कौन वो छम्मक छल्लो..
अरे तू भी कहा लेकर बैठ गया उसको.. आने दे हम निपट लेंगे उससे.. तू टेंशन मत ले उसकी.. भाई जी ने इतना बोलके माहोल को ठीक किया.. चाय का ऑर्डर दे दिया गया.. रेडियो पर मैच की कमेंट्री चल रही थी.. और ये मारा सचिन ने सिक्सर.. जय हो.. सब एक साथ चिल्लाए.. छोटू ज़रा आवाज़ तेज करियो रेडियो की..
खटाक और रेडियो बंद.. सबने नज़र उठाकर देखा.. सामने वो खड़ी थी..
"क्या देख रहा है बे?" आते ही वो गरजी
"जो देखना है वो दिखाएगी क्या?" लड़का बोला.. और सब उसकी मर्दानगी पर हो हो करके हँसने लगे..
पीली सलवार कमीज़ पहने एक लड़की पीछे खड़ी थी.. उस लड़की ने आगे बुलाया.. "मुझे बता कौन था इनमे से.."
"मैं था.. बोल के करेगी?" एक और बोला..
"तेरे बड़े हाथ चलते है.. लड़कियों पर," वो लड़की बोली
तुझपर भी चलाऊ क्या?
उस दिन तो बहुत बोल रहा तू मेरे कपड़ो के बारे में की ऐसे कपड़े पहनोगी तो छेड़ेंगे नही तो क्या करेंगे... आज तो सलवार कमीज़ पहनी थी इसने.. फिर क्या हो गया..
"तू कौन कलेक्टर है?.. ज़्यादा सती सावित्री ना बन.. सब खबर है मणे.." भाई जी बोले
तुझसे बात नही कर रही हूँ तू चुप कर..
क्यो चुप करे भाई.. तू कैसी है सब जानते है.. उस रात को होस्टल से तू भी तो गायब थी.. बड़ी आई वकालत करने..
तू अपने काम से मतलब रख.. इन लड़कियों को छेड़कर मर्द बनता है.. मुझे हाथ लगाता फ़िर देखती..
"लो बोलो ये देखती भी है.. मुझे तो लगा सिर्फ़ दिखाती होगी.." फिर से उसकी मर्दानगी पर सब ज़ोर से हँसे..
देख तू हमसे पंगा मत ले वरना बीच बाजार जो हालत करूँगा तेरी.. किसी को मुँह दिखाने लायक नही रहेगी..
और तू कर भी क्या सकता है.. लड़कियो के पीछे हाथ मारकर मर्द बनता है..
ए छोरी! बहुत हो गयी रे तेरी ठिकचिक ठिकचिक.. चल अभी रस्ता नाप वरना अभी तक तो सिर्फ़ हाथ मारा है..तू हमें जानती नही हम और भी क्या क्या कर सकते है
दीदी चलो.. पीछे खड़ी सलवार कमीज़ वाली लड़की बोली.. दीदी प्लीज़ चलो. मुझे कुछ नही करना..
सुन ले क्या बोल रही है वो.. और निकल ले यहाँ से..
"पहले माफी माँग इस से.." लड़की बोली
देख भई छम्मक छल्लो सीधी बात तो थारे भेजे में ना घुसे.. अब तू सुन मारी बात.. ये कॉलेज है शिक्षा का मंदिर.. यहाँ पर थारे जैसी छोरी की कोई जगह नही.. जो जीण पहने.. दारू पिए.. रात बिरात देर से होस्टल में घुसने वाली छोरी हमारे कॉलेज में तो ना पढ़ सके है.. क्यो भाइयो..
हा हा और क्या हमने तो सुना है.. कल रात चार चार लोंडो के साथ थी ये..
तमीज़ से बात कर साले वरना ज़बान खींच लूँगी..
"चुप कर साली !" भाई जी बोले
वीरू ज़रा बुला के ला रे सबको.. इसका फ़ैसला यही कर डालते है.. अब या तो ये रहेगी कॉलेज में या हम..
सारे लड़के लड़कियो को मैदान में इक्कठा कर लिया गया.. वीरू की गर्लफ्रेंड अपने साथ बाकी की लड़कियो को ले आई.. सारे लड़के लड़की आकर खड़े हो गये.. भाई जी उठा और लड़की के शॉर्ट टॉप की तरफ इशारा करके बोला.. ये देखो ये उघाडे बदन घूमने वाली छोरी मर्यादा की बात करती है.. जैसे कपड़े ये पहनती है.. उसका हमारी बहनो पे बुरा असर पड़ता है.. हम ऐसी छोरियों के कॉलेज में रहते पढ़ाई नही करेंगे..
पीले सलवार कमीज़ वाली लड़की की बहन भी आ गयी थी.. उस से दो साल सीनियर उसने आते ही भाई जी से माफी माँगी और अपनी बहन को ले गयी..
कितनी बार मना किया तुझे इस लड़की के साथ मत रहा कर..
पर दीदी वो..
चुप कर.. किसने कहा था अकेले क्लास रूम जाने को.. अगर घर पे पता चल गया ना तो इंजीनियर बनने के ख्वाब भूल जाना..
"भाईयो आप ही बताओ क्या ऐसी लड़की कॉलेज में रहनी चाहिए.." भाई जी की आवाज़ गूंजी
नही बिल्कुल नही.. सबने यही जवाब दिया.. जो कुछ नही कहना चाहते थे उन्होने भी नही कहना ही ठीक समझा..सारी लड़किया भी यही कह रही थी ऐसी लड़कियों को नही रहना चाहिए कोलेज में.. पीली सलवार कमीज़ वाली ने हाथ तो उठा रखा था पर नज़रे नही
"तो ठीक है फिर कल सुबह डाइरेक्टर तक अर्जी पहुँचा दी जाएगी.." इतना बोल के भाई जी उसकी तरफ़ मुडे
देख लिया हमसे भिड़ने का अंजाम.. कॉलेज से भी जाएगी और इज़्ज़त से भी.. और जे तू चाहती है इन लफडो में नही पड़ना.. तो भाई जी की बात मान और शाम को होस्टल के इक्कीस नंबर कमरे में आ जाना..तेरे सारे पाप धुल जायेंगे..
The End