साल बाद शीला
शीला जिसको कि इन तीन सालो में इतने प्रेम पत्र मिले कि उनको रद्दी में बेचने पर उसे साढे तीन सौ रूपये मिले (दरअसल लेखक ही वो रद्दी वाला है, जो भेष बदल कर रद्दी खरीदता है और उनमे मिली चिट्ठियों को अपने नाम से छापता है.. उनमे भी कुछ प्रेम पत्र ऐसे है जो छपने लायक है, पर वो फिर कभी) तो शीला ने दो साल तक उन पत्रों को एक करियर ऑप्शन की तरह चुना और कुछ को जवाब भेजकर अपने लिए दैनिक जीवन की आवश्यकताओ की पूर्ति भी की.. मसलन अपना मोबाईल रिचार्ज करवाना, सूने कानो के लिए टॉप्स खरीद्वाना, अपने लिए हैण्ड बैग्स, फास्टट्रेक की घडी और भी ऐसी कई चीज़े.. साथ ही कभी कभी हलवाई की जलेबिया और कचोरिया भी.. और सिनेमा तो आप खुद ही समझ जायेंगे..
खैर तीसरे साल शीला की ज़िन्दगी में आया रमेश जो कि शीला की ही तरह लुक्खा था.. बस दोनों की जोड़ी जम गयी.. पर शीला जो कि दीक्षित परिवार की बेटी थी उनको रमेश जैसे सिन्धी लड़के से अपनी बेटी की शादी नागवार गुजरी.. पर शीला ने हार नहीं मानी और घर से भाग गयी.. वो ये बात जानती थी कि माता पिता के आशीर्वाद के बिना कोई संतान खुश नहीं रह सकती.. इसलिए तिजोरी में से दस तोला सोना माता पिता के आशीर्वाद स्वरुप साथ ले गयी.. (भगवान ऐसी औलाद सबको दे)..
रमेश कीजवानी से शादी हो गयी उसकी... सिन्धी फैमिली होने के बावजूद शीला वहा खुश है.. और अब कोई उसका नाम पूछता है तो वो कहती है कि माय नेम इज शीला... शीला कीजवानी
तीन साल बाद रज़िया
आज से दो साल पहले एक साहब अपनी जींस ऑल्टर करवाने आये और रज़िया को दिल दे बैठे.. उम्र में वे रज़िया के अब्बू से ज्यादा तो नहीं थे पर कुछ कम भी नहीं थे.. रज़िया के पिता पहले तो बेटी के भविष्य के प्रति आशंकित थे.. पर जब उनकी आशंका देखते हुए उन साहब ने उन्हें पचास हज़ार रुपी विश्वास जताया तो वे खुदा की मर्ज़ी जानकर निकाह को राजी हो गए.. रज़िया दुल्हन बनके ससुराल पहुच गयी.. और साथ में ले गयी अपनी कैंची.. पगली, समझती होगी कि ज़िन्दगी भी इससे कट जायेगी..
ज़िन्दगी में जो लोग सरप्राईजेस में बिलीव करते है उन्हें रज़िया की ज़िन्दगी देखनी चाहिए.. जिसे ससुराल में आकर कई सरप्राईजेस मिले.. आने के छ महीने बाद ही उसके पति ने उसके अन्दर छिपी प्रतिभा को खोज लिया.. और पहले से प्रतिभावान अपनी दो पत्नियों के सुपुर्द कर दिया... ये था रज़िया का दूसरा सरप्राईज़ कि उसकी माँ की उम्र की दो सौतन का होना.. वे दोनों थी भले सौतन लेकिन रज़िया का बहुत ख्याल रखती थी.. हालाँकि शुरू शुरू में रज़िया ने अपनी प्रतिभा से दुसरो को लाभान्वित करने में आनाकानी की.. पर उसकी दोनों सौतनो ने लोहे के गर्म चिमटे का सहारा लेकर उसे समझा ही दिया.. आखिर चोट खाकर ही पत्थर हीरा बनता है.. अब रज़िया से सब खुश है.. और उसके शौहर भी जो ये जानते थे कि पचास हज़ार तो यू ही निकाल आयेंगे..
रजिया अब कुछ बोलती नहीं बस मन ही मन अल्लाह से दुआ करती है.. कि अल्लाह बचाए मेरी जान कि रज़िया गुंडों में फस गयी..
तीन साल बाद मुन्नी
मुन्नी जिसने कि महिलाओ की सेवा करके बहुत नाम कम लिया था वो अब और भी बड़ी समाज सुधारक बन गयी थी.. पर दो साल पहले ऐसा हुआ कि लेखक को भी अचंभा हुआ.. हुआ यू कि मुन्नी केरल गयी थी एक विधवा आश्रम का उद्घाटन करने.. बस वही पर उसकी मुलाक़ात डार्विन नामक व्यक्ति से हुई.. जो वहा एक एन जी ओ चलाता था.. और चाहता था कि मुन्नी जैसी समाज सुधारक उसके मिशन में उस से जुड़े.. पहले तो मुन्नी तैयार नहीं हुई लेकिन फिर जब उसने गाँधी जी की कई सारी तस्वीरो वाला बैग दिखाया.. तो गाँधी वादी विचारधारा वाली मुन्नी मना नहीं कर सकी..
बस फिर क्या था मुन्नी ने अब तक जितने भी महिला आश्रम खुलवाए थे वहा की महिलाओ को प्रभु के मार्ग पे चलने हेतु प्रेरित किया.. और साथ ही ये भी समझाया कि ईश्वर तो ईश्वर है फिर चाहे वो राम हो या ईशु.. जो महिलाये ये समझ गयी उन्होंने तो बात माँ ली पर जो नहीं मानी उन्हें भी गांधीवादी विचारो से मुन्नी ने मनवा ही लिया.. हालाँकि इस से कुछ मूढ़ मति लोग ये भूलकर कि ईश्वर एक है.. मुन्नी जैसी भली महिला के बारे में अनाप शनाप बकने लगे.. और तब तो उसके पुतले भी जलाये जब वो मुन्नी से मार्ग्रेट बन गयी और उसने डार्विन से शादी कर ली..
तीन साल बाद शालू
अब जनाब शालू का क्या कहे.. दुनिया उसके बारे में उल्टी बाते करती रही और वो उल्टिया करती रही.. टी वी पे तो वो हिट थी ही बाद में मोबाईल पर भी उसने झंडे गाद दिए.. जो लोग बड़े परदे पर काम नहीं मिलने की वजह से छोटे परदे पर आये थे वो शालू की उससे भी छोटे परदे पर कामयाबी देखकर जलने लगे.. शालू से जलने वालो की लिस्ट लम्बी होती गयी.. पर शालू को काम की कोई कमी नहीं रही..
दो साल पहले शालू ने टी वी पे अपना स्वयंवर भी रचाया था और एक बेचारे पे तरस खाके उससे शादी भी कर ली थी.. पर वो लड़का नालायक निकला उस ने शालू को सिर्फ इस बात पे तलाक दे दिया कि शालू ने उसे बिना बताये स्वयंवर पार्ट टू के कोंट्राक्ट पे साईन कर दिया.. हालाँकि शालू ने स्वयंवर पार्ट टू किया तो सही पर उसकी टी आर पी पिछले शो के मुकाबले कम रही.. तीसरे स्वयंवर में किसी और को लेने की बात पर शालू ने ही चैनल वालो को आईडिया दिया कि शादी ना सही तो तलाक पर ही प्रोग्राम बना दो.. चैनल वालो को ये सुझाव पसंद आया.. टी वी पे ही शालू ने दुसरे स्वयंवर में हुई जिस लड़के से शादी हुई थी उसी से तलाक ले लिया.. सुना है वो लड़का तीसरे स्वयंवर में फिर से पार्टिसिपेट कर रहा है..
जिस दुनिया ने शालू के बारे में लाख बाते कही पर फिर भी शालू सफल हो गयी.. उसी दुनिया को जवाब देते हुए शालू अपने किसी डांस शो में ये गाना गा रही थी.. कि मुन्नी भी मानी और शीला भी मानी.. शालू के ठुमके की दुनिया दीवानी
तो दोस्तों ये थी कहानी शीला मुन्नी रज़िया और शालू की.. जो आपके चरणों में लेखक का तुच्छ प्रयास है
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रिक्वेस्ट - जैसा कि आप जानते है कि महंगाई दिन ब दिन बढ़ रही है.. और ब्लॉग लेखन पर सरकार द्वारा कोई सब्सिडी भी नहीं मिलती इसलिए लेखक ने ब्लॉग लेखन के साथ साथ पार्ट टाईम दुकान भी खोली है जिसमे कहानी में प्रयुक्त वस्तुओ को बेचा जाएगा.. यदि आप खरीदना चाहे तो निम्न वस्स्तुओ का ऑर्डर दे सकते है.. दस परसेंट की विशेष छूट के साथ
- शीला के पांच प्रेम पत्रों के सेट (जिसमे पांच के साथ एक फ्री है)
- रज़िया की कैंची
- मुन्नी द्वारा लिखी किताब "ईश्वर एक है"
- और शालू के डांस की सीडी मय होंठोग्राफ (जो खुद शालू के होंठो द्वारा दिया गया है)
इनमे से किसी भी चीज़ को मंगवाने हेतु लेखक से संपर्क किया जा सकता है.. माल वी. पी. पी. द्वारा भेजा जाएगा..
(नोट - फैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा ना करे)
ए से जेड तक पढ़ डाली, ए लायक तो कुछ नहीं मिला।
ReplyDeleteश की कलम बहुत देर बाद चली और जब चली तो ऐसी चली के सबकी कलमों को चलता कर दिया. शुरू से आखिर तक एक से बढ़ कर एक चुटीले रसीले हंसीले जुमलों के साथ इस कथा का ताना बाना रचा गाया है के लेखक की कलम चूमने को जी चाहता है,(क्यूंकि क्षमा करें लेखक इस लायक नहीं है) दरअसल लेखक पूजनीय है, पूज्यनीय चूमने लायक नहीं होता वन्दनीय होता है. पोस्ट के जुमलों को कोट करने जाऊंगा तो पूरी पोस्ट ही कोट करनी पड़ेगी फिलहाल बानगी के तौर पर इनसे काम चलाइए.
ReplyDelete१..इस कहानी के पात्रो का किसी भी टी वी पे दिखाए जाने वाले गानों के नामो से कोई सम्बन्ध नहीं है और यदि है तो वो नाजायज़ सम्बन्ध है
२.पर आने वाले को कौन रोंक सका है भला? (नोट : ये भला 'भला बुरा' वाला भला नहीं है)
३.साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज़ पे शीला के दामन को थामती आँखों की रिले रेस चलती रहती.. और जैसे ही शीला बस में चढ़ती कि वो टच स्क्रीन फोन बन जाती..सब पट्ठे उसके सारे फीचर्स चेक कर लेना चाहते थे.
४.वो राम राज की उम्मीद करके बस क्लासरूम से ही काम चला लेते.. उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि कम से कम रूम शब्द तो आ ही रहा है..
५.वो दिन भर लडको की जींसो को ऑल्टर करते करते ऐसी ऊब गयी थी कि उसकी शक्ल खुद टॉम अल्टर जैसी हो गयी..
६.क्योंकि वो पृकृति प्रदत कुछ ऐसी क्रियाये.. ऐसे लोगो के साथ करती थी जिन लोगो की प्रकृति ठीक नहीं थी.
७.सिन्धी फैमिली होने के बावजूद शीला वहा खुश है.. और अब कोई उसका नाम पूछता है तो वो कहती है कि माय नेम इज शीला... शीला कीजवानी
८. और साथ में ले गयी अपनी कैंची.. पगली, समझती होगी कि ज़िन्दगी भी इससे कट जायेगी..
९ .पहले तो मुन्नी तैयार नहीं हुई लेकिन फिर जब उसने गाँधी जी की कई सारी तस्वीरो वाला बैग दिखाया.. तो गाँधी वादी विचारधारा वाली मुन्नी मना नहीं कर सकी..
ऊपर के जुमले कोट कोट करने का एक मात्र उद्देश्य दुनिया को ये बताना है के इस पाठक ने इस पोस्ट को कितने ध्यान से पढ़ा है.
निष्कर्ष: विलक्षण लेखन
आग्रह: ऐसी पोस्ट्स लगातार लिखी जाएँ
नीरज
हमें ज्यादा समझ तो नहीं आई, पर इतना पता चल गया कि यह धांसूं सन्नारियों पर धांसूं पोस्ट है।
ReplyDeleteये तो नहीं कह सकता कि एक सांस में पढ़ लिया क्यूंकि कई साँसे लग गयी मुन्नी, शीला, शालू और रज़िया का दर्द समझने के लिए....
ReplyDeleteकमेन्ट के बारे में सोच ही रहा था कि नीरज जी की टिपण्णी पर नज़र चली गयी... अब इससे अच्छा और अलग क्या किया जाए भला....
हाँ मेरा ऑर्डर नोट कीजिये...
शीला के प्रेम पत्र दो सेट...(अरे एक सेट अपनी गर्लफ्रेंड को भी देना होगा न ताकि वो भी इससे कोई प्रेरणा ले सके)...
पता ??? अरे मेरे नाम पर क्लिक कीजिये न..:))
और अंत में थोडा कॉपी पेस्ट से काम चलाते हैं.....
निष्कर्ष: विलक्षण लेखन
आग्रह: ऐसी पोस्ट्स लगातार लिखी जाएँ
:D
अरे ये तो अपनी गली की लड़किया हैं...लड़के भी जान पहचान के होंगे
ReplyDeleteअरे हम और हमारे दोस्त लोग..... जाहिर सी बात है...
शालू गज़ब टीवी की बेटी है ये तो.....
समय के साथ ज़माने से लड़ना इन लड़कियों को आगया है...
लेकिन अफ़सोस मुन्नी और सालू के ज़माने में रजिया अब भी है ..
पचास हजार में खरीदी या बेचीं जा सकती हैं...
कमाल की पोस्ट है ..........
कोंन कहता है हिंदी में कहानिया नहीं लिखी जा रही // अरे इससे बेहतर भी कुछ लिखा जा सकता है क्या ?
शील वाली शीला
ReplyDelete-------------
घर तक तो छोड़ने रिश्तेदार आते हैं हमारा बस चलता तो हम बेडरूम तक छोड़ते लेकिन शीला पियुबर्ती एज की शिकार थी, ये बात एक जवान लेखक लेखक को पता था जब जब मुन्नी ने खुद उस पर डोरे डाले तो लेखक ने उसके लाल सेब जैसे गाल को थपथपाते हुए कहा - "जवान हो जाओ तुम्हारे लिए ही रखा है". लेकिन जो मज़ा महिला आरक्षण के खींचतान में है वो उस बिल के पारित होने में कहाँ... सो अब बांकी दुनिया 'म' और 'हिला' के बीच जुलुस भरी मैराथन पारी खेल रही है.
मुन्नी @ महिवाल
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मुन्नी कॉल सेंटर में महिवाल बन जाती थी, उसके पास सिसकारी भरकर बात करने का अवगुण था ( यहं अव उपसर्ग है आप इसे हटाने के लिए स्वतंत्र है, अब भगवान् झूठ ना बोलाए स्वतंत्रता इतनी तो है ही की अगर सत्ता ना हिले और माननीय पर असर ना हो और आप भजन गा कर खुद को आज़ाद मुल्क समझते हों तो सत्तासीनो के पिता जी के अकाउंट से क्या जाता है) हाँ तो बात सिसकारी पर थी जो पिचकारी की तरह छूटती थी इस हद तक की शिकायत और मदद पाहिजे वाले आदमी क्या कुत्ते तक मान जाते.
आज महिवाल सॉरी मुन्नी इसी गुण (!) (?) के कारण कार्यकारी निदेशक बनी बैठी है.
रजिया नहीं लोगों की नज़र में रजाई
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गोया इसी तखल्लुस पे लोग गर्म हो जाते थे, जितना मज़ा रजिया को आई लव यु कहने में नहीं मिलता, रजाई में सोचने पर मिलता था. यह एक प्रसाद था. फेसबुक पर रजिया दिखती तो सेंड मेसेज कर इज़हार-इ-मुहब्बत करना ब्रह्मचारियों ने भी सीख लिया था. इधर ब्रह्मचारी भी जान गए थे की घुटने (जहाँ की अक्ल का सम्मानित जगह है) पर लात रख कर तपस्या करने से तपस्या नहीं मिलती और रजाई में तो आपको ज्ञात है ही की क्या शादीशुदा और क्या ब्रह्मचारी !
आज रज़िया अक्सर उबकाई मार फिर से उन्ही संतो (सत्य ज्ञान) में शामिल हो चुकी है.
[मुझे लगा मुन्नी डार्विन से कहेगी कि "डार्लिंग आँखों से आँखें चार करने दो"
और हैरत भी है, गैरत भी है... क्या फायदा !]
yaar poori bakhiya udhed di.. mast likha hai ..
ReplyDeletegovt subsidy ka to pata nahi par haan padhne waalon ki kami nahi hogi aapke blog par !!
Manoj K
सागर भाई को इस लाजवाब टिपण्णी के लिए ढेरों बधाइयाँ...इस पोस्ट पर हमारे ख्याल से इस से श्रेष्ठ कोई और टिपण्णी हो ही नहीं सकती अगर हो सकती है तो कोई भी माई का लाल कर के दिखाए...हम ख्याल बदल देंगे.
ReplyDeleteनिष्कर्ष : सागर भाई का टिपण्णी देने में कोई सानी नहीं
आग्रह: हमारी पोस्ट पर भी कभी ऐसे ही टिपियाया जाय.
नीरज
kush bhai.......hum to hue khush bhai...........aur gagar me
ReplyDeletetip hai dagar ki..............'basssss'.........'a' na mila.
sadar
@ नीरज गोस्वामी जी,
ReplyDeleteशुक्रिया. कई बार सोचा था मैं भी ऐसा कुछ लिखूं लेकिन ऐसी चीजों के साथ लोग ना जुड़ें तो मज़ा नहीं आता. आज कुश ने शुरू किया तो खुजली जाग गयी. बस ये उसी की बानगी है. अब क्या, कितना और कैसा लिखा आपलोग तय करेंगे. खैर... कुश की तारीफ़ की जाए ... राम गोपाल वर्मा की कुछ फिल्में याद आई जहाँ कोई बहुत दुनिया देखि आवाज़ किसी शहर की कहानी सुनाता है. यहाँ किस्सा किसी लुच्चे का जो कि मोहल्ले पर पैनी नज़र रखता है उसने सुनाई है. और संजोग कहिये याद दुर्योग खाकसार ने भी अब तक और किया ही क्या है.
अब तेरा क्या होगा जलेबी बाई :)
ReplyDeleteआपत्तिजनक पोस्ट है ...शीला मुन्नी रजिया शालू बुरा मान सकती है ....डी के बोस इसलिए के उनका जिक्र नहीं है ......डी के बोस के लिए फील हो रहा है ...इसलिए के वो इंटेलिजेंट ज़मात के ऑफिशियल करार लेखक जरिये दुनिया में आये थे.....आप ने उन्हें इग्नोर कर दिया ..
ReplyDeleteखैर कुल मिला कर हरिशंकर परसाई के एक मोहल्ले की कहानी याद आ गयी जी एक हसीना के चार दीवाने थे ...
लम्बी पोस्ट लिखने का खतरा उठाने लगे है लोग......अच्छा है .
वाह वाह मजा आ गया...शुरू से आखिर तक शानदार पोस्ट...
ReplyDeleteवाह, यह भी अलग तरह की पोस्ट रही ,बधाई.
ReplyDelete:) रोचक....
ReplyDeleteअरे मियां इतनी लम्बी पोस्ट लिख दी पढते पढते बुढे हो गये..... ना शीला का ओर ना ही मुन्नी का मजा आया, अरे किस्तो मे देते यह लेख हम भी धीरे धीरे फ़ुरसत मे पढते कभी शालू तो कभी रजिया तो कभी मुन्नी के बारे सोचते... अब समझ नही आ रहा किस के बारे सोचे...किसे घर छोडने जाये सभी एक से बढ कर एक.... राम राम
ReplyDeleteमुक़र्रर तो बस यही है भई कि - फुल्ली 'दबंग' पोस्ट 'रेडी' है 'डबल धमाल' के लिए और हम ब्लौगर्स तो हैं ही 'बिन बुलाए बाराती'. 'थैंक यू'.
ReplyDeleteखोजने वाले भले ही इसमें से अध्यात्म खोद निकालें.
ReplyDeleteपर एडिटिंग और मिक्सिंग का झोल मेरी समझ में नहीं आया, जी ।
सो....
पोस्ट पूरा पढ लिया
टिप्पणी अभी बाकी है..
अगली रिलीज़ के प्रतीक्षा में
विलक्षण लेखन से भी विलक्षण है कुछ. कुश के मामले में लम्बी पोस्ट में कोई रिस्क नहीं. आजतक नहीं.
ReplyDeleteSheela Kijwani :)
ReplyDeleteओरिजिनल आईडिया .
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति.
और क्या कहें ?
वो दिन भर लडको की जींसो को ऑल्टर करते करते ऐसी ऊब गयी थी कि उसकी शक्ल खुद टॉम अल्टर जैसी हो गयी..
ReplyDeleteये लाइन कहाँ से दिमाग में आ गयी? बेस्ट लाइन है बॉस...
और शालू नमूनों की तरह नमूनों के सामने अपने नृत्य का नमूना पेश करती
ये भी सही है....
कुल मिलाकर एकदम झकास पोस्ट... सौ में सौ नंबर!
वैसे ये पोस्ट लिखनी नहीं चाहिए ही... पता चला यहां से आइडिया लेकर "दबंग - २", "लौट के आया तीस मार खान" जैसी रिमेक बना रही है...
ReplyDeleteचारों कन्याओं का उद्धार करने के लिए शुक्रिया...
जय हो ! जैसी जबरदस्त पोस्ट वैसे ही धमाकेदार कॉमेंट्स ..नीरज जी,सागर साधुवाद
ReplyDeleteइतनी बढ़िया पोस्ट लम्बे समय तक याद रहगी
कुश भाई , बहुत ही धांसू पोस्ट लिखी है .
ReplyDeleteवैसे अब टिपण्णी के लिए कुछ बचा नहीं है , क्युओंकी नीरज जी ने सब कुछ लिख दिया है.
एक रिकुएस्त है , पोस्ट थोडा जल्दी जल्दी लिखा करें.
बहुत दिनों बाद आपकी यह पोस्ट आई है.
शब्दों का प्रयोग.....वाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteवाक्य गठन.....जियो.....
विषय, कटाक्ष....बोलती सोचती सब कुंद करा देने वाली...
अब भाई, ऊपर लोगों ने बड़ाई करने में जितने शब्द खर्च किये ,सब को जोड़ कर मेरा मान लो....
प्रशंशा जो इसके लेवल का हो,उसके लिए शब्द ढूँढने कहाँ जाऊं,बुझाता तो जाकर जरूर ढूंढ लाती कुछ और...अब तो इतना ही कह सकती हूँ......जियो !!!!
इतना अंतराल न रखा करो पोस्टों में...प्लीज...
शब्दों का प्रयोग.....वाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteवाक्य गठन.....जियो.....
विषय, कटाक्ष....बोलती सोचती सब कुंद करा देने वाली...
अब भाई, ऊपर लोगों ने बड़ाई करने में जितने शब्द खर्च किये ,सब को जोड़ कर मेरा मान लो....
प्रशंशा जो इसके लेवल का हो,उसके लिए शब्द ढूँढने कहाँ जाऊं,बुझाता तो जाकर जरूर ढूंढ लाती कुछ और...अब तो इतना ही कह सकती हूँ......जियो !!!!
इतना अंतराल न रखा करो पोस्टों में...प्लीज...
शब्दों का प्रयोग.....वाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteवाक्य गठन.....जियो.....
विषय, कटाक्ष....बोलती सोचती सब कुंद करा देने वाली...
अब भाई, ऊपर लोगों ने बड़ाई करने में जितने शब्द खर्च किये ,सब को जोड़ कर मेरा मान लो....
प्रशंशा जो इसके लेवल का हो,उसके लिए शब्द ढूँढने कहाँ जाऊं,बुझाता तो जाकर जरूर ढूंढ लाती कुछ और...अब तो इतना ही कह सकती हूँ......जियो !!!!
इतना अंतराल न रखा करो पोस्टों में...प्लीज...
वो बात कह ही दी जानी चाहिए कि जिसका कहा जाना मुकरर्र है..
ReplyDeleteप्रिंट आउट ले लिया है ....:)
rochak vishay par rochak prastuti .''a'' certificate ke liye ghoos dekar dekh lijiye shayad mil jaye .badhai sundar lekhan hetu .
ReplyDeleteभाईजी पढ़ते पढ़ते दिल धक् धक् करने लगा ..............नहीं नहीं हाफ्नी नहीं आयी, धुक-धुकी हो रही थी की कहीं पत्नीजी ने देख लिया तो नेट कनेक्शन कट जाएगा..............इल्जाम लगाया जाएगा की ब्लोगिंग का नाम लेकर "अ....ना डोट कॉम" पढ़ते हो !!!!!!!!!!
ReplyDeleteकभी कभी आते हो पर चहुँ ओर छा जाते हो .................... बालक दर्शन का अभिलाषी है जयपुर की जयपुर में ही :)
rochak...
ReplyDeleteज़बरदस्त लिखा है सर ।
ReplyDeleteमज़ा आ गया ।
सादर
Kya bat hi boss,,,,,
ReplyDeleteApne to sabki chhuti kar di ....
waise sach batau...!(upar bhi sach hi bola hun :):P))
Munni ki Badnami & sheela ki jawani se jyada maja aya.
बाप रे , कुश भाई ...
ReplyDeleteगज़ब
गज़ब
गज़ब
अब और गज़ब न लिखा जायेंगा भैय्या ... लेकिन जब भी मैं फिल्लम बनूँगा तो आपको ही लेखक लूँगा .. चाहे फिल्लम हित हो जाए या पिट जाए .. लेकिन पिटने के चांस नहीं है .. इतनी घांसू कहानी लिखी है ऊपर से सागर भाई कि टिपण्णी ..
वाह
वाह
वाह
बधाई हो ...
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
kush bhai...bahut umda lekhan. bina bharipan ke, ek behad rochak andaz me bahut sundar post. Bahut dino ke baad kuch badhiya padha hai.
ReplyDeleteसचमुच झकास।
ReplyDeletehamesha ki tarah bilkul kush typa post. poston ke beech antaraal badh gaya hai bhaai kahi aur sakriy ho to wahan ka pataa de dohamesha ki tarah bilkul kush typa post. poston ke beech antaraal badh gaya hai bhaai kahi aur sakriy ho to wahan ka pataa de do
ReplyDelete"रज़िया दुल्हन बनके ससुराल पहुच गयी.. और साथ में ले गयी अपनी कैंची.. पगली, समझती होगी कि ज़िन्दगी भी इससे कट जायेगी.. "
ReplyDeleteब्रिलिएंट यूज़ ऑफ़ वर्डस.. :)
मैं यहाँ तक बहुत देर से पहुँचा हूँ फिर भी शयद दुरुस्त पंहुचा हूँ. बहुत अच्छा व्यंग्य है. बहुत पसंद आया.
ReplyDeleteबहुत अच्छे!!!
ReplyDeleteकोई न आया इस पोस्ट पर। सब फ़ेसबुक के चेकपोस्ट पर खड़े हैं। :)
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