आज थोडी देर के लिए सूरज को पीछे धकेल देते है.. गर्मी से हाल बुरा कर दिया ससुरे ने... चाँद को भी थोडा नीचे सरका देते है. साला धरती पे लाईट कम मारता है.. इन चिनार के पेडो की हाईट कम करनी पड़ेगी वरना लोग अमरुद समझ कर आसमान से तारे तोड़ लेंगे.. और बादल! बादलो का क्या करे..? पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लगा देता हूँ.. इधर उधर घुमते रहते है दिन भर.. इसी बहाने लोगो को ठिकाने लगाते रहेंगे.. वो पिकासो वाली पेंटिंग लाना यार.. मोनालिसा वाली... एक काम करते है उसको आसमान पे एक साईड में लगा देते है.. धरती घूमेगी तो पूरी दुनिया देख लेगी.. पेंटिंग वाले ब्रश और कुछ वाटर कलर ले आओ.. सारे बच्चो को हाथ में देकर बादलो पे बिठा दो.. आसमान में रंग भरते रहेंगे.. एक काम करो ना यार कोई बढ़िया सा मोगरे वाला परफ्यूम लाकर स्प्रे मार दो.. पूरी दुनिया में..
दो बड़े वाले स्कूप भर के हिमालय की बर्फ उठा लों और शरबत डालकर बरफ के गोले बाँट दो सबको... दुनिया में बहने वाली सारी हवा को थोडी देर के लिए डीप फ्रीज़र में रख दो.. ताकि ठंडी ठंडी हवा सबके गालो को लगे... दो लोग जाओ और दुनिया के सारे नींबू तोड़ के समंदर में मिला दो.. इस बार बारिश में सबको नींबू पानी पिलायेंगे.. वो इन्द्रधनुष उधर कहाँ लटक रहा है.. उसको यहाँ सेंटर में रखो.. और लाल वाला रंग थोडा झुका के नीचे रखो ताकि लडकिया उसमे ऊँगली डुबाकर लिपस्टिक लगा ले..
ज़मीन का एक टुकड़ा काटकर पतंग बना दो उसकी.. आसमान में पेंच लड़ायेंगे सब.. और रेगिस्तान की मिट्टी के खिलौने बनाकर बाँट दो बच्चो में.. बादलो में जमा बूंदों में गुलाब जल मिला दो.. महकती हुई बारिशे मिट्टी की खुशबू को और हसीन बना देगी...
खो जाने में जो मज़ा है वो पा जाने में कहाँ..?
...............
मेरी बात सुनके हँसना मत..
कि मैं दौड़ना चाहता हूँ तितलियों के पीछे
और बनाना चाहता हूँ..
समंदर के करीब रेत के टीले
और पकड़ के खरगोश को
दोनों हाथो में... अपने गालो को
गुदगुदाना चाहता हूँ..
मैं भीगना चाहता हूँ बारिश में
और छातो को जमा पानी में
उल्टा बहाना चाहता हूँ..
मैं भागना चाहता हूँ.. नंगे पांव
और बात करना चाहता हूँ हर अजनबी चेहरे से
या देखकर उन्हें बिना बात के मुस्कुराना चाहता हूँ..
मैं ठोंक के कील इसकी
पीठ में.. ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ..
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ReplyDeleteमैं ठोंक के कील इसकी
ReplyDeleteपीठ में.. ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ..
मेरी बात सुनके हँसना मत..नहीं ऐसा अक्सर हर दिल चाहता है ..चलो !!सबका तो पता नहीं मेरा दिल तो चाहता है ..खासकर बादलों में गुलाब जल मिला देने वाला आइडिया बहुत महका रहा है दिल को ....कुश की एक खुशगवार पोस्ट जो कहीं तो गुम कर ही देती है
कर लो जो करना है । फिर न कहना कि परमीशन नहीं दी थी ।
ReplyDeleteऔर बात करना चाहता हूँ हर अजनबी चेहरे से
ReplyDeleteया देखकर उन्हें बिना बात के मुस्कुराना चाहता हूँ..
sambhaal ke ..sandle ki heal dekh kar ... aur ye sab karne ke liye khud ko diwana ghosit karna padega
अथ चाहिए - चाहिए
ReplyDeleteइति पाइए - पाइए !
पुरानी खूबसूरत में एक गीत था वो याद आ गया.
ReplyDeleteवाह क्या सतरंगी दुनिया बनाई है ...और लिपस्टिक तो कमाल की है पर इन्द्रधनुष की लिपस्टिक जरा महँगी होगी न वो क्या है न आजकल नेचुरल चीजें बहुत महँगी हो गई हैं :)
सपनो सी प्यारी पोस्ट..
ज़मीन का एक टुकड़ा काटकर पतंग बना दो उसकी.. आसमान में पेंच लड़ायेंगे सब
ReplyDeleteदिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
किस अजनबी दुनिया की सैर करा दी भाई........
ReplyDeleteकई कई तहों में बंद कर रखी हसरतों को हवा दे दी....
यह ठीक न किया....
JHAKAAS POST............
ReplyDeleteaapki post ki hi mast bhaasha me kahu to ' kya mast post hai'.. theek kaha hai ranjna ne k tahon me band rakhi hasraton ko hawa de di.. aur aisi hi ek post mere blog par bhi milegi aapko kavita k roop me.. vakt mile to zrur padhiyega.
ReplyDeleteThanks
अरे क्या कहूँ अब्……………आपने तो ख्वाब की दुनिया दिखा दी और मै उसमे भ्रमण करने चली गयी………………इतना सुन्दर ख्वाब हो तो कौन वापस आना चाहेगा………………गज़ब का लेखन्।
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteKya Baat Hai
बरसो बाद खोये हुए छोटे की शक्ल देखी है ...खामखाँ उलझा हुआ था समझदारो के बीच...अपनी ओरिजनल टी भूले हुए ....सेकण्ड पार्ट की बात कर रहा हूँ ......
ReplyDeleteमैं ठोंक के कील इसकी
पीठ में.. ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ..
इसकी ......
एक दो ओर आने दो ऐसे ही....
.गोली मार भेजे में.भेजा शोर करता है .भेजे की सुनेगा तो मरेगा कल्लू...........
पाने से सम्हालना पड़ता है। खो जाने में स्वयं को भी भूल जाया जाय।
ReplyDeleteबहुत खुब भाई...
ReplyDeleteइतना कुछ अरेंज करवाना है.. सुरेश कलमाडी को दे दिया जाए इसकी जिम्मेवारी..
ReplyDeleteBTW, बहुत दिनों बाद पुराना कुश दिख रहा है.. बात क्या है मियां? :)
तुम्हारी स्टेटस अपडेट्स की कतरनें दिखी यहाँ... तुम्हारे मारक वन-लाईनर्स आपस में जैसे गुन्थ से गये हैं और एक मूड बनाने वाली पोस्ट तैयार कर दी है..
ReplyDeleteभाई....ग़ज़ब.की पोस्ट है....कविता के तो क्या कहने.... कविता ऐसे लग रही है कि पूरे वन गो (one go) में लिखा है.... बहुत शानदार....और शीर्षक के तो क्या कहने.... बिलकुल सही और सटीक दिया है....
ReplyDeleteकुछ भाई आज तो कमाल कर दिया, एक से बढकर एक चीज। पहले किस पर बात करूँ समझ नही आ रहा है। आखिर से शुरु करुँ या शुरु से। वैसे हमारा मन भी कहता है कि सब आखिर से शुरु कर रहे है तो हम शुरु से करेंगे। क्योंकि जो सब करते है वो हम नही करते समझे कि नहीं, नही समझे तो मुझे क्या( नैना का डायलाग) सारी बात को एक लाईन में और वो भी आपके शब्दों में कहूँ तो जो मजा खो जाने में है वो मजा पा जाने में कहाँ। दूसरा ये पिक्चर लगता है इल्सटेटर में बनाई है। बहुत खूबसूरत लग रही है। सोचा रहा हूँ चुरा लूँ। क्योंकि चुराने का आंनद ही कुछ और होता है।
ReplyDeleteवो पिकासो वाली पेंटिंग लाना यार.. मोनालिसा वाली... एक काम करते है उसको आसमान पे एक साईड में लगा देते है.. धरती घूमेगी तो पूरी दुनिया देख लेगी.. पेंटिंग वाले ब्रश और कुछ वाटर कलर ले आओ.. सारे बच्चो को हाथ में देकर बादलो पे बिठा दो.
एक ब्रश इस बच्चे को भी दे देना भाई।
वो इन्द्रधनुष उधर कहाँ लटक रहा है.. उसको यहाँ सेंटर में रखो.. और लाल वाला रंग थोडा झुका के नीचे रखो ताकि लडकिया उसमे ऊँगली डुबाकर लिपस्टिक लगा ले..
अजी लिपस्टिक नही वो गोल गोल बिंदी। ........
मैं ठोंक के कील इसकी
पीठ में.. ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ..
क्या जबरद्स्त चोट मारी है आखिर में।
सच आज दिल खुश हो गया पोस्ट पढकर।
अनुराग जी की टिप्पणी से चुरा रही हूँ
ReplyDelete..खामखाँ उलझा हुआ था समझदारो के बीच...अपनी ओरिजनल टी भूले हुए ....
और पीडी से
इतना कुछ अरेंज करवाना है.. सुरेश कलमाडी को दे दिया जाए इसकी जिम्मेवारी..
बिंबो के इतने फ्री प्रयोग पर उँगली उठायी जा सकती है...! सावधान...! :)
और
मैं ठोंक के कील इसकी
पीठ में.. ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ..
ये बात वैसे मैने कभी कही नही, मगर पक्का तुमने मेरा आइडिया चुराया होगा। ये आइडियाज़ बड़े बेवफा हो गये हैं मेरे जाने कब, कैसे दूसरे के दिमाग में घुस जाते हैं।
वैसे इतनी सारी तैयारी हो काहें की रही है, कउनो त्यौहार आ रहा है का भईया...?????
excellent...keep it up...! we want to enjoy some more posts of this taste.
क्रांतिकारी खयालातों भरी उम्दा रचना !
ReplyDeleteपेंटिंग वाले ब्रश और कुछ वाटर कलर ले आओ.. सारे बच्चो को हाथ में देकर बादलो पे बिठा दो.. आसमान में रंग भरते रहेंगे.
ReplyDeleteकाश ऐसा हो सकता....पूरी दुनिया ही बदल जाती..
मैं ठोंक के कील इसकी
पीठ में.. ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ..
कमाल है, सच्ची. ऐसे इन्कलाबी तेवर ही तो चाहिए, बदलाव के लिये.
post to wakai bahut bahut shaandaar hai...main bhi kho gayi post mein. aur haan..." ye chilpiliya kya bala hai?"
ReplyDelete
ReplyDelete@ पल्लवी..
चिल्पिल्वा से क्यों पूछती हो ?
तहकीकात का मुहकमा तो तुम्हारा है :)
पोस्ट पढ़वाना भूल कर ब्लॉगर-मुख़बिर ख़बर लाया है, कि भारती ब्रॉडबैन्ड के ADSL I.P. 122.168.34.127 से यह प्यार भरा सँबोधन भेजा गया है जो कि मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में नाक-पोंछते बच्चों के दुलार का सँबोधन है ।
ReplyDeleteसुर्री भैय्ये, अब तुम्हें यूँ न भटकना पड़ेगा.. बरामदगी पार्टी रवाना की जा चुकी है,
वह लोग तुम्हें किसी अनाथालय / सुधारगृह में ठिकाने लगा देंगे ।
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रही बात पोस्ट की .. तो इसके फेड-इन फेड-आउट सिक्वेन्स बचपन में खो जाने के छटपटाहट को बखूबी बयान कर रही है । ग़ुलज़ार की बीती 74 वीं सालगिरह पर इससे बेहतर तोहफ़ा हो ही नहीं सकता था ।
सदा भरते रहो ऊंची उडान .... बधाई:)
ReplyDelete@पल्लवी मैडम
ReplyDeleteये सुरुसरी इंदौर जिले से निकली हुई है.. बुजुर्गो को जो काम शोभा नहीं देता वे वही काम करते है.. अब करते है तो करते है.. क्या कहे उन्हें
सुना है भोपाल में पुलिस कम्प्लेन आप ही लिखती है.. हमारे पास पूरा डेटा है ऍफ़ आई आर लिखवाने के लिए
gtalk से blogspot तक का सफर अच्छा लगा... :-)
ReplyDeleteबहुत-बहुत बढ़िया पोस्ट...अलग ही दुनियाँ में पंहुचा दिया.
ReplyDeleteवाह!
सच कहा...खो जाने में जो मज़ा है वह पाने में नहीं है.
WOW....what an imagination
ReplyDeleteकल्पना के घोड़े, क्या खूब दोड़े....सुंदर पोस्ट सर...
ReplyDelete"मैं ठोंक के कील इसकी पीठ में.. ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ" अभी तुम पास होते तो तुम्हारे इस मिस्रे पे गले से लगा लेता।
ReplyDeleteविगत कुछेक महीनों में पढ़ी हुई अब तक की हिंदी ब्लौगिंग की सबे खूबसूरत पोस्टों में से एक। अपनी पसंदीदा फ़ेहरिश्त में शामिल कर रहा हूं।
अरे हाँ, चलते-चलते बस ऐसे ही एक सवाल "पिकासो और मोनालिसा" को जोड़ना कोई कटाक्ष है या यूं ही...?
कुशजी , धन्यवाद
ReplyDeleteहर कोइ चाहेगा आप जैसै कल्पना के घोडे दौडाये । आखिर हवा की मिठाइ घी के साथ मजा ही देती है । आप की पोष्ट ने दुसरी दुनिया की सैर कराइ । रीयल लाईफ के भागदौड मे आप की लिखावट पढ्ने से थोडा सुकुन सा महसुस हुआ । सुन्दर पोष्ट
मै हिमालय से बर्फ़ लाने को तैयार हुं !! :)
ReplyDeletekush ji..aur khokar,pane mein jo maja hai uska kya :)...aapki panktiyaan..kamaal ki hai!
ReplyDeleteकुश.......मैं तो पागल हो रहा हूँ.....मुझे बचाओ......दरअसल मैं तुम्हारे शब्दों के चित्रों को वास्तविक बनाकर उनमें खो गया हूँ....सच.....अरे अब मुझे बाहर तो निकालो....बचाओ....बचाओ....बचाओ.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसोचने में कोई बुराई नहीं।
ReplyDeleteये वाली पोस्ट तो बहुत मजेदार था। चौकस कल्पना।
ReplyDeleteit seems tht u have soo many question from the life...but don't find their answer outside...u will get them sumwhere inside you...
ReplyDeletenice imagination..tc
extremely good
ReplyDeleteकाश कि ऐसा हो जाये..
ReplyDeleteसूरज और चाँद अपनी -अपनी जगह से थोडा-थोडा खिसक जाएँ
हम फिर से बच्चे बन कर आसमान में भर दें रंग...
और ये खारा समंदर सारा का सारा नीबू कि शिकंजी में बदल जाये ..
हम सबका बचपन भले ही बीत गया हो पर दिल अभी भी बच्चा ही है..
आज भी वैसे ही ख्वाब देखना अच्छा लगता है--
क्या करें ???
दिल तो बच्चा है जी!!!
कुश,,आपकी कविता मेरे साथ ही ना जाने कितनों के दिल के करीब है!!
thanks a lot!!!!!
mast bhaikush....
ReplyDeletefrom harish sindhi...jodhpur