
पतले चक्कों वाली सायकिल
पर पैंडल मारते मारते
शहर के दुसरे कोने
में आ गए..
अब बस्ते रख दिए है
पेड़ से सटाकर..
और मोजो को
जूतों में खिसका दिया है..
कोहनी का तकिया बनाकर.
लेट गए है मिट्टी में
और देखते हुए
आसमान में
मुस्कुराकर कहते है.. कि साला
पी टी आई जो पकड़
लेता तो धुनाई बहुत होती..
कुछ देर सुस्ताकर
खोलते है टिफिन
मेथी के परांठो
की खुशबू लुटा देते
है आसमानों में..
अब एक टांग पे टांग
टिकाये गिनते है
अंटी के सिक्को को..
और खरीद के पतंग
चाँद तारो वाली
बस्ते से चरखी..
निकाल लेते है..
लम्बी तान पतंग को देके..
बस ऊपर ही तकते है..
कट जायेगी जब
दस पांच पतंगे..
झाड के पैंट को अपनी..
बस्ते में चरखी धर लेंगे..
सायकिल पे रख के बस्ता अपना
फिर से घर को चल लेंगे..
जो कहते है
ऐसा हाल रहा तो
आगे जाकर क्या करोगे?
उनकी हमको फ़िक्र नहीं
आफ्टर आल अभी
पिछले सन्डे ही तो पहला पिम्पल फूटा है..
Order Order !
ReplyDeleteMast hai
मस्त!!
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण किया है आपने परिवेश का, आभार स्वीकार करें.
ReplyDeleteजियो गुरु.. जवानी छा रही है पहले पिम्पल फूटने के बाद.. :)
ReplyDeleteअच्छा है। कर लो यह सब। हमने नहीं किया तो अब तरसते हैं कि मिस कर दिया कुछ।
ReplyDeleteकुछ न कुछ मिस करना है, तो जो बच सकता है, बचा लो!
अरसे बाद वो कुश मिला ......
ReplyDeletelove you in this mood.......keep it up bro.....
original ...कुश. मजा आ गया.
ReplyDeleteजवानी कुछ ही कदम दूर है ............. बहुत अच्छा लगा पढकर
ReplyDeleteनये बिम्ब, जीवन को व्यक्त करने के।
ReplyDeleteनये बिम्ब, जीवन को व्यक्त करने के।
ReplyDeleteaapke post ne school ki yaad dila de!
ReplyDeleteजो कहते है
ReplyDeleteऐसा हाल रहा तो
आगे जाकर क्या करोगे?
उनकी हमको फ़िक्र नहीं
आफ्टर आल अभी
पिछले सन्डे ही तो पहला पिम्पल फूटा है..
उम्र का दौर जो बना दे या बिगाड़ दे ...... नए बिम्ब के साथ हकीकत परक चित्रण .......
वाह ही वाह
ReplyDeleteकैसे कैसे दिन याद दिलाते हो. वाह
ए
ReplyDeleteआसमान में
मुस्कुराकर कहते है.. कि साला
पी टी आई जो पकड़
लेता तो धुनाई बहुत होती..
mast likha hai...ekdum mast.
आफ्टर आल अभी
ReplyDeleteपिछले सन्डे ही तो पहला पिम्पल फूटा है.
बिंदास..... बधाई हो.......
गलत मत समझना - पिम्पले फूटने की.
हाय कित्ता क्यूट पिम्पल फूटा है लड़के को...बड़े दिन बाद इस मूड की पोस्ट लिखी है. झकाझक है एकदम.
ReplyDeleteडा.अनुराग सही कह रहे हैं...खोया कुश वापस लौट आया है...ये है पक्की कुश नुमा रचना जिसे पढ़ कर इंसान हो जाता है खुश...वाह रे कुश.
ReplyDeleteनीरज
हाय दैय्या! पोट्टा जवान हो चला:)
ReplyDeletepimple phootna ..... jawan hona
ReplyDeleteleo kuch to sikh ke jaoon....
thora bakhat kam lijiye....bar bar lautna
achha nahi lagta....mast rahiye...bindas likhiye..
कुछ ऐसी बचपन वाली पोस्ट और डालिए.. मौसम ताज़ा हो जाता है
ReplyDeleteउफ़ ! जवानी के दिन याद आ गए :-)
ReplyDeleteमस्त है कुश भाई...मस्त एकदम :)
ReplyDeleteबोले तो एकदम झक्कास.खूब लिखा है.
ReplyDeleteउन्मुक्त भाव को दिए हैं बढ़िया शब्द.
unbelievable...!! main yahan pehle kyun nahin aayi...jus simply tooooo good
ReplyDeleteloved it
ReplyDelete:-/)
ReplyDelete:) :)
:D :D :D
बहुत बढ़िया सर...आखिर "सुखा" खत्म हुआ..वो भी एक बेहतरीन "पिम्पल" पोस्ट के साथ...:)
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति ..स्कूल से भाग कर जवानी को समझती हुई ...
ReplyDeletewow... awesome...
ReplyDeleteबचपन को कितने अच्छे से सजा दिया इस कविता में...
पर मेथी के पराठे... भूख लग गई...
but pimple??? ;)
बहुत शानदार, मज़ेदार, बचपन कितना कीमती होता है...
ReplyDeleteरिफ्रेशिंग !
ReplyDelete..
किशोरावस्था में दाखिल हों या युवावस्था में ..बस बचपन ऊँगली थामे ताउम्र साथ ही चलता रहे..
----
चित्र ने नर्सरी राईम्स की किताब की याद दिला दी.
क्या यार! हमने पढ़ पढ़ के लाइफ खराब कर दी |
ReplyDeleteकहाँ गायब हो जाते हो यार… ऐसा लिखोगे तो पता नहीं क्या होगा हमारा… :)
ReplyDeleteयादे, कुछ यादे रह जाती है । अलि हैदरका पुरानी जिन्सवाला गाना याद आया । अब की बार इस के बाद उसकी बारी आती है । पुरा पढा और अपनी फ्लैस ब्याक पे चला गया । धन्यवाद
ReplyDeleteअरे वाह.....
ReplyDeleteपिछले सन्डे ही तो पहला पिम्पल फूटा है..
बहुत खूब!!!!!
पिम्पल, बड़ा सताता था किशोरावस्था में। एक फोडो तो दूसरा निकल आता था, सुंदर प्रतीकों से वयक्त किया आपने उस संक्रमणकालीन उमर को।
ReplyDeleteपढ़ कर लगा कि अपने बचपन में लौट गई. बात पतंग कि हो या गुड्डे-गुड़ियों की,हम सभी की याद तारो-ताज़ा हो गई. वो बेफिक्री के दिन अब जिंदगी में फिर कहाँ? टिफिन खोलते ही पराठे-आम के अचार की खुशबू...वाह वाह!!! गाने को दिल करता है --कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन... जो अब वापस नहीं आने हैं. खूबसूरत एहसास बचपन का......
ReplyDeleteआफ़्टर आल..एकदम क्लेरेसिल मार्का पोस्ट लिखी है..पिम्पल को नजर न लग जाये..बाइ द वे वो पिम्पल कहीं पी टी आइ की करी पिटाई मे तो नही फूट गया था..:-)
ReplyDeleteखैर अब अगला पिम्पल कब फूटेगा..?..महीना..दू महीना? :-)
बहुत सौम्य सी सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteवाह रे वाह !!!
ReplyDeleteलिखते रहा करो भाई...
kuchhko tobachpan yaad ayaa .kisiko methike parate yaadayaa jo mujhe yaaaayaa wah to mai bhoolhi gaya kavita ko padhkar.
ReplyDeleteDr jaijairam anand
bahut hi umda hai....kitni khubsurti se likha hai....bachpan ko hum sabhi kis tarh sahejna chahte hain...lekin ek pimple futte hi log humse bachpan bhulne ki umeed karne lagte hain
ReplyDeleteजाने कैसे रह गई यह कुश नुमा चीज़ पढ़ने से.....
ReplyDeleteजबर्दस्त्त है....
सुन्दर चित्रण किया है आपने परिवेश का, आभार|
ReplyDeleteजवानी कुछ ही कदम दूर है ............. बहुत अच्छा लगा पढकर
ReplyDeleteshiva12877.blogspot.com
Zinda dil kavita lagi...bachpan se bekhauf aur nadaan
ReplyDeleteजवानी की पहली दस्तक को बधाई
ReplyDeletemalum nahi ye kaise miss kar gayi main....maja aa gaya :)
ReplyDeletepahli baar post padha...liked it man :)
ReplyDeleteवाह वाह कुश जी..मज़ा आ गया...बचपन का एक गम याद आ गया...पतंग ना उड़ा सके कभी...पता नहीं क्यूँ बस नहीं उड़ा सके....
ReplyDeleteWaah...waah...Kush....Ji too...Good....
ReplyDelete